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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, August 25, 2013

गढ़वाली-कुमाउंनी व राजस्थानी लोकगीतों में ढोल /ढोलक विषय

  राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग-8    


                                           भीष्म कुकरेती 



                   एशिया में ढोल , ढोलक लोक  संगीत का मुख्य अंग हैं । इसीलिए लोक  ढोल या ढोलक   विषयी गीत बहुतायत से मिलते हैं । यहाँ तक कि फिल्मों में भी ढोल /ढोल विषयी गीत मिलते हैं ।


                                  राजस्थानी  लोकगीतों में ढोलक विषय

   राजस्थानी लोक गीत तन और मन से सुन्दर नारी में सौन्दर्य की मधुर अभिव्यक्ति करने कला  प्रति स्वाभाविक आकर्षण का उक सुन्दर उदाहरण है । राजस्थानी लोक गीत इंगित करता है कि गीत , संगीत और नृत्य का मानसिक प्रवृति के साथ घनिष्ठ संबंध है एक सौन्दर्य   उपासक नारी अपने प्रिय से ढोलक बजाने का  करती है  ढोलक  बजाने के आग्रह में स्वाभाविक समर्थन भरा है  नारी कहती है कि हे प्रिय तू ढोलक ढमका और मै  तरह के श्रृंगार कर साथ चलूंगी । 


थे ढोलक्ड़़ी ढमका दयो 
मै वारी जाऊं सा मै वारी जाऊं सा
बलिहारी जाऊं सा । थे ढोलक्ड़़ी ढमका दयो
बादल म्हारो लंहगा जी , किरण है मारी मगजी 
मै तारागण रा झुमकां झुमकती चलूंसा थे ढोलक्ड़़ी ढमका दयो
चालूं तो कहियाँ चालूँ चंद्रमा म्हारे लारे,
मै कोयल कूक सुनाती चलूंसा । थे ढोलक्ड़़ी ढमका दयो
मैं  निर्मल पानी थे म्हारो छो किनारा 
मैं कामणजारी नैनों मिलाती चलूंसा  
थे ढोलक्ड़़ी ढमका दयो ,मै वारी जाऊं सा 


                       गढ़वाली   लोकगीतों में ढोल /ढोलक विषय

                
             कुमाऊं- गढ़वाल में संगीत वाद्य यंत्र बजाने वाले औजी /दास, हुडक्या   व बादी व्यावसायिक जाती के होते थे 
। दास या औजी ढोल -दमाऊ के विशेषज्ञ होते हैं , हुडक्या हुडकी व बादी ढोलक के ज्ञाता होते थे। ढोल धार्मिक अनुष्ठानो में एक आवश्यक वाद्य यंत्र है 
 निम्न गढ़वाली लोक गीत साक्षी है कि ढोल की थाप पर हिमालय थिरकता है 
 ढोल बाजी , त धिम्म त धिम्म । ढोल बाजी , त छन्न त छन्न 
ढोल बाजी , त धम्म धम्म 
ढोल बाजी , त थर्रा  त थर्रा 
ढोल बाजी , त आजी बजै द्ये 
ढोल बाजी , भलु प्यारु मान्यन 
ढोल बाजी , म्येरा कान खुलीग्या  
ढोल बाजी , म्यरा मन हरीग्यो …… ….
-------अनुवाद ------
ढोल बजा,  त  घिम्मा त घिम्मा 
ढोल बजा,  त छन्ना त छन्ना 
ढोल बजा,  त  घिम्मा त घिम्मा 
ढोल बजा,  त थर्रा त थर्रा 
ढोल बजा,  त फिर बजा दे 
ढोल बजा,  त अच्छा प्यारा प्रतीत होता 
ढोल बजा,  त मेरे कान खुल गए 
ढोल बजा,  त मेरे मन का हरण हो गया । ……

कुमाउंनी  लोकगीतों में ढोल /ढोलक विषय 
इसी तरह एक कुमाउंनी लोक गीत भी ढोल के बारे में इस प्रकार कहता है -
बिजैसार ढोल क्या बाजो , 
यो घूम -घूमा ढोल क्या बाजो 
ढोल की शबद जो सुन ,
खोली को गणेश जो नाचे 
बिजौ सार ढोल क्या बाजो , 
अनुवाद --
बिजैसार ढोल क्या बजा 
 घूम घूमा ढोल क्या बजा 
ढोल के शब्द सुनकर खोली का गणेश नाचा

संगीत में वाद्य यंत्र व उनकी धुनों का उपयोग और प्रभाव पर  राजस्थानी , गढवाली -कुमाउंनी क्षेत्रों में लोक गीत  हैं 

Copyright@ Bhishma  Kukreti 24/8/2013 

सन्दर्भ -
लीलावती बंसल , 2007 , लोक गीत :पंजाबी , मारवाड़ी और हिंदी के त्यौहारों पर गाये जाने वाले लोक प्रिय गीत 
डा नन्द किशोर हटवाल , 2009 उत्तराखंड हिमालय के चांचड़ी  गीत एवं नृत्य ,विनसर पब क. देहरादून
डा शेर सिंह पांगती , जोहार के स्वर

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