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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, May 8, 2016

" नाच नाच मेरि बैण्यूँ अपर बुबाकि सैण्यूँ "

 हंसोड्या कविता -जोक कु मजा लीणो तमीज 

                    
घपरोळया हंसोड्या , चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती      
                    
 
(s =
आधी अ  = अ क का की ,  आदि )
 अचकाल  पार्टी सार्ट्यूं मा या न्यूतेरो दिन हंसोड्या कवियूँ तैं बुलाण या जोक सुणाणो प्रोग्रामुँ रिवाज बड़ो जोरूं से बढ़ गे।  भौत सा लोग त तिरैं -बरखी दिन बि हंसदर्या जोक सुणानो प्रोग्रैम उरे दींदन। 
अचकाल न्यूतेरो दिन डीजी अर हास्य कवि सम्मेलन या जोक सुणो सम्मेलन दगड़ी चल्दन। 
हालांकि मि हास्य अर दारु -सारू पार्टी मा संगत कम चितांदु किंतु जब रिवाज चल ही गे तो दारु दगड़ हास्य कविता या जोक्स कु चखणा चखण इ पड़द। 
हंसोड्या कविता सम्मलेन या पार्टी -सार्टी मा हंसदर्या कवि तो जाणदा छन कि कविता सुणानो तरीका मा पारंगत -प्रवीण हूंद छन किंतु हास्य कविता या जोक्स सुणन वाळुं बि एटीकेट हूण चयेंद याने दर्शकुं तैं बि जोक्स अर हास्य कविता सुनणो तमीज हूण चयेंद। 
अबि ब्याळि मुंबई मा उदयपुर पट्टी का बंगनी जिनाक  ललित बिष्ट जीन एक पार्टी दे जखमा द्वी हास्य कवि बुलयाँ छया. मि बि पार्टी मा जयूँ छौ। 
डा राजेश्वर उनियालन एक हास्य कवि रुड़की का गौतम जी को परिचय दे कि हास्य सम्मेलनों माँ कवि गौतम की बड़ी धूम मचीं च अर मुकेश गौतम  तैं कविता पाठ  वास्ता बुलाई। 
मुकेश गौतम रुड़की का छन तो उत्तराखंड का समाचारों से अवगत रौण लाजमी च। मुकेश गौतमन कविता पाठ से पैल इन शुरुवात कार - परसि ढांगू -उदयपुर पट्ट्यूं मा बाढ़ आइ मि तैं बड़ो दुःख ह्वे आशा च आपका गांवुं मा सबि सुख्यर होला। 
अर मुकेश जीको  इन बुलण छौ कि भौतसा दर्शक खत खत हंसण मिसे  गेन अर जोर जोर से ताळी पिटण लग गेन अर एक दर्शकन त जोर से ब्वाल ," वाह मजा आ गया !"
ठीक च कवि तैं 'वाह -वाह या 'ताळी की गूंज से उत्साह मिल्दो किन्तु दर्शकों तैं ध्यान तो दीण इ पोड़द कि कवि बुलणो क्या च ?
बगैर सुण्या वाह वाह ठीक नि हूंद।  मि तैं याद च एक घड़्यळ मा जनानी सुदी मुदि  नाचण लग गेन तो जागरिन जोर से थाळी छणकाइ अर जागर सुणाई " नाच नाच मेरी बैणियूँ अपर बुबाकी सैणियूं "   अर कुनगस कि ये जागर से द्वी -चार और जनानी बि खड़ ह्वे गेन अर नाचण लग गेन।  तब बिटेन मि समजि  ग्यों कि दिवता कै हिसाब से आंद। 
भौत दै जोक पूरा बि नि हूंद अर दर्शक बुलण बिसे जांदन - वन्स मोर - वन्स मोर ! एक्सलेंट जोक !" इनमा तो जोक सुणान वाळक ज्यु बुल्यांद कि दीवाल पर कपाळ फोड़ी द्यावो। 
सबसे बड़ी परेसानी कवि तैं तब हूंद सुणण वाळ बेतुकी प्रतिक्रिया दींद।  
ब्याळी इ जब मुकेश गौतमन अपण कविता सुणैन अर ब्वाल कि - अब मि माइक अन्य हास्य कवि मिश्रा जी तैं दींदु। " तो भौत सा दर्शक ताळी पिटण लग गेन - वाह बहुत बढ़िया कविता ! वन्स मोर ! वंस मोर ! इनमा गौतम कु ज्यु अवश्य बुले होलु कि चार मंजिल से फाळ मारि द्यौ। 
भौत सा दर्शक हास्य कवितौं तैं  गजेन्द्र राणा का गीत समजणो गुस्ताखी बि करदन अर बीच मा अपण सीट मा खड़ ह्वेक पंडो नृत्य की भाव भंगिमा मा नाचणो स्वांग बि करण लग जांदन।  झूट बुलणु हों तो डा राजेश्वर उनियाल जी तैं अर केशर सिंग बिष्ट जी तैं पूछी ल्यावो। 
हास्य कविता का मजा तबि आंद जब दर्शक शांत बैठ्याँ ह्वावन पर यदि हास्य कवि कविता सुणाणु ह्वावु अर दर्शक दीर्घा मा एक छाल से एक दर्शक दुसर छाल पर बैठ्याँ केशर सिंह बिष्ट जी से पूछो कि बिष्ट जी एबरी कौथिग मा घन्ना भाई जरूर बुलैन हाँ ! तो अवश्य ही डाइस मा बैठ्याँ हास्य कवियों ज्यु आत्महत्या का ही बुल्याल ! 
यदि हास्य कवियुं तैं हंसाणो ब्यूंत आण चयांद तो सुणदेरुं तैं बि जोक्स या हास्य कविता सुणणो तमीज हुणि चयेंद ! 

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