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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, August 12, 2013

जादा खतरनाक डौ

 चबोड़्या -चखन्योर्या -भीष्म कुकरेती 


              अचकाल कखिम बि बाँचो भौं भौं किस्मुं डौरूं छ्वीं लगणा रौंदन I भौं भौं मीडिया - माध्यमुं मा बि दुनिया का वास्ता कु कु डौर जादा डरौण्या छन पर विस्तार से छ्वीं लगणा रौंदन I 

               सबसे जादा बहस का मुद्दा च - ग्लोबल वार्मिंग याने धरती क अंदादुंद रूप से  तचण  या पृथ्वी मा बेहिसाब गर्मी हूण ! इख पर सबि  सहमत छन बल धरती बिंडी तचण मिसे गे I धरती गरम हूण से माहौल खराब हूणु च I लोग डरणा छन बल ग्लोबल वार्मिंग से समोदरो पाणि उंचाई बढी जाली , धरती जादा तचण से रेगिस्तान बढ़ी जाला, आइस ग्लेसियर पिगळ जाला आदि आदि I 
         भै ग्लोबल वार्मिंग तैं त रुके सक्यांद अर जरुर हम धरती क तचण  द्योला I पण जब धर्म का नाम पर राजनीतिक -धार्मिक नेता रोज रोज लोगुं खून गरम करणा रौंदन , धार्मिक उन्माद से माहौल गरम करणा रौंदन वो धरती तचण या ग्लोबल वार्मिंग से जादा खतरनाक च I मि तैं ग्लोबल वार्मिंग से उथगा डर नि लगद जथगा भय जातीय अर धार्मिक उनमादी गर्मी से लगद I ग्लोबल वार्मिंग तैं त भौतिक रीतियों से कम या ठीक करे सक्यांद पण धार्मिक अर जातीय गर्मी तो एक दै  लगी तो फिर ठंडी होंदि ही नी च I धार्मिक अर जातीय गरमी त मड़घट जैक बि शांत नि हूंद I 
        अब जब ग्लोबल वार्मिंग की बात होलि तो  की तेजाबी बारिश की भी छ्वीं लगल ही I लोग तेजाबी बारिश से डरणा छन  पर मि मनिखों जीब से निकऴयूँ तेजाबी  शब्दों से जादा डर्युं छौं I तेजाबी बरखा को तो इंतजाम ह्वे जालो पण मनुष्यौ मुख से तेज़ाब रूपी शब्दों अर जहरीला बचनो क्या ह्वालु ? अर अजकाल तो नेताओं मा तेज़ाब से बिंडी जहरीला बचन बुलणो प्रतियोगिता चलणि च I यूं  तेजाबी बोल बचन रुकणौ क्या ह्वालु ? ये तेजाबी बचन त तेजाबी बरखा से जादा डर्यौण्या छन I 
     बहुत सा पर्यावरणवादी  डरणा छन बल  दुनिया से सैकड़ों जानवर अर पेढ़  पौंधों जाति  (Species ) ही ख़तम हूणा छन अर मि डरणु छौं कि मनख्यात से इमानदारी ही खतम हूणी च क्या ह्वालु ?
   सबि परेहान छन बल हमर प्राकृतिक ऊर्जा  ख़तम हूणा छन मि रूणु छौं कि हमर समाजौ अर राजनीति का ठेकेदार युवाओं की ऊर्जा तैं विध्वंसक कार्यों मा लगाणा छन वांक क्या करे जालु  ?
    चिंतक चिंतित छन बल वातावरण मा गिरावट याने इनवायरेंनमेंट डिग्रेडेसन  शुरू ह्वे गे I अर मि फिकरमंद छौं कि  हमर सामाजिक अर संगठनात्मक दुनिया मा तेजी से ज्वा गिरावट आणि च वीं गिरावट तैं रुकणो क्या करे जावो ?
   अनुभवी लोग अनुभव करणा छन कि रासायनिक अर न्यूक्लियर हथियार मनुष्यता का बान अति हानिकारक छन I अर मि परेशांन  छौं कि जु हमर ख्वाब झुळसणा छन  , हमर उम्मीद जळिक भसम हूणा छन वैको क्या तजबिज होलु ?
   जणगरा हम तैं चितळ करणा छन कि इलिक्ट्रीकल वेस्ट , फैक्ट्री वेस्ट , मल मूत्र वेस्ट , समुद्र मा कूड़ा करकट या अन्य हौरि जगों मा वेस्ट जमा हूणु च वो खतरनाक च अर जणगरा राय दींदन बल वेस्ट मैनेजमेंट पर ध्यान दीणो शक्त आवश्यकता च I मि दुखि छौं कि संसद अर विधान सभाओं मा  जो समय वेस्ट हूणु च वांकु क्या उपाय च ?
सरा दुनिया का चिंतक , बुद्धिजीवी शहरीकरण को ओवर पोपुलेसन से डरयाँ छन अर हरेक (मी बि ) छुट शहर से बड़ो शहर जाणो आस मा छन I 

लोग कैंसर , एड्स से डर्यां छन अर मि मि ज़िंदा ह्वेक बि अपण भितर मरीं मनख्यात  से डर्युं छौं I  

आपक क्या हाल छन ? आप के से डर्यां छंवाँ ? 

Copyright @ Bhishma Kukreti  13/8/2013  

 [गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी 

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