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Tuesday, April 7, 2015

हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास संदर्भ में नन्द साम्राज्य

Nand Empire in contexHistory of Haridwar, History Bijnor,  History Saharanpur

                            हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास संदर्भ में नन्द साम्राज्य
                                Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,  History Saharanpur  Part  -92      

                       
    

                            हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल-भाग -92                      

                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती  
उत्तरी भारत के प्राचीन इतिहास में मघद साम्राज्य का उल्लेख करना ही पड़ता है। 
नन्द साम्राज्य का उदय चौथी सदी पूर्व से लेकर तकरीबन 321 BC तक चला। 
                   उग्रसेन -महापद्म 
  पुराणो के अनुसार नन्द वंश का संस्थापक महापद्म था जिसने काकवर्णी से मगध का शासन छीना था।  महाबोधिवंश अनुसार उसका नाम उग्रसेन था। यूनानी लेखकों ने औग्रमस उल्लेख किया है जिसका अर्थ है - उग्रसेन का पुत्र . माहपद्म उग्रसेन के बारे में कई विवाद हैं।        
जैन ग्रंथों में नंदराज वैश्यपुत्र था।  यूनानी लेखक कर्टियस ने एक कथा सुनी थी और  का उल्लेख करते लिखा है कि उग्रसेन  आकर्षक युवा था जिसने रानी को आकर्षित कर पहले राजा का विश्वास जीता और ततपश्चात राजा की हत्त्या कर दी।  फिर कुछ दिनों तक राजकुमारों के संरक्षक बनने के पश्चात स्वयं राजा बन बैठा। 
          पुराणों में नन्द राजा को शुद्रवंशी कहा गया है। 
अनेक ग्रंथों के विश्लेषण से डा डबराल लिखते हैं -
१-उग्रसेन मल्ल भूमि  याने प्रत्यंत का था जो मलय से भिन्न था 
२- परम्परागत वह दस्यु वृति याने आयुद्धवृति का था। 
३- वह शूद्र अथवा शिल्पकार परिवार से संबंध रखता था। 
४-उसने एक एक करके राज्य जीते और फिर मगध को जीता। 
                  प्रत्यंत देस कौन सा था ?
प्रत्यंत  सीमान्त होता है।  समुद्रगुप्त की प्याज प्रशस्ति में सीमन्त परदेस में समतट , डवाक , कामरूप , नेपाल और कर्तृपुर को प्रत्यंत परदेस कहा गया है। उग्रसेन की सीमा महकोसल तक थी याने की उत्तरपांचल और उत्तराखंड प्रत्यंत प्रदेश थे।
                        परम्परागत दस्यु प्रवृति 
          उग्रसेन की परम्परागत वृति व उत्तर भारत के एक एक प्रदेश जीतने से स्पष्ट है कि वह दस्युओं याने आयुध सैनिकों का नेता या छत्रपति था और उनकी सहायता से उसने प्रदेश जीते। इन्हे पाणिनि ने पर्वतीय आयुधजीवी नाम दिया था व कौटिल्य ने शस्त्रोपजीवी नाम दिया है।
                                
                                   शूद्र 
  कुमाऊं , गढ़वाल , हरिद्वार , बिजनौर के भाभर प्रदेश में उस समय कुणिंद -कनैत अथवा खस आयुधजीवी थे जिन्हे अंग्रेज शासन काल में भी शूद्रकहा  गया था।
                                कुणिंद /कुलिंद से नन्द वंशी 
     महाभारत से लेकर 300 AD उत्तराखंड , हिमाचल, हरिद्वार, सहारनपुर (कुछ भाग या संपूर्ण भाग ) पर कुलिंद /कुणिंद , कुनिंद का राज था। 
रेप्सन के अनुसार नन्द वसंह का उत्तराखंड के भाभर से संबंध था। 
   उग्रसेन महापद्म के पश्चात उसके आठ पुत्रों ने राज किया -
पंडुक 
पण्डुगति 
भूतपाल 
राष्ट्रपाल 
गोविषाणक 
दशसिद्धक 
कैवर्त 
धनन्द 
कुणिंद से 'कु' हटाकर नन्द वंश होने पर भी कुछ इतिहासकार हामी भरते हैं। 
 कुमाऊं काशीपुर का भाभर का भूभाग गोविषाण कहलाया जाता था। इससे इतिहासकार अर्थ लगते हैं कि उग्रसेन महापद्म का संबंध अवश्य ही गोविषाण से था।  या तो महपदम की जन्मभूमि गोविषाण था या भाभर /गोविषाण विजय के वक्त  पुत्र का जन्म हुआ होगा और उसका नाम गोविषाण रखा गया होगा। 
        बौद्ध साहित्य अनुसार मगध को जीतकर महापद्म ने मगध राज्य प्राप्त किया था।  इतिहासकार रैप्सन [कैब्रिज हिस्ट्री ऑफ इंडिया ] भी जैन साहित्य पर विश्वास नही करता है। 
                                               राज्य   क्षेत्र 

 राय चौधरी आदि के अनुसार नन्द राज्य संस्थापक ने निम्न राज्य जीते थे -
इक्ष्वाकु 
पांचाल 
काशी 
हैहय 
अश्मक 
कुरु 
मैथिल 
शूरसेन 
वीतिहोत्र
                     एकछत्र राज्य 
माहपद्म ने भारत के मुख्य राज्य जीतकर प्रथम विशाल साम्राज्य स्थापित किया था और ब्राह्मणवादी संस्था को ध्वस्त किया था इसलिए ब्राह्मण लिखित , क्षत्रिय समर्थित पुराण आदि साहित्य में महापद्म को शूद्र कहा गया है। 
                             शासन व्यवस्था 
सर्वप्रथम बड़े साम्राज्य स्थापितिकरण के अलावा महापद्म नन्द को वृहद शासन तंत्र स्थापित करने का भी श्रेय जाता है।  अवश्य ही केन्र्दीयकरण व विकेन्द्रीयकरण का सामजस्य उग्रसेन ने किया होगा।  मार्गों की सुरक्षा , कृषि को समर्थन , जनहितकारी कार्यों की शुरुवात का श्रेय उग्रसेन या महापद्म नन्द को जाता है। 
 उग्रसेन ने कृषि व जनहित को प्रोत्साहन दिया। कलिंग में जनप्रणाली की शुरवात की थी और यह भारत में किसी नरेश द्वारा जनहित प्रणाली का प्रथम उदाहरण है। (जायसवाल ) 
                           दानप्रियता 
नन्द वंशियों की दानप्रियता प्रसिद्ध थी। [मुद्राराक्षस ]
                नाप तोल में सुधार 
नन्द काल में नाप तोल का स्स्टंडर्डाइजेसन /मानकीकरण की शुरुवात हुयी और उसे नंदमान कहा जाता है।
              
                           विद्वानों का सत्कार 
नन्द वंशी विद्वानों का सत्कार करते थे। बौद्ध , सनातनी , जैन ग्रंथों में नन्द वंशी राजाओं के यहां विद्वानो को सत्कार का समुचित उल्लेख हुआ है [डबराल ]
                    सैन्यबल 
 यदि उस समय नन्द ने इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा किया तो अवश्य ही बड़ा सैन्यबल रहा होगा। 
रायचौधरी के अनुसार नन्द सैन्यबल में दो लाख सैनिक , बीस हजार घुड़सवार ,  दो हजार रथ , और तीन हजार सैनिक हस्तिदल थे। 
                                 कर 
मौर्य शासन की शुरवात में कौटिल्य का हाथ है और कौटिल्य  करों व कर प्रबंधन का वर्णन बखूबी किया है।  कौटिल्य ने यदि अर्थ शास्त्र  लिखा है तो अवश्य ही भूतकाल  अनुभवों से ही यह हो सकता था।  कर प्रबंधन की वैज्ञानिक शुरुवात भी नन्द वंश में ही हुयी होगी अन्यथा कौटिल्य पैदा ही नही होता।
                                        नन्द वंश का हरिद्वार , बिजनौर व सहारनपुर पर अधिकार 
                              इतिहासकारों का मानना है कि जब नन्द वंश का साम्राज्य व्यासं नदी तक था तो अवश्य ही नन्द वंश का अधिकार हरिद्वार , बिजनौर व सहारनपुर पर भी था [रैप्सन , डबराल द्वारा विश्लेषण ]

 ** संदर्भ - ---
वैदिक इंडेक्स
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड  इतिहास - भाग -२
राहुल -ऋग्वेदिक आर्य
मजूमदार , पुसलकर , वैदिक एज 
घोषाल , स्टडीज इन इंडियन हिस्ट्री ऐंड कल्चर 
आर के पुर्थि , द एपिक सिवलीजिसन 
अग्रवाल , पाणिनि कालीन भारत
अग्निहोत्री , पंतजलि कालीन भारत 
अष्टाध्यायी 
दत्त व बाजपेइ  , उत्तर प्रदेश में बौद्ध धर्म का विकास 
महाभारत 
विभिन्न बौद्ध साहित्य 
जोशी , खस फेमिली लौ
भरत सिंह उपाध्याय , बुद्धकालीन भारतीय भूगोल 
रेज डेविड्स , बुद्धिष्ट इंडिया 
मजूमदार , पुसलकर , एज ऑफ इम्पीरियल यूनिटी 
राय चौधरी , पॉलिटिकल हिस्ट्री ऑफ ऐन्सियन्ट इण्डिया 

Copyright@
 Bhishma Kukreti  Mumbai, India 2/4/2015 
   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -

      Nand Empire & Ancient History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ;   Nand Empire & Ancient History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ;  Nand Empire & AncientHistory of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ;  Nand Empire & Ancient  History of Telpura Haridwar, Uttarakhand ;  Nand Empire & Ancient  History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ; Nand Empire & Ancient  History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ; Nand Empire & Ancient   History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand ; Nand Empire & Ancient  History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand ; Nand Empire &  Ancient History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ;  Nand Empire & Ancient History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ;Nand Empire &   Ancient History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ;Nand Empire &   Ancient  History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ; Nand Empire &    Ancient History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ;Nand Empire &   Ancient History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar;   Nand Empire & History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;  Nand Empire & Ancient History of Bijnor;  Ancient  History of Nazibabad Bijnor ;Nand Empire &     Ancient History of Saharanpur;  Nand Empire & Ancient  History of Nakur , Saharanpur; Nand Empire & Ancient   History of Deoband, Saharanpur;Nand Empire & Ancient  AncientHistory of Badhsharbaugh , Nand Empire & Saharanpur;Ancient Saharanpur History, Nand Empire & Ancient Bijnor History; कनखल , हरिद्वार का इतिहास ; तेलपुरा , हरिद्वार का इतिहास ; सकरौदा ,  हरिद्वार का इतिहास ; भगवानपुर , हरिद्वार का इतिहास ;रुड़की ,हरिद्वार का इतिहास ; झाब्रेरा हरिद्वार का इतिहास ; मंगलौर हरिद्वार का इतिहास ;लक्सर हरिद्वार का इतिहास ;सुल्तानपुर ,हरिद्वार का इतिहास ;पाथरी , हरिद्वार का इतिहास ; बहदराबाद , हरिद्वार का इतिहास ; लंढौर , हरिद्वार का इतिहास ;बिजनौर इतिहास; नगीना ,  बिजनौर इतिहास; नजीबाबाद , नूरपुर , बिजनौर इतिहास;सहारनपुर इतिहास

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