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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, March 4, 2015

हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर इतिहास संदर्भ में राम सीता का इतिहास

History of Rama , Sita in context History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur

                                 
हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर इतिहास संदर्भ में राम सीता का इतिहास 

                                                  History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  Part  --68     

                                                   हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग -68  


                                                                   इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती  
                                          सम्राट दिलीप 
इक्ष्वाकु वंश में सम्राट दिलीप एक प्रसिद्ध राजा हुए। महाभारतानुसार दिलीप भगीरथ का पिता  और सगर का प्रपौत्र था।  अन्य पौराणिक गाथाओं अनुसार दिलीप भगीरथ की कुछ पीढ़ियों बाद का राजा था जिसका नाम खट्वांग भी था। संतान की कमना हेतु चक्रवर्ती सम्राट नदिलीप ने मुनि वशसित आश्रम में धेनु नंदनी की पूजा की थी। 
वशिष्ठ का आश्रम गढ़वाल में गंगा तट पर था व वहां देवदारु वृक्ष थे।  यहां गंगा तट पर देवदारु वृक्ष के नीचे मायावी सिंह मिला था। 
                                       चक्रवर्ती सम्राट रघु 
रघु महान प्रतापी राजा हुआ और इक्ष्वाकु वंश का नाम रघुवंश पद गया। कालिदास अनुसार रघु ने भगीरथी के झरने वाले प्रदेश गढ़वाल नरेश से युद्ध किया था। और फिर मैत्री कर ली थी। 
                                सम्राट  दशरथ 
रघु का पुत्र अज हुआ और दशरथ अजपुत्र था। 
दशरथ ने पड़ोसी राज्यों से मित्रता भाव हेतु कौशल व कैकेय की राजकुमारियों से विवाह किया व अपने पुत्रों का भी विवाह अन्य नजदीकी रजकुमारियों से किया। दशरथ के चार पुत्र हुए - राम , लक्ष्मण , भरत व शत्रुघ्न। 
                                       राम 
राजा राम चन्द्र रघुवीर नाम से प्रसिद्ध हुए और उन्हें विष्णु का अवतार माना जाता है।  चौदह वर्ष के वनवास काल में राम ने बाली व रावण आदि को जीता। 
रघु या दिलीप के समय से ही उत्तराखंड माय बिजनौर व सहारनपुर इक्ष्वाकु वंश के प्रभाव में था।
 जहां तक रामायण काल का उत्तराखंड से संबध है ऐसा कहा जाता है कि पूर्वी हरिद्वार के पास स्वर्गाश्रम के नजदीक लक्ष्मण ने तपस्या की थी। ऐसा कहा जाता है कि लक्ष्मण ने बबूल घास  की रस्सियों से बने झूला पुल से गंगा पार किया था। 
 लोककथा है कि सीता को जब वनवास दिया गया तो वह सितौनस्यूं पट्टी , पौड़ी गढ़वाल में रही थी और यहीं  पृथ्वी में समायी थी। 
लोककथाओं अनुसार सीता ने पेड़ों को भी श्राप दिया था अतः कहा जाता था कि सितौनस्यूं में पेड़ कम होते थे किन्तु सीता ने रहवासियों को वरदान दिया था कि इस प्रदेश में घास भी लकड़ी जैसे भोजन पकाने के लिए काफी होगा। 
लोककथा अनुसार कोटसड़ा गाँव , सितौनस्यूं पौड़ी गढ़वाल में मान्यता है किसी विशेष दिन जमीन खोदा जाता है और वहां सीता की लोड़ी (पत्थर ) निकलती हैं और उत्स्व मनाया जाता है (चित्रकार ब्रिज मोहन नेगी द्वारा दी गयी सूचना ).

राम के इहलोक जाने के बाद राज्य आठ भागों में बांटा गया था और लक्ष्मण पुत्र अंगद को उत्तराखंड मिला था (केदारखंड १२१/२४-२६ , डा डबराल ) 

 ** संदर्भ - ---
वैदिक इंडेक्स
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड  इतिहास - भाग -२
राहुल -ऋग्वेदिक आर्य
मजूमदार , पुसलकर , वैदिक एज 
घोषाल , स्टडीज इन इंडियन हिस्ट्री ऐंड कल्चर 
आर के पुर्थि , द एपिक सिवलीजिसन 
Copyright@
 Bhishma Kukreti  Mumbai, India  26 /2/2015 
   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --69     

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -69  

    
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