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Monday, August 19, 2013

राजस्थानी गढ़वाली-कुमाउंनी लोकगीतोंमें पूर्बज पूजा लोक गीत

राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग- 3 


                                           भीष्म कुकरेती 

                   राजस्थानी लोकगीतों में पूर्बज पूजा लोक गीत 

           राजस्थानी लोक गीत मर्मग्य डा जगमल सिंह लिखते हैं कि लोक जीवन में मृत व्यक्तियों की पूजा की जाती है ।  झुंझार जी की पूजा भी इसी परंपरा में आती है ।  राजस्थानी लोक गीतों के दूसरे  विद्वान व्याख्याकार मोहन लाल व्यास शास्त्री ने भी राह्स्थान में  पूर्वजों की पूजा संम्बन्धी लोक  गीतों का संकलन किया और इन लोक गीतों की व्याख्या व्याख्या भी की ।
 पूर्वजों की आत्मा का पूजन लोक परम्परा में रत जगा किया जाता है और रात्रि जागरण में पूर्वजों अथवा पितरों की गीत गाये जाते हैं ।

राजस्थानी जन मानस  विश्वास होता है कि पूर्वज पुन्ह उसी घर में जन्म लेते हैं । निम्न लोक गीत जो की पितृ  पूजा में गाया जाता है उस लोक गीत में में पूर्वज द्वारा पुनर्जनम लेने की बात की गयी है 
धरम दवारे ओ रूड़ी पीपला जी 
जठे पूरवज करे विचार 
    xxx                 xx
जास्यां -जास्यां शंकर  पेट 
तो वांरी बहु लाड्यां की खुंखां हुलस्यां जी
यह गीत रात्रि जागरण में गाया जाता है  ।
गीत का मंतव्य है कि पीपल वृक्ष के नीचे खड़े पूर्वज विचार विमर्श  करते हैं कि वे शंकर जी की पत्नी के गर्भ में जाने की बात करते हैं और कहते हैं कि उनकी पत्नी की कोख में जन्म लेकर हुलसेंगे ।
 
     पूर्वजों की पूजा हेतु राजस्थान या पौराणिक वीर पुरुषों या वीरांगनाओं के गीत भी गाये जाते हैं । इन्हें झुंझार जी गीत भी कहा जाता है (J . Kamphrst , 2008 )। पाबू जी झुंझार लोक गीतों में चौदहवीं सदी  के वीर नायक पाबू जी लक्ष्मण के अवतार माने गए हैं याने कि पाबू जी लोक कथाओं में भी पुनर्जन्म का समावेश है ।
मेवाड़ में झुंझार देवता उसे कहा जाता है जिसने गाँव की रक्षा या गाँव के पशु रक्षा हेतु बलिदान दिया हो और मृत्यु को प्राप्त हुआ हो । जैसलमेर में झुंझार देव्ताअप्ने समय में समाज हेतु संघर्ष करता है और संघर्ष रत मृत्यु प्राप्त होता है । राजस्थान में झुंझार , भूमियो , भूमिपाल और क्षेत्रपाल या खेत्रपाल एक ही श्रेणी के देवता हैं याने ये सभी ग्राम रक्षक देवता है ।
पाबू जी  लोक गाथा की  निम्न पंक्तियाँ दर्शाती हैं कि वीर पुरषों की याद में पूर्वज पूजा सम्पन होती है जैसे गढ़वाल -कुमाऊँ में 'हंत्या घडेला -  जागर' में समाज या उत्तराखंड के वीर पुरुषो को याद कर र पूजा अनुष्ठान सम्पन होता है ।

जिमदा पाला विमनाई जगजीती जुद्ध जैवमाता जगजीति 
याने कि तुम दोनों (जिमदा और पाबू जी ) वीर हो , नायक हो और युद्ध जीतने में माहिर हो ! 
राजस्थान में भी पूर्वज पूजा का एक उदेश्य पूर्वजों की भटकती आत्माओं या अतृप्त आत्माओं को परम स्थान हेतु अनुष्ठान किये जाते हैं और वे अनुष्ठान लोक गीत शैली में होते हैं ।

                      गढ़वाली -कुमाऊनी लोक गीतों में पूर्वज पूजा 


गढ़वाल -कुमाऊँ में पुव्जों का पूजन एक विशेष धार्मिक , अनुष्ठान और आयोजन होता है जिसे हंत्या घड्यळ कहते हैं। हंत्या घड़ेला अनुष्ठान  पूर्वज की भटकती आत्मा की शान्ति या अतृप्त आत्मा को यथोचित संतोष हेतु होता है । घडेला में जो लोक गीत गाये जाते हैं उन्हें जागर कहते हैं । घडेला का अर्थ है देवता को नचाना । जागरी डमरू और थाली बजाने के साथ जागर (धार्मिक लोक गीत ) गाते हैं और एक या कई मनुषों के शरीर पर मृतक की आत्मा घुस आती है और वह (पश्वा ) नाचता है 
इन जागरों में जागर किसी ख़ास पौराणिक व्यक्ति जैसे अभिमन्यु मरण जैसी लोक गाथाओं के गायन , संगीत व नृत्य होते हैं होता है ।
मृत पूर्वजों की आत्मा शान्ति हेतु   लोक गीत रणभुत भी होते हैं जैसे कि राजस्थानी मे पाबू गीत पूजा होती है । रणभुत लोक गीतों  में क्षेत्रीय वीर पुरषों का गान होता है जैसे जीतू बगड्वाल जागर या रणरौत अथवा कैंतुरा जागर  आदि ।


   रवाईं में हंत्या  जागर -भाग 

मामी तेरी छुटी पड़ी चाखोल्युं की टोल।
तेरो होलो केसों मामी इजा को पराण।
तेरो होलो केसों मामी इजा को पराण।
त्वेको आयो पड़ी मामी काल सी ओ बाण।
काल सी छिपदो मामी रीट दो सी ओ बाण।
सोची होलो मामी तै हरस देखऊं।
यख मं बैठी रो तेरो बांको माणिस।
के कालन डालि मामी जोड़ी मां बिछाऊँ।
भैर  भीतर मामी देखी ज तू अ क्वैक।
देखी भाळी जाई मामी आपड़ो बागीचा।
इस लोक गीत में एक औरत की अकाल मृत्यु  हुयी है और उस  मृतक आत्मा की शांति हेतु घड़ेला रखा जाता है । जागरी मृतक के बारे में हृदय विदारक  गाथा इस प्रकार सुनाता है -
हे प्रिय (मामी -प्रिय सूचक शब्द ) ! पक्षियों का झुण्ड अब तेरे से छूट  गया है । हे प्रिय ! तेरा माँ का ममत्व युक्त प्राण कैसा होगा  । तेरे लिए वह काल बाण कैसे आया  । यह काल छिपकर और घूम घूम कर कैसे आया होगा  । यह काल तुझे ढूंढता रहा  । तूने सोचा होगा मै अपने परिवार में सबका हर्ष देखूंगी  । यहाँ तेरा सुन्दर पति बैठा है  । किस काल ने तेरी जोड़ी में बिछोह डाला  । हे प्रिय ! तू बाहर भीतर सुदर तरह से सब जगह देख जा और भाव से अपने बगीचे (परिवार ) को देख जा  ।
इस तरह हम पाते हैं कि राजस्थानी , गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों में पूर्वजों की पूजा के कई प्रकार के गीत हैं। कुछ गीत पौराणिक हैं , कुछ गीत लोक इतिहास पर आधारित है,कुछ गीत स्थानीय वीरों-नायक -नायिकाओं जो  देव तुल्य हो गये हैं या लोक देव बन गए हैं पर आधारित है और कुछ गीत अत्यंत स्थानीय  होते हैं। अतृप्त परियों आदि के गीत भी पूर्वज गीतों में आ जाते हैं ।

Copyright@ Bhishma  Kukreti 19/8/2013 

सन्दर्भ 
 
डा जगमल सिंह , 1987 ,राजस्थानी लोक गीतों के विविध रूप , विनसर प्रकाशन , दिल्ली 
डा शिवा नन्द नौटियाल , 1981 ,गढवाली लोकनृत्य -गीत , हिंदी साहित्य सम्मेलन , प्रयाग 
मोहन लाल व्यास 'शास्त्री '  (सम्पादन ) राजस्थानी लोक गीत 
डा जगदीश नौडियाल उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर

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