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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, September 12, 2013

पलायन रोकना ,सरकार की प्राथमिकता ... साभार:डा. बलबीर सिंह रावत

पलायन रोकने वाला विकास 
डा. बलबीर सिंह रावत 

उत्तराखंड से पलायन अब अति पलायन की हद में पहुंह चुका है और पर्वतीय क्षेत्रों से सक्षम युवा शक्ति की कमी के कारण पर्वतों से खेती, पशुपालन ,बागवानी तो लुप्त हो ही रही है वहाँ का जमीन, जल, जन्तु वाला पर्यावरण भी असंतुलित होता जा रहा है. इस कारण पर्वतीय आर्थिकी एक कुचक्र में फंस गयी है। जितना ही सक्षम श्रम शक्ति का पलायन होगा उतना ही स्थानीय उत्पादन घटता जाएगा और हर वस्तु के बाहर से आयात पर निर्भरता बढ़ती जायेगी। जितना अधिक आयात होगा उतना अधिक धन कमाने के लिय पलायन तेज होता जाएगा। 

पर्यटन को पर्वतीय इलाकों की आर्थिकी की रीढ़ माना जाता है। लेकिन इस से जो सकल आय होती है उसका लगभग ८०% भाग बाहर से सारे आवश्यक वस्तुओं के खरीदने में लग जाता है. जो उत्तराखंड वियों के भाग में आता है वोह है केवल मानव श्रम का मूल्य , और वोह भी साल में केवल ५-६ महीने के लिये. 

सरकार का सारा विकास नौकरी द्वारा रोजगार दिल सकने तक सीमित है। हुनर प्रशिक्ष्ण के लिए जो पौलीटेक्नीक हैं उनमे स्थानीय उपलब्ध उपजों /संसाधनों के उपयोग का कोंई विषय नहीं पढाया जाता। जो कुल १५ -२० विषय पढाये जाते हैं, वे हर पौलीटेक्नीक में नहीं हैं। इन संस्थानों से निकले विद्यार्थी रोजगार के लिए पलायन करने को मजबूर होते हैं। 

यद्यपि प्रशिक्षण देने वाले अन्य संस्थान, जैसे लघु उद्द्योग, कृषि विज्ञानं केंद्र , खादी बोर्ड, फल सरंक्षण, मौन पालन,दुग्धू उत्पादन, मत्स्य पालन इत्यादि अपनी अपनी जगहों पर स्थित हैं , लेकिन इनके उत्पाद बाजार में कहीं नजर नहीं आते , कुछेक उत्पाद बिकते हैं, केवल एक दो उनकी अपनी दुकानों में और ग्राहक नजर नहीं आते। इन उत्पादों की गुणवता और मूल्य में, ऐसा लगता है जैसे कि बैर हो। एक दुसरे को नकारते हुए लगते हैं। 

नौकरी से रोजगार उपलब्ध करा के पलायन को कम करने का प्रयास जितना प्रभावहीन है उतना ही हास्यास्पद भी बना दिया गया है। नौकरी देने वाला कोई भी उद्द्योग, धंदा पर्वतीय क्षेत्रों में अगर है तो वोह है, दुकानदारी, होटल ढाबे , यातायात (चालक परिचालक ), निर्माण कार्यों की ठेकेदारी, मजदूरी , या थोडा बहुत सरकारी नौकरी ( (अवकास प्राप्त कर्मचारियों के रिक्त स्थान भरने , और यदा कदा नए सृजित पद), मजदूरी के , मकान बनाने के और लोहे के कामों में तो दूर दूर के प्रदेशों के लोगों ने कब्जा कर रखा है, बाकी के उपलब्ध स्थान साल में २५-३० हजार से अधिक नहीं हो सकते। अर्थात जितने नए बेरोजगार श्रम बाजार में आये , उनके आधे से कम ही रोजगार पा सकते हैं ?

स्थिति निराशाजनक है, लेकिन बस में करने योग्य है , अगर, जी हाँ , अ ग र, सरकार पर्वतीय क्षेत्रों में स्थानीय उपजों, वस्तुओं के उत्पादन, प्रसंसकर्ण , विपणन, के हुनरों के प्रशिक्षण , तकनीकियों की उपलब्धता और प्रचार प्रसार की व्यापक व्यवस्था और स्थानीय युवाओं युवतियों की उत्पादक कम्पनियां बनाने के लिए प्रोत्साहन देने के कार्यक्रम शुरू करके, स्वरोजगार द्वारा पलायन रोकने के लिए गंभीर उपाय करने की सोचे, और उसे जन सहयोग से संचालित करे. 

मेरे अनुमान से अकेले हमारी बन उपज के समुचित और सम्पूर्ण दोहन/पोषण के व्यवसायों में हर साल पचास हजार युवा प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से जोड़े जा सकते हैं . उन , फल, साक सब्जी, जडी बूटी , कुटीर और लघु उद्द्योग गाँव गाँव में फैलाए जा सकते हैं। और, सारे स्वरोजगारी परिवार भी , प्रतिपरिवार एक रोजगार हर साल सृजित कर सकते हैं। 

सवाल उठता है, इतनी सी साधारण बात सरकार की समझ में क्यों नहीं आती ? काफी सोचने मनन करने के बाद जो मेरी समझ में आया , वोह है : सरकारों में लगे मंत्रियों,अधिकारियों में पर्वतीय विकास की दूर दृष्टि, और कुछ नया करने के साहस का नितांत अभाव है । परम्परागत विकास प्रणाली , जो मैदानी क्षेत्रों में दशकों से चली आ रही है , जिसे पुराने उत्तरप्रदेश की सरकार ने भी अपना रखा था, और , जिस से छुटकारा पाने के लिए जनता ने अपने उत्तराखंड राज्य की प्राप्ति की थी, वही मॉडल अब भी चल रहा है , कि "अव्स्थापना की मूल भूत सहूलियतें दे दो, लोग अपने अपने रोजगार स्वयम ढूंढ लेंगे"। 

जहां परिवारों के रोजगार स्थापित हैं वहाँ यह मॉडल कारगर हो सकता है, लेकिन जहां पर्वतीय पारंपरिक भरण पोषण वाली खेती आय का साधन नहीं हो सकती , और जिस प्रदेश के लोग केवल नौकरी के पेशे से ही भिज्ञ हो , वहा परिवारों के स्वरोज्गारों के व्यवसायों को स्थापित करना नया काम है, जिस को स्थापित करके सफल बनाना सरकार का ही उत्तरदायित्व है. सरकार पहल करे, नए व्यवसायों के सफल इकाइयों का प्रदर्शन करके अन्यों को प्रोत्साहित करे। तभी पलायन रुकेगा। जो प्रवासी हो गए , उनमे से १०% तक ही लौटेंगे, अतः जो परिवार वहा रुके हैं उन्हें ही ले कर आगे बढना श्रेयकर होगा। 

क्या कोइ उपरोक्त को पढ़ कर कुछ सक्रियता लाने का प्रयास करेंगे? 
dr.bsrawat28@gmail.com

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