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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, August 18, 2013

तंबाकू ब्यापार्युं हड़ताल

चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती 

प्रजातंत्र मा सरीफ मनिख जैकि  जमीन जायजाद लुठे जावो वो रावो या नि रावो पण धुर्या मनिख को गलत सलत कामौ अधिकार पर जरा ठेस लगदी तो वो इन तड़कद जन बुल्यां ऐटम बम फुटि गे हो धौं ।

ब्याळि महाराष्ट्र का तमsखु   बिचण व़ाळुन हड़ताल त्यौहार मनायि अर मोर्चा लोक -नृत्य-गीत मा भाग ले । कै दिन मोर्चा लोक -नृत्य-गीत सामजिक अधिकार बचाणो   अर सामाजिक चेतना वास्ता प्रयोग हूंदा छा अब मोर्चा लोक -नृत्य-गीत अपण धौंस दिखाणो, अपण ताकत दिखाणो, हैंको अधिकार लुठणो, हैंको  मौतौ इंतजाम करणों, हम कथगा कमीना छंवां -या म्यरो ये क्षेत्र पर क्या रौब च यु दिखाणो बान प्रयोग करे जांद । वो दिन अब इतिहास का हिस्सा ह्वे गेन जब मोर्चा लोक -नृत्य-गीत एक पूज्य नृत्य -गीत माने जांद छौ अब त मोर्चा लोक -नृत्य-गीत एक स्वार्थ पूरक नृत्य -गीत माने जांद । 

अब बताओ महाराष्ट्र सरकारन तमाखु बिक्री कम ह्वावो को इंतजाम करणों बान खुले आम तमाखु बिचणो बाण कुछ नियम स्वीकृत करेन तो तम्बाकू विक्रेता सरकार से चिरड़े गेन , टोबेको सेलर्स सरकार से नराज ह्वे गेन कि लोगुं तैं कैंसर से मारणो लाइसेंस हम से सरकार  नि लूठि सकदी । तम्बाकू विक्रेता संघन मोर्चा घड्यळ उर्यायि कि स्वास  रोग से लोगुं तैं ज़िंदा लाश बणाणो  हमर संवैधानिक अधिकार नि छिने जावन । मोर्चा दिवता जात्रा, घड्यळम  अर भंडारोम जागरी इन जागर लगाणा छया -

जो तम्बाकु से लोगुं तैं मारणो  हमर मूल भूत अधिकार लूठल वै तै हम विधयाक जोग नि रखला । वीं सरकार तैं हम गिराए द्योला ।
जो तम्बाकू से लोगुं मा कैंसर फैलाणो हमर अधिकार पर ठेस लगालो वैकी गद्दी पर हम ढसका लगौला ।
लोगों को मारने का हमारा जन्म सिद्ध अधिकार हमें वापस कारो -वापस कारो ।
क्या ह्वाइ जो तम्बाकू सेवन से राज्य मा लाखों लोग मरणा छन पण तम्बाकू विक्री से राज्य को GDP तो बढ़णि च कि ना ? तो GDP क नाम पर - लोगो की हत्या का अधिकार हम तैं वापस कारो-वापस कारो ।

तम्बाकू विक्री समर्थक जागर्युं दलील छे कि हम हर साल कैंसर अस्पताल अर स्वास रोग चिकत्सालय तैं भीख दींदा हि छंवाँ तो फिर तम्बाकू से जन -हत्या रोकणै क्या जरुरत च ? 
  प्रजातंत्र मा अब हम खुले आम हत्या करण तैं बि जन्म सिद्ध अधिकार माणदवाँ ।
प्रजातंत्र मा गैर सामाजिक कार्यों तै बि हम संवैधानिक अधिकार बथाण मा नि शर्मांदा ! उल्टां जो हम तैं गैर सामाजिक काम करण से रुकद वै तैं हर तरां से पिटण -चुटणो तयार रौंदा । 

जम्हूरियत पर एक दाग च कि संख्या का बल पर जबरन जम्हूरियत का जनाजा बि निकाळ सकदवां  ।
प्रजातंत्र की एक परेशानी  या बि च बल व्यक्ति हित का वास्ता प्रजासत्तात्मक रास्ता का बल पर   प्रजाहित , जनहित की हत्या बि कराये जांद ।
यो सबि माणदन बल शराब अर तम्बाकू समाज का वास्ता नुकसानकारी च पण राज्य मालगुजारी , राजस्व का नाम पर हम सब खुलेआम मनुष्य -बूचड़खाना बचाणा रौंदा उल्टां मनिखौं तैं काटणौ  बूचड़खानौ याने शराब अर तम्बाकू की फैक्ट्रियों तैं बनि बनिक इमदाद अर कर लाभ बि दींदा जाँ से तम्बाकू अर शराब की फैक्ट्रियां जादा से जादा सामजिक नुकसान कौर साकन । इथगा भयंकर विरोधाभास जनतंत्र मा इ दिखे सकद ।

पण जै प्रजातन्त्र मा संसद या विधान सभा तैं नि चलण  दीण अपण  मौलिक अधिकार ह्वावो अर संसद या विधान सभा चलाण दुसरौ कर्तव्य माने जांद उख खुलेआम , सब्युं समिण  जनसंघार करणों बान सत्याग्रह, मोर्चा बंदी , घेरा बंदी , हड़ताल तो   होलु ही । जै देस मा संसद मा सांसद द्वारा 'भ्रष्टाचार रोकणो  लोकपाल बिल' फाड़े जालो उख मनुष्य हन्ता, जनहत्यारा  तंबाकू निर्माता -तम्बाकू विक्रेता हड़ताल त कारल ही कि -हे सरकार ! तू हमारो मनुष्य हत्या को मौलिक अधिकार तैं नि छीनि सकदी , हे सरकार प्राणी -हत्या हमारो जन्म सिद्ध अधिकार च अर तू हमारो ये हत्या को अधिकार नि लूठी सकदी । 



Copyright@ Bhishma Kukreti 17/8/2013 

[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य;सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]

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