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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, October 29, 2014

समाज मा नेता/नेतृत्व /लीडरशिप पैदा नि करणो तरकीब

आपकी  अपणी  आत्मकथा , खुदेणो कथा , भाग -4        
                                              खुदेड़  :::  भीष्म कुकरेती 

 ब्रिटिश काल ना स्वतंत्रता का भौत बाद बि हमर गांवुं मा नेतृत्व विकास रुकणो भौत सा साधन , भौत सा तरीका अर भौत सा पाख -पख्यड़ छया। 
 मुस्लिम आक्रांता राज का बाद भारत मा हरेक राजान इन नियम , इन रिवाज अर इन कार्यक्रम चलैंन कि स्थानीय नेतृत्व पैदा नि , स्थानीय नेतृत्व पैदा ह्वै  बि जा तो वैको विकास नि हो , स्थानीय नेतृत्व  विकसित बि हो तो भी वो राजा का जनमजात गुलाम ही रावो।
अब द्याखो ना जब हमर बूड़ ददा का बूड़ ददा बुल्दा ह्वावन कि राजा याने "बोल्दो बद्रीनाथ" तो अवश्य ही हमर बूड़ ददा कु झड़नाती कुझड़नाती याने भीष्म कुकरेती कु बुबा बि राजा बणणो नि सोची सकदो छौ। इन मा नेतृत्व जन्मणो सब रास्ता ही खतम करे गे छा।  जरा सामयिक हिसाब से तो द्याखो आम कॉंग्रेसी नांदेड  ( अशोक चौहाण कु चुनाव क्षेत्र ), लातूर (विलासराव पुत्र अमित ), सोलापूर (शिंदे कु चुनाव क्षेत्र ) टिहरी ( बहुगुणा कु क्षेत्र ) मा सांसद बणनो ख्वाब देखि नि सकद। 
लालू यादव ऐंड कम्पनी का कार्यकर्ता प्रधान मंत्री बणनो सुपिन नि देख सकदन किलै कि प्रधान मंत्री कुर्सी पर त यादव परिवार ही बैठ सकद। 
मुलायम सिंह यादव का राज मा मुख्यमंत्री अर प्रधान मंत्री की कुर्सी पर तो मुलायम परिवार  कु एकाधिकार सर्वमान्य च। 
इनि डीएमके मा करुणानिधि परिवार , उड़ीसा मा पटनायक परिवार , पंजाब मा बादल कु राज , शिवसेना पर ठाकरे परिवार कु एकछत्र कब्जा , कश्मीर मा अब्दुला अर सय्यद लोगुं बपौती सब इन जनकजोड च कि आम लोगुं मध्य नेतृत्व पैदा नि हो. 
   हमर गांवुं मा बि पधानचारी क्या छे ? परिवार वाद तैं बढ़ावा अर स्थानीय नेतृत्व बाढ़ की सदा सदा का वास्ता मौत।
फिर जब बि क्वी युवा कुछ नया करणो सोच्दु बि छौ तो  परम्परा की दुहाई देकि वैकि रचनाधर्मिता की डंडलि सजाये जांद छे , रचनाधर्मिता की चिता सजाये जांद छौ , युवा का अरमानो तैं परम्परा का लखड़ों  मा खुलेआम जळाये जांद छे.
यदि फिर बि युवा अपणी रचनाधर्मिता पर टिक्यूँ रावो तो वै तैं समझाये जांद छौ कि ----यु काम असंभव च , यु काम यीं दुनिया मा त ह्वेई नि सकद , यदि संभव हूंद तो पैलि नि ह्वे जांद। हमर गांवुं मा वी बड़ो ऋषि , बड़ो मुनि , बड़ो सयाणा माने जांद छौ जु ह्वे सकद च छोड़िक कतै नि ह्वे सकद की शिक्षा द्यावो। 
हमर अड़ाण वाळ छुटि से छुटि गलती पर डंड दीण, गाळी दीण , पिटण -थिंचण  मा अग्वाड़ी रौंद था।  जब हमम ग़लती करणो साहस हि नि ह्वावो तो अवश्य ही हमम कुछ नया करणो हिम्मत ही नि रौंदि छे अर जब कुछ अभिन्न , कुछ विशेष , कुछ अलखणी नि हो तो नेतृत्व पैदा कखन हूण छौ ?
  नेता  पैदा करण, नेता कु विकास करण  , नेतृत्व करणो समाज तैं पळण -पुषण , नेतृत्व गुण कु फलण -फुलण मा सौ सहायता करण जरूरी हूंद। किन्तु हमर समाज एक दुसरो सौ सहायता मा पैथर नि रै होलु  तो बि अग्वाड़ी त नि छयो।  नेतृत्व पैदा करण माने गैर परम्परा तैं अंगीकार करण पर हमन हमेशा , हरसंभव गैरपरम्परा की हंसी उड़ाई , गैर परम्परा कु उत्थान तैं हराइ लीक से हठणै कोशिस नि कार।  आज बि हम परम्परा तैं सहायता दींदा अर गैरपरम्परा तैं सहायता नि दींदा।  कैक दादाक श्राद्ध, बुबा की तिरैं या ब्वेक सप्ताह वास्ता लाख रुपया उधार दे द्योला , किन्तु जरा क्वी ब्वालो कि मि तैं दुकान खुलणो बान कुछ हजार रुपया दे द्यावो तो हम एक धेला उधार तो छ्वाड़ो हम वै गैरपरम्परावादी तैं आशीर्वाद बि नि दींदा।  हम आज बि बिजिनेसमैन तैं बेटी दीण मा आनाकानी करदां।  गैरपरम्परा तैं हम सहायता नि दींद छा अर नेतृत्व क्षमता तो गैरपरम्परा से ही आंद। 
हम हमेशा ब्याळै औजारूँ पुजारी रौवां अर इनमा हमर समाजन  नेतृत्व याने नया प्रकार का नेतृत्व का वास्ता खड्ढा ही खोदिन। 
   हमर जातीय व्यवस्था बि नया तरां नेतृत्व पैदा करणो विरोधी ही छे। 
नया काम कारो तो समाज टोकाटोकी करदो छौ त इन माँ नेतृत्व पैदा हूणों सब संभावनाएं बंद ही छया। 
बस अपण पुटुक भौरों तक ही हमर समाज सीमित छौ तो इन मा नया  तरह का नेतृत्व जनमण कठण ही छौ। 
एक फरमा पर चलण वाळ समाज नेतृत्व पैदा नि करद अपितु नेतृत्व पैदा करणो खांडियूँ (खान , Mines ) विनास करदु। 
मि जब छुटू छौ तो  समाज मा नेता ही  पैदा नि ह्वावन की हर संभव कोशिस समाज करदो छौ। 



Copyright@  Bhishma Kukreti  28  /10 /2014       
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लेख में  घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख  की कथाएँ चरित्र व्यंग्य रचने  हेतु सर्वथा काल्पनिक है



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