उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Tuesday, August 18, 2015

व्यंग्य तै धारदार बणाण वळि भावना वास्तवमा आम जिंदगी मा बुरा माने जांदन

(व्यंग्य - कला अर भावनाओं का करतब  : भाग 1 ) 

                         भीष्म कुकरेती 
                  आप  भि सहमत ह्वेल्या बल  व्यंग्य मा व्यंग्य तै धारदार , प्रभावशाली , यादगार बणानो   वास्ता जु जु बि भावना प्रयोग करे जांदन सि सि भावना वास्तव मा आम जीवन मा बुरी भावना माने जांदन। 
अब आपि बतावा कि गुस्सा /क्रोध /रोष भावना आम जीवन मा भली भावना त नि माने जांद ना ? पर जु क्वी बि व्यंग्यकार अपण व्यंग्य लेख , निबंध , कथा , कविता , उपन्यास मा गुस्सा /क्रोध /रोष/तामस /खीज /नारजगी /झांझ आदि नि लावो तो  व्यंग्य निसवादी , निलुण्या , गळतु व्यंग्य या बेकार प्रहसन ह्वे जांद अर व्यंग्य कु भतियाभंद ह्वे जांद। 
           दुसर भावना जु चबोड़ , चखन्यौ , मजाक , मसखरी मा चचकैल (उत्तेजना ) लांद , तेज धार लांद , ऐसिडीय रिजल्ट लांद वा च घृणा।  यदि व्यंग्य मा घृणा , घीण , द्वेष -नफरत नि हो तो व्यंग्य बगैर पेट्रोल की बस ह्वे जांद , बगैर टायर की सायकल , बगैर सिंदूर की नई नवेली दुल्हन।  अर व्यंग्यकारुं का अस्त्र शस्त्र जन कि रूण या  घृणा , द्रोह , द्वेष , नफरत जन भावना  समाज मा बुरी दृष्टि से दिखे जांदन।  अब बतावो व्यंग्यकारौ कुण कथगा बड़ो रोग  च बल ज्वा भावना असामाजिक भावना माने जांद वीं भावना का बल पर बड़ा बड़ा  व्यंग्यकार प्रसिद्ध ह्वेन। यांसे बड़ो व्यंग्य क्या ह्वे सकद कि व्यंग्यकार सामाजिक बुराइयुं तै नंगी दिखाणो बान अमान्य भावनाओं की सौ सायता लींद।  पर दुनिया मा अहिंसा लाण तो हिंसक हथियार पास मा हूण इ चयेंदन।  हिन्दुस्तान -पाकिस्तान का पास परमाणु बम नि हुँदा तो पता नी कथगा दैं युद्ध ह्वे जांद धौं। 
  व्यंग्य रचण अर व्यंग्य मा गति लाणो बान व्यंग्यकार ईर्ष्या , डाह , जलन , दुर्भाव भावना का उपयोग इन करदो जन बुल्यां जंगळ कु जख्या ह्वावो , गैर सरकारी जंगळ मा कुखड़ ह्वावन या बाप  का माल हो कि जथगा प्रयोग करणा इ सि कर ल्यावो।  यदि व्यंग्यकार तुलना नि कारो त व्यंग्य मा पैनोपान , तीखोपन , रुंडता  नि आंद अर व्यंग्य इन लगद जन खुंडि खुंकरी  हो।  अर जरा इन बतावो कि खुंडि खुंकरि से बुगठ्या धळकाण त राइ दूर मुर्दा कुखड़ै   मौणि बि नि कटेंदि। 
फिर व्यंग्यकार घृणा दगड़ क्रोध भावना कु मिऴवाक करद कि व्यंग्य तीखी चटणी जन ह्वे जावो।  अर घृणा व क्रोध  संगम सबसे बुरा माने जांद।  तबि त अकबरुद्दीन ओवेसी,  डा तगोड़िया अर ओसामा बिन लादिन जी स्वस्थ समाजौ कुण खतरनाक माने जांदन। किन्तु घृणा -क्रोध को मिश्रण व्यंग्यकार का वास्ता आवश्यक असला च , केमिकल वीपन्स च , लॉफिंग गैस  च। 
      हाहाहा राहुल गांधी बि क्या क्वी बि कॉंग्रेसी नि चांदु कि मध्यप्रदेश की हार की शरमंदिगी झेलण पोड़ो।  हू हू !  नरेंद्र मोदीकी बात तो जाणि द्यावो भाजपा बि नि चांदि कि व्यापम घोटाला की लज्जा का सामना करण पोड़ो।  उफ़ ! इख तक कि जैंक ग्युं बि खतेन अर नांगी बि दिखे वा बि लानत -हया से दूर भागदि।  पर व्यंग्यकार की कलम से , बचनुं से , ऐक्टिंग से यदि लालू यादव जन बेशरम नि शरमावो तो लानत च वै व्यंग्यकारौ कुण ,चबोड़्या कुण शरमाणै बात च , एक अंज्वळी पाणि मा डूब मरणै छ्वीं छन।  जब तक व्यंग्यकार कै तैं शरमाणो मजबूर नि कारो तो वै तै व्यंग्यकार नि माने जांद।  कन्हैयालाल डंडरियाल की कविता गढ़वाली समाज तै शरमाणो मजबूर करदन। 
      समाज मा अपराधबोध भौत भयंकर , भिलंकारी ब्यथा , अपराध बोध हज्या से बि बड़ी बित्था च अर भगवान से प्रार्थना करे जांद कि कखि बि मीमा अपराधबोध नि रावो।  पापहरण का वास्ता गंगास्नान माने अपराधबोध की छुट्टी।  किंतु व्यंग्यकार को काम  च बार , बार बारम्बार अपराधबोध की जागृति।  व्यंग्यकार जथगा जोरों से अपराधबोध जगालो वु /वा उथगा ही बड़ो व्यंग्यकार।  हाँ , इन व्यंग्यकार तैं पुरूस्कार मिलणै  गारंटी नी च किलैकि ह्वे सकद च व्यंग्यकारन पुरुष्कार समिति का सदस्यों मा ही अपराधबोध भर दे हो। 
           मनिखौ वास्ता चिंता चिता समान च , व्यग्रता नासूर च , रगबग ब्याळ च। लोग व्यग्रता , चिंता , रगबग असहजता पैदा करदन।  क्वी बि व्यग्रता , चिंता , रगबग नि चाँद।  किन्तु व्यंग्यकार जब तक पाठकौ मन मा व्यग्रता , चिंता , रगबग नि कुच्यावो तो वै व्यंग्य को क्वी लाभ नि हूंद।  व्यंग्य से पाठक चिंतित हूण चयेंद , व्यंग्य पढ़णो बाद पाठक की नींद हर्च  जाण चयेंद , व्यंग्य बांचणो  बाद बंचनेर तनावग्रस्त ह्वावो न तो व्यंग्य न बल्कणम बकबास , अवोळ डाळु  च।   
  व्यंग्य माँ मानव संबंधी विचार सरासर नकारात्मक हूंदन जन कि उत्तेजना ,विक्षुब्ध , उग्र , उपदरबी , निराशादायक , अराजक , अभद्र, स्वार्थी , चिड़चिड़ापन से भर्यां ।  या बिडंबना च कि जौं विचारुं से मानव समाज तै दूर रौण चयेंद वी नकारात्मक विचार ही व्यंग्य का असला, युद्धसामग्री , लड़ै कु समान हूंद।  उत्तेजना ,विक्षुब्ध , उग्र , उपदरबी , निराशादायक , अराजक , अभद्र जन अमानवीय विचार व्यंग्य तै तेजधारी , तीखा , तातो बणान्दन।  अफ़सोस ! 
इलै आप दिखिल्या कि व्यंग्यत्मक कविता , लेख , कथा , उपन्यास , नाटक फिलम मा एक या और मुख्य पात्र बेहूदा , बेढंगा , निपट स्वार्थी , लालची , मुर्ख , धूर्त, दम्भी , अफखवा , अफु तै हुस्यारूं हुस्यार समझण वाळ हूंदन।  

बकै अगला भाग मा   .... 2



आखिर व्यंग्यकार मार किलै खांदन ? 

  (व्यंग्य - कला ,  भावनाओं , विज्ञान का करतब  : भाग 2  ) 

                         भीष्म कुकरेती
            आपन बि सूण होलु या पढ़ी होलु बल फलण व्यंग्यकार की आदिर खातिर डंडों से ह्वे या फलण राजनीतिक दलक कार्यकर्ताउंन फलण अखबारौ कार्यलय मा तोड़ फोड़ कार -किलै बल की व्यंग्यकारन फलण दल की नीतियूं विरोध कार।  भारत माँ हरिशंकर परशाई की पिटाई संघ का लोगुन करि छे।  चो रामस्वामी पर भौत दैं मुकदमा चौल।  एक बामपंथी स्ट्रीट नाटककार तै बि पिटे गे छौ।  ममता बनर्जी तो बदनाम च कि वीं तैं अपण विरुद्ध व्यंग्य नि चयेंद अर वा व्यंग्यकार तै जेल भिजण मा बिलकुल बि नि शर्मान्दि। ममता बदनाम च कि व विरोधी व्यंग्यकार तै चुप कराणम बिंडी विश्वास करदी।  
         अबि एक साल पैलि पेरिस मा अलकायदा वळुन व्यंग्यकारुं निर्मम हत्या कार। व्यंग्यकार जोनाथन स्विफ्ट , कमेडियन पाइथॉन , आद्ययूं पर आक्रमण की तयारी ह्वे छे या आक्रमण ह्वे।  
 भौत सा देसुं मा बर्मा या ईरान मा भौत सा व्यंग्यकारुं तै देस निकाळा ह्वे या व्यंग्यकारुं तैं देस बिटेन भगण पोड़। 
             मतलब व्यंग्यकारुं से लोग चिरड़ेन्द छन अर कबि इथगा नराज हून्दन कि व्यंग्यकार की हत्या बि कर दींदन। 
 यांक अलावा भौत सा व्यंग्यकारों व्यंग्य से असीम चर्चा बि शुरू ह्वे जांद। 
  व्यंग्यकार पर शाब्दिक या शारीरिक आक्रमण , व्यंग्यकार तै जेल या देशनिकाला या चुप कराणो टुटब्याग का पैथर सबसे बड़ो कारण च कि व्यंग्य वास्तव मा अपण आप मा आक्रमण च।  जी हाँ व्यंग्य अहिंसात्मक।   भारत मा बुले जांद कि मनसा वाचा कर्मणे मादे  क्वा बि हिंसा नि हूण चयेंद किन्तु व्यंग्य को काम इ शब्दों से बुगदरा मारण च , चुभाण च , घुप्याण च , डंक मरण च , शौलकुंड पुड़ाण च , खुकरी तरां घैल करण च , शब्दों से  विश्वास पर खैड़ाकी या मुंगरो चोट करण च।  अर यदि आप कै पर आक्रमण करल्या तो अवश्य ही कै ना कै भांतिका आक्रमण आप पर अवश्य होलु।  सबि आर  लक्ष्मण तो नि ह्वे सकदन कि शिकार शिकार्या तै पसंद करदो।
    व्यंग्य वास्तव माँ मनसे हिंसा च अर हिंसा प्रतिहिंसा तै भट्यान्दि। इलै व्यंग्यकारों का दुसमन बि पैदा ह्वे जांदन। 
            दुसर व्यंग्य एक दुधारू तलवार च।  भौत सा बगत व्यंग्यकार अपण हिसाब से कुछ हौर रचद किन्तु पाठक कुछ हौर समझद तो भी व्यंग्यकार आलोचना का शिकार हूंद। 
          फिर व्यंग्य अर आलोचना - कटु आलोचना -बीभत्स आलोचना का मध्य या तो सीमा रेखा नी च या भौत पतळो वाड हूंद तो व्यंग्य तै क्या से क्या समझे जांद। 
   जरा एक बात बतावो उनि बि नकारात्मक टिप्पणी , आक्रमण -प्रतिआक्रमण, अराजकता कु समर्थन , पागलपन , मूर्खता कु पसंद करद ? 
 आक्रमण से आक्रमण पैदा हूंद अर इन मा व्यंग्यकार की आलोचना अवश्यंभावी च।
 ** भोळ - व्यंग्य की क्या परिभाषा हूण चयेंद ?
  
18/8/2015 Copyright @ Bhishma Kukreti 
Copyright @ Bhishma Kukreti , India 

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments