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Sunday, August 25, 2013

गढ़वाली-कुमाउंनी व राजस्थानी लोकगीतों में नारियों का आभूषण -वस्त्र आकर्षण

राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग-9    


                                           भीष्म कुकरेती 


   सौन्दर्य नारी का प्रदत्त गुण है । सुंदर नारी में सौन्दर्य  प्रति सजकता एक स्वाभाविक गुण है । सौन्दर्य  वाले साधन आभूषण व वस्त्र प्रति आकर्षण लाजमी है । यही कारण है कि गढ़वाली -कुमाउंनी और राजस्थानी लोक गीतों में सौन्दर्य प्रसाधन माध्यमों  की मांग के गीत मिलते हैं  आभूषण  अपने व दुसरे के मन मोहित करते हैं । आभूषणो को अंग-भाग  ही मान कर चला जाता है अत: लोक में आभूषणो के प्रति आकर्षण  गीत स्वाभाविक हैं । 

                                          
राजस्थानी  लोकगीतों में  नारियों का आभूषण -वस्त्र आकर्षण       
 निम्न रास्थानी लोक गीत में पति से एक नवविवाहिता सौन्दर्य साधनों की मांग करती है और बदले में समपर्ण देने की सौगंध भी खाती है 
म्हाने , चूंदण मंगा दे ओ,  ओ ननदी के वीरा 
थाने यूँ थाने यूँ 
थाने यूँ घूंघट पै राखूँगी ओ ननदी के वीरा 
म्हाने बोर लो घड़ा दे ओ ,ओ ननदी के वीरा
थाने यूँ थाने यूँ
थाने यूँ माथे पै राखूँगी ओ ननदी के वीरा 
म्हाने हंसूली घड़ा दे ओ ,ओ ननदी के वीरा 
थाने यूँ थाने यूँ
थाने यूँ छाती पै राखूँगी ओ ननदी के वीरा 
म्हाने चूड़लो पहरा देओ , ओ ननदी के वीरा 
थाने यूँ थाने यूँ
थाने यूँ हाथां पै राखूंगी ओ ननदी के वीरा 
म्हाने घाघरो सीमा दे ओ ननदी के वीरा 
थाने यूँ थाने यूँ, थाने यूँ थाने यूँ
चाली पै राखूँगी ओ ननदी के वीरा 

( ननदी = नणद, 
वीरा = भाई ,थाने =-तुम्हें, सीमा =सिलवा, हंसुली = गले का जेवर )

 इस राजस्थानी  लोक गीत में  प्रमाणित भी होता है कि प्रत्येक प्राणी अपने आकर्षण विन्दु-चिन्ह भी विकरणित करता जाता है 

                गढ़वाली-कुमाउंनी  में नारियों का आभूषण -वस्त्र आकर्षण  

  कुमाउंनी-गढ़वाली लोक गीतों ,इ आभूषण -वस्त्र आकर्षण संबंधी कई प्राचीन गीत आज भी प्रचलित हैं ।

  ----------------- चल बिंदा साइ मेरी पधानि ---------------

चल बिंदा साइ मेरी पधानि । 
जब ल्यालै नाक की नथुली । 
चल बिंदा साइ मेरी पधानि ।
जब ल्यालै आंग की अंगिया ।
तब भिना मै तेरि पधानि
 
चल बिंदा साइ मेरी पधानि ।
जब ल्यालै कान मुनाड़ा ।  तब भिना मै तेरि पधानि।   चल बिंदा साइ मेरी पधानि ।
जब ल्यालै गाळ की सूतिया । 
तब भिना मै तेरि पधानि। 

 चल बिंदा साइ मेरी पधानि ।
जब ल्यालै हाथुं की चूड़ियाँ ।
तब भिना मै तेरि पधानि। 
---------------------अनुवाद --------------------
चल बिंदा  साली मेरी पधानि । 
जब नाक की नाथ लाओगे 
तब जीजा मैं तेरी पधानि 
चल बिंदा  साली मेरी पधानि ।
जब शरीर की अंगिया लाओगे।
तब जीजा मैं तेरी पधानि 
चल बिंदा  साली मेरी पधानि ।
जब कान के मूंदड़े लाओगे। 
तब जीजा मैं तेरी पधानि 
चल बिंदा  साली मेरी पधानि ।
जब गले की सुतिया लाओगे। 
तब जीजा मैं तेरी पधानि 
चल बिंदा  साली मेरी पधानि ।
जब हाथ की चूड़ियाँ लाओगे 
तब जीजा मैं तेरी पधानि । 

 इस  हैं कि राजस्थानी और गढ़वाली-कुमाउंनी लोक गीतों में मानवीय मनोविज्ञान जैसे सौन्दर्य वृद्धि में आभूषण व वस्त्रों का योगदान , मानवीय  जन्य आभूषण आकर्षण आदि का पूरा ख़याल रखा गया है। 




Copyright@ Bhishma  Kukreti 25/8/2013 
सन्दर्भ -
लीलावती बंसल , 2007 , लोक गीत :पंजाबी , मारवाड़ी और हिंदी के त्यौहारों पर गाये जाने वाले लोक प्रिय गीत 
डा नन्द किशोर हटवाल , 2009 उत्तराखंड हिमालय के चांचड़ी  गीत एवं नृत्य ,विनसर पब क. देहरादून

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