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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, August 6, 2013

पारम्परिक समाज अर हवा मांगक (वर्चुअल ) समाज

चबोड़्या -चखन्योर्या -भीष्म कुकरेती 

            इन कबि नि ह्वे कि मिनख द्वी तरां समाज मा रौंदु ह्वा धौं I इन कबि नि ह्वे कि मनिख मृत्युलोक मा बि रावो अर देवलोक मा रम्भा दगड़ रम्बा -सम्बा नाच बि नाचणु  रावो I हां एक  दै विश्वामित्रन महर्षि बणनों बान एक हैंक लोक बणै जरुर छौ अर वै तैं हम त्रिशंकु लोक बुल्दवां I इन बोदन बल त्रिशंकु लोक छैं बि च अर नि बि च I इनि इंटरनेट लोक बि च जु छैं त च पण कख च कै तैं नि पता ! बस इंटरनेट छैं च I 

  इंटरनेट मा बि समाज च अर यु समाज च पण पारम्परिक समाज अर हवा माँगक समाज मा कुछ समानता छन तो भौत सा बातों मा असमानता बि च I 

असली समाज अब उथगा असली नी च अर वर्चुअल सोसाइटी   हवा माँगक समाज उथगा नकली नि  रै ग्यायि जथगा लोक सुचदा छा I कबि कबि त इन लगद कि वर्चुअल समाज जादा असली च I 

  नेट समाज अर पारम्परिक समाज मा समानता या च कि दुयुं मा नब्बे टका छ्वीं बेकार , बकबास, बकवाद , हूंदन जै तैं  छूं ना कुरुड़ बुले जांद I  

आपन पारम्परिक छुयाँळु  मादे देखि होलु कथगा हि छुंयाळ एकि रट लगांदन और सुणा क्या हाल छन ? नेट सोसल मीडिया मा बि कथगा इ लोग बस गुड मौर्निंग या सुनाओ क्या हाल हैं दोस्तों तक ही सीमित रौंदन I 
गप लगाण वाळ तैं गपास्टी , गपोड्या बोले जांद छौ अर गप समौ बरबाद करणों एक माध्यम माने जांद छौ अर आज इंटरनेट का गपोड्यों तैं चैटैड्या बुले जांदI  चैटैड्योँ तैं बि भलु नि माने जांद I 

पारम्परिक समाज मा  दगुड़ बणाण सौंग नि होंद बलकणम  कठण होंद पण नेट मा  दगुड़ खुज्याण सरल च I अब त इन्टरनेट माँ दगुड़ या दोस्त की परिभाषा ही बदल गे I अब बुले जांद चलो जरा फ्रेंड करे जावो या लेट अस फ्रेंड याने नेट पर दगड्या करे जावो . अब फ्रेंड या दगड्या संज्ञा नी च बलकणम  वाचक ह्वे ग्यायि I परसि  मीन एक पारम्परिक दगड्या कुण फोन  कार त वैन बोलि बल भीषम  जरा थ्वड़ा देरम फोन कौर आइ ऍम फ्रेंडिंग याने कि   मि फ्रेंड्याणु या  दगड्याणु छौं I नेट मा ब्याकरण कखन से कख पौंछि गे I  

नेट समाज मा 'LIKE ' अब क्रिया नि रै ग्याइ बलकणम संज्ञा ह्वे ग्याइ I अब हम 'LIKE' दीन्दा या लींदा I पेल बुले जांद छौ मि त्यार इख औलु त तू क्या देलि अर तु म्यार इख ऐलि त क्या लैलि I अब नेट पर इन लिखे जांदो -मीन त्वे तैं दस दै 'LIKE' देन अर तीन अबि तलक मै तैं एक बि 'LIKE ' नि दे , अब मीन त्यार दगड़ नि फ्रेंड्याणाइ ( I not frenduig  with you ) I
 
 पारम्परिक समाज मा   काका -ब्वाडा रिश्ता हूंद इख इन रिश्तेदारी कमि होंद I हां   क्षेत्रीय ब्लौग मा तुम तैं काका -ब्वाडाक रिश्तेदारी मीलि जालि I 
चौंतरा मा जब बिंडी लोग बैठिक गप लगावन तो कुछ पुरण बैरि बि हूंदन जो तुम कुछ बि बोलिल्या वो तुमर काट जरुर कारल I  इनि सॉसल मीडिया मा बि च I पप्पू अर फेंकू बैर्युं उदाहरण छन  जो पारम्परिक बैरी छन I 

हमर गां मा एक ददा जी छया जौंक इख छ्वारा बैठ्यां रौंद छा, तमाखु पीण सिखदा छा अर बेझिझक तमाकु पींदा छा दगड़म छ्वीं बि लगांदा छा I सरा गाँ वाळ वै ददा तैं 'लौड़ बिगाड़ु  ' बुल्दा छा I  आज नेट सोसल मीडिया तै 'छोरा -छोरी ' बिगाड़ु बुल्दन I 
जुआर्युं तास चौपड़ की बैठ्वाक भलि नि माने जांद छे त अचकाल नेट माँ उपलब्ध 'जुआ' का विरुद्ध बि समाज विरोध करणु रौंद I   
चौंतरा मा बैठिक कथगा हि नौनी -नौन्याळु  जोड़ी खुज्याये जांद छे आज इन्त्र्नेत जोडी खुज्याणो  बडु माध्यं ह्वे गे I 
अपण अपण लगाण अर हैंकाक नि सुणण द्वी समाजों मा इकजसी समानता च  I 
आलोचना -प्रशंसा द्वी जगा इकसनी छन I   
पारम्परिक बैठ्वाकम जो तुमन हैंकाकि बात नि सुणनाइ या जबाब नि दीणाइ   त बौग मरण पोड़द  त नेट पर डिलिट करण पोड़द या मेल ब्लौक करण पोड़द I   

कुछ लोग अबि बि सोसल  मीडिया क्या इन्टरनेट तैं बेकार माणदन यी बाबा आदम जमाना का लोग छन I 
इनि भौत सि बात छन जो पारम्परिक चौपाल -की- कछेड़ी मा बि छन तो इंटरनेट -की -कछेड़ी मा बि छन अर कुछ गुण /चरित्र दुयुं मा बिलकुल अलग अलग  छन I       


Copyright @ Bhishma Kukreti  7/8/2013 

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