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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, March 30, 2015

हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर इतिहास संदर्भ में कुलिंद जनपद (400 -300 BC )

Kulind Janpad & Ancient History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur (400 -300 BC )
 
                    हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर   इतिहास संदर्भ में कुलिंद जनपद (400 -300 BC )
           
                      Ancient History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  Part  --
89

                                  

                     हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -89                      


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती  


                     कुलिंद जनपद [४५० -३५० विक्रमी संबत पूर्व ]
                            जनपद युग 

              मगध साम्राज्य उदय से पहले भारत छोटे बड़े जनपदों में बनता था। जनपदों की सीमायें निम्न प्राकृतिक तत्व निर्धारित करते थे  [अग्रवाल , पाणिनि कालीन भारत ]-
नदियां 
पहाड़ 
जंगल 
मरुभूमि या दलदल भूमि 
 जनपदों में शाशन निम्न भांति होता था 
गण या संघ 
एकराज 
सम्राट या बड़ा राजा गणों या छोटे राज्यों को जीतकर केवल उपायन (वार्षिक या एकमुश्त भेंट या कर ) लेते थे और संघीय प्रशासन को ध्वस्त नही करते थे जिससे किसी हद तक क्षेत्र की सांस्कृतिक /सामाजिक व्यवस्था परिवर्तन कम ही होता था। 
    विक्रम संबत (ईशा काल के लिए  56 साल घटा दें ) से पांच या चार सदी पूर्व पाणिनि  साहित्य से पता चलता है कि उत्तर भारत में निम्न जनपद थे -
मद्र जनपद - तक्षशिला के दक्षिण -पूर्व जिसकी राजधानी साकल [स्यालकोट ] थी। 
शिवि -उशीनगर - मद्र से दक्षिण में 
त्रिगर्त जनपद - सतलज -व्यास -रावी नदियों का पहाड़ी क्षेत्र याने कांगड़ा से चम्बा का भूभाग। 
भरत जनपद - वर्तमान थानेसर , कैथल , करनाल , पानीपत। 
कुरु जनपद -दिल्ली -मेरठ का क्षेत्र।  शायद सहारनपुर का कुछ भाग कुरुजनपद में  होगा। 
प्रत्यग्रथ जनपद -गंगा और रामगंगा का मैदानी उपत्यका को प्रत्यग्रथ या पांचाल कहा गया है। 
कोसल , काशी व मगध - पांचाल से पूर्व में कौसल , कौसल से पूर्व काशी व उसके पूर्व में मगध जनपद थे। 
                        पाणिनि का कुलिंद जनपद 

 त्रिगर्ता से पूर्व सतलज , यमुना , गंगा , कालीगंगा के मध्य पहाड़ी भूभाग को कुलिंद जनपद माना गया है। पाणिनि ने इसका नाम कुलुन  भी कहा है। 
महाभारत में कुलिंद व कुणिंद नाम दिए हैं।  ताल्मी ने इसे कुलिन्द्राइन कहा है। डा डबराल ने टिप्पणी दी है कि विद्वान कुलिंद , कुणिंद , कुलुन एक ही क्षेत्र हैं। 
                         कुलिंद उशीनगर 
  विक्रम संबत  पूर्व पांचवीं -चौथी सदी में इस क्षेत्र का नाम उशीनगर भी था। यहां बुद्ध का प्रभाव नही था और बुद्ध ने विनय धर व अन्य गणों से उपसम्पदा करने की अनुज्ञा दी थी। 
                     कुलिंद जनपद के प्रदेश 
डा डबराल ने विश्लेषण  है कि यह जनपद  छ प्रदेशों में बनता था -
तामस - सतलज टोंस नदी का पर्वतीय भाग था।  उशी राजा ने यमुना की सहायक नदी जला व उपजला (रूपी -सुपी ?) नदियों के तट पर तपस्या कर इंद्र से भी बड़ा पद प्राप्त किया था। 
कालकूट या कालसी -यमुना के दक्षिण में कालसी , देहरादून , स्रुघ्न प्रदेश  प्रदेश की भूभाग थे।  स्रुघ्न नगर कहीं न कहीं सहारनपुर से संबंध  है। 
भारद्वाज - भारद्वाज की पहचान  वर्तमान गढ़वाल क्षेत्र  जाती है। पाणिनि ने भारद्वाज क्षेत्र का दो बार उल्लेख किया है। गंगाद्वार -हरिद्वार के पास भारद्वाज ऋषि के बसने से इस भूभाग का नाम भारद्वाज पदा. याने बिजनौर, हरिद्वार का कुछ हिस्सा या पूरा व सहारनपुर का कुछ हिस्सा  भारद्वाज क्षेत्र में आता था। 
तंगण -उत्तरकाशी व रुद्रप्रयाग , चमोली का भोटांतिक प्रदेश 
रंकु -पिंडर नदी से पिथौरागढ़ तक का क्षेत्र 
गोविषाण   - अल्मोड़ा , चम्पावत ,नैनीताल उधमसिंघ नगर से गोविषाण की पहचान की जाती है।  अतः बिजनौर का कुछ हिस्सा गोविषाण में होने की संभावना भी हो सकती है। 
                     कुलिंद जनपद के प्रमुख नगर
     कत्रि नगर - अष्टाध्यायी में कत्रि व कालकूट नगर का उल्लेख है।  डा अग्रवाल ने कत्रि नगर की पहचान कत्यूरी नरेशों की राजधानी कार्तिकेयपुर से की है । 
       कालकूट नगर -इस नगर की  वर्तमान कालसी से पहचान की जाती है।    मौर्यकाल में अशोक सम्राट ने यहां  अभिलेख शीला स्थापित की  थी।
     


 ** संदर्भ - ---
वैदिक इंडेक्स
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड  इतिहास - भाग -२
राहुल -ऋग्वेदिक आर्य
मजूमदार , पुसलकर , वैदिक एज 
घोषाल , स्टडीज इन इंडियन हिस्ट्री ऐंड कल्चर 
आर के पुर्थि , द एपिक सिवलीजिसन 
अग्रवाल , पाणिनि कालीन भारत
अग्निहोत्री , पंतजलि कालीन भारत 
अष्टाध्यायी 
दत्त व बाजपेइ  , उत्तर प्रदेश में बौद्ध धर्म का विकास 
महाभारत 
विभिन्न बौद्ध साहित्य 
जोशी , खस फेमिली लौ 

Copyright@
 Bhishma Kukreti  Mumbai, India  29/3/2015 
   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --
रिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -
      Ancient History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ;  Ancient History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ;  Ancient History of Telpura Haridwar, Uttarakhand ;  Ancient  History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ;  Ancient  History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ; Ancient   History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand ;  Ancient  History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand ;  Ancient History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ;   AncientHistory of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ;  Ancient History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ;  Ancient  History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ;  Ancient History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar;    History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Bijnor;  Ancient  History of Nazibabad Bijnor ;    AncientHistory of Saharanpur;  Ancient  History of Nakur , Saharanpur;  Ancient   History of Deoband, Saharanpur; Ancient  Ancient History of Badhsharbaugh , Saharanpur;
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