उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Sunday, September 4, 2016

Mutthi Boti ke Rakh: Poetry Collection by Narendra Singh Negi

इन्द्रेश मैखुरी
Critical and Chronological History of Modern Garhwali (Asian) Poetry –-95)
 Literature Historian:  Bhishma Kukreti
-
 नरेंद्र सिंह नेगी  गढ़वाली गीत-संगीत के अप्रतिम रचनाकार हैं। वह गायक हैंगीतकार हैंसंगीतकार हैं और कवि भी हैं। पिछले चालीस वर्षों से निरंतर उत्तराखंडी गीत-संगीत में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। वह एक व्यावसायिक कलाकार हैं पर उनकीव्यावसायिकता उनके जनसरोकारों पर हावी नहीं है। पहाड़ी जीवन का लगभग हर रंग उनके गीतों में दिखता है। सुबह होने से लेकर शाम होने तक बारिश से लेकर बाघ के आतंक तक का पहाड़ का हर रंग नेगी के गीतों में दर्ज है।
सूर्योदय के दृश्य का वर्णन करता हुआ उनका गीत है :
चम्चम् चम्चम्चम्चमकी घाम कांठ्यों मांहिंवाली कांठी चांदी की बणीगैनी,
ठंडो-मठू चढ़ी घाम फूलों की पाख्यों मालगी कुथ्ग्यली तौं कि नांगी काख्यों मा
खित्त हैंसिनी फूल डाळ्यों माभौंरा-पोतला रंगमत्त बणीगैनी,
डांडी-कांठी बिजाली पौंछी घाम गौं मासुनिंद पोड़ीं छै बेटी-ब्वारी ड्यरों मा,
झम झौल लगी आंख्यों मामायादार आंख्यों का सुपिन्या उड़ी गैनी
(चमचमचम चमकी धूप पहाड़ों पर /बर्फ से लकदक पहाडिय़ां चांदी जैसी हो गईं/धीरे-धीरे धूप फूलों से भरे पहाड़ी ढाल पर चढ़ीफूलों के नंगे बदन पर धूप ने गुदगुदी कीफूल खिलखिला कर हंस पड़े और भौंरे-पतंगे उन्मत्त हो गएपहाड़ी चोटियों को जगा कर धूप पहुंचीगांव मेंबहु-बेटियां गहरी नींद में सोयी थीं जहां घरों मेंधूप की आंच आंखों में पड़ी और उनकी प्रेम भरी आंखों के सपने उड़ गए।)
पहाड़ में शाम होने का नजारा नरेंद्र सिंह नेगी के यहां ऐसा है :
डांडा-धारूं मां घाम अछे गेपोंछी कुजाणी कै दूर मुलुक
पोड़े रुमुक,
गोर-गौचरू का घर बौड़ा ह्वेनीपंछी अगासू का घोलू पैटीनी,
ऊज्याला अड़ेथी आई अंध्यारुचोर बिराली सी सूर-सुरुक
बौण लखड़वैनी-घसेनी रगर्यांदाहे दीदी-हे भूली झट काटा-बांधा,
उनी दूध्या नौनियालसासू रिसाड़जिकुड़ी मां येडिय़ों की धूक-धूक
पोड़े रुमुक
(पहाड़ी चोटियों और ढलानों पर ढली धूपजाने वो किस दूर के मुल्क पहुंच गई/सांझ ढल गईगौचरों में चरने गए पशु घर लौट रहे हैंआकाश में उड़ते पंछी भी घोसलों में पहुंचने की तैयारी में हैंउजाले को धकेल कर अंधेरा दबे पांव चोर बिल्ली की तरह  पहुंचा हैसांझढल गई हैजंगल में लकड़ी-घास लेने गई महिलाएं हड़बड़ी में हैंअरी बहनों फटाफट काटो और बांधोघर में दुधमुंहा बच्चा है और सास गुसैलदिल में धुकधुकी लगी हैसांझ ढल गई है। )
चरवाहा अपनी भेड़-बकरियां गुम होने के किस्से को जिस मासूमियत से बयां करता है उससे कुछ हास्य भी पैदा होता है:
ढेबरा हर्ची गैनीमेरी बखरा हर्ची गैनी मेरा,
हे भुल्योंहे घसैन्युहे दीद्यूं-हे पंधेन्यूहे कका तिल देखीनीहे चुचों कख फूकेनी
खाडू नर्सिंगा का नौ को छौ सिरायुं धर्मा कोंकोनागराजा खुज्यौ त्वीतेरो लागोठ्या लीगी क्वी
पटवरी जी की पुजै भोलबुगठ्या दिख्यो ह्वेगे गोल
(भेड़ें गुम हो गईं मेरी बकरियां लापता/हे भुल्यों (छोटी बहनों)-घसियारिनोहे दीदियो-पनिहारिनोअरे काका तूने देखिअरे लोगो कहां मर गईं / नरसिंह देवता की नाम का खाडू (भेड़रखवाया था धर्मा नेनागराजा तू ही खोज तेरी बलि के लिए रखे हुए को ले गया कौन/पटवारी जी की पूजा कल और बकरा हो गया गोल)
ये पहाड़ की विडंबना है कि कठिन और विकट जीवन स्थितियों में पहाड़ी गीतों में दुख भी हास्य के रूप में फूटता है। इसलिए पहाड़ में कहावत है कि बड़े दुख की बड़ी हंसी।
एयर कंडीशन कमरों में बैठ कर भले ही बाघ बचाने की बड़ी-बड़ी चिंताएं हों लेकिन पहाड़ में तो बाघ आतंक का ही पर्याय हैजो आए दिन पालतू पशुओं से लेकर मनुष्यों पर हमलावर है। नेगी एक लडकी जिसकी मंगनी होने वाली है की मंगनी कहानी सुनाते हैं जो बाघ कानिवाला बन चुकी है --
सुमा हे निहोंण्यां सुमा डांडा ना जासुमा हे खड्यौंणा सुमा डांडा ना जा,
लाडा की ब्यटूली सुमा डांडा ना जायखुली-यखुली सुमा डांडा ना जा,
दोबदो-दोबदो बाघ डांडा ना जातेरी घांटी बिलकी सुमा डांडा ना जा
तेरी चिरीं लती-कपड़ी डांडा ना जाघसेन्यून पछ्याणी सुमा डांडा ना जा
अध्खाईं तेरी लास देखि सैरा गौं का रवेनि सुमा डांडा ना जा
(सुमा अरी  नादान सुमा पहाड़ पे मत जा/सुमा  लाडली सुमा पहाड़ पे मत जाअकेली-अकेली सुमा पहाड़ पे मत जा / दबे पांव आया बाघ और तुझपे झपट गयापहाड़ पे मत जातेरे चीथड़े हो चुके कपड़े घस्यारिनों ने पहचानेपहाड़ पे मत जा / तेरी आधी खाई लाशदेख कर सारे गांव वाले रोयेपहाड़ पे मत जा।
नोटइस गीत में बाघ का निवाला बन चुकी सुमा को संबोधित करते हुए बाघ द्वारा उसे मारे जाने की कथा बयान की गई है। अनुवाद करने के लिहाज से टेक के रूप में प्रयुक्त पंक्तियां हटा दी गई हैं। )
बाघ का आतंक इतना भारी है पहाड़ पर कि जब नब्बे के दशक में उत्तराखंडी मूल के निशानेबाज जसपाल राणा की ख्याति हुई तो उनसे भी बाघ मरने कि प्रार्थना करते  हैं
बंदुक्या जसपाल राणा सिस्त साधी देनिसणु साधी दे
उत्तराखंड मा बाघ लग्युंबाघ मारी देमनस्वाग मारी दे
नथूल्यों गले कि तोई सोना का मेडल द्युंला
बच्यां रौंला जब तलकराणा तेरो नाम ल्युंला
आतंकबादी ये बाघे की सेक्की झाड़ दे
(बंदूकधारी जसपाल राणा निशाना साध लेउत्तराखंड में बाघ लगा हुआ हैबाघ मार देआदमखोर को मार देनथें गला कर तुझे हम सोने के मेडल देंगेजब तक जिंदा रहेंगेराणा तेरा गुणगान करेंगेआतंकवादी इस बाघ की हेकड़ी उतार दे)
नवविवाहिताओं की चहल चुहल का नजार देखिये -
स्त्रीहे जी कैबै ना करामठू-मठू जौंलानयु-नयु ब्यो  मिठी-मिठी छ्वीं लगोंला,
पुरुषहिट ले दी घमाघमीसरासरी जौंलाफुक तौं लोळी छुयुं डेरै मा लागौला
(स्त्री जी अकबक मत करोहौले-हौले चलेंगेनई-नई शादी हैमीठी-मीठी बातें करेंगे।
पुरुष : लंबे-लंबे डग भरफटाफट जाएंगेरहने दे उन कमबख्त बातों को घर में ही करेंगे। )
लेकिन उसी पहाड़ी स्त्री का पति जब नौकरी के लिए पहाड़ से पलायन पर कविता देखिये –
देवरनारंगी की दाणी होक्यान सूखी होलो बौजी मुखड़ी को पाणी हो
बौजीखोळी को गणेशा होजुग बीती गैनी द्यूरा स्वामी परदेसा हो
देवरधीरज चएंदा होखैरी का ये दिन बौजी सदानि नी रएंदा हो
बौजीत्वे मा क्या लगौण होदिन बौडी  भी जाला ज्वनी क्खे ल्योंण हो
(देवरक्यों सूख गया भाभी तुम्हारे चेहरे का पानीभाभीवर्षों बीत गए देवर स्वामी परदेस ही हैं। / और गीत के अंत में जब देवर भाभी को सांत्वना देते हुए कहता है कि / धीरज रखना चाहिए भाभीदुख के दिन हमेशा नहीं रहेंगेतो पहाड़ की तकलीफों से टकराते-टकरातेअपना सब कुछ पहाड़ में ये दफन करने वाली स्त्री की पीड़ा भी उभरती है जब वह कहती है किदिन तो बहुर भी जाएंगे पर जो युवावस्था कष्टों को झेलते-झेलते बीत गई वो कहां से लौटेगी।
नोटटेक के रूप में इस्तेमाल पंक्तियों का अनुवाद नहीं किया गया है। )
प्रेम पर तो नेगी के कई गीत हैं।  हर बार वह नए बिंबोंनए रूपकों के साथ प्रेम गीत रचते हैंजिनमें फिल्मी छिछोरापन नहीं है बल्कि प्रेम की शालीनता और गरिमा उभरती है। एक नमूना देखिए:
बंडी दिनों मा दिखे आजदिन आजा को जुगराज,
फल्यान-फूल्यां वो पाखावो पैंडाहैरा-भैरा रयां पुंग्डय़ूं का मेंडा
जौं सारयूं बीच हिटी की तू ऐईतौं सारयूं खारयूं हो नाज
(प्रेमिका के मिलने पर प्रेमी कह रहा है:
बहुत दिनों में दिखी आजआज का दिन दीर्घजीवी होफलें-फूलें वो पहाड़ी ढालेंहरे-भरे रहें वो खेतों की मेड़ें / जिन खेतों से चल के तू आईउनमें हो मनों अनाज )
प्रेमिका के मिलन पर ऐसी उत्पादक कामना अद्भुत ही नहीं है बल्कि दुर्लभ भी है।
शुरुआत के गीतों में देखें तो गढ़वाल की वंदनागढ़वाल की प्रकृति की सुंदरता की प्रशंसा नरेंद्र सिंह नेगी के गीतों में खूब दिखती है। लेकिन धीरे-धीरे पहाड़ की समस्याएं उनके गीतों में उभर कर सामने आने लगीं :
कख लगाण छ्वीं , कैमा लगाण छ्वीं,
ये पहाड़ कीकुमौं-गढ़वाल की,
रीता कूड़ों कीतीसा भांडों की,
बगदा मनख्यूं कीरड़दा डांडों की
(कहां कहें बातकिससे कहें बात, /इस पहाड़ कीकुमाऊं -गढ़वाल कीखाली मकानों की, / प्यासे बर्तनों कीबहते मनुष्यों कीलुढ़कते पहाड़ों की। )
ये पहाड़ से लगातार पलायन की पीड़ा हैलेकिन चूंकि नीति-नियंताओं को इस पलायन और खाली होते पहाड़ के गांवों से कोई फर्क नहीं पड़ताइसलिए आम पहाड़ी आदमी की पीड़ा भी इसमें है कि कहां कहें और किससे कहें।
जनविरोधी विकास या विकास के नाम पर हो रहे विनाश की ओर भी नरेंद्र सिंह नेगी आम आदमी का ध्यान खींचते हैं :
नौ फरें विकास काविनाश कैन कैरी यूं पहाड़ों को, /खोजा वे सणीपछ्याणावे सणी
(विकास के नाम पर विनाश किसने किया इन पहाड़ों का, /खोजो उसेपहचानो उसे।)
उत्तराखंड आंदोलन के दौर में तो आंदोलन के गीतों का एक पूरा कैसेट ही नेगी ने निकाला। 1994 के प्रचंड जनांदोलन में उत्तराखंडियों को जागने का संदेश देते हुए उन्होंने लिखा:
उठा जागा उत्तराखंडियोंसौं उठाणो बक्त ऐगे,
उत्तराखंड का मान सम्मान बचाणो बक्त ऐगे,
भोळ तेरा भला दिनों का खातिर जौं कुल्वे सड़क्यं मा बौगी,
ऊं शहीदों कू कर्ज त्वे पर अब चुकाणो बगत ऐगे
(उठोजागोउत्तराखंडियो शपथ लेने का वक्त  गया हैउत्तराखंड का मान सम्मान बचाने का वक्त  गया हैकल तेरे उज्ज्वल भविष्य के लिएजिनका लहू सड़कों पर बहाउन शहीदों का कर्ज चुकाने का वक्त  गया।)
अक्टूबर, 1994 को दिल्ली में प्रदर्शन करने जा रहे आंदोलनकारियों पर उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सिंह यादव और मायावती की गठबंधन सरकार ने मुजफ्फरनगर में बर्बर दमन ढाया। गुंडों की तरह नौजवानों की हत्याएं और महिलाओं के साथ दुराचार मुलायमसिंह यादव की पुलिस ने किया। इस बर्बर और शर्मनाक दमन के खिलाफ नरेंद्र सिंह नेगी ने अपने गीत में प्रतिरोध दर्ज किया:
तेरा जुल्म कू हिसाब चुकौला एक दिनलाठी-गोली को जवाब द्यौला एक दिन,
वो दिन-बार औंणविकास का रतब्योंण तक,
अलख जगीं राली ये उत्तराखंड मालड़ै लगीं राली ये उत्तराखंड मा
(तेरे जुल्म का हिसाब चुकाएंगे एक दिनलाठी-गोली का जवाब देंगे एक दिन/वो दिन-वो वक्त आने तकविकास का उजाला होने तकअलख जगी रहेगी इस उत्तराखंड मेंलड़ाई जारी रहेगी इस उत्तराखंड में।)
नवंबर,  2000 को अलग उत्तराखंड राज्य बनालेकिन ये जनता के सपनों का राज्य नहीं था। लूट और झूठ की कांग्रेसी-भाजपाई राजनीति का उत्तराखंड थाठेकेदार और माफियाओं का उत्तराखंड था। नेगी के भीतर के गीतकार और गायक ने इस छलावे को जल्दी हीपहचान लिया। जहां राज्य बनने से पूर्व के गीतों में वह विकास के नाम पर विनाश करने वालों को खोजने और पहचानने को कहते हैंवहीं राज्य बनने के बाद के गीतों में वह लूट की ताकतों और उनके शिखर पुरुषों की  केवल शिनाख्त करते हैं बल्कि खुल कर उन परउंगली उठाते हैंउनका नाम लेते हैं। उनके कारनामों को गीतों के जरिये जनता के सामने लाते हैं। कांग्रेसी मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी को केंद्र करके नेगी जी द्वारा लिखा और गाया गीत-नौछम्मी नारैण (बहुरुपिया नारायणऐसा ही गीत हैजो नारायण दत्त तिवारी द्वारासरकारी खजाने की लूट पर तीखा हमला बोलता है। वह यहीं नहीं रुकतेभाजपा की सरकार बनने के बाद वह मुख्यमंत्री निशंक’ पर निशाना साधते हुए गीत लिखते हैं – ‘अब कथ्गा खैल्यो’ (अब कितना खाएगा) जिस समय निशंक’ के भ्रष्टाचार का दौर चरम पर थानेगीका यह गीत जैसे सीधा मुख्यमंत्री से सवाल कर रहा था कि भाई बता अब और कितना खाएगा। जहां नौछम्मी नारैण’ में नेगी ने राज्य की पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के निकम्मेपन पर भी व्यंग्य किया वहीं अब कथ्गा खैल्यो’ में वह घोटालों की सरताज केंद्र की कांग्रेस सरकारपर भी प्रहार करते हैंराष्ट्रमंडल खेलटू-जी घोटालाकाले धन जैसे मसलों को भी इस गीत में उन्होंने छुआ है।
चुनाव में कांग्रेस-भाजपा जैसी पार्टियों द्वारा अपनाए जा रहे हथकंडों पर नरेंद्र सिंह नेगी का गीत देखिए:
हातान हस्की पिलाई फूलन पिलायो रम ,
छोटा दली-निरदली दिदोंन कच्ची मा टरकायां हम,
ऐंसू चुनौ मा मजा ही मजादारु भी रुप्या भी ठमठम
सुबेर पैग पे घडी दगडीदिन का पैग सैकिल मा चढ़ी,
ब्याखुनी कुर्सी मा लम्तम पड़ीराती को हाती मा बैठी की तड़ी
ऐंसू चुनौ मा ठाठ ही ठाठप्रत्याशी पैदल अरघोड़ा मा हम।
(हाथ (कांग्रेसने व्हिस्की पिलाईफूल (भाजपाने पिलाया रमछोटे दलोंनिर्दलीय भाइयों ने कच्ची में टरकाये हमइस चुनाव में तो मजा ही मजादारू भी और नोट भी खटाखटसुबह का पैग घड़ी (एन.सी.पी.) के साथदिन का पैग साइकिल (सपामें चढ़ाशाम को कुर्सी(उत्तराखंड क्रांति दलमें लंबलेट हुएरात को हाथी (बसपामें बैठ के तड़ीइस चुनाव में तो ठाठ ही ठाठ हैंप्रत्याशी पैदल और घोड़े में हैं हम)
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र कहे जाने वाले इस देश में चुनाव अब तो पैसा बांटने और शराब पिलाने की प्रतियोगिता ही तो बन गए हैं।
टिहरी बांध ने तकरीबन दस हजार परिवारों को विस्थापित कर दियाटिहरी शहर और कई गांव डूब गए। टिहरी बांध पर अस्सी के दशक में लिखे अपने गीत की भूमिका में नेगी कहते हैं कि विकास के इतिहास में इनका त्याग अमर रहेगा। इस गीत में एक बूढ़ा बाप अपनीमिट्टी से हमेशा के लिए बिछडऩे का दर्द अपने बेटे को चिट्ठी में लिखते हुए कहता है:
अबारी दां तू लंबी छूटी लेके ऐईऐगे बगत आखीर,
टीरी डूबण लग्युं चा बेटा डाम का खातीर
(इस बार तू लंबी छुट्टी लेके आनाआखिरी समय  गया हैटिहरी डूब रहा है बेटाबांध की खातिर।)
लेकिन उत्तराखंड बनने के बाद यहां सैकड़ों के तादाद में निर्मितनिर्माणाधीन और प्रस्तावित परियोजनाओं को देख कर नेगी भी समझते हैं कि ये विकास का नहीं संसाधनों की लूट का मामला है। इसलिए वह कहते हैं:
देवभूमि को नौ बदलीबिजली भूमि कैरयाली जी,
उत्तराखंड की धरती योंन डामून डाम्याली जी,
हमरी कूड़ीपुन्गड़ीबणों मा बिजलीघर बणाली जी,
जनता बेघरबार होलीसरकार रुप्या कमाली जी।
(देवभूमि का नाम बदल कर बिजली भूमि कर दिया जीउत्तराखंड की धरती को इन्होंने बांधों से लहूलुहान कर दिया जीहमारे मकानखेतोंवनों में बिजलीघर बनाएगी/जनता बेघरबार होगीसरकार तिजोरियां भरेगी जी।)
उत्तराखंड राज्य की मांग के साथ ही राजधानी का सवाल महत्वपूर्ण रूप से जुड़ा रहा है। जनता की मांग रही है कि गैरसैण राजधानी बने। देहरादून में अस्थायी राजधानी के नाम पर सरकार के जमने के खिलाफ लिखे गए गढ़वाली कवि वीरेंद्र पंवार के गीत को नेगी जी ने स्वरदिया :
सब्बी धाणी देरादूणहूणी-खाणी देरादूण
परजा पिते धार-खालराजा राणी देरादूण
सबन बोली गैरसैणतौंन सूणी देरादूण
(सभी काम देहरादूनविकास के काम देहरादूनप्रजा खटती रही पहाड़ों परराजा-रानी देहरादूनसबने कहा गैरसैणउन्होंने सुना देहरादून)
जब उत्तराखंड में स्थायी राजधानी के चयन के लिए बने वीरेंद्र दीक्षित आयोग ने नौ साल में ग्यारह विस्तार पाने और तकरीबन पैंसठ लाख रुपए खर्चने के बाद देहरादून को ही राजधानी बनाने की संस्तुति की तो नरेंद्र सिंह नेगी ने दीक्षित आयोग के साथ ही कांग्रेसभाजपाऔर उत्तराखंड क्रांति दल को गैरसैण का मामला लटकाने के लिए कठघरे में खड़ा कियासाथ ही गैरसैण के लिए लड़ाई जारी रखने का आह्वान भी किया:
तुम भी सूणामिन सूण्यालीगढ़वाल ना कूमौं जाली
उत्तराखंडे राजधानी बल देरादूणी मा रालीदीक्षित आयोगन बोल्याली,
ऊन बोलण छौबोल्यालीहमन् सूणन् छौसूण्याली
या भी लड़ै लगीं राली
नौ सालम से कि जागीधन्य हो पंड्डा जी पैलागी,
पैंसठ लाख रूप्या खर्ची कीदेरादूण अब खोज साकी,
जनता का पैंसों की छरळी
या भी 
कांग्रेस-भाजपा नी रैनी कभी गैरसैण का हक्क मा,
सड़कूं मा भी सत्ता मा भीयू.के.डीजकबक मा
(तुम भी सुनोमैंने सुन लियागढ़वाल ना कुमाऊं जाएगीउत्तराखंड की राजधानी देहरादून में ही रहेगीदीक्षित साहब ने कह दिया हैउन्होंने कहना था कह लियाहमने सुनना था सुन लियाये लड़ाई भी जारी रहेगीनौ साल में सो के जागेपंडित जी (दीक्षिततुम्हें प्रणाम/पैंसठ लाख रुपए खर्च करकेदेहरादून अब खोज सके / जनता के पैसे की ये खुलमखुल्ला लूटये भी लड़ाई…/ कांग्रेसभाजपा नहीं रहे कभी गैरसैण के हक मेंसड़कों में रहें कि सत्ता के साथ यू.के.डी.संशय में।)
नरेंद्र सिंह नेगी सत्ता की लूट पर सीधी चोट करते हैं। अपने एक गीत में वह कहते हैं:
बिना पाणी का घूळी गैनीयों मा कनि सार यूं को  दोस नी यों कि सरकार 
(बिना पानी का हजम कर गएइनको कैसा अभ्यास हैइनका कोई दोष नहीं हैइनकी सरकार है।)
इस तरह देखें तो पहाड़ का हर रंगहर शेड नरेंद्र सिंह नेगी के गीतों में है। पीले फ्योंली के फूल हों या लाल बुरांस (बुरुंश)बर्फ से लकदक चोटियों से लेकर गहरी घाटियों तक का सुंदर वर्णन नेगी के गीतों में है। प्रकृति की सुरम्यता के साथ ही पहाड़ के भोले-भाले लोगों औरउनके पहाड़ जैसे ही कष्टों का अंदाजा भी नेगी के गीतों से होता है। पहाड़ की प्राकृतिक सुरम्यताप्रेम और सौंदर्य का ये गायकगीतकार मजबूती से ना केवल जनता के पक्ष के गीत रचता और गाता है बल्कि आंदोलनों में हिस्सेदार भी बनता है। नौछम्मी नारैण’ लिखतेसमय नरेंद्र सिंह नेगी उत्तराखंड सरकार की सेवा में थेलेकिन एन.डी.तिवारी के भ्रष्ट राज के खिलाफ ये गीत गाने के लिए उन्होंने सरकारी सेवा से वी.आर.एस.ले लियाऐसा दूसरा उदाहरण शायद ही कोई और हो कि एक गीत गाने के लिए किसी गायक ने सरकारी नौकरीको अलविदा कह दिया हो।
जैसा कि जनता के पक्ष में खड़ी कला और कलाकार एक बेहतर दुनिया के सपने के साथ हमेशा खड़े होते हैंवैसा ही नरेंद्र सिंह नेगी भी अपने गीत में कहते हैं:
द्वी दिनै की हौर छिन  खैरीमुठ बोटी कि रख
तेरी हिकमत आजमाणू बैरीमुठ बोटी कि रख,
ईं घणा डाळौं बीच छिर्की आलो घाम ये रौला मा भी
सेक्की पाळै द्वी घडी हौर छिनमुठ बोटी कि रखा
(दो दिनों का और है ये कष्टमुट्ठी ताने रखतेरी हिम्मत आजमा रहा है बैरीमुट्ठी ताने रख/इन घने पेड़ों के अंधेरे को चीर कर भी आएगा उजालापाले (तुषारकी हेकड़ी दो वक्त की और हैमुट्ठी ताने रख।)
निश्चित ही लूट-झूठ के राज को मिटाने के लिए तो लडऩा पड़ेगाखपना पड़ेगा और इस लड़ाई में हमारी मुट्ठी तनी रहेइसके लिए नरेंद्र सिंह नेगी अपने गीतों के साथ खड़े हैंडटे हैं।
सर्वाधिकार इन्द्रेश मैखुरी
Critical and Chronological History of Asian Modern Garhwali Songs,  Poets   ; Critical and Chronological History of Modern Garhwali Verses,  Poets ; Critical and Chronological History of Asian Modern Poetries,  Poets  ; Poems Contemporary Poetries,  Poets  ; Contemporary Poetries from Garhwal; Development of Modern Garhwali Verses; Poems  ; Critical and Chronological History of South Asian    Modern Garhwali Verses  ; Modern Poetries ,  Poets  ; Contemporary Poetries,  Poets  ; Contemporary Poetries Poems  from Pauri Garhwal; Modern Garhwali Songs; Modern Garhwali Verses  ; Poems,  Poets   ; Modern Poetries  ; Contemporary Poetries  ; Contemporary Poetries from Chamoli Garhwal  ; Critical and Chronological History of Asian Modern Garhwali Verses ; Modern Garhwali Verses,  Poets   ; Poems,  Poets  ; Critical and Chronological History of Asian  Modern Poetries; Contemporary Poetries , Poems Poetries from Rudraprayag Garhwal Asia,  Poets   ; Modern Garhwali Songs,  Poets    ; Critical and Chronological History of Asian Modern Garhwali Verses  ; Modern Poetries  ; Contemporary Poetries,  Poets   ; Contemporary Poetries from Tehri Garhwal; Asia  ; Poems  ;  Inspirational and Modern Garhwali Verses ; Asian Modern Garhwali Verses  ; Modern Poetries; Contemporary Poetries; Contemporary Poetries from Uttarkashi Garhwal  ;  Modern Garhwali Songs; Modern Garhwali Verses  ; Poems  ; Asian Modern Poetries  ; Critical and Chronological History of Asian Poems  ; Asian Contemporary Poetries; Contemporary Poetries Poems from Dehradun Garhwal; Famous Asian Poets  ;  Famous South Asian Poet ; Famous SAARC Countries Poet  ; Critical and Chronological History of Famous Asian Poets of Modern Time  ;
-
पौड़ी गढ़वालउत्तराखंड  से गढ़वाली कविता चमोली  गढ़वालउत्तराखंड  से गढ़वाली पद्य  , कविता रुद्रप्रयाग गढ़वालउत्तराखंड  से गढ़वाली पद्य  , कविता ;टिहरी गढ़वालउत्तराखंड  से गढ़वाली पद्य  , कविता ;उत्तरकाशी गढ़वालउत्तराखंड  से गढ़वाली पद्य  , कविता देहरादू गढ़वालउत्तराखंड  से गढ़वाली पद्य  , कविता 

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments