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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, July 28, 2013

सावधान ! गढवळि -कुमाउंनी कहावतों मा भयंकर परिवर्तन !

[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  प्रिथ्वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं पर   गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला ]


                          
चबोड़्या -चखन्योर्या -भीष्म कुकरेती 

             समाज , सरकारी  स्तर  मा  जथगा बदलाव यूँ पिछ्ला दस सालों मा  आयि उथगा बदलौ पिछ्ला एक हजार सालुं मा बि  नि ऐ छौ I हमर गांवुं मा टेक्नोलोजी से आराम की ही चीज नि ऐन बलकणम हमारो लोक साहित्य मा बि भयंकर उलटफेर हवे गे अर अब अग्वाड़ी भौत बडो परिवर्तन को अंदेसा ही नी च बलकणम पुरो विश्वास च बल अग्वाड़ि दस साल मा हमर लोक साहित्य आज से बिल्कुल बिगऴयूँ याने अलग होलू।
 अब  द्याखो ना पैल ठग, छगटा  अर चोर कै हौरू कुण बोले जांद छौ अब त ठग, चोर छगटो शब्द गढवाली अर कुमाउंनी शब्दकोशों मा मिल्द इ नि छन अब त ठग को असली माने च नेता , चोर माने सामाजिक कार्यकर्ता अर डाकू माने मंत्री या संतरी। हमर गाँ मा अब इन बुल्दन कि दिन माँ ही डकैती पडि गे या दिन माँ इ डाकू ऐन अब त बुल्दन बल दिन माँ ही  ए राज्याण पोड़ (ए  राजा जन ). अब क्वी नि बुल्दु बल हमर जंगळ से दुसर गावक लोग घास चोरी लीगेन अब बुले जांद हमर बौण ब्याळि लालू प्रसाद ऐन या हमर बौणम लालू प्रसाद ह्वे गे  I
 पैल एक कहावत छौ बल कवा जि  शिकार कारल तो बाज कु पाळल? अब कहावत च इमानदार खंडूरी जि चुनाव जितै सकुद त निशंक तैं कु पूछ्ल?
   पैल एक कहावत (कै पणि बोल) बड़ी प्रसिद्ध कहावत छे -कवा ककड़ान्दा इ रौंदन अर ढाकरी चलदा इ रौंदन अब या कहावत सिरफ अर सिरफ संस्कृति की इतिहासुं किताबुंम बंचणो मिलद अब त नई कहावत हमर गाऊं मा प्रचलित ह्वे गे बल नरेंद्र सिंह नेगी 'कथगा खैलु' लाखों कैसेट बिचणु रालु अर रमेश निशंक चुनाव जितदु इ रालु।
             पैल एक कहावत प्रसिद्ध छे बल जब बिरळ नि रौंदन तबि  मूस नाचदन I अब बुले जांद जब क्लास मा मास्टर नि ह्वावो तो विद्यार्थी उधम मचांदन। कखि कखि इन बि बुल्यांद बल जै स्कूलम प्रिंसिपल सियूँ रावो वीं स्कूलम इम्तानम नकल करणों मजा इ कुछ हौर हूंदन I 
           एक कहावत छे बल बिंडि बिरळ मूस नि मारदन। या कहावत अब मुसदुंळ पुटुक बैठि ग्याइ अब त हमार चौक माँ नै कहावत प्रसिद्ध च बल बिंडि पार्ट्यूं सरकार मा काम कतै नि हूंद  हल्ला ही  होंद। 
           राय बहादुर गंगा दत्त उप्रेती जीक कहावतों किताब मा एक कहावत को वर्णन करदन जैक गढवाली मा अर्थ होंद बल खुकली  मा बच्चा अर गाँव  मा  खुज्या- खोजि। अब यीं कहावत तैं सबि बिसर गेन   अब त बुले जांद बल इंडियन मुजाहिदीन आतंक फैलांद जावो अर केन्द्रीय मंत्री के रहमान बुल्दु जालो बल भारतीय मुसलमानों तैं त पता ही नीच कि इंडियन मुजाहिदीन आतंकी संस्था च I   
            एक हिंदी कहावत हमर गां मा प्रसिद्ध छे अर या कहावत अब भूतकाल की छ्वीं  ह्वे गे I कहावत छे सौ मूस खैक बिरळ हज को ग्याइ। अब यीं  बात समझाणो बान नै कहावत प्रसिद्ध  हवे ग्यायि बल लाल कृष्ण अडवानी बुलणु च बल भारत तैं सेक्युलर प्रधान मंत्री ही चयेंद I या इन बि बुले जांद बल मायवती गैर धर्म निरपेक्ष पारट्यूं तै दूर र रखणो बान  कौंग्रेस तै सहयोग दीणि च I   
            थूकिक चटण  कहावत अब पुरणि बात ह्वे गे अब त बुले जंद स्यू उमा भारती ह्वे ग्यायि। 
    अब क्वी नि बुल्दु बल हर शाख पर उल्लू बैठा है अब त बुले जांद हर फौंटि माँ यदुरप्पा अर अशोक चौहाण बैठ्याँ छन I   

   पैल परिवार का बुड्या लोग बच्चों तैं धैर्य धरणो बाण राम कथा का चौदह साल बनवास को वृतांत   दींदा छ अब त वीर भद्र सिंह की कथा सुणान्दन कि द्याखो जब वीर भद्र सिंह पर भ्रष्टाचार को गम्भीर आरोप लगेन  अर मंत्री पद से हाथ धूण पोड़ पण वीर भद्र सिंहन  बेशर्मी से धैर्य   कायम राख  अर आज फिर से हिमाचल प्रदेश को मुख्य मंत्री च I   
   बदलाव जिन्दगी को फलसफा च , बदलाव ही जिन्दगी च I इलै इ आज  कहावतों मा रोज बदलाव हूणा छन अर बदलाव  हूणा राला पण एक कहावत मा बदलाव मुश्किल च I जब भि अपण संस्कृति अर भाषा छुड़णो बान कै पर बि ताना मारे जांद तो बुले जंद स्यु या स्या  गढवाली -कुमाउंनी ह्वे  ग्यायि I या कहावत अमर कहावत च अर इखमा क्वी बदलाव नि होण I                
   
         


   Copyright @ Bhishma Kukreti  27/7/2013  

 
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  प्रिथ्वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं पर   गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखलाजारी ...]  

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