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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, October 15, 2013

गढ़वाळि भाषा त खज्जि वाळ लंडेर कुत्ति (स्ट्रीट डॉग ) च !

चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती 
     
(s =आधी अ )

                           मि आज छै दिन उपरांत नेट  कम्पुटरौ अगनै बैठणु छौं।  अर अपण बाड़ि पऴयो खैक गढ़वाळि मा   रोजौ  तरां चबोड़्या -चखन्यौर्या लेख लिखणो यीं उमेद मा बैठु कि सैत च आज एकाद गढ़वाली म्यार लेखौ  एक लैन पौढ़ी ल्यालु ! मी तै अपण गढ़वाऴयूँ  पर पूरो भरोसा छ कि म्यार लेख क्वी बि गढ़वाली पूरो नि पौढ़ल।  हम गढ़वाळि लिख्वारुं तैं गढ़वाळि पाठकों से  नाउम्मीदी की पूरी उम्मेद रौंदि। फिर  भि कुज्याण किलै गढ़वाळि लिख्वार लिखणा  हि रौंदन  धौं ?
खैर मी बि आम जनता तरां तुम तैं अपण खैरि सुणाण बिसे ग्यों।  मि जाणदो छौं बल जन राजनैतिक नेता आम जनता की खैर सुणिक  बौग सारि द्यूंद ऊनि गढ़वाली पाठक बि गढ़वाळि लेख देखिक आँख मूंजि दींदु अर सभा सोसाइट्युं मा किराणु  रौंद कि गढ़वाळ मा बि लोक अपण आपसम गढ़वाळिम नि बचऴयांदन।  अर यूं रूंदौं तै जब मि पुछदु कि औरुं तो छ्वाड़ो , अपण लौड़ -बाळु बात त जाणि द्यावो , क्या तुम लगातार गढ़वाळि साहित्य बि पढ़दां ? त पता च अमूनन साबि गढ़वाऴयुं  एकी उत्तर  हूंद बल यार भीषम जी ! गढ़वाळि भाषा बि क्वी पढ़णो चीज च। 
जरा गढ़वाली सामाजिक संस्थाओं का अध्यक्ष , महासचिओं तरफ ध्यान से द्याखो त सै !
हरेक गढ़वाली सामाजिक संस्थाउं विजन अर मिसन स्टेटमेंट मा गढ़वाळि संस्कृति अर गढ़वाळि भाषा बचाणो अर गढ़वाळि संस्कृति अर गढ़वाळि भाषा विकास करणै बात लिखीं रौंद। 
हरेक गढ़वाली सामाजिक संस्थाउं सभा मा हरेक पदाधिकारी हाथी जन चिंघाड़दु कि हमर बच्चा गढ़वाळिम नि बचऴयांदन , हरेक पदाधिकारी बमब्याट करदो कि गढ़वाल का गांवुं मा बि गढ़वाळि बुस्याणि च पण  मिनट्स आफ मीटिंगुं का मिनट्स गढ़वाळि छोड़ि हिंदी अर अंग्रेजी मा लिखे जांद, जन कि " आज  की आम सभा में सभी सदस्यों ने गढ़वाली भाषा के ख़त्म होने के आसार पर भयंकर , घोर, घनघोर चिंता व्यक्त की. गढ़वाली के ख़त्म होने के अन्देसे से सभी सदस्य क्याऊं -क्याऊं जैसे रो रहे थे।  अंत में सभी सदस्यों ने समाज के सब तबके से आग्रह किया कि वे गढ़वाली भाषा के विकास के लिए काम करें।  "
मेकुण  भारत मा जगा जगा का गढ़वाली सामाजिक संस्थाउं बरसकुल  वार्षिक सोविनियरूं   मा लेख  आद्युं बान निमंत्रण आन्दन   पण इन नि आंद कि कृपया लेख केवल गढ़वाली भाषा में ही भेजिए।  अमूनन  गढ़वाली सामाजिक संस्थाउं बरसकुल  वार्षिक सोविनियरूं मा गढ़वाली भाषा विकास की बात हिंदी मा ही हूंद।  अमूनन   गढ़वाली सामाजिक संस्थाउं बरसकुल  वार्षिक सोविनियरूं मा गढ़वाळि भाषा  मा   लेख हूंद ही नि छन।  
मीन "गढ़वाली मोरणि च" का बारा माँ  गढ़वाली सामाजिक संस्थाउं रुण -किराण सैकड़ो बार सूण पण एकाद संस्था जन कि गढ़वाल सभा देहरादून छोड़ि क्वी बि संस्था बच्चा -युवाओं तैं गढ़वाली सिखाणो बान कुछ बि प्रयास नि करदी।  
यूँ गढ़वाली सामाजिक संस्थाउं बान गढ़वाळि भाषा इन ब्वे च जैं ब्वेक मोरणै इन्तजार जरूर होणु च पण ब्वेक बीमारी उपचारौ बान क्वै बि संस्था गंभीर नी च।  बीमार ब्वे  बारा मा बेटा जरूर  छ्वीं लगाणा छन," मा तै ग्लूकोज चयाणु च!  ब्वे तै फल चयाणा छन ! मा तै एक बोतल खून चयाणि च ! मा तै हरेक पुत्र से त्याग की आवश्यकता च ! आदि आदि। "
अर जब बुले जावो कि ," जरा अपण  ब्वे क बान एक बोतल खून द्याओ ! माँ का   न्याड़ -ध्वार ही रावो "
त एक पुत्र को जबाब हूँद ," भई खून ही जि दीण त मि हिंदी काकी अर अंग्रेजी आंटी तैं नि द्यूं ।?"
हैंक पुत्रो उत्तर हूंद , " मेरी पूरी इच्छा च बल मि ब्वे का पास रौं , ब्वे की देखभाल करूँ।   पण मि  हिंदी बोडी अर इंग्लिश बौ की  सेवा-टहल मा भौति व्यस्त छौं। "
सबि नौन हुंगारी पुजदन ," हाँ !  हमर बि हाल इनि छन।  हम सब हिंदी ताई अर इंग्लिश सिस्टर इन लौ की सर्विस मा व्यस्त छंवां।  हम सब्युंन सरकारम दरखास्त भेजि आल कि हमर ब्वेकि देख भालs बान डाक्टर , नर्स भेजि द्यावो ! "
हमारा सामाजिक कार्यकर्ता ही ना गढ़वाळि भाषाs  साहित्यकार बि अफु तैं अफिक बेवकूफ बणाणम  माहिर छन , अफिक अफु तैं मूर्ख बणाणम गुरु घंटाल  छन।   
जरा गढ़वाली भाषाs बान अति चिंतित सामाजिक कार्यकर्ता अर गढ़वाळि भाषाs  साहित्यकारूं कथनी  अर करनी मा फरक त द्याखो ! क्या आपन कै गढ़वाली सामाजिक कार्यकर्ताक या गढवाली भाषाs साहित्यकारौ शादी निमंत्रण पत्र  गढ़वाळि भाषा मा बि देखिन ?
अरे जब गढवाली भाषा का चिंतक  शादी का निमंत्रण पत्र भी  गढ़वाळि भाषा मा नि छापांदन तो मेरी समज से इन चिंतक अर साहित्यकार गढवाली भाषाs  बान केवल और केवल झूठी, केवल खोखली , रीति चिंता जतांदन।   हमारा इन सामाजिक कार्यकर्ता अर  गढ़वाळि भाषाs  साहित्यकार चिंतक सब झूठा छन , सबि फरेबी छन।  
असल मा यूं सामाजिक कार्यकर्ता अर गढवाली भाषाsसाहित्यकारुं बान गढ़वाळि भाषा गली कूचा की बगैर मालिकौ  , बगैर सैण -मैसौ  खज्जि वाळ एक लंडेर कुत्ति च।  यी गढ़वाळि भाषाs चिंतक लंडेर कुत्ति की चिंता केवल सभा सोसाइटी की  सभाउं  मा ही दिखांदन अर असलियत मा  यीं गढ़वाळि भाषाs फरेबी , झूठा चिंतक अनाथ,  खज्जि वाळ लंडेर कुत्ति तै छो छो कौरिक दूर भगांदन।  


Copyright@ Bhishma Kukreti  16  /10/2013 



[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य;सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...] 

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