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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, December 17, 2017

कल चुनाव नतीजों में मेरी भविष्यवाणी ही सही साबित होगी

(Best  of  Garhwali  Humor , Wits Jokes , गढ़वाली हास्य , व्यंग्य )
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 चबोड़ , चखन्यौ , ककड़ाट  :::   भीष्म कुकरेती    
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 जी हाँ मि जंगड़ ठोकिक , मुठकी ठोकिक , कंटर बजैक बुलणु छौं बल भोळ गुजरात चुनाव पर मेरी भविष्यवाणी सही हूण।  
 भोळ यदि कौंग्रेस गुजरात  विधान सभा चुनाव जीती गे तो ममता बनर्जी का ड्यार सोग , बरजात, मातम  मनाये जालु बल अब विरोधी पार्ट्युंन 2019 चुनाव मा राहुल गांधी तैं प्रधानमंत्री उम्मीदवार बणै दीण अर वींन भूकी बिल्ली तरां उल्टां पड़्युं रौण। हां चौक मा खुसी मनाणो स्वांग हूणा राल। 
  भोळ यदि कौंग्रेस गुजरात  विधान सभा चुनाव जीती गे तो लालू यादवन रावणी हंसी हंसण अर अपण नौनूं तै सांतन्वा  दीण बल एक ना एक दिन बिहार की गद्दी यादव वंश्यूं कब्जा ह्वालु।  
भोळ यदि गुजरात चुनाव मा भाजपा हारी गे त शंकर सिंह बाघेलान भग्यान डा शिवा नंद नौटियाल , भारत सिंह रावत तैं याद करण कि जब खाणो दिन आंदन पछिंडी ह्वे जांद। 
जु कॉंग्रेस गुजरात जीती गे तो रेणुका चौधरीन बुलण कि राहुल गांधी का सैकड़ों साल कु अनुभव व युवा नेतृत्व से कॉंग्रेस जीत तो भाजपा का संविद  पात्रान पुछण , " हैं राहुल अभी तक युवा हैं ? वे कब प्रौढ़ होंगे ? अस्सी साल में या सौ साल में ?"
 जु सत्ता देवी कॉंग्रेस पर मेहरबान ह्वे जाली तो नर्मदा परिक्रमा छोड़िक दिग्गी बाबू दिल्ली ऐ  जाल अर बयान द्याला कि मी ही अपजसी छौं अर हिन्दुवाद ही सही च। 
  जु कॉंग्रेस तै गुजरात की कमान मील जाली तो डीएमके सुप्रीमो करुणानिधि कौमा से भैर ऐ जाला अर बयान द्याला बल राहुल गांधी की छत्र छाया मा म्यार झड़नाती 10 G घोटाला अवश्य कारल। 
   जब गुजरात मा कॉंग्रेस का सत्तासीन का समाचार लखनऊ पौंछल त मुल्ला मुलायम पुत्र मिंया अखिलेश यादव असामंजस्य की स्थिति मा ऐ जालो कि खुसी मनाऊं या सोग मनाऊं।  मिंया अखिलेश तैं तो कमजोर राहुल चयेंद ना कि तागतवर कॉंग्रेस। 
   
    गुजरात  मा भाजपा की हार से प्रजातंत्र का पीप भरा  फोड़ा परिवारवाद का कुंवर ज्योतिर्राव शिन्दिया अर सचिन पायलेट मुख्यमंत्री कुर्सी का सुपिन दिखण लग जाल। 
शिवसेना का मुखपत्र 'सामना ' की हेडिंग होली - ' ठाकुर मोदी ! निकल गयी ना सारी हेकड़ी ! अब भारत के हर ग्राम सभा में , नगरपालिका के हर वार्ड में परिवारवाद का झंडा लहराएगा '
कॉंग्रेस की जीत का बाद परिवारवादी राजनीति का मुड़ै  खंडूड़ी , यशपाल आर्य , सतपाल महाराज , विजय बहुगुणा, यशवंत सिन्हा , दसियों भाजपाई नेताओं का इख -'ब्लैकेस्ट स्पॉट ऑन डेमोक्रेसी डाइनेस्टी विन' पर खुशी मनाये जाल अर घी का दिया जळाये जाल ,  स्वाळ पक्वड़ पकाये जाल अर स्वाळ पक्वड़ सिगनोरा सोनिया गांधी जी का घर भि भीजे जाल। प्रकाश सिंग बादल तो सोनिया गांधी तै व्यक्तिगत वधाई दीणो 10 जनपथ जालो। 
अर यदि भाजपा जीती गे तो कुछ अधिक नि ह्वे सकद बस भारत मा हरेक भाषा की डिक्सनरी मा गाळयूं नया नया शब्द जुड़ जाल। भाजपा की जीत याने मोदी जादू की जीत। 
 यदि कॉंग्रेस जीती गे तो टीवी चैनलों मा राहुल गांधी तैं  अगला प्रधानमंत्री घोषित करे जाल अर ऊंक मंत्रिमंडल मा कु कु मंत्री ह्वाल पर गरमा गरम बहस होली। 

   कॉंग्रेस की जीत या हार  से यीं सदी का महान योगी नवीन पटनायक का प्रदेश ओडीसा मा मा ना तो सोग मनाये जाल ना ही पटाखा फोड़े जाल।
  

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17/12 / 2017, Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India

*लेख की   घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में  कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल हौंस , हौंसारथ , खिकताट , व्यंग्य रचने  हेतु उपयोग किये गए हैं।
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    ----- आप  छन  सम्पन गढ़वाली ----
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ह्यूँद मा बुखण या खाजा बुका जा

समळौण  :::   भीष्म कुकरेती    
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उन त मि बिसर ग्यों बल गढ़वाळम ह्यूंद कन हूंद किलैकि अब मेकुण गढ़वाळ माने रुड्युं मा एक पर्यटक क्षेत्र।  किन्तु तुम पाणी रुकणो गंगा मा बाँध बाँधी सकदा , चीन ब्रह्मपुत्र पर बाँध बाँधी सकद किन्तु भौत सि चीजुं याद , स्मरण , समळौण नि रुके सक्यांद। 
   मि अंग्रेजूं जमाना का ददा जी की  संस्कृति से बि वाकिफ छौं , पिता जी की अधबीचौ संस्कृति से बि वाकिफ छौं , अपण नव संस्कृति से बि अर अब नौनूं न्यू कल्चर की बि मि तैं अंडरस्टैंगिंग च। 
   पर जु मजा मीन अपण बचपन मा ह्यूंदम देखि वु मजा ज़ीरो डिग्री मा शिमळा मा ग्रिल्ड  चिकन व वैट 69 पींद बि नि पायी।  
   गढ़वाळम तब (1960 ) जडडू मतलब कुछ पैर्यूं दिखाणो , कुछ नि करणो या खाणो मौसम ! 
   तब ठंड माने पूष शुरू हूण। पूष से पैली ब्वार्यूं मैत जाण अर बेट्यूं मैत आण। 
 ठंड माने अळगसी कौम याने मर्दुं म काम की भारी कमी अर घामतपै पर विशेष ध्यान दीण।  बिचारि जनान्युं कुण आराम तब बि नि छौ।  अगला नौ मैनों कुण घास -लखड़ जुड़नो जुम्मेवारी केवल जनान्युं छै।  नर किरम्वळ अर नर पहाड़ी मा कुछ अंतर नी हूंद द्वी निकज्जा ही रौंदन। 
ठंड माने सुबेर सुबेर नक्वळ मा क्वादौ रुट्टी या अन्य म्वाटो अनाज की रोटी मा घी , मिठु तेल या कड़ु तेल लपोड़ण आवश्यक छौ।  इन माने जांद छौ बल ये बगत घी तेल खाण आवश्यक च। ग्यूं तै ठंड निरोधक नि  माने जांद छौ तब। 
नक्वळ याने ब्रेकफास्ट मा हफ्ता मा उबाळयूं खीरा दगड़ सत्तू खाणो अर्थ छौ इंनरजेटिक  कार्बोहाइड्रेट लीण। 
चाय मा चिन्नी बर्जित ह्वे जांद छौ अर गुड़, गिंदौड़ा , अंदरखी की डिमांड बढ़ जांद छौ।  
यदि सामूहिक बसिंग फेस्टिवल उराये गए हो तो बसिंगौ   नास्ता का चार दिन जोर हूंद छौ। 
   फिर हफ्तावार बळदूं तै तेल व उल्युं जौक आटौ  ढिंढ खलाण आवशयक छौ।  हमर बल्द नि छा तो मि  तै कबि बि तिलुं  तेलै वैल्यू आज तक पता नी च। बखरों तै लूण खलाये जांद छौ अर कड़क ठंडी दिन अन्य जानवरों तै बि लूण चटाये जांद छौ। 
ठंड माने दुफरा मा कबि बि दाळ नि पकाण।  
  विंटर सीजन माने हफ्ता मा कंडळी अवश्य पकाण।  ठंडौ मौसम माने झंगोरा , फाणु, कपिलु , पिटवणी पर जोर।  भात कम खाण। राई, पळिंगू , ओगळ, लुण्या की वैल्यू बढ़ जांद छौ 
घी या मिठु तेल का सेवन आवश्यक छौ तो घी व मिठु तेल खाणो अवसर खुजे जांद छा इलै त ये बगत खिचड़ी अर झुळळी हफ्ता मा बणदी इ छे। मि तैं सूंटूं खिचड़ी पसंद छे। 
   जडडू माने तैड़ू खुदाई जु गर्म्युं  तक सब्जी काम आंद छौ।  मर्द तैड़ु खुदाई  काम तै कबि नि करदा छा , इन समझे जांद छौ शायद कि खुदाई से मर्दानगी खतम  ह्वे जांद। कुछ हौर बौणौ सब्जी बि हूंदी छै किन्तु चूँकि हम सभ्य ह्वे गे छा तो हमन इनर्जी , विटामिन दायक वनस्पत्यूं की अनदेखी शुरू कर दे छै तो मि तै पता नि क्या क्या वन सब्जी हूंदी छै।  हाँ ये बगत कुछ लोग गीन्ठी तो लांदा ही छा।  फिर तिम्लौ भुजी बि बणदी छै। बेथु बि महत्वपूर्ण साग छौ। 
  बुखणू /खाजाौं बान विंटर आंद छौ या विंटरौ कारण बुखण बुकाये /खाये जांद छौ यु एक अनुत्तरित प्रश्न च। 
   बुकाये जाण वळ बुखणो मा भट्ट तो राजा छौ इ फिर मुंगरी , जुंडळ, मर्सू , ग्यूं , चूड़ा आदि बुकण सबि स्थानों याने घर से लेकि बौण तक बुकाये जांद छया अर भंगुल इलैइ त जमद छौ कि बुकाणुं मा रस्याण ऐ जावो। 
   उस्याण वळ बुखाणो म तोर , सूंट ,गहथ , रयांस , लुब्या , भट , मुंगरी उपलब्ध हूंद छा तो उसयां बुखणु अलग महत्व छौ। फिर यूं बुखणु तै भूटिक बुखण बुखावो , पीसिक मस्यट बणाओ अर मस्यट से तुरणी जन साग बणाओ व फिर भरीं  रोटी सब कुछ हूंद छौ ठंड्यूं मा।  भरीं रोटी अर घी व मिठु तेल ठंड्यूं माँ आवश्यक भोजन बि छौ। भरीं रोटी रिस्तेदारुं इख भिजणो रिवाज छौ तब।  अब दारु भीजे जांद। 
   अब क्या हूंद ह्वाल यी हाल चाल तो हरीश जुयाल ही द्याला।  
  
   

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16 /12 / 2017, Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India
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अध्याय के मनोभाव को समझना आवश्यक है

Preparation for IAS Exam, UPSC exams 
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अध्याय के मनोभाव को समझना आवश्यक है 

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गढवाल भ्रातृ मंडल (स्थापना -1928 ) , मुंबई  की मुहिम  –हर उत्तराखंडी  IAS बन सकता है )
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IAS/IRS/IFS/IPS  कैसे बन सकते हैं श्रृंखला  -44
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गढ़वाल भ्रातृ मण्डल हेतु प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती 
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किसी भी पाठ की संकल्पना , धारणा या कंसेप्ट को सांगोपांग रूप से समझे बगैर पथ वाचन पूरा नहीं होता है अतः प्रत्येक पाठ /अध्याय की संकल्पना को समझिये तभी पाठ वाचन पूरा माना जाएगा। विषय की आत्मा ही धारणा है।  यह नियम कला विषय व विज्ञान विषय दोनों पर होता है।  हर अध्याय अन्य अध्यायों से जुड़ा होता है तो एक अध्याय के आधारभूत मनोभाव के समझने से दूसरे अध्याय जल्दी समझ में आ जाते हैं।  जैसे यदि आपको सही ज्ञान  हो कि किस सब्जी में क्या क्या रसायन  होता है तो आप समझ सकते हैं कि इस सब्जी से मानव या जंतु शरीर को क्या क्या लाभ मिल सकता है।   


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शेष IAS/IPS/IFS/IRS कैसे बन सकते हैं श्रृंखला  में..... 
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कृपया इस लेख व 
हर उत्तराखंडी IAS बन सकता है" 
आशय को   लोगों तक पँहुचाइये प्लीज ! 
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S UPSC Exam Hard ?Family background and IAS/UPSC Exams, Planning IAS Exams, Long term Planning, Starting Age for IAS/UPSC exam preparation,  
Sitting on other exams ,
Should IAS Aspirant take other employment while preparing for exams?, Balancing with College  Study ,
Taking benefits from sitting on UPSC exams, Self Coaching IAS/UPSC Exams,  Syllabus  IAS/  UPSC Exams 

गढ़वालियों ! तुम अदूरदर्शी ही नहीं अहसान फरामोश भी हो

(Best  of  Garhwali  Humor , Wits Jokes , गढ़वाली हास्य , व्यंग्य )
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 चबोड़ , चखन्यौ , ककड़ाट  :::   भीष्म कुकरेती    
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मि - अरे अरे ! भारतीय वाणज्य राजधानी ! इ क्या क्या हाल बना कर रखा है तूने ?
मुंबई - हूं , हूं  ! हाहहा !
मि - अरे बड़ी दुखी लगणी छे अर फिर बि अट्टाहास करणी छै ?
मुंबई- नै कबि कबि तुम मुंबईकरूं दियुं दुःख से अट्टाहास करणो ज्यू बुल्यांद त रूंद रुंद अट्टाहास बि कर लींदो। महानगर की यथास्थिति मृत्यु पर आंसू अर हंसी दगड़ी चलद । 
मि - पर मीन क्या कार जु ... 
मुंबई - अबि क्या लिखणी छे तू रे भीष्म !
मि - मि 'ढांगू पट्टी ,  गढ़वाल में उच्च शिक्षा की प्रेरणा हेतु  आवश्यक कदम ' पर एक जोरदार लेख लिखणु छौं। 
मुंबई- क्या क्या ल्याख तीन अबि तलक ये लेख मा ? 
मि -मीन ल्याख कि मेरी पट्टी मा बच्चों तै उच्च शिक्षा लीणो प्रेरणा वास्ता हम प्रवास्यूं तै संवाद स्थापित करण चयेंद कि युवा उच्च शिक्षा ग्रहण करणो वास्ता हमेशा जागृत रावन। 
मुंबई - भौत बढ़िया रे भ्रमित  मैती प्रेमी ! प्रशंसनीय कार्य भै। 
मि -अर मीन ल्याख बल क्वी छात्र यदि बहुत ही अब्बल च त हम ढांगू प्रवासियों तै छात्रवृति कु इंतजाम बि करण चयेंद। 
मुंबई (भयंकर अट्टाहास ) - वाह भै बिमूढ़ उत्तराखंड प्रेमी ! वाह ! ढांगू की सुध लींदेर ! कुडोज !
मि - मे पर इथगा जोर से किलै हंसणी छे ?
मुंबई ( वक्रोक्ति )  - अंधा प्रवासी  ! तीम मुंबई का विवाह योग्य युवक -युवत्यूं डाटा त ह्वालु ?
मि -हाँ छैं च। 
मुंबई ( व्यंग्य मुस्कराहट )- उखम उत्तराखंडी युवाओं औसतन शिक्षा कथगा च ?
मि - ऊं ऊं ! हाँ , 95 % B.Com 
मुंबई (मायूसता ) - ये अदूरदर्शी ! या क्वी अच्छी शिक्षा च क्या ?
मि -बिलकुल नहीं।  बिलकुल भी नहीं।  मुंबई मा  उत्तराखंड्यूं  देहरादून से बि बुरा हाल छन।  युवाओं मा शिक्षा कु अर्थ च B.Com कारो अर फिर कम तनख्वाह मा कमजोर नौकरी पावो। 
मुंबई (क्रोध ) - तो मिस्टर मायोपिक भीष्म कुकरेती ! मुंबई मा उत्तराखंडी युवा मध्य निरर्थक , निकम्मी , बेकार शिक्षा लीणा छन वांक तो त्वे तैं फिकर उकर नी च किन्तु पहाड़ों की शिक्षा का बारा मा तू हृदय रोगी हूणू छै हैं ?
मि - पर उत्तराखंड मेरी जन्म भूमि च   ... 
मुंबई - एक दैं तीन ल्याख बल त्यार पिता जी सन 37 मा मुंबई ऐ गे छा अर गांव मा ही कुछ करण को रबत मा उंन इख प्रॉपर्टी नि जोड़ जथगा उ जोड़ सकद छा।
मि -हाँ तब प्रवास्यूं एक ही रट हूंद छै जाण त हमन गढ़वाल ही च त इख मुंबई मा प्रॉपर्टी जोड़ि क्या करण ?
मुंबई (रौद्र रूप ) - ठीक च वु लोग अपण हिसाब से सुचदा छा।  किन्तु तू तो पढ़ा लिखा है तुझे तो दुनिया की समझ है कि नहीं ?
मि -क्या मतलब ?
मुंबई - अरे कृतघ्न , कृपण , अहसान फरामोश !
मि - अहसान फरामोश अर मि ?
मुंबई (अति क्रोध )- तुम सब  बुद्धिजीवी मुझ मुंबई के कृतघ्न , अहसान फरामोश हो। तुम लोगुन प्रगति म्यार बदौलत कार अर गुण गांदा  पहाड़ों की। 
मि -मतलब ?
मुंबई - इख मुंबई मा तुमर समाज उत्तराखंडियों मध्य शिक्षा की भयंकर समस्या अत्त्याधिक च किन्तु इखक चिंता छोड़ि पहाड़ों समस्या पर चिंतित छंवां।  अरे पैल जख तुम छंवां, जख तुमन रौण  उखक समस्या निदान पर ध्यान द्यावा तब जब कुछ समय बच जावो तो पहाडुं बारा मा स्वाचो।
मि - ऊं ऊं  ... 
मुंबई (गुरुवत ) - ऊं ऊं छोड़ अर पैल अपनी कर्मभूमि का लोगुं भविष्य सुधारणो सोच अर अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं मध्य यीं सोच तै प्रसारित कौर।  


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15/12 / 2017, Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India

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ढांगू पट्टी के तीर्थस्थल, मेले व पर्यटक स्थल

  (गंगा सलाण परिचय श्रृंखला ) 
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आलेख : भीष्म कुकरेती
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प्राचीन काल में ढांगू एक विस्तृत क्षेत्र को कहा जाता था।  अब केवल तीन पट्टियों मल्ला ढांगू , बिछला ढांगू व तल्ला ढांगू क्षेत्र को ही ढांगू कहा जाता है।  
उत्तर ढांगू का कैन्डूळ लंगूर सीमा का गाँव है जिसकी सीमा ठांगर से मिलती है और कैंडूळ से बाड्यों तक ढांगू के नयार नदी मनियारस्यूं से अलग करती है।  बाड्यों से फूलचट्टी तक गंगा नदी ढांगू -टिहरी सीमा बनाती है।  फूलचट्टी में हिंवल व गंगा का संगम है।  फूलचट्टी से बगुड्या (खमण ) तक हिंवल उदयपुर और ढांगू की सीमा बन जाती है।  आज खमण , मसोगी डबरालस्यूं में हैं किन्तु एक समय ढांगू के हिस्से थे।  बगुड्या  से कलसी कुठार मंडूलळ गदन , कड़ती गदन ढांगू को डबरालस्यूं से अलग करता है। पूर्व में परसुली से डबरालस्यूं लग जाता है। 
         ढांगू में अधिकतर वही त्यौहार मनाये जाते हैं जो गढ़वाल में मनाये जाते हैं किन्तु कुछ क्षेत्रीय विशेषता भी ढांगू में हैं जैसे गेंद का मेला जो गंगासलाण परगने की विशेष विशेषता है। कुछ  प्राचीन ब्राह्मण जातियों के मूल गाँव (कुकरेती -जसपुर; बड़थ्वाल -बड़ेथ ; ); कुछ स्थानीय देवस्थल जैसे कड़ती में सिलसु थान , कैन्डुळ में सावित्री मंदिर , ठंठोली में गोदेश्वर मंदिर , फूलचट्टी  व्यासचट्टी  तक ऋषिकेश -बद्रीनाथ प्राचीन यात्रा सड़क आदि सांस्कृतिक विशेषताएं ढांगू की   पहचान बन चुकी हैं। कांडी अस्पताल प्राचीन अस्पतालों में से एक अस्पताल है। टंकाण स्कूल शायद 1870 में स्थापित स्कूल है तो ग्वील पुरातन पोस्ट ऑफिस है। सिलोगी स्कूल /कॉलेज ढांगू का गर्व है। 
             निम्न स्थल मेलों व विशेष पर्व हेतु ढांगू में प्रसिद्ध  हैं -
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                          गंगा किनारे की चट्टियां -

  फूलवाड़ी या फूलचट्टी , तल्ला ढांगू - हिंवल -गंगा संगम में आज भी त्यवहारों के दिन-मकर संक्रांति , बिखोत , विभिन्न पूर्णिमाओं , अमावसों के दिन लोग गंगा स्नान हेतु आते हैं और और मेले  लगते हैं।  एक समय यात्रा सीजन में फूलचट्टी का बड़ा महत्व   था 1912 में यहां 10 दुकानें थीं। 
घटूगाड (गुल्लर के सामने ) -कभी 1912 में घटटू गाड का बड़ा महत्व था आज मोटर सड़क के कारण बजारा है। 1912 में यहां 6 दुकानें थीं। 
 मोहन चट्टी - गंगा किनारे मोहन चट्टी में त्यौहारों  के दिन गंगा स्नान हेतु जनता यहां आती है और स्वतः ही मेले लग जाते हैं।  1912 में यहां  3 दुकानें थीं।
कुंड - 1912 में यहां 3  दुकानें थीं।और यात्री विश्राम भी करते थे व गंगा स्नान भी 
छोटी बिजनी - 1912 में यहां 8 दुकानें थीं। इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि यह एक व्यापारिक स्थल था 
बड़ी बिजनी -1912 में यहां 8 दुकानें थीं। इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि यह एक व्यापारिक स्थल था. 
 बंदर भेळ - 1912 में यहां 7  दुकानें थीं। इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि यह एक व्यापारिक स्थल थ.स्थानीय लोग व उनके रिस्तेदार त्यौहारों के दिन 
महादेव चट्टी - 1912 में यहां 18 दुकानें थीं। इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि यह एक व्यापारिक स्थल था . चंद्रभागा गदन व गंगा संगम पर प्राचीन महादेव मंदिर है।  यहां हर त्यौहार में गंगा स्नान हेतु लोग आते हैं।  मल्ला ढांगू , बिछला ढांगू व तल्ला ढांगू के कुछ गाँवों का श्मशान घाट है ।  श्मशान घाट होने के कारण कई कर्मकांडो के लिए लोग यहां आते हैं। 
सिम्वळ और आम - आज तो नहीं किन्तु मोटर सड़क से पहले बद्रीनाथ यात्रा हेतु खंड गाँव के सिम्वळ व आम प्रमुख चट्टियां थीं व अपने हिसाब से व्यापारिक केंद्र भी थे 
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       राफ्टिंग कैम्प 
राफ्टिंग जैसे रोमांचक पर्यटन विकसित होने से उपरोक्त सभी स्थल अब नए आर्थिक केंद्र बन गए हैं व नए तरह के तीर्थस्थल बन गए हैं।  
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              गेंद  मेले स्थल  
कटघर - मकर संक्रांति कटघर में उदयपुर विरुद्ध  ढांगू  के मध्य हथ गिंदी प्रतियोगिता होती है और बड़ा मेला लगता है। 
सौड़ (मल्ला ढांगू )- पूस अंत (सेख ) के दिन सौड़ में हिंगोड़ व हथगिंदी का मेला होता था। 

       मंदिर याने धार्मिक पर्यटन केंद्र 
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देवी डांडा (कठूड़ बड़ा मल्ला ढांगू )- सिलोगी , नौगढ़ ,लयड़ , गणिका पहाड़ी श्रृंखला में बसा बहुत पुराने मंदिर होने के कारण देवी डांडा का बड़ा महत्व है।  कठूड़ देवी मंदिर के पीछे दो मुख्य लोककथाएं मुझे सुनने मिलीं - डवोली डबरालस्यूं वालों का मानना है कि कठूड़ देवी मंदिर में डवोली देवी मंदिर के अंश हैं।  जब कि झैड़ तल्ला  ढांगू वालों  का मानना है कि कठूड़ वाले झैड़ से देवी अंश चोर क्र ले गए थे। 
     नवरात्रों में आस पास के ग्रामीण पूजा हेतु देवी  डांडा मंदिर आते हैं।  जब कठूड़ वाले विशेष प्रोग्रैम करते हैं तो यहां भीड़ हो जाती है और पर्यटन स्थल में बदल जाता है। 
गोदेश्वर मंदिर (ठंठोली , मल्ला ढांगू ) - गोदेश्वर शिव मंदिर भी गंगासलाण के पुरानतम मंदिरों में से एक मंदिर है. यहां शिवरात्रि , सावन में भक्त आते हैं और चहल  पहल रहती है।  
मेरी लघु खोज बताती है कि यहां कभी बारामासा गदन था और श्मशान घाट  भी था।  जब जसपुर से गोदेश्वर पहाड़ी में  बृहद  भूस्खलन हुआ तो गदन भूतल में समा गया और जसपुर वालों ने नीचे श्मसान हेतु शिव मंदिर बनवाया। 
जसपुर छाल का शिव मंदिर (ग्राम सभा जसपुर , मल्ला ढांगू )- इसे वास्तव में ग्वील का शिवाला कहा जाता है किन्तु ऐतिहासिक तर्क पुष्ट करते हैं कि इस मंदिर की स्थापना गोदेश्वर गदन समाने के बाद जसपुर वालों ने श्मसान घाट हेतु की थी बाद में ग्वील गाँव स्थापित होने के बाद ग्वील पधान ने इसका भव्यीकरण किया। जब ब्रिटिश काल में जसपुर से महादेव चट्टी तक सड़क बन गयी तो मल्ला ढांगू वालो मृतकों को  महादेव चट्टी श्मशान घाट ले जाने लगे। 
  शिवरात्रि व अन्य पवित्र दिन यहां क्षेत्रीय लोग पूजा हेतु आते हैं। 

कई पारिवारिक कर्मकांड पूजा इस मंदिर में किये जाते हैं 
ग्वील का दूसरा शिव मंदिर - ग्वील गाँव से सट कर बड़ेथ सीमा पर यह मंदिर है और सभी पुण्य तिथियों में क्षेत्रीय लोग पूजा हेतु आते हैं 
कटघर का शिवाला(ढांगू ) - इसकी भी बड़ी मान्यता है. 
 नौगढ़ का बड़ेथ (मल्ला ढांगू ) देवी मंदिर - स्व हीरामणि बड़थ्वाल व उनके कनिष्ठ भ्राता श्री ओम प्रकाश बड़थ्वाल ने यह मंदिर बनवाया।  अब यह बड़ेथ का सावजनिक मंदिर है और हर साल गर्मियों में सार्वजनिक पूजा की जाती है।  इस समय यहां मेला रूप हो जाता है।  नवरात्र में भक्त पूजा हेतु आते है 
बिंजरा देवी मंदिर - स्व सत्य प्रसाद बहुगुणा जी के प्रयत्नो से ग्वील सीमा में यह मंदिर बना है।  नवरात्रि में क्षेत्र के लोह पूजा हेतु आते हैं। 
झैड़ देवी मंदिर (तल्ला ढांगू ) -कई सालों से हर पांच साल में झैड़ वाले देवी पूजन बड़े स्तर पर करते हैं और हर ग्रामवासी पूजा में हिस्सा लेता है व झैड़ वालों के रिस्तेदार भी आते हैं तो बड़ी चहल पहल हो जाती है। 
जसपुर नागराजा मंदिर - हर चार साल में बड़ी सामूहिक पूजा के कारण जसपुर के प्रवासी , रहवासी व रिस्तेदार पूजा में हिस्सा लेते हैं 
कड़ती का सिलसु मंदिर (मल्ला ढांगू )- सिल्सू मंदिर मल्ला ढांगू का महत्वपूर्ण मंदिर है और धान कटाई के बाद अन्य ग्रामवासी भी दूध , धान देने आते हैं 
कैन्डुळ  (बिछला ढांगू ) - में वर्षा ऋतू में सावित्री मंदिर में सावित्री मेला लगता है।  
     
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                          मेडिकल टूरिज्म केंद्र 

     कांडी (बिछले ढांगू ) - ब्रिटिश काल  का पहले पहल यात्रा लाइन का स्वास्थ्य  केंद्र होने के कारण एक समय कांडी   अस्पताल की बड़ी मांग थी और बीसों मील से मरीज इलाज हेतु आते थे।  अफ़सोस सरकारी अनदेखी के कारण अब यह अस्पताल अपना महत्व खो बैठा है   
जसपुर (मल्ला ढांगू ) - आज जसपुर  में सरकारी अस्पताल होने के कारण  मल्ला ढांगू के लोग इस अस्पताल में  इलाज हेतु आते हैं    
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                               शिक्षा संस्थान 
        
 सिलोगी , गैंडखाल , मंडुळ व पुळ बौण में इंटर कॉलेज से ये स्थान पर्यटक स्थल की शक्ल ले रहे हैं 
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             सरकारी कार्यालय 
सिलोगी व गैंडखाल में बैंक होने से क्षेत्रवासियों को इन स्थानों तक यात्रा करनी पड़ती है 
जाखणी धार (मल्ला ढांगू )- में पटवारी व क्षेत्रीय कार्यालय होने से क्षेत्र वासियों को यहां आना पड़ता है। 
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  व्यापरिक केंद्र 
सिलोगी व गैंडखाळ  इस क्षेत्र के महत्वपूर्ण बजार हैं  और क्षेत्र वासियों की कई जरूरतें पूरी करते हैं 

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  रानू बिष्ट जी का रिजॉर्ट 
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धारी - ऋषिकेश सिलोगी रोड पर एक होटल नुमा रिजॉर्ट है जो भविष्य के लिए  सकारात्मक प्रतीक है 
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Copyright @ भीष्म कुकरेती 
Tourist places and Pilgrim places of Malla Dhangu, Garhwal, Tourist places and Pilgrim places of Bichhla  Dhangu, Garhwal, Tourist places and Pilgrim places of Talla Dhangu, Garhwal,

सामान्य तोता , कळू , Parrot , Rose Ringed Parkeet (Psittacula krameri) -

गढ़वाल की चिड़ियायें - भाग -30

( Birds of  Garhwal; Birding and Birds of Garhwal, Uttarakhand, Himalaya ----- 30) 
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आलेख : भीष्म कुकरेती , M.Sc.; D.M.S.M; D.E.I.M.
 42 सेंटीमीटर लम्बा सामन्य तोता तकरीबन हर जगह मिल जाता है , टेढ़ी , लाल चोंच वाला तोता का सर हरा व पूँछ नीला रंग लिए हरा होता है। नर तोते की ठोड़ी पर चक्कते होते हैं तो गला गुलाबी।  पेड़ों पर घोसले बनाते हैं और समूह में भोजन तलासते व खाते हैं। जंगल व खेतों में पेड़ों के रहवासी। 

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सर्वाधिकार @सुरक्षित , लेखक व भौगोलिक अन्वेषक  



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पहला अध्याय समझना महत्वपूर्ण है

Preparation for IAS Exam, UPSC exams 
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पहला अध्याय समझना महत्वपूर्ण है 

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गढवाल भ्रातृ मंडल (स्थापना -1928 ) , मुंबई  की मुहिम  –हर उत्तराखंडी  IAS बन सकता है --43 )
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IAS/IRS/IFS/IPS  कैसे बन सकते हैं श्रृंखला  -43 
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गढ़वाल भ्रातृ मण्डल हेतु प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती 
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आमतौर पर विद्यार्थी व परीक्षार्थी किसी भी पुस्तक के प्रथम अध्याय के महत्व को सही तरह से नहीं समझते हैं।  पहला अध्याय आने वाले अध्यायों की नीव होता है।  नींव की अवहेलना कभी नहीं की जाती ही।  पहले अध्याय को सांगोपांग रूप से समझने से आगे के अध्यायों को समझने में सरलता होती है।  पहला अध्याय अगले अध्यायों हेतु कुंजी का काम करता है। 


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शेष IAS/IPS/IFS/IRS कैसे बन सकते हैं श्रृंखला  44 में..... 
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कृपया इस लेख व 
हर उत्तराखंडी IAS बन सकता है" 
आशय को   लोगों तक पँहुचाइये प्लीज ! 
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घुघती , चित्रोखा फाख्ता Spotted Dove, Ghughuti (Streptopelia chinesis)

गढ़वाल की चिड़ियायें - भाग -30

( Birds of  Garhwal; Birding and Birds of Garhwal, Uttarakhand, Himalaya -----30 ) 
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आलेख : भीष्म कुकरेती , M.Sc.; D.M.S.M; D.E.I.M.
 30 सेंटीमीटर लम्बा घुघती गढ़वाल में सर्वत्र पाया जाने वाला पक्षी वास्तव में  एक सांस्कृतिक पक्षी भी माना जाता है और मायका,  याद -खुद का प्रतीक भी। घुघती याने चितकबरा फाख्ते के गले में काले सफेद छक्क्ठे से इसे पहचाना जाता है और इसके ऊपरी हिस्से में चक्क्ते होते हैं। घुघती जंगल व मानव बस्तियों , खेतों में सब जगह पाया जाता है। अधिकतर जोड़ों व समूह में पाए जाने वाला पक्षी है 


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सर्वाधिकार @सुरक्षित , लेखक व भौगोलिक अन्वेषक  



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Wednesday, December 13, 2017

वोटुं बान गधों तैं बाप बुले जान्द त जनेऊ पैरणम क्यांक शरम?

चबोड़, चखन्यौ, झीस : भीष्म कुकरेती
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 ब्याळी पुराणी धुराणी, कबसलिं पार्टी का नव निर्वाचित अध्यक्ष अर नया नया नखरों का साथ जनेऊ धारी लाटो गळ्या से मुलाक़ात ह्वे गे .
मि – क्या रै लाटु गळ्या आज गौळ बुकणो जगा जंद्यौ छै बुकणु?
लाटो गळ्या  - हाँ अमेरिकी कन्सल्टेंटन सल्ला दे बल हमेशा गर्रू गौळ नि बुकण चयेंद कबि कबि लोगु तै उल्लू बणानो बान हळको भार बि उठाण चएंद .
मि – भलो भलो . पर हे मूढ़ मनिख  ! त्वै  तै तमीज कनकै आई बल जंद्यौ हळको भार हूंद .
लाटो गळ्या  - मि तै थुका सूझ कि जंद्यौ बि पैरे सक्यांद . ऊ त सुशील शिंदे अंकलन सुझौ दे बल भौत ह्वे गे बल हिन्दू आतंकवाद्यूं छ्वीं . अब जरा मुसलमानों तै छोडिक जरा हिन्दुओं तै मूर्ख बणाये जावो .
मि – हाँ सब्युं तै क्या तेरी ब्वे तैं बि पता च बल त्वेम त रति भरक बि अक्कल नी च . ये भारतीय  प्रजातंत्र का फोड़ा  ! इन त बथादी कि जंद्यो मा कथगा लड़ी छन ? 
लाटो गळ्या  - लड़ी ? कौन  लड़ी ? क्यों लड़ी ?
मि – ये हिन्दुस्तानी जम्हूरियत का कोढ़  ! जंद्यौ लड़यूँ से बणद .
लाटो गळ्या (फोन पर )   - ओ ! एक मिनट हाँ . गुलाम जी गुलाम जी !
सुरजेझाला (फोन )  - जी क्या बताण .
मि –पीजा प्रेमी , लाटो रण दे . त्वे तै क्या तेरी ब्वे जी  तै बि क्या  पता कि जनेऊ क्या हूंद .
लाटो गळ्या  - नै नै स्वतंत्र गुलाम अंकल अर आनंदहीन शर्मा चाचान गूगल बिटेन खोजिक बतै छौ कि ...
मि – तो हे कम मगजी ! इथगा मा द्वी आपस मा लड़ण बिसे गे होला त तू कन्फ्यूज ह्वे गे ह्वेली.
लाटो गळ्या  - हाँ . हाँ . म्यार सब चमचा इनि करदन मि तै बथांद बथांद लड़न मिसे जान्दन अर मि क्या से क्या बुलण लग जान्द .
मि – अच्छा हे परिवारवादी राजनीति का दुखदायी नासूर ! इन त बथदि बल जनेऊ कन पैरे जान्द .
लाटो गळ्या  - कन ! कन पैरे जान्द ? मेकअप मैन जन पैरावो तन इ पैरे जान्द .
मि – हे बदबूदार गंदी राजनीति का शहजादा ! इन त बतादी बल जनेऊ पैरणो बाद का कुछ नियम धियम बि जदि कि  ना ?
लाटो गळ्या  - हाँ जगा जगा न्यूज कैमरा समिण जनेऊ दिखावो अर मोदी से तै सवाल पूछो अर मोदी तै गाळी द्यावो.
मि – हे डेमोक्रेसी का ब्लैक स्पौट ! मि चुनावी सभा की बात नि छौं करणु . जनेऊ पैरणो नियमुं बात करणु छौं .
लाटो गळ्या  - पर चकड़ेत कालू जाधव अर खुर्रांट अब्दुल्ला अंकलूंन यी बताई बल सब तै जनेऊ दिखाओ अर मोदी तै गाळी द्यावो.
मि – हे डेमोक्रेसी कु  खाज खुजली ! जनेऊ पैरणो असली उद्येस्य क्या हूंद ?
लाटो गळ्या  - ब्वाल च ना कि जनेऊ से हिन्दू आपीजमेंट का लाभ मिल्दो ,  हिन्दुओं तै खुश करणों बान जनेऊ एक हथियार च याने जनेऊ हिन्दुओं तैं मूर्ख बणानो एक अब्बल हथियार च .
मि –- हे भगवान ! ये हिन्दुस्तानौ क्या ह्वाल . एक राम तै हथियार बणान्द त हैंक जनेऊ तैं हथियार बणान्द.
7 /12 /2017,  Copyright@ : भीष्म कुकरेती

शहरी टिटहरी Red-wattled Lapwing, Shari tithri( Vanellus indicus)

गढ़वाल की चिड़ियायें - भाग -27

( Birds of  Garhwal; Birding and Birds of Garhwal, Uttarakhand, Himalaya ----- 27) 
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आलेख : भीष्म कुकरेती , M.Sc.; D.M.S.M; D.E.I.M.
टिटहरी सवर्त्र पायी जाने वाला मानव वस्तियों  के  पास रगने वाला पक्षी है ।  इसकी लम्बाई 32 -35 सेंटीमीटर होती है शरीरी टिटहरी की काली टोपी , काली छाती , काली नोकदार लाल चोंच, पीली टांग वाले टिटहरी की आँख के सामने लाल बाली  (Wattle ) होती है।  इसी तरह पीली बाली वाला टिटहरी भी होता है।  टिटहरी की आवाज बड़ी कर्कश होती है इसीलिये गढ़वाल में इस पक्षी को 'कर्रें 'कहते है. 

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सर्वाधिकार @सुरक्षित , लेखक व भौगोलिक अन्वेषक  



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कबूतर , Rock Pigeon ( Columba livia)

गढ़वाल की चिड़ियायें - भाग -28

( Birds of  Garhwal; Birding and Birds of Garhwal, Uttarakhand, Himalaya ----- 28) 
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आलेख : भीष्म कुकरेती , M.Sc.; D.M.S.M; D.E.I.M.

 33 सेंटीमीटर लम्बाई वाला रंग का कबूतर तकरीबन सब जगह पाया जाता है। कबूतर की पूंछ भी सिलेटी होता है और इसके पंखों व शरीर पर काले बैंड होते हैं।  बर्फीला कबूतर का सर काला व पूँछ पर सफेद बैंड होता है।  कबूतर मानव वस्तियों में पाया जाता है। 
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सर्वाधिकार @सुरक्षित , लेखक व भौगोलिक अन्वेषक  



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पाठ वाचन में ज्ञान स्तर का महत्व

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पाठ वाचन में ज्ञान स्तर का महत्व 

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गढवाल भ्रातृ मंडल (स्थापना -1928 ) , मुंबई  की मुहिम  –हर उत्तराखंडी  IAS बन सकता है )
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IAS/IRS/IFS/IPS  कैसे बन सकते हैं श्रृंखला  -41
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गढ़वाल भ्रातृ मण्डल हेतु प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती 
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  सूचना ज्ञान प्राप्ति हेतु केवल रौ मटीरियल होते हैं।  रौ मटीरियल रुपया सूचनाओं को सही तरह से प्रयोग क्र ही ज्ञान प्राप्ति होता है।  ज्ञान याने जो मस्तिष्क के स्मरण ,  विश्लेषण , संश्लेषण वाले कोष्ट में बैठ जाय। ज्ञान तोता रटंत से प्राप्त नहीं होता है अपितु विषय को सांगोपांग रूप से समझने से  होता है।  सामान्य परीक्षाएं रटने या सूचनाओं से पास की जा सकती हैं किन्तु IAS की परीक्षाएं ज्ञान प्राप्ति से ही पास की जा सकती हैं।  कुंए के पाने का ऊपरी  तल यदि सूचना स्तर है तो ज्ञान ऊपरी  तल से नीचे गहरा तल है। ज्ञान स्मरणीय होता है और सूचनाएं गैर स्मरणीय। किन्तु बगैर सूचनाओं को संकलित किये ज्ञान नहीं आता है। 


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शेष IAS/IPS/IFS/IRS कैसे बन सकते हैं श्रृंखला  में..... 
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कृपया इस लेख व 
हर उत्तराखंडी IAS बन सकता है" 
आशय को   लोगों तक पँहुचाइये प्लीज ! 
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