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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, November 15, 2015

एक अनुकरणीय पहल

 डा बलबीर सिंह रावत 



दीपावली के अगले दिन मेरी ससुराल के दो प्रियजन मिलने  आये। बातों बातों में  घर खेती का जिक्र आया तो उन्होने बताया की उनके कुछ खेत  श्री अभय काला जी ने लीज पर ले लिये हैं और उन्होंसे १०० नाली जमीन  में उड़द और १०० नाली  में गहथ बोये थे। उड़द तो हुए नहीं, १५० कुंतल गहथ दाल पैदा हुई जो १३०/- प्रति किलो के भाव से गांव व में ही बिक गई।  रबी की फसल में उन्होने लाही ( लय्या -रेप सीड  - काली सरसों ) बो रखी है। मैंने उनसे काला जी का फोन नंबर लिया और कल उनसे काफी देर तक बात की। 
अभय काला ४० साल के युवा हैं जिन्होने अपनी टाइम्स ऑफ़ इंडिया, मुंबई , में पत्रकारिता की नौकरी छोड़ व्यावसायिक कृषि के लिए अपने एक मित्र का यह गाँव चुना।  उनको जो खेत मिले वे लैनटिना झाड़ से भरे हुए थे। उन्होने एक छोटा ट्रैक्टर ( १ कुंतल वजनी ) कृषि विभाग से खरीदा और गाँव के ही ६ नजवानो और कुछ महिलाओं को घंटे के हिसाब से  रोजगार देकर उनकी मदद से खेत साफ़ करवाये और उनमे उड़द और गहथ बोये।  उड़द का बीज सही न होने के कारण उनकी १०० नाली जमी को पुनः आवाद करने की मेहनत और 
लागत बेकार गयी।  वे निराश नहीं हुए, और  अब लाही तिलहन की पैदावार से कुछ आशावान हैं। आगे के लिए उनका फसल मिक्स हर मौसम में कुछ बिक्री लायक उत्पादन करने का है।  
वे गाओं के २० -२५ जनो को रोजगार दे रहे हैं , उनके गुठ्यारों से गोबर की खाद भी खरीद रहे हैं और अब इस तिलन से तेल निकालने की मशीने भी लगा कर छोटा सा उद्द्योग भी लगाने का प्लान है उनका। वे ये मान कर चल रहे हैं कि तीन साल तक उनको शुद्ध लाभ नहीं सम्भव होगा लेकिन उसके बाद यह सुव्यवस्थित व्यवसाय अवश्य लाभदायक सिद्ध होगा। 
उनकी इस पहल ने आसपास के गांव वालों को भी प्रेरित किया है और वे सम्पर्क साध रहे हैं की उनके गावों में भी जमीने ले लें। 
प्रदेश के कृषि विभाग से उन्हें किसी भी तरह की काम लायक सहायता नहीं मिल पा रही है।  उनकी सब से बड़ी समस्या सुवर और बंदर हैं, जिसके लिए सरकार से  हलके वोल्टेज की तार बाड़ के लिए निवेदन किया है , फ़िलहल गाँव वाले रात को १५-२० के झुण्ड में सुवरों को भगाते हैं, गाव में किसी के पास बन्दूक न होने से काला जी अब एयर गन का प्रयोग करने का प्रबंध कर रहे हैं। वे मानते हैं की बंदरों के साथ रहना सीखना पडेगा और इसी कारण  वे फलदार पेड़ों के बाग़ लगाने के पक्ष में नहीं हैं। 
यह एक ऐसा प्रेरणा दायक उदाहरण है जिस से अन्यों को प्रोत्साहन अवश्य मिलेगा और जो काम सरकार न कर सकी वह काला जी के इस प्रयास से हो पायेगा और उत्तराखंड से पलायन कम हो कर एक स्वस्थ स्तर पर आ पायेगा।   

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