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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, June 16, 2014

गढ़वळयूं से नेपाली अर बंगलादेशी संस्कृति बचाण आवश्यक च

घपरोळया , हंसोड्या , चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती      
                     
(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )
आमार सोनार बंगलादेश दैनिक  , पौड़ी अंक , दिनांक  16 जून सन 2114, कुछबि बार, पौड़ी ,  

           उत्तराखंड मा पिछ्ला सौ सवा साल से बस्यां नेपाली समाज अर बंगलादेशी समाज  भौत सा खतराऊँ सामना करणा छन।   ब्याळि मंत्री जंग बहादुरन (नेपाली ओरिजिन का)  अल्पसंख्यक मंत्री (ग्रामीण उत्तराखंड ) घना नन्द से भेंट कार अर ग्रामीण गढ़वाल मा अल्पसंख्यक गढ़वालियुं द्वारा बहुसंख्यक नेपाल्यूं  अर बंग्लादेस्यूं का अधिकार हनन की शिकायत कार। विदित ह्वावो कि ग्रामीण गढ़वाल मा अल्पसंख्यक गढ़वाली बहुसंख्यक बंगलादेशी-नेपाल्युं मध्य तनातनी पिछ्ला पिचहतर सालों से चलणि च। गढ़वाल का पुराणा बासिन्दा गढ़वाली यीं बात तैं नि पचै सकणा छन कि अब ग्रामीण गढ़वाल मा गढ़वाल्युं क्वी औकात नी च अर यीं निराशा मा गढ़वाली भौत बार नेपाली -बंग्लादेस्यूं पर लांछन हि नि लगांदन बल्कि भौत दैं आक्रमण करणै मुद्रा मा ऐ जांदन। 
            ज्ञात हो कि गढ़वाल से मॉस माइग्रेसन का कारण सन 2025 तक गढ़वाली गाँव खाली सि ह्वे गे छा।  इन मा गढ़वाल मा अयाँ नेपाली -बंगलादेशी मजदूरोंन अद्धा त्याड़ मा खेती करण शुरू कार अर कुछ साल मा सरा ग्रामीण गढ़वाल की कृषि भूमि पर बंगलादेशी अर नेपाल्युं कब्जा ह्वे गे।  किंतु कुछ गढ़वाली नौकरी का खोज मा भैर नि गेन अर प्रवास्युंन अपण बाप दादों कूड़ु पर कब्जा नि छ्वाड़  अर यांसे ही आज ग्रामीण गढ़वाल मा रोज कखि ना कखि गढ़वाली अर कर्मठ नेपाल्युं -बंग्लादेस्यूं मध्य लड़ाई झगड़ा चलणु रौंद।  बेकार का गढ़वाली अल्पसंख्यक हूण से अल्पसंख्यक क़ानून का गलत फायदा उठांदन अर भूमिवीर नेपाल्युं -बंग्लादेस्यूं पर झूठा आरोप लगैक पुलिस कम्प्लेंट करी दींदन अर यांसे क्षेत्र मा अनावश्यक तनाव फ़ैल जांद।  इनि जब ग्रीष्म ऋतु मा ना इखाक ना उखाक प्रवासीगढ़वालीनागराजा , नरसिंघ पुजणो समूह मा आंदन तो पिचहतर सालों से बस्यां कामगति नेपाली -बंग्लादेस्यूं से अपणी कृषि भूमि वापस मांगदन अर तू तू मै मै से बात अग्वाड़ी बढ़ जांद , बात हाथा पाई से लेकि मारा मारी पर पौंच जांद।  यांसे गर्म्युं मा ग्रामीण गढ़वाल मा क़ानून व्यवस्था चरमराई जांद।  यद्यपि ये बगत ग्रामीण कुमाऊं अर गढ़वाल मा अतिरिक्त पीएसी की बटालियन कु बि इंतजाम हूंद किन्तु फिर बि गर्म्युं मा प्रत्येक गां मा लड़ै -झगड़ा ह्वैइ जांद।  स्थानीय वासी नेपाली -बंग्लादेस्यूं बुलण च कि पीएसी बि अनावश्यक रूप से पक्षपात करदी अर बहुसंख्यकों की नि सुणदि अपितु अल्पसंख्यक गढ़वाल्युं तैं अधिक शरण दींदी , फेवर करदि।  
  भौत सा बगत बेकामौ गढ़वाली प्रवासी सौ -द्वी साल पुरण पेड़ पर अपण कब्जा जमाणै कोशिस करदन अर यांसे बि दंगा फसाद शुरू ह्वे जांद। 
  राणा दंग बहादुर अर निजामुद्दीन कमेटीन सरकार तैं सलाह दे छौ कि ग्रामीण अल्पसंख्यक गढ़वाल्युं तैं देहरादून -ऋषिकेश मा बसाये जाव जांसे ग्रामीण गढ़वाल मा शान्ति स्थापित ह्वे साक किंतु किदल जन कमजोर सरकार अल्पसंख्यकों की ही सुणदि अर बहुसंख्यक कर्मठ नेपाल्युं अर बंग्लादेस्यूं बातुं पर ध्यान नि दींदी। 
             परसि बहुसंख्यक समाज की एक मीटिंग मा चिंता व्यक्त ह्वे कि भौत सा बहुसंख्यक लोग अल्पसंख्यक गढ़वाल्युं नकल करिक नागराजा , नरसिंघ , घड्यळ पूजा करण लगि गेन अर यांसे खासकर बंगलादेशी संस्कृति खतम हूणै कगार पर च अर भौत सा नेपाल्युंन गढ़वाली रिवाज अपनाई याल तो नेपाली संस्कृति पर बि खतरा मंडराणु च।  मीटिंग मा एक मत छौ कि   गढ़वळयूं  से नेपाली अर बंगलादेशी संस्कृति बचाण आवश्यक च ।  
  





Copyright@  Bhishma Kukreti  17/6/2014   

    

*कथा , स्थान व नाम काल्पनिक हैं।  

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