उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Thursday, August 14, 2014

गढ़वाली का युवा , उत्साही कवि अतुल सती 'अक्स' का दगड़ भीष्म कुकरेती की लिखाभेंट

भीष्म कुकरेती; आपना अब तक गढवाळी मा क्या क्या लेख अर कथगा कविता लेखी होला,
आपक संक्षिप्त जीवन परिचय-----
प्रणाम भीष्म कुकरेती जी,
मेरु नौ अतुल सती 'अक्स' च। मेरु मूल निवास ग्राम झालीमठ - गौचर जिला रुद्रप्रयाग उत्तराखंड च। मेरु जन्म ०३ दिसम्बर १९८३ (मंगसीर माह मा) पिताजी  श्री कान्ता प्रसाद सती अर माँ उमा देवी का घोर मा हुए। म्यार प्रारंभिक शिक्षा रूड़की अर बगवान( भल्ले गौं) मा हुए।  मिन हाई स्कूल अर इण्टर श्रीनगर इंटर कॉलेज बटिन पास करी।  वे का बाद अपरी इंजीनियरिंग  ग्राफ़िक एरा इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी ,देहरादून,उत्तराखंड  से पूरी करी की दिल्ली मा सॉफ्टवेयर इंजीनियरे नौकरी करणु छौं। 

अब तक मिन २५ छोटी बड़ी गढ़वाली कविता, अर १५ गढ़वाली गीत लिखी छन। मेरु एक संगीत समूह बैंड 'अनंतनाद' भी च जै मा हम हिंदी अर गढ़वाली गीतों पर काम करदा छन।                     

भीष्म कुकरेती : आप कविता क्षेत्र मा किलै आइन ?
बचपन मा पिता जी आदरणीय मैथिलीशरण गुप्त जी की रचना ' नर हो, न निराश,  करो मन को ' खूब सुनोंदा छा अर 'आदरणीय माखन लाल चतुर्वेदी जी की 'पुष्प की अभिलाषा' ते भी खूब गांदा छा। वखि बटिन मेरी रूचि कविता छेत्र मा बड़न लगी। हिंदी मा मी लिख्दु ही छौ पर गढ़वाली भाषा कु प्रभाव जू लुप्त होण लगी छौ वे का बाना मिन गढ़वाली मा भी लिखण शुरू कर देयी। 
    
भीष्म कुकरेती : आपकी कविता पर कौं कौं कवियुं प्रभाव च ?
मैते हिंदी उर्दू मा सबसे ज्यादा गुलज़ार जीं का गीतून प्रभावित करी। अर गढ़वाली मा नरेंद्र सिंह नेगी जी का गीतून मेरा भीतर गढ़वाल बसे की राखी।     

भी.कु. : आपका लेखन मा भौतिक वातावरण याने लिखनो टेबल, खुर्सी, पेन, इकुलास,
आदि को कथगा महत्व च ?
महत्व ता भीजां च यूँ सब्बि चीजूं कू मेरा जीवन मा। वन ता मी कंप्यूटर मा ही लिखदूं छौं पर समय समय पर मी वैते कलमबद्ध कर देन्दु च आपरी डायरी मा।   जबरी भी मैते एकांत मिल्दु च मैते कविता लेखन मा आनंद औंदू च।      

भी.कु.: आप पेन से लिख्दान या पेन्सिल से या कम्पुटर मा ? कन टाइप का कागज़ आप
तैं सूट करदन मतबल कनु कागज आप तैं कविता लिखण मा माफिक आन्दन?
मी कंप्यूटर मा ही अधिकतर टाइप करदूं छौं पर वेका बाद कुछ कुछ रचनाऊं ते  अपरी डायरी या कॉपी मा लिखदूं च। मेते अलग अलग रंगा कागजा मा कविता गीत लिखण मा माफिक आनंद औंदू      

भी.कु.: जब आप अपण डेस्क या टेबले से दूर रौंदा अर क्वी विषय दिमाग मा ऐ जाओ त
क्या आप क्वी नॉट बुक दगड मा रखदां ?
नोटबुक ता नी पर मेरु मोबाइल रेंदु मेरा काख मा। जू भी विचार आउँदा वे ते मी फट से मोबाइल मा लिख लेन्दू च। अर तब बाद मा कम्यूटर या डायरी मा नोट कर लेन्दु च।       

भी.कु.: माना की कैबरी आप का दिमाग मा क्वी खास विचार ऐ जवान अर वै बगत आप उन
विचारूं तैं लेखी नि सकद्वां त आप पर क्या बितदी ? अर फिर क्या करदा ?
अर न पूछा … भीजां बुरु लगदु जब  मेरा मन मा कुई विचार आन्दु पर मी वे ते लिख नी पान्दु। तब भी अगर मी वेते मोबाइल पर नी  लिख पान्दू तो वे ते रिकॉर्ड  लेन्दू च। कम से कम विषय त लिख  लेन्दू च। जन 'पलायन' 'दारु' 'केदार'  आदि आदि।          

भी.कु.: आप अपण कविता तैं कथगा दें रिवाइज करदां ?
जी, मी अपरी कविताओं ते एक दुइ बार ही रिवाइज करदु च। गीतों ते जरूर ४ ,५ बार रिवाइज करदु च।     

भी.कु. क्या कबि आपन कविता वर्कशॉप क बारा मा बि स्वाच? नई छिंवाळ तैं गढवाळी
कविता गढ़णो को प्रासिक्ष्ण बारा मा क्या हूण चएंद /आपन कविता गढ़णो बान क्वी
औपचारिक (formal ) प्रशिक्षण ल़े च ?
मीन कभी कुई औपचारिक प्रशिक्षण नि ले कविता गड़णो का वास्ता।  मेरु विश्वास च कि ' कुई कवि बणदू नि च बल्कि वु कवि होन्दु च।' मतलब कि नियम कायदा ता सिखों सक्दन छन पर भावना ता कवि की अपरी ही होंदी। हाँ जख तक कविता वोर्कशोपो प्रश्न च त  एक वर्कशॉप होण  चेन्दी च जै 
मा गढ़वाली साहित्य, गढ़वाली शब्दों का बारा मा जानकारी मिल सके।           

भी.कु.: हिंदी साहित्यिक आलोचना से आप की कवितौं या कवित्व पर क्या प्रभौ च
. क्वी उदहारण ?
हिंदी साहित्यक आलोचना से मैते गढ़वाली कविता मा कई तरह का प्रयोग अर कई तरह का सुधार करणो मौका मिल्दु च। जन 
गढ़वाली मा ग़ज़ल, मुक्तक लिखणो प्रयास।     

भी.कु : आप का कवित्व जीवन मा रचनात्मक सूखो बि आई होलो त वै रचनात्मक सूखो
तैं ख़तम करणों आपन क्या कौर ?
मेरा कवित्व जीवन मा रचनात्मक सूखो जब भी औन्दु च तब मी कुछ नी लिख्दु। छुट्टी लेन्दु च हर तरह का काम से अर तब या त परिवार दगडी कखि घुमन चल जांदू निथिर एकदम इखलु रेंदु एक दुइ दिन, सब्बि से दूर। न मोबाइल न टीवी न ही कंप्यूटर। अर तब यन रेकी मी अफ्फु ते पुनर्स्थापित करदु च।    

(Here the poet took Sukho as happiness and not DRY days in the life of
poet when he can’t create poetry)

भी.कु : कविता घड़याण मा, गंठयाण मा , रिवाइज करण मा इकुलास की जरुरत आप तैं
कथगा हूंद ?

मैते एकांत त जरुर चैंदु किलै की मन मा जू ज्वारभाटा उफन्दु रेंदु वे ते शांत करन वास्ता अकेलापन जरूरी च। अर 
वे ते शांत मी कविता लेखी के ही कर पान्दु च।    

भी.कु: इकुलास मा जाण या इकुलासी मनोगति से आपक पारिवारिक जीवन या सामाजिक जीवन
पर क्या फ़रक पोडद ? इकुलासी मनोगति से आपक काम (कार्यालय ) पर कथगा फ़रक पोडद

मेरा परिवार का सदस्य खासकर म्यार पत्नी स्वाती मैते पूरु सहयोग करदी च। मी सब्बू दगडी सामजस्य बने की चलन वालू व्यक्ति छौं।   कार्यालय मा भी मैते टाइम मिल्दु मी कविता या लेख लिखण बैठ जांदू च। ज्यादा फर्क नी पड़न देन्दु मी।  
  
भी.कु: कबि इन हूंद आप एक कविता क बान क्वी पंगती लिख्दां पं फिर वो पंगती
वीं कविता मा प्रयोग नि करदा त फिर वूं पंगत्यूं क्या कर्द्वां ?
 
वूं ते मी रेण देन्दु, कटदु या डिलीट नि करदु।   

भी.कु : जब कबि आप सीण इ वाळ हवेल्या या सियाँ रैल्या अर चट चटाक से क्वी
कविता लैन/विषय आदि मन मा ऐ जाओ त क्या करदवां ?
रिकॉर्ड करदु च या फिर मोबाइल पर टाइप अर तब हका दिन वे ते पूरु करदूं।   

भी.कु: आप को को शब्दकोश अपण दगड रख्दां ?
अभी त कुई शब्दकोष नि च म्यार दगडी। खोज्णु छौं कुई गढ़वाली हिंदी शब्दकोष।     

भी.कु: हिंदी आलोचना तैं क्या बराबर बांचणा रौंदवां ?
हाँ 

भी.कु: गढवाळी समालोचना से बि आपको कवित्व पर फ़रक पोडद ?
हाँ सुधारो मौका मिल्दु।  उत्साह वर्धन होन्दु च। अर तब नयु नयु काम करने प्रेरणा मिलदी च।  
  
भी.कु: भारत मा गैर हिंदी भाषाओं वर्तमान काव्य की जानकारी बान आप क्या करदवां
? या, आप यां से बेफिक्र रौंदवां
के भी भाषा कू मान वे कू साहित्य ही बडोंदु च। बाकी कू त नि पता पर गढ़वाली मा अभी भिजां काम करने जरूरत च। हम आपरी पछाण ते ही बिसरी गयां। फेसबुक मा पढ़णु कू मौका मिल जांदू कभी कभार आजकला कुछ कविओं की रचना  ते।           
 
भी.कु : अंग्रेजी मा वर्तमान काव्य की जानकारी बान क्या करदवां आप?
 कभी कभार अंग्रेजी काव्य  इंटरनेट  पर पढ़दु  छौं मी।  

भी.कु: भैर देसूं गैर अंगरेजी क वर्तमान साहित्य की जानकारी क बान क्या करदवां?
इंटरनेट पर कभी कभार जानकारी जुटोंदूँ  छौं मी।  
 
भी.कु: आपन बचपन मा को को वाद्य यंत्र बजैन ?
 कुई भी न।  



धन्यवाद।
अतुल  सती  'अक्स'

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments