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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, June 8, 2017

पुरुस्कार

- (गढ़वाली कविता , Garhwali Poetry by Asis Sundriyal )
मेरा हिसाब से
यीं दा को/ पदम् पुरुस्कार
बिगरी बोडी तै मिलण चयेंद
किलैकि
बोडी को ब्वाडा /जो बीस-बाइस साल बॉर्डर पर रै
अर सदानि देश की चिंता कै

सिरप बोडी की भ्वार
वेन अपणा बाल बच्चों की सोची /किलैकि
वो जणदू छौ / कि
वेका घौर को मोर्चा /वे चुले बड़ी योद्धा को समाल्युं च
यकडु बल्द सि
बोडिन बै बि च / लै बि च/ खाई बि च / कमाई बि च
नथर पलै ग्ये छै कुटुम्दारि/ ब्वाडा की कमै पर
पांच-पांच नौना- नौनी छा/ खाण वळा/ स्कूल जाण वळा
बोडिन अपणु सब्ज्याठू नौनु एम. ए तक पढ़ाई/ मास्टर बणाई
फिर जेठि बोडी कि नौनी छै/ बोडिन वेंतै पढ़ाण कुवि कमी नई कै
आज व एक संस्था चलाणी च /कतनै नौन्याळुं को भविष्य बणाणी च
बिचलू नौनु बि बोडिन खूब पढाई/ खैरी खैकि बि कम्पाउंडर बणाई
अब वो वे डांडा जैकी ड्यूटी कनु च/ जख मनखी बिन द्वै कु म्वनू च
खुद वो कुछ नी जणदी छै/ पर कणसी नौनी तै वींन इन विद्या दे
वीन जगा जगा अपणा देश को नौ कै
बोडी का निकणसा नौना न खेल मा बड़ी धाक जमाई/ पर बोडिन वेका पैथर खूब खैरी खाई
इतगई ना
इगास- बग्वाल का भैला हुईं या होरी /
जागर - मंडाण हुईं या थड्या- चौंफला
न बोडी बिगर शुरू हुँदा न खतम /
मांगल लगांद-लगांद/ लटुली फूली गेन बोडी की
कुल मिलैकि
कखि न कखि / कुछ न कुछ /योगदान जरूर च बोडी को
इलै
पुरुस्कार कुवि बि द्या/ कै बि द्या
पर
यीं बात तै कुवि नि झूठे सकदु
कि
पहाड़ अर
पहाड़ की सँस्कृति ज्यूंदी च / त
सिरप
बिगरी बोडी/ अर पहाड़ मा पहाड़ जनो जीवन जीण वळि
वीं जनि कतनै माँ - बैण्युं क भ्वार
©आशीष सुंदरियाल
-
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