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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, February 3, 2015

गढवाली भाषा में व्यंग्य चित्र

History of Cartoons in Garhwali Language from Garhwal Uttarakhand;

                                 गढवाली भाषा में व्यंग्य चित्र
 
                                   नंदन सिंह रावत मुंबई
 
 
                     भित्ति चित्रों , चित्रों से अभिव्यक्ति करने की विधा पाषाण युग से भी पुरानी कला है
चित्रों को वाणी देना इटली की देन है. चौदवीं सदी में रचित वर्जिन मेरी के मुंह से शब्दों वाला चित्र दुनिया का प्रथम व्यंग्य चित्र माना जाता है
इटली से व्यंग्य चित्र विधा इंग्लैंड होते हए न्यूयार्क  अमेरिका पंहुची . न्यूयार्क के एक दैनिक ने व्यंग्य चित्र रोजाना प्रकाशित करने शुरू किये और पाठकों को इतने भाये की सभी दैनिक व्यंग्य चित्रों को प्रोत्साहन देने लगे यहाँ तक की ब्रिटिश समाचार पत्र भी इस विधा को अपनाने को वाध्य हुए
              भारत में व्यंग्य चित्र विधा ब्रिटिश समाचार पत्रों के माध्यम से आयी . व्यंग्य चित्र के मामले में परतंत्र व स्वतंत्र भारत में सबसे पहला व प्रसिद्ध नाम शंकर पिल्लई का है
भारतीय प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरु और उनके  मंत्री शंकर रचित अपना व्यंग्य चित्र देखने को लालायित रहते थे . तत्पश्चात आर के लक्षमण का नाम अंतर्राष्ट्रीय व्यंग्य चित्रकारों में गिना जाता है . टाइम्स ऑफ इंडिया और आर के लक्ष्मण एक दुसरे के पर्याय बं चुके हैं भारत में व्यंग्य चित्र विधा भली भांति फल फूल रही है
  जहां तक गढवाल में भित्ति चित्रों व काष्ठ चित्रों का प्रश्न है यह बहुत पुरानी कला है और आज भी प्राचीन चित्र मिलते  हैं
 जहाँ तक व्यंग्य चित्रों का प्रश्न है गढवाली भाषा में यह विधा नवें दशक में ही प्रारम्भ हो पाया . हिलांस सम्पादक स्वर्गीय अर्जुन सिंह गुसाईं करण ब्ताते थे की पत्र पत्रिकाओं के धनाभाव के कारण यह विधा गढवाली भाषा में नही पंप पायी क्योंकि ब्लोक बनाने का खर्चा बहुत होता था
ओफ्फ्सेट प्रिंटिंग आने से आशा जगी थी की यह विधा फलेगी फूलेगी किन्तु लगता है व्यंग्य चित्रकारों  की कमी ही है
   जहाँ तक गढवाली भाषा व्यंग्य चित्र शैली का प्रश्न है ब्रिज  मोहन सिंह नेगी (बी मोहन  नेगी )गढवाली भाषा के प्रथम व्यंग्य चित्रकार हैं उनका प्रथम गढवाली व्यंग्य चित्र हिलांस मासिक में जुलाई १९८७ के अंक में छपा था इस व्यंग्य चित्र में एक बूढ़ा  आदमी अपने बेरोजगार पुत्र को पीटने की मुद्रा में है जो की पढ़ी लिखी भू की खोज में है . इस तरह गढवाली में व्यंग्य चित्र की शुरुवात सामाजिक  बुराईयों को दर्शाने से हुयी
    चूँकि बी मोहन नेगी मूलतः चित्रकार है तो उनके व्यंग्य चित्रों में गढवाल का परिदृश्य बहुत ही बढिया ढंग से झलकता है व्यंग्य चित्रों में सम्पूर्ण वातावरण को दर्शाने में बी मोहन नेगी ब्रटिश व्यंग्य चित्रकार स्टैन मैक के समक्ष हैं संख्या की दृष्टि से बी मोहन नेगी ने करीब तीस व्यंग्य चित्र छापे होंगे
   निखालिश गढवाली मासिक मंडाण  (सम्पादक - विनोद उनियाल ) में चित्रकार रमेश डबराल चित्र बनाते थे और विनोद उनियाल अथवा नेत्र सिंह असवाल  शब्द देते थे अतः यह एक तरह से जुगलबंदी थी
   गढवाली के प्रसिद्ध साहित्यकार , चित्रकार डा नन्द किशोर हटवाल ने भी कए व्यंग्य चित्र बनाए है
  गढवाली के चिरपरिचित कवि डा नरेंद्र गौनियल ने भी कुछ व्यंग्य चित्र बनाये हैं
   धाद मासिक में भी व्यंग्य चित्र जुगलबंदी के हिसाब से छपे हैं
इसी तरह कए पत्र पत्रिकाओं में व्यंग्य चित्र छपे हैं
जहाँ तक व्यंग्य चित्रों की संख्या का प्रश्न है भीष्म कुकरेती का नाम गढवाली भाषा में अग्रणी  है अब तक भीष्म कुकरेती के सात सौ (७०० )से अधिक व्यंग्य चित्र गढ़ ऐना , धाद, चिट्ठी पत्री जैसे पत्र -पत्रिकाओं में छप चुके हैं . भीष्म कुकरेती ने तकरीबन सभी विषयों जैसे उत्तर परदेश सरकार का पहाड़ों के प्रति उदासीन रव्या, राजनैतिक विषयों , सामजिक विषयों, गढवाली साहित्यकारों , गढवाली भाषा , शिक्षण संस्थाएं आदि विषयों पर व्यंग्य चित्र रचे हैं और छपवाए हैं. भीष्म कुकरेती ने कोमिक भी छापे हैं  
 गढ़वाळी  में व्यंग्य चित्रकार नही पनपते हैं उसका एक ही मुख्य करण है कि व्यंग्य चित्र क रचनाकार को दो विधाओं में विशेषज्ञता  हासिल होनी चाहिए और यदि किसी के पास चित्रांकन करने और व्यंग्य करने माहरथ है तो वह हिंदी में ही व्यंग्य चित्र बनाएगा जहाँ उसे अधिक ख्याति मिल पाती है
 फिर भी गढ़ जागर , रन्त रैबार , उत्तराखंड खबर सार जैसी पत्रिकाओं से हम जन सकते हैं कि इस दिशा में भी भले दिन आएंगे
(आभार " पराज मुंबई, मूल लेख  मासिक पराज मुंबई के मार्च १९९१ के अंक में छपा था
 
 
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