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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, June 30, 2015

पातञ्जलि योग संहिता 17 -26

Translation of Patanjali Yoga Samhita in Garhwali

          पातञ्जलि योग संहिता 17 -26


             गढ़वाली अनुवाद - भीष्म कुकरेती 
[ आजकल योग की बहुत चर्चा है जो आवश्यक भी थी।  किन्तु आम लोग योग को केवल आसन तक सीमित समझते हैं।  जबकि योग एक जीवन शैली है।  पातञ्जली ने योग संहिता में योग का सारा निचोड़ दिया है याने सूत्र दिए हैं।  इन सूत्रों का नौवाड करते मुझे अति प्रसन्नता है। ]
                   वितर्कविचारानन्दास्मितारूपानुगमात् सम्प्रज्ञात: -17 
  

वितर्क (विशेषत तर्क), विचार आनंद अर अस्मिता संबंधी समाध्युं तै क्रमशः वितर्क सम्प्रज्ञात समाधि , विचार सम्प्रज्ञात समाधि, आनंद सम्प्रज्ञात समाधि अर अस्मिता सम्प्रज्ञात समाधि बुले जांद।
             विरामप्रत्ययाभ्यासपूर्व सँस्कारशेषोअन्यः - 18  
सर्ववृत्तियों का निरोध (रुकण ) का कारण जू पर वैराग्य च वैक बार बार अभ्यास का बाद जु संस्कार शेष रै जांदन व असम्प्रज्ञात समाधि च।
                भवप्रत्ययो विदेहप्रकृतिलयानम् - 19 
विदेह और प्रकृतिलयों से असम्प्रज्ञात समाधि प्रतीत हूंद।
               श्रद्धावीर्यस्मृतिसमाधिप्रज्ञापूर्वक इतरेषाम् - 20 
जू वैदेही , अर प्रकृतालय नि छन ऊँ तै श्रद्धा , ऊर्जा , स्मृति , समाधि अर जागृत चेतना से असम्प्रज्ञात समाधि प्राप्त हूंदी।
             तीव्रसंवेगानामासन्नः -21 

         तीव्र संवेग अर अधिमात्र उपाय करण से  योगयुं तै जल्दी लाभ हूंद (समाधि मिलदी )
        मृदुमध्याधिमात्रत्वात्  ततोपि विशेषः -22 

मृदु वेग, मध्यम वेग अर अधिमात्र वेग की समाध्युं मा विशेष अंतर हूंद।
            ईश्वरप्राणिधानाद्वा -23 
 ईश्वर आधारित समाधि शीघ्र मिलदी
          क्लेशकर्मविपाकाशयैरपरामृष्टः पुरुषविशेष ईश्वरः -24 
        क्लेश , कर्म , कर्मुं फल अर वासनाऊं से असंबद्ध , हौर पुरुषों   से अलग चेतन ईश्वर च।

          तत्र निरतिशयं सर्वज्ञबीजम् -25 
वै चेतन ईश्वर मा सर्वज्ञता का बीज (संभावनाएं ) अतिशय छन। 
        पूर्वेषामपि गुरुः कालेनावच्छेदात -26 
   उ चेतनायुक्त ईश्वर गुरुओं का बि गुरु च किलैकि वु कालरहित च। 


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