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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, September 8, 2013

समाजवादी भितर खंड कविता

इस कालजयी कविता को भी गढवाली काव्य को आधुनिक बनाने का सहयोगी कविता माना जाता है 
 
 समाजवादी भितर खंड
कवि : स्व  विनोद उनियाल  (जन्म -1957 , अमाल्डु , डबराल स्यूं )
बिर्जु दा  कि 
फटीं कुर्ति /फटीं सुलरि 
समाजवादै खोज मा /मैदानु मा ऐ ग्ये।  
वे की फटीं टुपली 
बदलेगे खादी सफेद टोपि मा 
कुर्ति -खादी कुर्ता झकाझक 
अर सुलरि -चम्म सुलार ! 
बिर्जु दा /अब पक्कू बगुला भगत 
बृजमोहन बण्यु च 
मैदानु मा रै कि 
पहाडै कल्पना हूणी च 
ऊंचि  ऊँचि डांड्युं माँ 
कागजी कुआं खुदेणाँ छन 
अर तब /व्याख्यान दियेणा छन 
ऊं बिर्जु थैं 
जौंक गात पर /फटीं कुर्ति बि नी च 
भुलौं ! / टक लगै सुणों 
समाजवाद सुदि नि आंद 
यांक बान 
खाण पुड़दि -खैरि सुसगरि 
ख्यलण पुड़दीं -कतनै खंड 
बदलण पुड़दीं-दल-क -दल 
जन कि /मि थैं हि देखि ल्यावदि 

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