उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Monday, October 6, 2014

गढ़वाल का डम्फु क्यों रो रहा है ?

Physalis divaricata याने गढ़वळि  डम्फु   किलै रूणु च ?
           
                                चबोड़्या बैद ::: - भीष्म कुकरेती 



बांज (पल्तिर कम घामौ डाँड़ौ छाल बिटेन )- अरे दक्षिण ढाल याने तैलु घामक डाँड़क छ्वाड़ स्यु को च रै रुणु इथगा जोर से ?
रिंगाळ (पल्तिर कम घामौ डाँड़ौ छाल बिटेन ) - अरे किलै च स्यु जू बि च ह्यळि  गड गडिक रुणु ?
बुरांस (पल्तिर कम घामौ डाँड़ौ छाल बिटेन )- ह्याँ क्या दुःख च तै तैं ? अर छ क्वाच सि रुंदाड़ ? 
तिमल ( तौळ घाटीक सारी से)  - अरे इख मनिखों तैं नि दिख्यां कथगा साल ह्वे गेन धौं ! इख पहाडुं मा कृषि बंद हूण से हम तिमल , बेडू , खड़िक , भ्यूंळ निपटण वाळ छंवां तो बि हम  नि रुणा छंवां तो स्यु डाँड़ मा कु , किलै अर कैकुण रूणु च ?
डड्यळ घास - अरे यु दुफुट्या , पौधा डम्फु रुणु च। 
लिंगड़  (पल्तिर कम घामौ डाँड़ौ छाल बिटेन ) - अरे नवंबर -दिसंबरौ मैना च तो तैपर त फल ऐ गे होला अर तैक फल का आवरण पर जू पत्ता जन छुक्यल बि सुखिक पीला ह्वे गे होला ? 
संतराज - हाँ मि ये डम्फुक पड़ोसी क्या दगड्या छौं अर ये डम्फु का फल बि पकिक पीला ह्वे गेन अर मनिख येक फल द्याखिल तो वक मुख पर पाणी भोरे जाल। 
कुंळै (मथि धार बिटेन ) -अरे ! जब सब कुछ ठीक चलणु च , स्यु पकि बि गे तो अफुकुण किलै रुणु च ?
संतराज - सुबेर बिटेन येन एक अखबारों कतर क्या पौढ़ कि सुबेर बटें इनि रूणु च अर बुनू च गढ़वळि बि हिमचली जन हुँदा तो आज वु मुंबई -दिल्ली का माल्लूं (Malls ) माँ बिराज दींदु। 
बांज - अरे तै डम्फु तैं पूछ त सै कि अखबार मा क्या लिख्युं च ?
डम्फु (जोर जोर से रुंद रुंद )- रुण नी मीन ?
रिंगाळ (पलतिर बिटेन  जोर से धै ) - तै दू फुट्या -ति फुट्या पौधा कुण बोल कि   जथगा बी रुणाइ तू रो ले किन्तु अखबार पौढ़िक किलै रूणु छे ?
बांज (पलतिर बिटेन  जोर से धै ) - ह्यां अखबार माँ लिख्युं क्या च ?
संतराज - मीन बि पौढ़ यु अखबार।  लिख्युं च कि हिमाचल के गाँवों से मुंबई , दिल्ली , मद्रास के फ्रूट मार्किट और माल्स में  पीली रसबेरी याने Physalis divaricata  पंहुच गईं हैं।  ग्राहक बड़े चाव से पीली रसबेरी खरीद रहे हैं।  ग्राहक  बड़े चाव से डम्फु फल खा रहे हैं। ग्राहकों को पता है कि यह पौधा आयुर्वेदिक आषधि के रूप में प्रयोग होता था।  इसके जड़ों से मधुमेह की बीमारी और अन्य कई बीमारी में आषधि के रूप में प्रयोग होती थीं। और खांसी, अल्सर , पित्ती के रोग आदि में भी औषधि के रूप में प्रयोग होता था, डम्फु  के फलों से लोग मुंबई में जैम व अन्य पुडिंग , डिजर्ट भी बना रहे हैं। 
आगे समाचार पत्र लिख रहा है कि हिमाचल के किसान जो सेवों का व्यापार करते हैं वे डंफुओं को जंगल से इकट्ठा करवाकर कारोबार कर रहे हैं और अपनी पारम्परिक आय /इनकम में वृद्धि कर रहे हैं। 
लिंगड़  (पल्तिर कम घामौ डाँड़ौ छाल बिटेन ) -  तो इख्मा रुणै बात क्या च कि हिमाचल वालों की , उधर नेपाल वालों की , कश्मीर वालों की जंगल उत्पादन से इनकम बढ़ रही है ? भै यु इनकमौ दुःख त गढ़वळि -कुम्मयों तैं हूण चयेंद ना कि हम पेड़ पौधों तैं। 
डम्फु - अरे मनुष्य यदि हमर प्रयोग नि कारल तो हमारी साखी , हमारी जाती , हमारी जनरेसन ही खत्म नि ह्वे जाली ? जब मनुष्य इख गढ़वाळ मा हम तैं खांदु छौ तो हमर तादाद बि बढ़दी छे अर हम सुखी छया।  म्यार हिमाचली भाई -बंधुओं की तादाद बढ़नी च अर हम गढ़वाली डम्फुओं तादाद घटणी च।  उख हिमाचली डम्फुओं नाम अर प्रयोग हिन्दुस्तान का नगर -नगरों मा बढ़णु च अर गढ़वळि डम्फु खज्याणा छंवां। 
तिमल ( तौळ घाटीक सारी से)  -हाँ या बात त सै च गढ़वळि -कुमाउनी समाज की अनदेखी से हम सब खज्याणा छंवां। 
बांज - याँ जब गढ़वळि -कुमाउँन्यूं तै इ नी पड़ीं च त हम वनष्पति क्या कौर सकदां ? जब ऊँ तैं अपण इनकम बढ़ानो नी पड़ीं च तो हमम चुप रौणो अलावा क्या काम च भाई ?
संतराज - हाँ हम त अपण अनुकूलन का गुणों से ज़िंदा रै जौंला।  यी मनुष्य क्या कॉरल धौं >
सबि -किस किस को रोएँ किस किसको हँसे आराम बड़ी चीज है आओ चैन से सो जाएँ ! 
डम्फु - में से तो यु असह्य बेदना नि सयाणी च। 
सबि - ठीक च तो तू भी प्रवासी गढ़वळि अर कुम्मयों तरां हल्ला कौर, रो पीट , लेख लिख , महानगरों माँ भाषण दे कि पहाड़ों मा कुछ हूण चयेंद , पहाड़ों में कुछ होना चाहिए। 
संतराज - अर जब बारी आओ कुछ करणो तो मुख लुकैक बिदेश भाजी जावो। 



Copyright@  Bhishma Kukreti  5 /10 /2014       
*
लेख में  घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख  की कथाएँ चरित्र व्यंग्य रचने  हेतु सर्वथा काल्पनिक है




Garhwali Humor in Garhwali Language, Himalayan Satire in Garhwali Language , Uttarakhandi Wit in Garhwali Language , North Indian Spoof in Garhwali Language , Regional Language Lampoon in Garhwali Language , Ridicule in Garhwali Language  , Mockery in Garhwali Language, Send-up in Garhwali Language, Disdain in Garhwali Language, Hilarity in Garhwali Language, Cheerfulness in Garhwali Language; Garhwali Humor in Garhwali Language from Pauri Garhwal; Himalayan Satire in Garhwali Language from Rudraprayag Garhwal; Uttarakhandi Wit in Garhwali Language from Chamoli Garhwal; North Indian Spoof in Garhwali Language from Tehri Garhwal; , Regional Language Lampoon in Garhwali Language from Uttarkashi Garhwal; Ridicule in Garhwali Language from Bhabhar Garhwal; Mockery  in Garhwali Language from Lansdowne Garhwal; Hilarity in Garhwali Language from Kotdwara Garhwal; Cheerfulness in Garhwali Language from Haridwar;


CLEAN INDIA , स्वच्छ भारत !

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments