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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Sunday, May 13, 2018

ब्रिटिश काल में हरिद्वार के प्रसिद्ध मंदिर /धार्मिक स्थल

Famous Temple and  Religious Places of Haridwar in British Period 
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- ) 
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  75
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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -  75               
(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--179)       उत्तराखंड में पर्यटन  आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 179

    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन  बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
      हरिद्वार या गंगा द्वार महाभारत काल से ही धार्मिक स्थल रहा है।  हरिद्वार का नाम मध्य युग में मायापुर था।  ब्रिटिश काल में हरिद्वार जनपद में निम्न मंदिरों व प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों की सूचना उपलब्ध है।
 हर की पैड़ी -हरिद्वार 
विल्वककेश्वर मंदिर -- हरिद्वार 
नीलेश्वर महादेव - नील पर्वत 
दक्षेश्वर मंदिर -कनखल 
राधाकृष्ण मंदिर ----राजघाट 
मायादेवी मंदिर -हरिद्वार 
मनसा देवी मंदिर -हरिद्वार 
चंडी देवी मंदिर - हरिद्वार 
सुरेश्वरि मंदिर - हरिद्वार 
सिद्धेश्वर मंदिर - रुड़की 
शिव मंदिर- पहाड़ी बजार रुड़की , काली मंदिर , आदि 
पंचलेश्वर मंदिर -लक्सर 
पत्थरेश्वर मंदिर -लक्सर 
शिव मंदिर राम दरबार -लक्सर 
शिव मठ - लंढौर 

एक गुरुद्वारा भी प्राचीन मना जाता है 
मुस्लिम धार्मिकस्थल 
पिरान कलियर - रुड़की 
काठापीर - लक्सर 



 (संदर्भ व साभार -डा  हेमा उनियाल , केदारखंड )


Copyright @ Bhishma Kukreti  17 /4 //2018

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना शैलवाणी (150  अंकों में ) कोटद्वार गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी 
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
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  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   MedicalTourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;

टिहरी गढ़वाल व देहरादून के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल

 Temples of Dehradun and Tehri Garhwal 
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- ) 
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  77
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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  - 77                  
(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--181      उत्तराखंड में पर्यटन  आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 181

    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन  बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
      ब्रिटिश काल संदर्भ में देहरादून में निम्न प्रसिद्ध धार्मिक स्थल हैं -
 गुरुराम राय दरबार , देहरादून 
टपकेश्वर मंदिर -देहरादून 
लक्ष्मण सिद्ध 
भरत मंदिर ऋषिकेश 

बाबा कमलीवाला क्षेत्र 
वीर भद्र क्षेत्र 
जगतग्राम के यज्ञ स्थल व देव स्थल 
शिव मंदिर लाखामंडल 
केदार मंदिर लाखामंडल 
महासू मंदिर हनोल
  ब्रिटिश काल संदर्भ में टिहरी गढ़वाल में निम्न मंदिर प्रसिद्ध हैं -
 पुरानी टिहरी में कई मंदिर राजाओं ने निर्मित किये थे 
रघुनाथ मंदिर देवप्रयाग 
संगम 
चंद्रवदनि मंदिर 
पलेठी के सूर्य मंदिर 
सुरकंडा मंदिर 
कुंजापुरी बूढ़ा केदार 
बालखिलेश्वर मंदिर 
ज्वालामुखी 
सेम मुखेम 
किलकिलेश्वर 
घंटाकर्ण 
जाख देवता कांडा

शिवानन्द आश्रम 
  ( साभार , डा हेमा उनियाल , केदारखंड ) 





Copyright @ Bhishma Kukreti  /4 //2018

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना शैलवाणी (150  अंकों में ) कोटद्वार गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी 
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
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  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   MedicalTourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;

कुछ नए अनाज , सब्जी , फल, पेय पदार्थ जिन्होंने उत्तराखंड की आर्थिक दशा बदली

 New Crops of British Period those changed Uttarakhand Economics 
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- ) 
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -78
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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  - 78                  
(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--182)       उत्तराखंड में पर्यटन  आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग -182

    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन  बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
    कृषि , अनाज , फल किसी भी भूभाग के पर्यटन को परोक्ष व अपरोक्ष रूप से न्यूनाधिक प्रभावित करते हैं।  ब्रिटिश काल में उत्तराखंड में कई आर्थिक परिवर्तन हुये उनमे से एक था वनों को कृषि भूमि में परिवर्तन व दूसरा कुछ अनाज या भोज्य पदार्थों का आगमन -
                         तम्बाकू 
                  पुर्तगाली या स्पेनी व्यापारियों के कारण तम्बाकू पेय ग्रामीण उत्तराखंड में पंहुचा व पहाड़ों की कृषि का एक अहम हिस्सा ही नहीं बना अपितु तम्बाकू आगमन से हुक्का निर्माण को भी बल मिला। कई गाँव हुक्का निर्माण के लिए प्रसिद्ध हो गए और हुक्का ने शिल्पकारों हेतु नया आर्थिक सोपान खोला। तम्बाकू ब्रिटिश काल से पहले ही उत्तराखंड में प्रचलित हो चूका था। ब्रिटिश काल में बीड़ी -सिगरेट का प्रचलन शुरू हुआ। 
        चाय 
 ग्रामीण उत्तराखंड में चाय प्रचलन भी ब्रिटिश काल की देन है।  ब्रिटिश व यूरोपीय व्यापारियों ने उत्तराखंड में चाय बगान भी निर्मित किये किन्तु रूस की आयात नीति व कुमाउनी व गढ़वालियों द्वारा चाय बगानों  में कठिन  परिश्रम में न आने से चाय बगान बंद पड़ गए।  किन्तु चाय की मांग बढ़ गयी और चाय पर्यटन का एक प्रमुख अंग बन गया।  शक़्कर उपभोग में वृद्धि भी ब्रिटिश काल की देन है।  लूण -गूड़ आयात के साथ चाय चिन्नी भी आयात में शुमार हो गए।  
      मक्का /मकई /मुंगरी 
मक्का को लैटिन अमेरिका या नई दुनिया से पुरानी दुनिया में प्रवेश करा ने का श्रेय कोलंबस  को जाता है। भारत में मक्का ब्रिटिश काल से पहले ही प्रवेश कर चूका होगा।   बुचनान हैमिलटन 1819  में लिखता है कि कांगड़ा में गरीबों का भोजन मक्का है। किन्तु लगता है उत्तराखंड में ब्रिटिश काल के बाद ही आया।  मक्का ने उत्तराखंड की कृषि व आर्थिक स्थिति में आमूल चूल परिवर्तन ला दिया।  मक्के ने ओगळ जैसे अनाज की खेती ही बंद करवा दी।
      सेव 
   हिमाचल जैसे ही क्रिश्चियन पादरियों ने सेव रोपण  1850 में अल्मोड़ा में शुरू किया था और उत्तराखंड के कई पहाड़ी क्षेत्र में बगीचे भी लगाए थे।  एक व्यापारी ने हरसिल में सेव के बगीचे भी लगाए थे (मनोज इष्टवाल की वाल से ) . किन्तु उत्तराखंड वासियों ने सेव कृषि की सदा से ही अवहेलना की।  इसका मुख्य कारण है कि उत्तराखंड वासी पेट भराऊ अनाज को महत्व देते रहे हैं और जो पेड़ पांच साल में फल दे उसको कतई महत्व नहीं देते हैं।  
पपीता 
 पपीता कृषि भी उत्तराखंड में ब्रिटिश काल में ही प्रचलित हुयी।  यद्यपि पहाड़ों में पपीता कम ही उगाया जाता था किन्तु भाभर क्षेत्र में पपीता एक व्यापारिक कृषि या कैश क्रॉप  है। 

   गोभी 
  गोभी के बगैर आज उत्तराखंड पर्यटन सोचना मुश्किल है।  1822 में ईस्ट इंडिया  कम्पनी के डा जेम्सन ने सर्वपर्थम सहारनपुर बगीचे में उगाया।  व अनुमान लगाया जाता है कि 1823 में मसूरी या देहरादून जो कि सहारनपुर डिवीजन के अंतर्गत था में भी उगाया गया।  उसके बाद गोभी सारे भारत में फ़ैल गयी। गोभी उत्तराखंड की पहाड़ियों में नहीं उगाई जाती थी किन्तु भाभर क्षेत्र में गोभी ने कृषि में आर्थिक क्रान्ति लायी।  
 आलू 
आलू भी भारत में पुर्तगाली व्यापारियों द्वारा आया किन्तु उत्तरी भारत में आलू कृषि का श्रीगणेश कैप्टेन यंग को जाता है जिसने 1823 (1820 ??) में मसूरी में सर्वपर्थम आलू उगाय।  इसके पश्चात आलू शिमला होते हुए पूरे उत्तरी भारत में छा गया।  . आलू ने कई पहाड़ी गाँवों ही नहीं नहीं अपितु पर्यटन भोजन में क्रान्ति ला दी थी।  आज आलू के बगैर उत्तराखंड पर्यटन भोजन की कल्पना नहीं की जा सकती है। 
  स्क्वैश 
  उत्तराखंड कृषि  में स्क्वैश प्रवेश भी ब्रिटिश काल की देन है।  यद्यपि स्क्वैश को पहाड़ी जनता ने नहीं अपनाया किन्तु कई परिवारों हेतु स्वैश एक वैकल्पिक भोजन /सब्जी रही है।
     कद्दू /खीरा /भोपड़ा Pumpkin 
    उत्तराखंड में ही नहीं अपितु  भारत के अन्य क्षेत्रों में कद्दू की सब्जी को बार्षिक श्राद्ध में महत्वपूर्ण स्थान है तथापि यह कम ही लोग जानते हैं कि दक्षिण अमेरिका का फल कद्दू /खीरा पुर्तगाली व्यापारियों द्वारा भारत लाया गया था।  कद्दू ने भी उत्तराखंड की आर्थिक स्थिति को बदला था। 
       राजमा दाल  Kidney beans 
  राजमा या लुब्या कृषि  कब उत्तराखंड में शुरू हुयी पर कोई साहित्य उपलब्ध नहीं है।  किन्तु इसमें दो राय नहीं हैं कि राजमा का प्रचार प्रसार ब्रिटिश काल में ही हुआ।  राजमा ने कई गाँवों की आर्थिक स्थिति भी बदली। राजमा भात आज उत्तराखंड पर्यटन भोजन का महत्वपूर्ण भोजन है। 
   अमरुद 
  अमरुद भी पुर्तगालियों द्वारा सर्वपर्थम गोवा में सत्रहवीं सदी में लाया  गया।  शायद उत्तराखंड में अठारहवीं सदी में कहीं कहीं बोया भी गया होगा किन्तु प्रचार व प्रसार ब्रिटिश काल में ही हुआ होगा।  भाभर क्षेत्र की कृषि आर्थिक स्थिति को बदलने का श्रेय भी अमरुद को जाता है। अमरुद भी पर्यटन  विकास हेतु आवश्यक फल है। 
  टमाटर 
टमाटर भारत में सोलहवीं , सत्तरहवीं सदी में पुर्तगाली व्यापारियों द्वारा आ गया था किन्तु उत्तराखंड में ब्रिटिश काल में टमाटर कृषि का प्रसार हुआ।  भाभर क्षेत्र में टमाटर एक महत्वपूर्ण लाभदायी फल साबित हुआ।
 
  रामबांस 
 रामबांस कोई अनाज या फल नहीं है किन्तु रामबांस प्रवेश ने उत्तराखंड को रेशे उत्पाद हेतु कुछ काल तक एक संबल दिया व साबुन का विकल्प के रूप में दसियों साल तक रामबांस का महत्व बना रहा।  रामबांस बाड़ के लिए आज भी महत्वपूर्ण वनस्पति है।
  लैन्टीना या कुरी घास 
 क्रिश्चियन पादरी लैन्टीना को बगीचे  हेतु लाये थे किन्तु आज लैन्टीना  एक आफत बन गया है।

( संदर्भ - भीष्म कुकरेती के लेख 'उत्तराखंड की कृषि व भोजन इतिहास )

Copyright @ Bhishma Kukreti  19/4 //2018

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना शैलवाणी (150  अंकों में ) कोटद्वार गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी 
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
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  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   MedicalTourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;

उत्तराखंड का आयुर्वेद साहित्य में योगदान

Ayurveda  Literature from Uttarakhand 
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- ) 
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -79
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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  - 79                  
(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--183)       उत्तराखंड में पर्यटन  आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 183

    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन  बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
    उत्तराखंड प्राचीन काल से ही संस्कृत पोषक रहा है।  यद्यपि उत्तराखंड में चिकित्सा आयुर्वेद अनुसार ही होती थी और छात्र नकल सिद्धांत से आयुर्वेद पुस्तक को अपने लिए लिखते थे फिर उस गुरु का छात्र नकल करता था।  आयुर्वेद में अवश्य ही साहित्य रचा गया होगा किन्तु भौगोलिक व अन्य कारणों से लिखित साहित्य कालगर्त में समा  गया है जैसे श्रीनगर में प्राकृतिक आपदा /विध्वंस , गोरखाओं द्वारा रिकॉर्ड जलाना या कुमाऊं पर रोहिला आक्रमण में रिकॉर्ड समाप्ति।  
   ब्रिटिश काल व   बाद में  साधन व प्रकाशन व्यवस्था के कारण  वर्तमान में  उत्तराखंडियों द्वारा रचित आयुर्वेद साहित्य उपलब्ध है। 
             रस रंगिण 
         
  रसरंगिण आयुर्वेद पपुस्तक के रचयिता सदानंद घिल्डियाल हैं (जन्म खोला , 1898 -1928 ) हैं।  सदानंद का  आयुर्वेद ज्ञान प्रसंसनीय है।  सदा नंद घिल्डियाल के आयुर्वेद संबंधी पद्यात्मक लेख 'वैद्य बंधु ' पत्रिका में प्रकाशित होते थे। सदा नंद कृत 'महाकषाय षट्कम ; भी वैद्य बंधु ' ने प्रकाशित किया था। 
           रसरंगिण 24 तरंगों में विभक्त 4000 पद्यों का संकलन है जिसमे रससिद्धांत वर्णित है। रसशास्त्र की परम्परा में यह पुस्तक श्रेष्ठ पुस्तकों में मानी जाती है जिसमे विधि प्रयोग , विविध औषधि यंत्र निर्माण आदि महत्वपूर्ण अनुच्छेद हैं। 
              पथ्यापथ्य विमर्श 
       भोजन द्वारा स्वास्थ्य रक्षा विषयी पुस्तक के रचयिता महा ग्यानी , वैद्यरत्न , वैद्य विद्यासागर , वैद्य वाचस्पति  परमा नंद पांडेय (जन्म दियूली  , कीर्तिनगर , टिहरी गढ़वाल , 1901 ) हैं।  पथ्यापथ्य के अतिरिक्त आयुर्वेद कॉलेज आचार्य परमा नंद पांडेय ने त्रिदोष विज्ञान पुस्तक भी प्रकाशित की है। पथ्यापथ्य में 13 प्रकरण हैं।  हरणतः में भोजनों का वैज्ञानिक वेवचना की गयी है।
           आयुर्वेदीय पदार्थ विज्ञान व आयुर्वेद इतिहास 
      सुरेशा नंद थपलियाल (थाला , नागनाथ पोखरि , चमोली , 1931 ) कृत 'आयुर्वेद पदार्थ विज्ञान ' में आयुर्वेद अवतरण , पदार्थ वर्णन , द्रव्य विज्ञान ,प्रमाण विज्ञानं , गन निरूपण , तत्व निरूपण , षड्दर्शन के अतिरिक्त आयुर्वेद का इतिहास समाहित हैं। 
  आयुर्वेदीय क्रिया शरीर 
  शिव चरण ध्यानी (खंद्वारी , मल्ला इड़ियाकोट , पौड़ी गढ़वाल, 1931  ) कृत आयुर्वेदीय क्रिया शरीर में शरीर परिभाषा व अध्ययन की आवश्यकता , प्रत्यक्ष अनुमान , आप्योपदेश , युक्तिज्ञान , अग्नि भेदोपभेद , पोष्य -पोषक कल्पना , शारीरिक -मानशिक दोष , भोजन पाचन भेद , मूत्र निर्माण आदि अध्याय हैं।
       
            उपोक्त साहित्य व रचयिताओं का जीवन परिचय द्योतक है कि उत्तराखंड में आज भी आयुर्वेद की जड़े गहरी हैं।    
             


Copyright @ Bhishma Kukreti  /4 //2018

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना शैलवाणी (150  अंकों में ) कोटद्वार गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी 
3 - डा प्रेम दत्त चमोली , गढ़वाल की संस्कृत साहित्य को देन 
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  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   MedicalTourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;

ब्रिटिश काल में हरिद्वार कुम्भ मेला प्रबंधन

( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- ) 
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )-81  
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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -   81               
(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--184      उत्तराखंड में पर्यटन , मेडिकल पर्यटन  आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग -184

    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन  बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
    देखा जाय तो प्राचीन साहित्य या अभिलेखों में कुम्भ वर्णन नहीं है।  स्कन्द पुराण में कौन से स्थान में कब कुम्भ मेला या माघ मेला होगा का वर्णन मिलता है।  ऐसा लगता है हरिद्वार कुम्भ मेला शुरू होने के पश्चात ही अनुरकरण सिद्धांत के अनुसा प्रयाग , उज्जैन आदि में कुम्भ मेला शुरू हुआ। 
      हरिद्वार में मेला का वर्णन हर्ष वर्धन काल में चीनी यात्री हुयेन सांग के यात्रा वर्णन में मिलता है।  यह माघ मेला था या कुम्भ निश्चित नहीं कहा जा सकता है। तुलसीदास ने भी रामचरित मानस (बालकाण्ड 43 ) में माघ मेले का उल्लेख किया है प्रयाग के कुम्भ मेले का नहीं।   मुगल कालीन बादशाहों ने भी प्रयाग  की महत्ता का सम्मान किया और कहा जाता है कि औरंगजेब ने कुछ गाँव दिए थे। ( जे एस  मिश्रा , महाकुम्भ )  
 ऐसा लगता है कि मुगल काल में कुम्भ मेला प्रबंधन नागा अखाड़ों के हाथ में था और सिख व नागाओं की 1796 की लड़ाई तो इतिहास प्रसिद्ध है। 
     1804 का हरिद्वार कुम्भ मेला - 1804 में हरिद्वार मराठा शासन के अंतर्गत था।  मराठा परिवहन माध्यमों पर कर लेते थे किन्तु कुम्भ या अन्य मेलों का प्रबंधन अखाडाओं पर ही छोड़ देते थे। अखाड़ा यात्रियों से कर आदि लेते थे , न्याय भी करते थे व अन्य प्रबंध भी करते थे।  
   ब्रिटिश राज के प्रशाशकों के लिए कुम्भ मेला प्रबंधन केवल प्रशाशनिक प्रक्रिया न थी अपितु एक भय  स्रोत्र भी था।  सारे भारत से बिना किसी प्रचार प्रसार व सुविधाओं के लोग जुड़ते थे और फिर बद्रीनाथ आदि की यात्रा भी करते थे।  कुम्भ मेला अनेकता का प्रतीक न होकर वास्तव में केवल एकता का ही प्रतीक  था जो ब्रिटिश राज के लिए खतरा भी हो सकता था।  ईस्ट इण्डिया कम्पनी व बाद में ब्रिटिश राज के लिए सबसे बड़ी समस्या अखाडाओं के प्रभुत्व भी था। आज भी कुम्भ में धार्मिक अखाड़ेबाजी ही नहीं होती अपितु राजनैतिक अखाड़ेबाजी भी होती है।  
1808 का मेला - ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने अधिक सैनिकों का प्रबंध किया जिससे 1796 वाली मार काट की पंरावृति न हो। 
1814 का अर्ध कुम्भ - इस अर्ध कुम्भ में सरडाना बेगम समृ के साथ आये मिसनरी चेमबरलीन ने भषण दिए जो सरकार को पसंद नहीं आये और दबाब में बेगम समृ को चेमबरलीन को हटाना पड़ा। 
1820 कुम्भ में भगदड़ मच गयी थी व 430 यात्रियों की मृत्यु हुयी थी।  इसके उपरान्त प्रशासन ने सड़कों  व पुलों का निर्माणही नहीं करवायाअपितु घाटों का जीर्णोद्धार भी किया जिसकी जनता ने प्रशंसा की।  
            शौचालय व बीमारियों की रोकथाम प्रबंध 
ब्रिटिश प्रशासन के लिए कुम्भ मेला प्रबंधन में मानव प्रबंधन कठिन न था किन्तु छुवाछुत की बीमारी जैसे प्लेग व हैजा रोकथाम सबसे कठिन समस्या थी।  , हैजा केवल हरिद्वार तक सीमित नहीं रहता था अपितु यात्रियों द्वारा गढ़वाल-कुमाऊं  तक भी पंहुच जाता था। हैजा से यात्रियों की मृत्यु के आंकड़े इस प्रकार हैं - (हेनरी वॉटर बेलो , 1885 द हिस्ट्री ऑफ़ कॉलरा इन इंडिया 1867 -1881 व दासगुप्ता ए नोट्स ऑन कॉलरा इन यूनाटेड प्रोविन्स व बनर्जी - वही रिपोर्ट )
वर्ष ------मेला ---- यात्री मृत्यु 
1879 -----कुम्भ ------35892 
1885 -----अर्ध कुम्भ ---63457 
1891 -------कुम्भ ------1690 13 
1921 -------अर्ध कुम्भ ----149 667 
1933 ---अर्ध कुम्भ ---1915 
1945 -----अर्ध कुम्भ -----77345 
  हर कुम्भ या अर्ध कुम्भ में ब्रिटिश सरकार कुछ न कुछ सुधार करती थी किन्तु 1891 व 1921 के कुम्भ भयानक ही सिद्ध हुए -
हरिद्वार कुम्भ का मुख्य प्रशाशक सहारनपुर जिले का जिलाधिकारी होता था। प्रशासन कभी कभी बीमार यात्रियों को हरिद्वार छोड़ने की आज्ञा भी देते  थे व कई बार अन्य स्थानों से यात्रियों को हरिद्वार आने से रोका जाता था।  कभी कभी हरिद्वार स्टेशन से ही यात्रियों को वापिस भेजा जाता था।  हरिद्वार से लेकर बद्रीनाथ तक गाँवों में जागरण कार्य किया जाता था. 
यद्यपि वालदिमोर हॉफकिन ने हैजा टीके का आविष्कार कर लिया था तथापि ब्रिटिश प्रशासन जनता के धार्मिक प्रतिरोध व राजनैतिक कारणों  (जैसे बाल गंगाधर तिलक सरीखे टीका विरोधी थे ) से जबरदस्ती टीकाकरण के सलाह को नहीं मान रहा था।  धीरे धीरे टीकारण आम जनता में प्रचारित हुआ व जनता की समझ में आ गया कि टीका लाभदायी है तो जनता टीकीकरण समर्थक हो गयी।  मेले में टीकाकरण का दस्तूर शायद सन 1960 तक बदस्तूर चलता रहा।  
  ब्रिटिश अधिकारियों ने अनाज विक्री पर भी ध्यान दिया कि जनता को भोज्य सामग्री उचित दामों पर मिले। 
   ब्रिटिश शासन ने कुम्भ मेला प्रबंधन में सफाई -शौचालय पर ध्यान दिया व चिकत्सालयों का प्रबंध भी किया।  पुलिस व अन्य बल प्रबंधन से अपराधियों पर लगाम लगाई गयी।  रेल व बस आने से परिहवन व्यवस्था में तेजी आयी तो नए नए संचार माध्यम जैसे टेलीफोन , पुलिस टेली संचार व्यवस्था , तार , डाकघरों का भी उपयोग कुम्भ मेले में होने लगा।  उद्घोषणाओं के प्रयोग से यात्रियों को नई सुविधा मिलीं। हिन्दू धर्म के प्रचारक व अन्य धर्मों के प्रचारक भी हरिद्वार पंहुचते थे तो प्रशासन को ऐसी संथाओं का भी संभालना होता था। हिन्दू महासभा की स्थापना  भी हरिद्वार कुम्भ अप्रैल 1915 में ही हुआ।
  कुम्भ मेले अवसर पर राजा महाराजा व उनका लाव लश्कर और अन्य विशिष्ठ व्यक्ति भी हरिद्वार पंहुचते थे प्रशासन को उनका विशेष प्रबंधन भी करना होता था। (मिश्रा , वही )

Copyright @ Bhishma Kukreti  22/4 //2018

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना शैलवाणी (150  अंकों में ) कोटद्वार गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी 
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
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  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   MedicalTourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;

चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य द्वारा विद्वानों को आश्रय

 Ancient  Gupta Era History of Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur                       
                               हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 209                 

                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती  


         कहा जाता है कि चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की सभा में विद्वानों का सम्मान किया जाता था और चन्द्रगुप्त विद्वानों को आश्रय देता था।  चन्द्रगुप्त की सभा का एक रत्न कालिदास भी था। 
       विद्वान् अनुमान लगाते हैं कि रघुवंश में रघु का युद्ध यात्रा समुद्रगुप्त के दिग्विजय पर आधारित है। विक्रमोर्वशी नाटक में कहीं न कहीं कुछ घटनाएं कालिदास ने गुप्त काल से ली हैं। 
         कहा जाता है कि कुमार सम्भव की रचना कुमार गुप्त के जन्मोत्सव पर की थी।  
 चीनी यात्री फाय हान  चन्द्रगुप्त विक्रमाद्त्य काल में भारत आया था व उसने उस काल के बौद्ध धर्म पर प्रकाश डाला है।  



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 Bhishma Kukreti  Mumbai, India  2018 
   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -



      Ancient  History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Telpura Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient  History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient   History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand  ;  Ancient History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient  History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar;      History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Bijnor;   seohara , Bijnor History Ancient  History of Nazibabad Bijnor ;    Ancient History of Saharanpur;   Ancient  History of Nakur , Saharanpur;    Ancient   History of Deoband, Saharanpur;     Ancient  History of Badhsharbaugh , Saharanpur;   Ancient Saharanpur History,     Ancient Bijnor History;
कनखल , हरिद्वार  इतिहास ; तेलपुरा , हरिद्वार  इतिहास ; सकरौदा ,  हरिद्वार  इतिहास ; भगवानपुर , हरिद्वार  इतिहास ;रुड़की ,हरिद्वार इतिहास ; झाब्रेरा हरिद्वार  इतिहास ; मंगलौर हरिद्वार  इतिहास ;लक्सर हरिद्वार  इतिहास ;सुल्तानपुर ,हरिद्वार  इतिहास ;पाथरी , हरिद्वार  इतिहास ; बहदराबाद , हरिद्वार  इतिहास ; लंढौर , हरिद्वार  इतिहास ;ससेवहारा  बिजनौर , बिजनौर इतिहास; नगीना ,  बिजनौर इतिहास; नजीबाबाद , नूरपुर , बिजनौर इतिहास;सहारनपुर इतिहास; देवबंद सहारनपुर इतिहास , बेहत सहारनपुर इतिहास , नकुर सहरानपुर इतिहास Haridwar Itihas, Bijnor Itihas, Saharanpur Itihas

रामीण उत्तराखंड में कई जल स्रोत्र जल चिकित्सा स्रोत्र हैं !

( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- ) 
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -82
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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -  82                 
(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--185)       उत्तराखंड में पर्यटन  आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग -185

    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन  बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
    मानव ने अपने जन्म से ही जल चिकित्सा Water Therapy प्रयोग शुरू कर दी थी। 
        उत्तराखंड में प्राचीन काल से जन साधारण जल चिकित्सा का प्रयोग करता आ रहा है और बहुत से जल स्रोत्रों का नाम तो स्वास्थ्य संबंधी नाम हैं।  उत्तराखंड में जल चिकत्सा सदियों से चली आ रही है यथा -
   एलर्जी होने पर शरीर में गंगा जल छिड़कना आज भी प्रचलित है। मुमबई में आज भी अचानक एलर्जी होने पर कई उत्तराखंडी शरीर पर गंगा जल छिड़कते हैं और आराम पाते हैं। दाद आदि पर तो नियमित रूप से गंगा जल बहाया  जाता था। 
 ततार - अधपके या पके घावों पर सिंवळ के पत्तों की सहायता से पानी बहाया जाता है और आज भी ततार देने का प्रचलन विद्यमान है। 
प्रातःकाल जल सेवन - भारत के अन्य क्षेत्रों की भाँती उत्तराखंड में सुबह सुबह रिक्त पेट के जल सेवन स्वास्थ्यकारी माना जाता है। रात को ताम्बे के बर्तन में जल रखना और सुबह पीना जल चिकत्सा है। 
 योग में मुंह से  पानी पीकर  नाक से बाहर करने  की प्रक्रिया जल चिकित्सा ही है। 
कादैं में - जब किसी पर  कादैं (पैर  या हाथ में अँगुलियों की जड़ों में फंगस /फंफूंदी लगना ) लग जाय तो कादैं  पर गरम  पानी बहाया जाता था। 
 भूत लगने या देवता आने की स्थिति में पानी का छिड़काव भी जल चिकित्सा अंग है। 
एनीमा  लेना भी जल चिकित्सा ही है। 
 गरारे करना भी जल चिकित्सा ही है। 
आँख आने या ऑंखें लाल होने पर आँखों को बार बार धोना जल चिकित्सा अंग ही है। 
   गंगा स्नान आदि भी मानसिक जल चिकित्सा है। 
व्रतों में केवल जल सेवन करना जल चिकित्सा का अंग है। 
अपच , पेट पीड़ा या सर्दी जुकाम में गरम जल सेवन जल चिकित्सा है। 
  जलने या अंग कटने पर प्रभावित स्थान पर जल बहाव भी जल चिकित्सा ही है। 
 बहुत से जल स्रोत्रों को पण्यों लगण वळ पानी माना जाता है (जिस पानी सेवन से पानी पीने की और इच्छा हो ) तथा बहुत से जल स्त्रोत्रों के जल सेवन से तीस नहीं बुझती है।  

      ग्रामीण उत्तराखंड में जल स्रोत्रों के बारे में धारणाएं 
      हर गाँव में प्रत्येक जल स्रोत्र की चिकित्सा विशेषता हेतु कुछ न कुछ नाम दिए जाते हैं। 
  मेरे गाँव में एक पानी है इकर का बारामासी पानी।  यह जल स्रोत्र एक छोटे गड्ढे तक सीमित है।  किन्तु जब मैं युवा था तो यदि इकर के पास जाएँ तो उस पानी को  पीना एक कम्पल्सन माना जाता था।  धारणा थी कि इस स्रोत्र के जल सेवन से पेट की बीमारियां नहीं होती हैं।  इसी तरह गाँव के निकट एक बहते पानी को न पीने की हिदायत दी जाती थी।  किसी पानी को जुंकळ पानी नाम दिया जाता है जिसके दो अर्थ होते हैं - जहां जूंक अधिक होती हैं या बच्चे वाले स्त्री द्वारा जिसके पानी पीने से बच्चे को जूंक चढ़ने का खतरा होता हो।  अधिकतर जिस पानी के स्रोत्र के पास पापड़ी (जंगली पिंडालू ) पैदा होता है उसे स्वास्थ्यवर्धक पानी नहीं माना जाता था। 
     कुछ क्षेत्र के पानी को भोजन हेतु प्रयोग नहीं करते हैं।  जैसे कांडी (बिछले ढांगू ) के पानी के बारे में धारणा  थी कि इस गाँव के पानी में उड़द की दाल नहीं गलती। 
  कुछ जल स्रोत्रों को सर्दी जुकाम का पानी माना जाता था और सर्दियों में इन स्रोत्रों के जल  प्रयोग नहीं किया जाता था। 
   कुछ जल स्रोत्रों को पथरी बिमारी का जड़ माना जाता था।  
   देहरादून में सहस्त्र धारा में स्नान को त्वचा रोग ठीक करने का जल माना जाता रहा है। 
  अमूनन बांज के जंगल के नीचे वाले जल स्रोत्र को स्वास्थ्यवर्धक पानी माना जाता था। 
पिंडर नदी में रोज स्नान को अहितकर माना जाता है। 

  जल स्रोत्रों की धारणाओं को अंध विश्वास न माना जाय 

 हर गाँव में जल स्रोत्रों के बारे में स्वास्थ्य दृस्टि से जो भी धारणाएं हैं उन्हें अंध विश्वास नाम देना स्वयं को धोखा देना है। आज आवश्यकता है उन जल स्रोत्रों के रसायनिक विश्लेषण करना और यदि वे जल स्रोत्र स्वास्थ्य वर्धक हैं तो उन्हें पर्यटन गामी बनाना। 




Copyright @ Bhishma Kukreti  23/4 //2018

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना शैलवाणी (150  अंकों में ) कोटद्वार गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी 
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
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