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Friday, September 11, 2015

पाषाण युग मा व्यंग्य

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                        पाषाण युग मा  व्यंग्य 

    (व्यंग्य - कला , विज्ञानौ , दर्शन का  मिऴवाक  : (   भाग    14   ) 

                         भीष्म कुकरेती 

  औपचारिक रूप से अबि तक इन खोज नि ह्वे कि आदि -प्रस्तर उपकरण युग , मध्य -प्रस्तर उपकरण युग अर उत्तर प्रस्तर उपकरण युग मा हास्य -व्यंग्य का क्या रूप छौ। 
कुछ फिल्मकरों , उपन्यस्कारुंन , कथाकारुंन पाषाण युग का बारा मा कल्पनाटंक साहित्य रच बि च अर हास्य -दिखै बि च। 
यदि हम पाषाण युगीन रॉक आर्ट , रौक ड्राइंग , रॉक रेखाचित्र , रौक पेंटिंग  दिवां तो भौत क्या अधिकतर चित्रों मा पशुओं अर मानवों चित्र अतिश्योक्तिपूर्ण ,  कलात्मक बि छन।  याने कि अतिश्योक्ति पाषाण काल ) मा बि मिल्दी . यदि अतिशयोक्ति कै बि काल मा मान्य छे तो अवश्य ही व्यंग्य -हौंस बि छैं इ छै। 
लीबिया मा Missak Settafet मा (सहारा क्षेत्र मा अल्जीरिया सीमा पर ) एक रौक ड्रवाइंग च ज्वा आज बि सामजशास्त्री , इतिहासकारुं कुण पहेली च। 
यीं रॉक ड्राइंग मा द्वी जानवर (सैत च बिल्ली ) लड़ना छन अर मुखाकृति मनुष्य की सि च। अर पैथर पृष्ठभाग मा कुछ जानवर दिखणा छन।  बिल्लियुं हाथ पाँव कखि ना कखि मनुष्यों का ही छन।  पशुओं मानवीकरण च या मनुष्यों पशुकरण ? क्या या ड्राइंग सांस्कृतिक पहचान की क्वी कृति च ? कुछ प्रश्न छन जौं बहस जारी च।
फिर बि या लड़ै कखि ना कखि कै बात पर व्यंग्य या आक्रमण अवश्य करणी च।  लड़ै का ढंग , लड़दा लड़दा द्वी तौळ उत्यका का तरफ  दिखणा अर इन लगद कि कलाकार कै ना कै पर अपरोक्ष रूप से आक्षेप करणु च। मि नि छौं बुलणु कि तब व्यंग्य चित्र की कला विकसित ह्वे गे छे।  पर ड्राइंग बताणी च बल अपरोक्ष रूप से कलात्मक रूप से आक्षेप की  कला /कौंळ /ढौळ /भौण समाज मा मान्य छे। 
रौक आर्ट , पाषाण मा भित्तिचित्र बतांदन कि मनुष्य तब बि सौन्दर्यव बोध्युक्त छौ , दार्शनिक छौ अर मनोरंजन प्रेमी छौ।  पाषाण युगीन भित्तिचित्रों मा मनोरंजन अर सौंदर्य सिद्ध करदो कि मनुष्य व्यंग्य प्रयोगी तब बि छौ जन आज।  
 मध्यप्रदेश मा भीमबैठक स्थान की अलग अलग कालखण्ड की पाषाणयुगीन रेखाचित्र , कलाकृति बि इशारा करणा छन कि पाषाण युग मा हास्य व्यंग्य तै स्थान मिल्युं छौ।  एक जगा शिकारी हाथी का शिकार करणु च त अन्य जानवर दुखी छन (?) .  एक कलाकृति मा मनिख तै जंगली भैंसा मारणु च।  एक भित्ति कलाकृति मा मनिख घ्वाड़ा माँ चढयूं च तो दुसर मानव जानवर की कमर मा इन खड़ु हुयुं च जन डंडा मा खड़ हुयुं हो।  याने मनोरंजन , दुःख , सुख , कल्पना का जब मिश्रण च तो अवश्य ही हास्य -व्यंग्य पाषाण युग मा छौ।  
समाज मा सामूहिकता छै तो मतलब साफ़ च जलन , डाह , ईर्ष्य बि विद्यमान छे याने पाषाण युग मा व्यंग्य विद्यमान छौ । 
 पाषाण युग मा भौत सा पाषाण -काष्ट उपकरण अर हथियारुं अन्वेषण ह्वे।  जब बि नया उपकरण अन्वेषित हूंद तो 'हैव्स ' व 'हवस नौट ' याने 'मालिक च ' अर 'मालिक नी च ' को भेद शुरू हूंद अर इनमा व्यंग्य करणै स्थिति अवश्य ही पैदा हूंदी।  फिर जब बई उपकरणों से समाज विभाजित हूंद तो द्वन्द अर युद्ध बि ह्वेन तो जख द्वन्द या युद्ध हो तख व्यंग्य अफिक शुरू ह्वे जांद। 
हाँ व्यंग्य का प्रतीक क्या रै होला यी त कल्पना ही करण पोड़ल। 
   आज शहर वळ हंसदन (चबोड़ करदन ) बल गाँऊँ मा वाशिंग मशीन नि प्रयोग हूंद।  तो तब कै ना कै समय मा इन बि तो बुले गे होलु - हूँ ! तै समाज तै   आग रखणो  सिक्क्ल नी च।  बस ' हैव्स' अर 'हैव्स नौट' की हर स्थिति मा पाषाण युगीन समाज मा व्यंग्य प्रयोग ह्वे होलु। 
फिर आग चुर्याणम बि त कति हास्यास्पद , हास्य युक्त , व्यंग्य युक्त स्थिति पैदा ह्वै इ होली कि ना ?
या नया उपकरण की विधि छिनण ,  चुर्याण , नकल करण , समजणम  बि त व्यंग्य उपजणो स्थिति तो ऐई होली।   

जब पाषाण युग मा सभ्यता विकास  ह्वे ह्वेली तो व्यंग्य की स्थिति बि पैदा ह्वे ह्वेली।  नई संस्कृति का समर्थकोंन पुरानी संस्कृति वळ समाज तै चिरड़ै होलु या पुरण समाजन नै समाज तै चिरड़ै होलु। 
याने कि पाषाण काल का हर युग मा हास्य -व्यंग्य विद्यमान छौ। जब मा मनोरंजन छौ तो हास्य व्यंग्य अवश्य ही छौ।  

9/ 9/2015 Copyright @ Bhishma Kukreti 

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