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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Friday, October 17, 2014

खबर च बल 'खबर सार बंद ह्वेइ ग्याइ '

भीष्म कुकरेती 
                          जी हाँ दर्दनाक , दुखौण्या , दsन (चिंता) वळि खबर च बल बारा तेरा साल बिटेन छपण वळु पाक्षिक गढवळि अखबार 'उत्तराखंड खबर सार ' बंद ह्वेइ गे।  समिण बटें त संपादक  विमल नेगी जी बि नि बुलणा छन कि 'खबर सार ' अब  गढवळि मा खबर अर साहित्य भिजण से लाचार च।  किन्तु जब एक अनुशाषित अखबार तीन चार मैना से नि आणु हो त समझि लीण चयेंद कि अखबार बंद ह्वे गे।  
       चूँकि गढ़वाळ बटी छपण वळ अखबार या पत्रिकाओं बंद हूणै पूरणि परम्परा च तो कै तैं बि  गढवळि अखबार 'उत्तराखंड खबर सार ' बंद हूण पर क्वी अफ़सोस नी च , क्वी दुःख नी च अर कै पर क्वी फरक बि नि पोड़।  किन्तु गढवळि साहित्यकारुं कुण 'उत्तराखंड खबर सार' बंद हूण से भौत फरक पोड़।  खबर सार मा खबर नि छपदि छे अपितु गढवळि साहित्य छपद छौ। 
यदि एक पट्टी कु दोगला नेता अपण पार्टी छोड़िक दुसर पार्टी मा जांद तो क्षेत्रीय अखबारों मा एक समाचार बण जांद किंतु दस बारा साल से निरंतर छपण वळ 'खबर सार' बंद हूंद तो पौड़ी मा बि खबर नि बणद जतांदु कि हम तैं गढवळि भाषाकी पोड़ि हि नी च , हम अपण भाषा का प्रति लापरवाह ही ना अपितु सर्वथा उदासीन छंवां। 
           गढ़वळि जन भाषा का वास्ता 'खबर सार ' अमृत छौ , एक ऊर्जा स्रोत्र छौ, साहित्यकारों बान एक पूजनीय थौळ छौ।  खबर सार मा वु सबि चीज छपद छौ जु साहित्य विकासौ कुण आवश्यक छौ अब जब 'खबर सार' बंद ह्वे गे तो अवश्य ही एक बड़ो वैक्यूम ऐ गे।  
             'खबर सार ' जन अखबारौ बंद हूणौ पैथर सबसे पैलो कारण च गढवळि समाज अपड़ी हजारों सालै भाषा तैं क्वी महत्व नि दींदु।  समाज मा चेतना इ नी च कि अपण पुराणो ज्ञान बचाणो खातिर गढवळि भाषा ज़िंदा रौण चयेंद। समाज नि जाणदो कि भाषा बचाणो काम व्यक्त्यूंक च ना कि सरकार कु च। 
          गढ़वाळी समाज नि जाणदु कि अखबार , पत्रिका , रेडिओ , ऑडियो -वीडिओ अर इंटरनेट माध्यम बचाणो काम बि समाजौक च   ना कि राजनीतिज्ञों या सरकारी अधिकार्युं कु काम !
           गढ़वळि समाज भाषा आंदोलन का प्रति अपण जुमेवारी से बिमुख च अन्यथा 'खबर सार' बंद नि ह्वे सकुद छौ।  गढ़वळि समाज तैं पता इ नी च कि 'खबर सार ' सरीखा अखबार भाषा आंदोलन का पहिया छन। गढ़वळि अखबार पढ़न से भाषा अर संस्कृति विकसित हूंद जन बात गढ़वळि सामाज कु समज मा नि आणु च। 
             गढ़वळि समाज तै समज नि आणु च कि जन अपण घौरक बजट मा  मोबाइल , इंटरनेट बजटौ  प्रवाधान रौंद उनि घौरक बजट मा गढ़वळि साहित्य पढ़णो बजट बि आवश्यक च। 
            गढ़वळि समाज नि जाणदो कि भाषा ही असली प्रजातंत्र कु खम्बा छन अर  भाषा माने प्रजातंत्र।  
   खबर सार बंद  हूणै पैथर गढ़वळि समाज माँ व्याप्त सामजिक समस्या कु बड़ो हाथ च अर समाज तैं भाषा का प्रति लापरवाही जन बीमारी दूर करणो बान स्थिर कदम उठाणो आवश्यकता च। भाषाई अखबारुं वर्चस्व पर चर्चा करण , विचार करण , ऊख पर विमर्श करण आवश्यक च । 


Copyright@  Bhishma Kukreti  17/10 /2014   

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