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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, September 6, 2015

व्यंग्य करण मानव प्रकृति का अंग च

Satire and its Characteristics, व्यंग्य परिभाषा, व्यंग्य  गुण /चरित्र 
              व्यंग्य करण मानव प्रकृति का अंग च 
    (व्यंग्य - कला , विज्ञानौ , दर्शन का  मिऴवाक  : (   भाग     11   ) 

                         भीष्म कुकरेती 

                व्यंग्य की सदावहार ब्वे , जड़ , खेत वास्तव मा मानव जीवन च।  जीवन का दगड़ ही व्यंग्य ऐ।  मानव जीवन का दगड़ दुःख दगड़्या दगड़ आंद।  बच्चा पैदा हूण से ब्वे बाबुं तैं ख़ुशी हूंदी किन्तु बच्चा पाळणै  कठणै बि समिण खड़ी ह्वे जांदी।  ब्यौ हूंद तो तरह तरह का समझौता करणै समस्या जनम पतड़ी मिलांदी ख़ड़ी ह्वे जांदन।  मानव जीवन छुटु च अर ये जीवन मा भौतिक अर मानसिक दुखों की लंगत्यार लगीं रौंदी।   मनुष्य की हजारों भौतिक अर मानसिक इच्छा हून्दन जु पूरी नि हूंदन अर हूंदी बि छन तो दगड़ मा परेशानी बि लयेंदन।  
           मनुष्य प्रकृति की समस्याओं से निजात पाणो बान नई खोज करदो अर वा पुराणी  समस्या तो खतम ह्वे जान्दि पर प्रतिफल की नई समस्या समिण ऐ जांदी।  पैल बीमारी बड़ी समस्या छे अर अब चिकित्सा शास्त्र से बीमार्युं पर काबु पयाणु च पर यां से मृत्यु दर कम ह्वे गे अर बुढ़ापा काटणो अर जनसंख्या वृद्धि की भयानक समस्या मानव समाज कुण चुनौती ह्वे गे।  मानव स्वतंत्रता खासकर नार्युं इम्पावरमेंट मा सुधार ह्वे तो भौत सा देसुं मा औसत से कम जनसंख्या हूण से निसुणी समस्या खड़ी ह्वे गे। याने समस्याउंन  मनिखौ पिछ्नै नि छुड़न। 
             इन मा जिंदगी तै दिखणो कई तरीका छन अर व्यंग्य जिंदगी दिखणो एक तरीका च।  उपहास , बेतुका कथन , व्याजोक्ति , व्यंग्योक्ति , चबोड़ , चखन्यौ, मखौल उड़ान से लेकर आक्रमण , गाली गलौज , नंगा करण , मूढ़ता करण आदि सब एक  मानसिक अवस्था च।    
  यदि व्यंग्य मानव का साथ सास्वत रूप से आयुं  च तो व्यंग्य भाव प्राकृतिक छन।  दुःख मा , परेशानी मा , समस्या समस्ययुक्त कष्ट मा  व्यंग्य करण , हंसी उड़ान या आक्रमण करण हमर प्रकृति मा च अर प्राकृतिक याने सास्तव गुण  च। 

              जानवरों मा  जै जै जानवर मा समाज स्थापित च उ जानवर आक्रामक च। मनुष्य समेत हरेक सामजिक जानवरूं मा अनुक्रम वाद , पुरोहितवाद , हाइरार्की च अर इन मा उच्च पद प्राप्त करणो बान एकी समूह का द्वी सदस्यों मा प्रतियोगिता , स्पर्धा , जलन अवश्यम्भावी च। जानवरूं मा उच्च पद पाणो वास्ता द्वी जानवरों मा युद्ध या युद्ध नाटक या डराण -धमकाणो प्रदर्शन  तब तलक चलदो जब तलक कमजोर युद्धक्षेत्र छोड़िक नि चल जावो या हार नि मानी ल्यावो।  मनुष्य मा धमकी , चिरड़ाण , मुख लिकाण , गाळी दीण , जंघड़ बजाण  आदि प्राकृतिक च अर यु डराण -धमकाणो प्रदर्शनौ का एक रूप च। जानवरों मा युद्ध हूंद किन्तु मनुष्यों मा वक्रोक्ति , गाळी गलौज ही युद्ध या आक्रमकता की ही निशाणी च। मुक लिकाण आदि आक्रमकता का प्रतीक च।  व्यंग्य वास्तव मा डराणो  प्रदर्शनौ एक रूप च।  
   व्यंग्य तब ही प्रयोग हूंद जब 'छैं च' अर ' नी च' माँ युद्ध,  द्वंद , उठापटक हूंद।  व्यंग्य मा तुलना एक आवश्यक कच्चो माल च।  बगैर तुलना का व्यंग्य नि गड़े सक्यांद याने 'हैव्स' अर 'हैव्स नौट' ही व्यंग्य का जड़ छन । 'हैव्स ' या 'शुड हैव'  (हूण चयेंद ) तै पाणो बान आक्रमक प्रदर्शन का वास्ता व्यंग्य प्रयोग हूंद। 

3 / 9/2015 Copyright @ Bhishma Kukreti 
संदर्भ - डाइ सटायर , एम . जे. हौजार्ट 
जीवविज्ञान का नियमावली 
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