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Tuesday, April 7, 2015

सिकंदर का भारत पर आक्रमण और हरिद्वार इतिहास 2

History of Alexander & Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,  History Saharanpur -2 

                     सिकंदर का भारत पर आक्रमण और हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास 

                 Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,  History Saharanpur  Part  -95      

                       
    

                     हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -95                      

                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती  
                                       आयुधजीवियों की आहुति 
  
  पोरस नरेश की सहायता से सिकंदर ने चिनावपूर्वी प्रदेशो को  जीता। 
जब सिकंदर पूर्व की और बढ़ने लगा तो अरट्ट अथवा अराष्ट्रगण ने आधीनता स्वीकार कर ली।  किन्तु कठगण ने  अपने दुर्ग संगल (जंडियाला ) में शरण ले सिकंदर से लोहा लिया और सत्रह हजार कठ सैनिकों को शहीद होना पड़ा और इतने ही को कैद होना पड़ा।  पोरसंरेश ने सिकदंर को सहायता दी।  
  इसके बाद पड़ोसी   देस सोफ़ेतेस (सौभूति ) व फेगेलस (भगला ) नरेशों को भी अधीनता स्वीकार करनी पड़ी। 
      इसके बाद सिकंदर ने अपने सैनिकों को व्यास नदी को पर कर नन्द नरेश पर आक्रमण की आज्ञा दी किन्तु सैनिकों ने डर कर आक्रमण से सर्वथा विद्रोह कर ही दिया था तो सिकंदर को 326 BC को वापस लौटने का आदेश देना पड़ा। 
       वापस जाते हुए उसने कई नए क्षेत्रों को दबाने की चेष्टा की जिसमे हजारों ब्राह्मणो , क्षत्रियों व हरिजनों को युद्ध में आहुति देनी पड़ी 
                                               सिकंदर गंगाघाटी तक ?
यूनानी लेखकों के लेखों पर आधरित कुछ इतिहासकार मानते हैं की सिकंदर गंगाघाटी या हिमाचल तक पंहुचा।  किन्तु अधिकतर इतिहासकार मानते हैं कि    वर्तमान गुरदासपुर से आगे सिकंदर नही बढ़ सका। 
 सिकंदर की मृत्यु 323 BC में हुयी। भारत से लौटते वक्त सिकंदर  यूनानी प्रतिनिधि रख छोड़े थे।
                                                   यूनानी शासन का अंत 
                 सिकंदर के समय  पंजाब के ब्राह्मणो ने यूनानी  विरोध किया था।  यूनानी सेना के जाने  के बाद ब्राह्मणो  को यूनानी शासन के प्रतिनिधियों को भगाने हेतु   हथियार उठाने को प्रेरित किया।  321 BC सिकंदर के प्रान्त प्रतिनिधि फिलिप्स की हत्या की सूचना से पुरे क्षेत्र से यूनानी सेना भागने लगी।  चन्द्रगुप्त  चाणक्य ने स्थिति से लाभ उठाया और इस संघर्ष के नायक बन बैठे।  317   BC में पोरसंरेश की  दी गयी।  दो तीन वर्षों में ही चन्द्रगुप्त और चाणक्य यूनानी सत्ता को उखाड़ने में सफल हो गए थे।           
                                  
                         


 ** संदर्भ - ---
वैदिक इंडेक्स
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड  इतिहास - भाग -२
राहुल -ऋग्वेदिक आर्य
मजूमदार , पुसलकर , वैदिक एज 
घोषाल , स्टडीज इन इंडियन हिस्ट्री ऐंड कल्चर 
आर के पुर्थि , द एपिक सिवलीजिसन 
अग्रवाल , पाणिनि कालीन भारत
अग्निहोत्री , पंतजलि कालीन भारत 
अष्टाध्यायी 
दत्त व बाजपेइ  , उत्तर प्रदेश में बौद्ध धर्म का विकास 
महाभारत 
विभिन्न बौद्ध साहित्य 
जोशी , खस फेमिली लौ
भरत सिंह उपाध्याय , बुद्धकालीन भारतीय भूगोल 
रेज डेविड्स , बुद्धिष्ट इंडिया 

Copyright@
 Bhishma Kukreti  Mumbai, India /4/2015 
   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -

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