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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Friday, August 5, 2016

वूं दिनु दिल्ली मा (Garhwali Story)

Story by: Mahesha Nand
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भरि खौर्या दिन छा वु। रम्मु दिल्लिम् एक भांडौं कि दुकSनिम् छै सौ रुप्ये ठिकर्या नौकरी कर्दु छौ। चार सौ रुप्या त झुग्गि क्वी किराया छौ। तब उब्रि (शेष) द्वी सौयूं द्वी सौ रुप्यौं थै वु सगळ्या मैना पुकांदु छौ।
ठ्यिल्लम् मिल्दि छै द्वी रुप्यम् एक करछुलि भातै अर एक डडुळि सागै। सैरा दिन वु इतगै फर ढीम (संतुष्ट हूंण) कर्दु छौ। ब्यखुनि दां झुग्गिम् ऐकि द्वी रुट्टि लूंणम खै कि स्ये जांदु छौ।
एक दिन वे कगौं कनौना थैं सौ रुप्ये चाड (जरूरत) पोड़ि त वेन रम्मु मा सौ रुप्या पगाळ मंगि द्येनि। पाछ रम्मु मा सौ रुप्ये उबर्यां छा। यूं सौ रुप्यौन् चार दिन बि वे ककिसा उंद थौ नि खैनि। 
रम्मु जब खलझाड़ ह्वे ग्या त ब्यखुन्यू पकांणू सप्पा नि रा। वेन पांणि प्या अर स्ये ग्या। एक दिनद्वी दिन अर तीन दिन नीमी (व्यतीत) ग्येनिरम्मु टंटांण बुख्या-बुक्खि रै ग्या। तीन दिन अर तीन रात वेन इन नी कि जु सौं ल्हींणु बि एक टींड गिच्चा घालि हो। चौथी रात वे सप्पा निंद नि आ। 
कुरबुरिम् वेन परमेसुर सुमिरि----- "हे परमेसुर! तीन दिन अर तीन रात त मिन ठेलि येनिक्य अमंणि बि मिन बुक्खि रांण! म्यारा बांठौ खांणु तिन कक्ख लुका ये औगार (शिकायतमन का उमाळ) लगै कि वु रंगत्यांद-तंगत्यांद गोविन्दपुरि बटि पाड़गंज पैदल दुकSनिम् ऐकि लाला थैं जग्वंळ बैठि।
वेन दुकSन्या भैर सड़किम् छकंण्य कागज अर एक लिफपु द्येखि। लिफपा बटि एक रुप्यौ नौट दिखेंणू छौ। वेन वु लिफपु उफारि त् द्येखी-- एका नौटा पैथर सौ कु नौट बि छौ। वेन सर्ग जना नेळी (द्येखी) परमेसुरौ बोलि---" हे परमेसुर! क्य अछीकि तिन म्यरि खौरि अपड़ा आंखौन् द्येखि यालि परमेसुर त्यरि लिल्यौ क्वी अन्तु नी।"
वेन पाछ धीत तोड़ी छोला अर कुल्चा खैनि अर परमेसुरौ हत जुड़िनि। रम्मु थैं जब दिल्लि मंगा वूं दिन्वी ओद आंद त वे कआंखौंम् अंसधरि छंमणै जंदन।
Copyright@ Mahesha Nand
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