उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Tuesday, October 8, 2013

अरंडी की व्यवसायिक खेती: करोडपति बनने का एक साधन

डा.  बलबीर सिंह रावत

            अरंडी एक ऐसा झाड है जी विभिन्न प्रकार की जलवायु और धरती में पनप जाता है।  खेती के लिए अरंडी की वही प्रजाती सही रहती है जिसके बीज से उत्तम प्रकार का तेल निकाला जा सके. आम प्रचलित भाषा में इस तेल को कैस्ट्रोइल के नाम से जाना जाता है और इसे, सदियों से,एक हानि रहित रेचक के रूप में , बदहजमी दूर करने के लिए, उपयोग में लाया जाता है. गाढा होने के कारण यह तेल धीरे धीरे जलता है तो प्राचीन काल में इस तेल को दीया और मशालें  जलाने के लिए भी उपयोग में लाया जाता रहा है।   अरंडी के तेल से गठिया, कमर दर्द ,साइटिका शूल ,अस्थमा , कुछ स्त्री रोग भी ठीक हो जाते हैं। सौन्दर्य प्रशाधनों के बनाने में भी अरंडी के तेल का उपयोग होता है , इसके अलावा, अपने गाढ़ेपन और , पेट्रोल, डीजल में न घुलने के गुणों के कारण इस तेल के उपयोग से वाहनों और वायुयानों के लिए विशेष घर्षण रोधक,और दबाव झेलने वाले हाइद्रौलिक तेल भी बनाए गए है। कहने का तात्पर्य यह है की अरंडी के तेल की मांग हमेशा बढ़ती रहेगी , तो इसका उत्पादन एक अति लाभकारी व्यवसाय हो सकता है। 

           आज के काल में दुनिया भर में अरंडी तेल उत्पाद दस लाख टन है और इसमें भारत में उत्पादित ८ लाख टन तेल  की भागीदारी है. इसका यह अर्थ हुआ की अरंडी के तेल की, दुनिया के बाजारों में, अच्छी मांग  है।  अरंडी के उत्पादन के लिए भूमध्य सागरीय जलवायु सर्वोतम होती है।  इसकी खेती के लिए पर्याप्त नमी और जल निकासी वाली ऐसी भूमि उत्तम रहती रहती है जिसमे पौधे की जड़ें गहरी जा सकें।    उत्तराखंड के दक्षिणी भागों में इसे आसानी से उगाया जा सकता है. 

अरंडी की खेती के लिए बीज को एक लाइन में एक फीट की दूरे पर और हर लाइन को ४० इंच की दूरी पर रखना  चाहिये.  बोने से पाहिले बीज का फफूंदी माँर दवा से उपचार कर लेना चहिये. खेतों में खाद और उर्वरक डालना भी  जरूरी रहता है। दुनिया भर में अरंडी की आठ किस्मे बोई जाती हैं , भारत  में प्रचलित किस्म के ही बीज मिलते है।  इसके लिए अपने नजदीकी सरकारी उदद्यान विभाग और कृषि विश्व विद्द्यालय से सलाह / सहायता मिलती है /

उपजाऊ खेतों में प्रति एकड़  एक टन बीज का उत्पादन सम्भव है।  अरडी के बीजो में ४०-६०% तेल होता है , अर्थात एक एकड़ खेत से औसतन ५०० किलो तेल का उत्पादन संभव है।  अगर यह तेल ५०/- प्रति किलो के भाव से भी गाँव से ही बेचा जा सके तो किसानों को २५,००० रूपये प्रति एकड़ या लगभग १२-१३०० रुपये प्रति नाली की आय हो सकती है।
लेकिन अकेले एक एक किसान द्वारा अरन्डी के बीजों से आय लेने के व्यवसाय को चलाना संभव नहीं है.  व्यावसायिक खेती के लिए सब से पाहिले निश्चित बाजार का होना अत्यावश्यक है, यह उत्पादकों के ऊपर निर्भर करेगा की वे बीजों को ही  बेचेगे या तेल निकालने का भी  प्रबंध करेंगे।  व्यावसायिक खेती के लिए, पर्वतीय क्षेत्रो में एक ही स्वामित्व का इतना बड़ा क्षेत्रफल नहीं होता, तो एक ही क्षेत्र के कई गाँवो के कई किसानों को मिल कर इस व्यावसायिक फसल की खेती करने से ही लाभ होगा। ऐसे सारे उत्पादक अपनी अरंडी बीज उत्पादक कम्पनी का पंजीकरण करवा के संगठित रूप से धंदा शुरू कर सकते हैं , ऐसे सम्मिलित प्रयास को कई स्रोतों से प्रोत्साहन मिलने में भी सुविधा रहती है।   
उत्तराखंड के नेताओं और अधिकारियों को व्यवसायिक स्तर पर पहड़ों में अरंडी की खेती शुरू करवानी चाहिए। 

dr.bsrawat28@gmail.com      , 

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments