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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, October 27, 2014

रंडी को दुबारा नचाओ

चबोड़्या ::: भीष्म कुकरेती 

            मि तबौ बात करणु छौं जब  भानियावाला देहरादून जिला मा छौ पर देहरादून अर भानियावाला का बीच मा बासमती का खेत हूंद था;चीनक लड़ै हुयां छै मैना ह्वे गे छा  ।  भानियावाला गाँव बि छौ , कस्बा बि छौ अर शहर की गणत मा बि आंद छौ।  लोगुं राजनैतिक महत्वाकांक्षा बिंडी नि छे , ऐसप्रेसनल लेवल बड़ी नि छे , लोग संतोषी छया अर भानियावाला गाँव च त वै तैं कस्बा ब्वालो बान क्वी आंदोलन बि नि हूंद छौ।  मि चूँकि ठेठ पहाड़ी गाँव कु छौ तो मेकुण  जख मोटर हो , बिजली हो , नाइ की दुकान हो , चमार हो , ट्वाइलेट का वास्ता सफाई कर्मचारी , मिठैक दुकानम जलेबी तळे जांद ह्वावन, गढ़वळि लोक अपण आपस मा हिंदी मा बचळयावन तो वा जगा शहर हूंद छे।  मेकुण भानियावाला शहर छौ।  सरकारी खसरों मा इख ग्राम पंचायत छे तो सरकारी हिसाब से भानियावाला गाँव छौ। किन्तु भानियावाला वळ अपण सम्मान रक्षा हेतु भानियावाला तैं कस्बा माणदा छा किलैकि  भानियावाला मा पिक्चर हॉल जि  छौ
            मि अपण बडा जीक दगड़ आँख दिखाणो रिसिकेश अयुं छौ अर आँख तपासी मा टैम लगणु छौ त हमन रिसिकेश , शिवानंद आश्रम अर स्वर्गाश्रम मा सबि रिस्तेदारुं तैं अनुग्रहित करि आल छौ , दिक कौर याल छौ याने सबि रिस्तेदारुं इख ठिकाणौ ह्वे गे छौ तो ब्याळि श्याम , रिस्तेदारी निभाणो भानियावाला तक पौंछि गे छा। हमम समय छौ अर भानियावाला मा द्वी रिस्तेदारुंक इख सीणै जगा छे , चूँकि ऊंक इक खेत बि छा तो राशन पाणी क्वी परेशानी नि छे। 
              सुबेर म्यार परिचय अपण हमउमर रिस्ता मा भणजो  दयाशंकर से ह्वे। मीन वैक इंटरव्यु लिए छौ अर ढया (2.5 ) अर पौंछाक  (2. 75 ) का पहाड़ा तो दूर वै तैं उनीसका पहाड़ा बि नि आंद छौ।  फिर बि दयाशंकर शर्मिन्दा नि छौ , हीनभावना से ग्रसित नि छौ किलैकि वूंक भानियावाला मा बासमती का खेत छा , घौरम साइकल छे अर सबसे बड़ी बात छे कि दया छै -सात मैना मा वु पिक्चर दिखुद छौ।  ढया (2.5 ) अर पौंछाक  (2. 75 ) का पहाड़ा आणो बाद बि मि दयाशंकरक समिण तुच्छ छौ किलैकि वैन सिनेमा दिख्युं छौ। 
  नास्ता बाद दीदीन दयाशंकर कुण ब्वाल ," ये दया ! बजार जादी अर पता लगादी कि मसूरी एक्सप्रेस आइ च कि ना ? आज चचा जी , भीषम अर हम सब सिनेमा जौला। "  इन सुणन छौ कि दयाशंकर का शरीर पर बिजली दौड़न शुरू ही नि ह्वे अपितु वैक शरीर ही बिजली मा बदलि गे। 
दीदीन द्यशंकरम अर  मीम एकै एल्युमीनियम की परोठी पकड़ैंन अर दया तैं हिदायत बि दे कि हलवाई जी कुण बोलि दे कि मेमान अयाँ छन तो सीट पैथरक हूण चयेंदन।  बड़ी  परोठी मा दूध छौ त छुटि परोठी पर घी। 
      दयाशंकर उत्साह मा छौ , उत्सुक छौ अर जन बुल्यां वैक खुटुं मा स्केटिंग का पहिया लग्यां छा। कै तै दया पुछणु छौ अर क्वी दया तैं पुछणा छा "मसूरी एक्सप्रेस ऐ गे क्या ?"। मसूरी एक्सप्रेस माने दिल्ली से देहरादून आण वळि ट्रेन।  जब कि ट्रेन का छुकछुक्याट से त सब तैं पता चल गे छौ कि मसूरी एक्सप्रेस सुबेर ऐ गे किन्तु फिर बि सब एक दुसर से पुछणा छया कि मसूरी एक्सप्रेस ऐ गे क्या ?"
   दयाशंकरन खुलासा कार कि भनियावाला मा "मसूरी एक्सप्रेस ऐ गे क्या ?" कु अर्थ च कि क्या मसूरी एक्स्प्रेस से दिल्ली बिटेन नया सनेमा  रील बि ऎ होलि ? चूँकि मीन बि सनेमा पैलि बार दिखण छौ त म्यार शरीर मा ऊर्जा बढ़ी गे छे , म्यार खुटुं पर पहिया लग गे छा अर मेकुण बि सरा भानियावाला प्रकाशयुक्त ह्वे गे छौ। 
     हम दुयुंक चाल मा हिरण कु खुड़बुड़याट ,  स्याळ जन छकछक्याट  अर खरगोश की चपलता छौ। हम हलवाई दुकानी पास पौंछा तो भीड़ से दयाशंकरन अन्थाज लगै  दे कि अवश्य ही मसूरी एक्स्प्रेस ऐ गे याने सनीमा की नई रील ऐ गे। 
हलवाई जी असल मा अच्काल सनेमा गृह कु संचालक छौ याने हलवाई जीन सिनेमा गृह किराया पर लियुं छौ। 
हलवाई जीक दुकानि समिण एक परमानेंट बोर्ड लग्युं छौ अर बोर्ड मा परमानेंट लिखाई छे -
               खुशखबरी , खशखबरी जनता की भारी मांग पर 
               मारधाड़ , सेक्स से भरपूर नया पारिवारिक चलचित्र 
                आज एक खेल नौ से बारा ( रात्रि ) 
तौळ सम्पूर्ण रामायण कु पोस्टर लग्युं छौ जैतैं हलवाई जीक बुल्ला (गढ़वाली नौनु जु उख नौकरी करदो छौ ) पोस्टर उतारणु छौ अर नया पोस्टर लगाणो तयारी करणु छौ।  लोग शंका , संसय अर कौतुहल से बोर्ड पर टक्क लगैक दिखणा छा कि कखि फिर से तथाकथित सेक्स से भरपूर फिलम 'भरत मिलाप' नि ऐ गे हो।  खैर आखिर आधा घंटा बाद बोर्ड पर पोस्टर लगण से सस्पेंस खुल किमारधाड़ , सेक्स से भरपूर नया पारिवारिक चलचित्र कु नाम 'मधुमती ' च।  लोगुं सांस मा सांस मा आयि कि सचमुच मा मारधाड़ , सेक्स से भरपूर नया पारिवारिक चलचित्र दिखणो मीलल। 
 तब विक्रेता अपण ग्राहकुं पर विश्वास करद छौ अर ग्राहक बि विक्रेता पर विश्वास करणो विवश छौ तो विक्रेता अनावश्यक विज्ञापनबाजी याने ठगबाजी नि करद छौ।  तो सरा भानियावाला मा केवल एक पोस्टर लगण  से अधा घंटा मा मुंहजबानी खबर फैली गे कि सेक्स से भरपूर परिवार के साथ देखने लायक फिलम कु नाम 'मधुमती' च
चूँकि सनेमा गृह कु संचालक हलवाई जी छा तो अधिकाँश कृषक हलवाई जी तैं पैसा दीणो जगा दूध , घी अर दही दीणा छा अर नौकरी पेशावाळ पैसा पकडाणा छा। दयान बि दूध -घी पकड़ाई।   हलवाई जी स्वयं लिखणा छा कि कैन कथगा दूध , दही अर घी पकड़ाई।  सिनेमा लगणो एकी नियम छौ  मसूरी एक्सप्रेस आणो दिन अर फिर जनता की मांग पर दस या बारा दिनों बाद। 
दयाक खुट भ्युं नि पड़ना छा , मि  बि असमान मा इ हिटणु छौ अर मि त परजामा मा बि छौ। 
हमर दिल कै बि चीज पर नि लगणु छौ , खाणक मा बि भोजनौ मजा नि ऐ अर बड़ी मुस्किल से दिन बीत। 
हम लोग आठि बजी सिनेमा गृह ऐ गे छा।  असल मा सनेमा हाल सनीमा हाल नि छौ बल्कि एक धूलभर्युं मैदान छौ।  मैदान का एक भाग मा द्वी पोल घट्यां छा।  जैपर बुल्ला अर भानियावाला का कुछ स्वयंसेवक पोलुँ पर सफेद पर्दा लगाणा छा।  हैंक छोर पर छूटी सि कुठडि छे जख पुटुक बायोस्कोप  छौ।  वा कुठड़ी अबि नि खुलि छे।  चूँकि हलवाई जी खुद ही  बायोस्कोप  चलांद छा तो वूंक आणो बाद हि कुठड़िन खुलण छौ।  द्वी -तीन बल्ब सौं घटणा छा कि या जगा सार्वजनिक स्थान च। 
बैठणो स्थान बिलकुल बंट्यां छा , जनान्युं अलग अर मरदुं कुण अलग , बच्चों मा लिंगभेद नि दिखे जांद छौ। हम बि अर सबि लोग अपण अपण बोरी , चटै या दर्री लेक अयाँ छा , सब्युंक पाणी परोठी बि लईं छे त अधिकतरुं मा रुटि भुजि बि छे। सब जो पहला आएगा पीछे बैठेगा कु हिसाबन जगा घेरिक बैठी गे छा।  धूळ तैं हम पृथ्वी माता अंश  माणदवां तो कैतैं बि धूळ से शूल नि उठणि छे , बौळ नि लगणी छे बस केवल छींका -छींक से मैदान गर्जित हूणु छौ किन्तु लोगुं घ्याळ मा   छीँकुं गिरजणि बुरी नि लगणि छे। दीदी , दया अर मि जनान्युं भाग मा बैठ्याँ छया। 
बुल्ला लोगुं बैठणो मनभेद अर मतभेद दूर करणु छौ अर स्वयंसेवक बि बुल्ला की सौ सैता करणा छा।  चूँकि बैठण मा लोगुं मा अधिक घपला नि ह्वे तो मि समझ ग्योँकि भानियावाला घर पर बिजली- पाणि आणो बाद  बि गाँव ही च। 
बायोस्कोप कुठड़ी भैर  अगल -बगल कुछ कुर्सी छे किन्तु हलवाई जी कुर्सी का अधिक पैसा कतै नि लींद छा।  कुर्सी  रिटायर्ड सूबेदार , हवलदार, गलादार  अर दर्शकुं मेमानुं कुण आरक्षित छे।   चूँकि म्यार बडा जी मेहमान छा तो जीजा जी अर म्यार बडा जी तै  कुर्सी मील गे। एक कुर्सी अचाणचक घटना याने यदि गौंका प्रधान याने थोकदार धुंधबीर सिंग जी ऐग्या त ऊँ कुण धरीं छे।  उन दर्शक अपण अपण कुलदेवता से मन्नत मांगिक आंद छा कि ग्राम प्रधानो निफल्टि नि हो। 
वै टैम पर पटवारी , पुलिस अर बिजली विभाग का लोग अफु तैं सेवक या समाजक अभिन्न अंग समझदा छा अर ऊंक परिवार वाळ , लोगुं मा रौब -रूतबा-धौंस दिखाण मा शर्मांद छा तो ऊंकुण  अर ऊंक परिवारो कुण  कुर्सी आरक्षित नि हूंदी छे  , वो सब भ्युं ही बैठिक पिक्चर दिखद छा बस एक एक रियायत छे कि उमांगन हलवाई जी पैसा नि लींद छा। 
टट्टी पेशाबौ शुलभ ,  सौंग अर सतजुगी सुविधा छे। जिना गन्ना का खेत छा उना जनान्युं झाड़ा -पेशाब की जगा छे अर बकै खाली जगा या चणो खेत की मींड पुरुष शौचालय छा। 
तकरीबन नौ बजी का बाद हलवाई जी ऐन अर मैदान मा जैक ऊँ ऊँ तैं पकड़ जौन भग्वल मा दूध -घी नि दे हो या पैसा नि दे हो।  जौंमा पैसा छया ऊन रेट का हिसाब से हलवाई जी तैं चवनि -अट्ठनी पकड़ाई अर बकैउंन  भोळ दूध -घी लाणो प्रोमिस करी।  
इना हलवाई जी  बायोस्कोप कुठड़ी भितर गेन अर ऊना थोकदार धुंधबीर सिंग बि ऐन। जनानी बि गाळी दीण मिसे गेन कि ये थोकदारन आज बि रंडी नचाणो राड़ गाडण। 
कुछ समय बाद हलवाई जीन सब बल्ब बंद करिन अर सिनेमा शुरू कार।  पैलबार , चलदो चलचित्र देखिक म्यार आँख चचलाणा छया। दयान  समजाई कि पैलबार इनि हूंद।  कुछ देर बाद सिनेमा बंद ह्वे गे।  दयान समजाई कि हलवाई जी रील बदलणा छन।  जब सिनेमा फिर से शुरू ह्वे त दयान बताइ कि वैजयंती मालाक डांस शुरू ह्वे गे।  पुरुष दर्शकों मा कुछ लोग नाचण लग गेन।  जब डांस खतम ह्वे तो सह खलनायक कुल्हाड़ी  लेक नायक का पिता का पैथर दौड़णु छौ अर हरेक दर्शक रोमांचित छौ कि हीरो का पिताकी ज्यान बचल कि ना ! इथगा मा थोकदार धुंधबीर सिंग की आवाज आई , " हलवाई !जी  रंडी को दुबारा नचाओ। "
सिनेमा कुछ देरौ कुण बंद ह्वे अर जब शुरू ह्वे तो फिर से रंडी याने वैजयंती माला पर्दा मा नाचणी छे. फिर जनि नाच बंद ह्वे तो थोकदार जीन डिमांड कर दे कि रंडी को फिर नचाओ। 
फिर इनि सिनेमा बंद ह्वावो अर चालु हूणु राई याने कि हलवाई जी रील बदल्दा छा तो दर्शकों घ्याळ शुरू ह्वे जांद छौ।  जनि सिनेमा शुरू ह्वावो ऊनि घ्याळ थम जांद छौ। 
वैजयंती  माला को फिर से डांस सीक्वेंस आइ अर डांस का बाद फिर से थोकदार जीन फरमायश कर दे कि रंडी को फिर से नचाओ।  अबै दैं थोकदार जीन रंडी तैं तीन दैं दुबर नचवाई।  अर दर्शकों भाग खुलेन कि थोकदार जी उठिक चली गेन।  दया बुलणु छौ कि निथर थोकदारन हर डांस मा रंडी दुबर -तिबर नचवाण छौ। अब दर्शक खुश छा कि रंडीन एकि दैँ नचण। 
इनि द्वी -ढाई घंटा मा सिनेमा खतम ह्वे, बलब जलण लग गेन।   अर लोग अपण ड्यार जाणो रगाबगि मा लग गेन. यु मेरो प्रथम सिनेमा दिखणो अनुभव छौ।  पिक्चर की कथा त याद नी च  किंतु 'रंडी को दुबारा नचावो ' शब्द आज बि याद छन। 
 दुसर दिनक खबर से पूरा भानियावाला वाळ खुस छा कि रात द्वी  ही जगा चोरी ह्वे अन्यथा भानियावाला मा रोजाना छैएक चोरी त हूँदि छे। 
 

                 
Copyright@  Bhishma Kukreti  24  /10 /2014       
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लेख में  घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख  की कथाएँ चरित्र व्यंग्य रचने  हेतु सर्वथा काल्पनिक है



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