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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, June 24, 2015

ढोल सागर का अगला भाग (4 ) जिसमे ब्रह्मा विष्णु , महेश का वर्णन है

इंटरनेट प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती 
 
           इति ढोल उत्पति बोलिजे रे आवजी II करिबना कठिन चन्द्र बिना दाताररघुपति जजर फुलम स्याम फुलं जैगंधी नाम अर बल छाया अरत परत संज्या गुनि हो गंधबर माल घोपिरस भीरुदूत चोबि फनू साख बोमंदे देवता बड़ा हश्ती गंगा पात्र पचंडे को देवता अरे आवजी अगवान बोलिजे। पैलि धरती की आकास।  पैलि स्त्री की पुरुष। पैलि रात की दिन। पैलि गुरु की चेला। पैलि धूत की सिक। पैलि माई की पूत। कौन नाम असगर  लिन्या कौन नाम फसगर लिन्या II ईश्वरोवाच II परथमे धरती पीछे आकास II परथमे स्त्री पीछे पुरुष।  पैले रात पीची दिन।  पैले गुरु पीछे चेला।  पैले सिक पीछे धूत। पैले माई पीछे पूत। अरे गुनिजनम महादेव जी ने असगर लिन्या विष्णु जी ने नारायण परखंड चढ़ाई तकस्य पुत्रगजाबलम IIअरे कुण्डली वसना IIपार्वत्युवाचII  अरे गुनीजनम गजाबलम गनारपति पुत्रंच आदि नामकंडीसणा सुरतनाम कुंडली वसना। सुनहो ब्रह्माजी  सदाशिव जटामुकुटम शारदाकामस टकीटिइक जहिरा का खंड ब्रह्माण्ड।  कहो गुनीजनम शारदा विचारम। सवता डीत पंत हो विष्णु। नव खंड ब्रह्माण्ड चार विचारम ।   बारा वाजी त शारदा नौखंडम चैव II  ईश्वरोवाच II सुन रे वादी विवादी कहाँ बैठे तेरी अष्ट अंगुल आत्मा जीऊ।  आदि नवाति अनादि नवाति पनावति आसण तेरो कौन ठौऊ। कहाँ स्वर्ग इंद्र।  कहाँ पाताल वासुकी। कहाँ गुरु तुमारा II पार्वत्युवाच II अरे आवजी बुंदकार बसे बादी  बिबादी सुनकार बैठी मेरी आत्मा जिऊ। आदि नवाति पृथ्वी अनादि नवाति आसण आसण मेरो गुणठाऊं।  गुणठाई से प्रक्षत राजा इंद्र पातले जात बासुकी राज कहाँते। मनेच्छा काया निरंजन हमारी नाऊँ हम जल में प्रकट इष्ट घड़ी बिना जोड़ी बिना मढ़ी। फजरीमड़ी द श य रा ली गो स मां ई पू फु मे धे म मि ग ध कौन उपाई। ईश्वरोवाच।  अरे गुनीजन बिन पौन हमारी मड़ी अ र द स हु र लि गो मेथरम समीजी स्यामी में धे गंगा जो पौन उपाई। पार्वत्युवाच।  कौन घट माता कौन घट पिता कौन घट बोलिजो छाजा  II जो दिन आफु शम्भु निरंजन उतपन तै दिन दुनिया मा क्या बाजन्ति बाजा  II ईश्वरोवाच  II अरे गुनीजनम घटमाता अनिलघट पिता अनिलघट बोलिजे छाजा।  जै दिन शंभु निरंजन उत्पन्न भयो तै दिन दुनिया त्रिभुवन में परथमे जियो बाजेत्र बजे।  अथ  चा र चका चासणे लिख्यते। पार्वत्युवाच।  चह चह चह चस चस चस चस चासण बाजी सत्तगुरुजी ने उपाया ओंकार तुम कौन गुरु पढ़ाया।  तुमसे ज्ञान उपाऊँ रैदास किन मुख बोले चास। अरे गुनीजन ऊँकार च मुष चास घासणी बाजी त्रि ख टि त्रि खटि भेण सुरत्य किरणि भानु मुख वा माता सुख बाजी चासणी।  चस मेरी गजामुखबाजन्ति बारामुखबाजन्ति बारबेलवाले।  च स चंद सूर्य दीपक बाजी वेद पुराण बाजे। जुग चार रात दिन दुई कथम बाजी धुरम कुरम पाताल बाजे श्रिष्टि संसार। च ह चार खूंट बाजन्ति। चह चोद्ध् भुवन बाजन्ति च ह धुरम तीन बार बाजन्ति।  च ह गढ़ चावरंगी बाजन्ति। चह बाजन्ति मेरु मंडिल बावन बीर। चह चंदन को सारंग जमौली मरु तो मंदिरम सागरा सप्त द्वीप वसुंधरा।  चह कुरुक्षेत्र बाजन्ति।  च ह चार जुग बाजन्ति। चह चौरासी लक्ष जीवन बाजन्ति चार वेद बाजन्ति कालदंडबाजन्ति। गजा शब्द बाजन्तिघटा घुंगरू नकतालु को धोका पीछे। चावर छत्रडंडक मण्डलु डांडी घोड़ा पीछे में अगवान दास आगे आऊ रे आवजी। 


 -- (ब्रह्मा नन्द थपलियाल द्वारा संपादित )

ढोल सागर का अगला खंड  भाग -5 में पढिए

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