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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, March 18, 2015

हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर इतिहास संदर्भ में कुलिंद राज्य का भूगोल , वनस्पति आदि

 Geographical and Flora -Fauna Other Aspects of Kulind in context History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur 

                     हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर   इतिहास संदर्भ में कुलिंद राज्य का  भूगोल , वनस्पति आदि


                            History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  Part  -- 81

                                  

                     हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  81                                      


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती  
 महाभारत में कुलिंद राज्य का विस्तृत वर्णन मिलता है और स्वाभाविक कि गढ़वाल , कुमाऊं की पहाड़ियों का अधिक वर्णन मिलेगा।  अपितु भाभर क्षेत्र का भी वर्णन मिलता है।  इससे महभरतकालीन हरिद्वार, बिजनौर और सहारनपुर की स्थिति का भी आकलन किया जा सकता है -
सरोवर - अधिकतर पहाड़ी सरोवरों  का वर्णन मिलता है. 
कुण्ड -तप्त कुण्ड का वर्णन नही है पर ऐसे  गरम  पानी के स्रोत्रों का भी  शोणित अग्निनिवास के नाम से वर्णन महाभारत  में है 
                                             जलवायु -
नदियों का वर्णन से लगता है छोटी नदियां गर्मियों में सूख जाती थीं , जड़ों में पतझड़ होता था। 
भाभर (यहां पर अंदाज से हरिद्वार , बिजनौर और सहारनपुर के संदर्भ में ) में गर्मियों में भी नदियों में जल रहता था।  भाभर की नदियों के तट पर प्रचुर मात्रा में पेड़ होते थे जंतुओं को प्राणदायक थे। इन वनों में पलास , तिलक , आम , चंपा के अतिरिक्त अन्य फूल फल भी होते थे। 
                                     भाभर क्षेत्र में वनस्पति 

भाभर क्षेत्र में व शिवालिक ढालों में बेल , आक , खैर , कैथ व बांकली पेड़ मिलते थे। ग्रीष्म कल में झाड़ियाँ सूख जाती थी जो वर्षाकाल में जंगल जैसे होते थे। 
                        फल फूल 

खाद्य फल देने वाले वृक्ष - कुलिंद जनपद में अम्बाड़ा,  अंजीर , अनार , आम , आंवला , इंगुद , कैथ , खजूर , गम्भीरी , गूलर , जामुन , ताल , तिन्दुक , तेंदु , नीम्बू , बहेड़ा , बरगद , बेर , बेल , भिलावा आदि वृस्ख मिलते थे 
 फूलवाले पेड़ पौधे - अशोक , इन्दीवर , कनेर , कुटज , कोविदार , चमपा , तिलक , पाटल , परिजात , पुन्नाग , मंदार , बकुल आदि थे व कमल व कीचकवेणु भी मिलते थे। 
                            प्राणी वर्ग 
भाभर के वनों में मृग , सिंह , बाघ ,  एण, हाथी , सुवर , भैंसे मिलते थे। 
पक्षियों में गौरया , कदम्ब , कांरडव , कुरर , क्रौंच , चक्रवाक, जलकुक्कुट , पुंस्कोकिल , प्रियक , प्लव , बगुला , भृंगराज , मद्गु , सारस हंस आदि 
 मधुमखी , सांप , भौंरे , डांस भी मिलते थे।
                         
                               कुलिंद निवासी 
           महाभारत में कुलिंद निवासियों के बारे में छार स्थानो में उल्लेख हुआ है (डबराल)। विश्लेषण से निम्न जातियों को महाभारतीय कुलिंद जाती कहा जा सकता है -
एकासन या खस जाति - एकासन अथवा जो बहुत समय से एक ही जगह में निवास करते हों।  यह जाति स्थिरता प्राप्त कर चुके थे।  इस उल्लेख से कहा जा सकता है कि खस जाति बिजनौर, हरिद्वार व सहारनपुर में थी । पशुचारक थे 
कुलिंद अथवा कनैत - कुलिंद राज्य में कुलिन्दों की अधिकता थी। डा डबराल लिखते हैं कि वर्तमान उत्तराखंड , भाभर , हिमाचल में कनैत जाति कुलिन्दों के वंशज हैं। कनैत जातियों की अब कई ग्रामसूचक उपजातियां प्रसिद्ध हो चुकी हैं। 
किरात - सुबाहु को किरातराज कहा गया है।  क्रूर जाति वालों का मुख्य भोजन आखेट व जंगल से प्राप्त होता था। 
ज्योहा - ज्योहा को जोहारी भोटांतिक जाति से पहचान होती है। 
दीर्घवेणिक - लम्बी छोटी या धमेली वाले लोग शायद तिब्बत के आस पास वाले रहे होंगे।


 ** संदर्भ - ---
वैदिक इंडेक्स
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड  इतिहास - भाग -२
राहुल -ऋग्वेदिक आर्य
मजूमदार , पुसलकर , वैदिक एज 
घोषाल , स्टडीज इन इंडियन हिस्ट्री ऐंड कल्चर 
आर के पुर्थि , द एपिक सिवलीजिसन 
Copyright@
 Bhishma Kukreti  Mumbai, India  17/3/2015 
   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --82

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -
82
    
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