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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, March 30, 2015

हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर में अशोक काल से पहले बुद्ध धर्म

 Buddhism (Jatak Literature ) in Pre Asoka Period in Haridwar, Bijnor and Saharanpur 

                                  हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर  में अशोक काल  से पहले बुद्ध धर्म

                                        History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  Part  -- 88

                                  

                     हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 88                 


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती  
                जातक संग्रहों में हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर वर्णन 
        
         जातक कथाएँ बुद्ध अनुशीलन के प्राचीनतम साहित्य हैं।  
               उत्तराखंड वर्णन 

जातक कथाओं में उत्तराखंड , बिजनौर व सहारनपुर का अधिक नही किन्तु कुछ अंसांस वर्णन मिलता है। 
ओहोगंग या अधोगंग , उशीरध्वज , यामुन , गंधमाधन , विपुल पर्वत उत्तराखंड में थे।  उशीनगर को सहारनपुर का कुछ भाग माना जाता है।  आंजनपर्वत या यामुन पर्वत में अंजन बनाया जाता था जो अशोक कल में भी प्रसिद्ध था शायद कालसी व सहारनपुर के आस पास का क्षेत्र  भी हो सकता है।
             जातक कथाओं में भाभर का वर्णन 
जातक कथाओं में पहड़ी इलाकों से अधिक भाभर  क्षेत्र का वर्णन है । भाभर के वनों का वर्णन अलंकृत भाषा में हुआ है। 
वृक्षों में - धव , अश्वकर्ण , खदिर , शाल , फंदन मालुव , आम, कुटज , सलल , नीप , कोसंब , आदि का वर्णन मिलता है । 
        वन्य पशुओं में -गोधा ,शरभमृग , गीदड़ , वनैल , श्वान ,हाथी , चितकबरे मृग , रोहित तुलिय बंदर , चलनी , भालू , वनवृषभ , गैंडा , सूअर , खरगोश , भेड़िया आदि पशु थे। 
 पक्षी -मोर , हंस , वकुत्थ , चकोर , कुक्कुट , बगुला , सारस , बाज , नज्जुहा , दिंदिया , बाज , लोहित , प्रिष्टजीव , जीवक , तीतर , कपिंजर , कोयल , उल्लू तोता आदि। 
मगरमच्छ , सर्प कछप आदि भी थे। 

                   भाभर में आखेट सुविधा 
 कोसल , वाराणसी से राजा भाभर (बजनौर, हरिद्वार , सहारनपुर आदि क्षेत्र ) में शिकार खेलने आते थे।  इन राजाओं को नरमाँश खाने का शौक था जो भाभर के किन्नरों को मार कर प्राप्त किया जाता था।  

दास दासियों की मंडी - भाभर से अन्य क्षेत्र के लोग किन्नर आदियों को खरीद कर ले जाते थे। 
व्यापार - बैलोगाड़ी  , घोड़ा गाडी , हाथीगाड़ी से सामन को इधर उधर लिया -लाया जाता था। 
आश्रम - विद्याध्यन हेतु आश्रम थे। 
तपस्वी - तपस्वी भी गैर उत्तराखंडी भाभर , उत्तराखंड में रहते थे। 
                        बुद्धधर्म का प्रसार 
 परवर्ती बौद्ध साहित्य अनुसार महात्मा बुद्ध हरद्वार में कनखल के पास पंहुचे थे। और वहां उशीरगिरी (सहारनपुर क्षेत्र ?) तक गए थे।  बुद्ध  उत्तराखंड के श्रुघ्ननगर में पंहुचे थे और वहां एक ब्राह्मण  अभिमान को दूर किया था (दत्त  व वाजपई , उत्तर प्रदेश में बौद्ध धर्म का विकास ). 
 बुद्ध निर्वाण के पश्चात गढ़वाल भाभर, हरिद्वार , बिजनौर में बौद्ध धमावलम्बियों का बर्चस्व कई शताब्दियों तक रहा।   गंगाद्वार में बुद्ध काल से सनातनी आश्रमों में बौद्ध धर्मी चिंतन शुरू हो गया था। बुध के प्रमुख शिस्य साणवासी गंगाद्वार के कनखल में रहते थे और संघ में दो विभाजन के समय साणवासी ने मगध में द्यितीय संगति का आयोजन किया था। 
 गंगद्वार और, सहारनपुर  बिजनौर में अशोक काल से पहले ही बुद्ध धर्म का प्रचलन हो चुका था।  यही कारण है कि कुलिंद नरेशों के सिक्कों में चैत्य व बोधिवृक्ष अंकित हैं। ऋषिकेश से हरिद्वार व बिजनौर आदि क्षेत्र में बौद्ध आश्रम खुल चुके थे। 

 ** संदर्भ - ---
वैदिक इंडेक्स
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड  इतिहास - भाग -२
राहुल -ऋग्वेदिक आर्य
मजूमदार , पुसलकर , वैदिक एज 
घोषाल , स्टडीज इन इंडियन हिस्ट्री ऐंड कल्चर 
आर के पुर्थि , द एपिक सिवलीजिसन 
Copyright@
 Bhishma Kukreti  Mumbai, India 27 /3/2015 
   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -

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