उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Sunday, August 25, 2013

उत्तराखंड में लौह संस्कृति में कृषि , कृषि भोजन (1700 -300BC )

उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ---3

                                    आलेख :  भीष्म कुकरेती 

             उत्तराखंड के पूर्वी भागों में महा समाधियाँ मिली हैं जो इंगित  कि लौह हथियार का प्रयोग लौह कल में शुरू हो गया याने  कि लौह उपकरण के कई उपयोग व कृषि विकसित ह रही थी ।
 उत्तराखंड महाभारत युग में लौह उपकरणों का मुख्य निर्यातकर्ता था ।  निकलता है कि जंगली जौ , जंगली गहथ आदि की कृषि सुगम होने लगी थी ।
 कोल जाती ने कृषि विकसित की हुई थी और कुदाल फावड़े से कृषि की शुरवात हो चुकी थी । इसके अतिरिक्त हल -लान्गुल जैसे उपकरण बना लिए थे ।
घास , फूस , मिटटी -पत्थर की झोपड़ियां बनने भी शुरू हो चुकी थी । और शायद इसी वक्त उत्तराखंड में छन्न संस्कृति की शुरुवात भी इसी काल में हो चुकी थी ।
भारत में बाण , लकुट , धनुष , बरछे , खुकरी, तलवार, घोड़े की लगाम , छेनी   उपलब्ध थे जो  लिए सुभीते वाले उपकरण थे । इसके अतिरिक्त कुल्हाड़ी , हंसिया (दाथी ), छेनी  भी विकसित हो चुकी थी ।
पहाड़ी ढालों  पर दीवाल (पगार ) चिनने के प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी और गद -गदन या नदियों के किनारे क्यारी बनाने की संस्कृति भी विकसित हो चुकी थी ।
 जहां तक भारत का प्रश्न है उस समयज जौ , गेंहू , धान , जंगली भिन्डी , बाजरा, ज्वार, सरसों , दालें  मुख्य भोज्य पदार्थ थे अत : उत्तराखंड में गेंहू को छोड़ बाकी सभी खाद्य पदर्थ प्रयोग होते थे ।
इस तरह उत्तराखंड में जौ , जंगली भिन्डी , बाजरा, ज्वार, सरसों , दालें भोजन थे और गेंहू धान मैदानी भाग में रहे होंगे ।
अनाज का उपयोग आग में भूनकर अधिक होता रहा होगा ।
इस युग तक नीम्बू , केला, सेमल, कद्दू के खेती भी सीख चुका था ।
पक्षियों में कुक्कुट , मोर, हाथी , घोड़ों  , बैल , भैंसों को पालतू बनाना सीख चुका था ।
मछली  व शहद भोजन के अंग बन चुके थे । 
मृग , जंगली चकोर , गौरया आदि भी भोज्य पशु -पक्षी  थे ।
जंगल से औषधियों का ज्ञान भी यहाँ हो चुका था और विशेस्य्गाता हासिल कर चुके थे ।
बीसवीं सदी से पहले गढवाल -कुमाऊं में कई वनस्पतियों का उपयोग भोज्य पदार्थ रूप में होता था जो ब्रिटिश काल में समाप्त भी हो गया जैसे सेमल के कच्चे घोघाओं की सब्जी । ऐसी वनस्पतियों का उपयोग आग आने के बाद या धातु युग में शुरू हुआ 

Reference-
Dr. Shiv Prasad Dabral, Uttarakhand ka Itihas 1- 9 Parts
Dr K.K Nautiyal et all , Agriculture in Garhwal Himalayas in History of Agriculture in India page-159-170 
B.K G Rao, Development of Technologies During the  Iron Age in South India 
V.D Mishra , 2006, Prelude Agriculture in North-Central India (Pragdhara ank 18)

Anup Mishra , Agriculture in Chalolithic Age in North-Central India

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments