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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, July 23, 2013

चलो अब फेंकू-फेंकू अर पप्पू-पप्पू खेल खिलला !

चलो अब फेंकू-फेंकू अर पप्पू-पप्पू खेल खिलला ! 
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक की  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला ]



                          चबोड़्या -चखन्योर्या -भीष्म कुकरेती 

फगुण्या काका अर मि हमउमर छंवाँ। फगुण्या काका हमर गांवक प्रधान च. उन फगुण्या काकाक स्कुल्या नाम पुष्कर च I   ब्याळि फगुण्या काकाक गां बिटेन फोन आयि I
फगुण्या काका- अरे भीषम कुछ फैदा नी च रै त्वे सरीका दगड्या ह्वेक बि मीडिया मा म्यार नाम नी च । 
मि- क्या बुलणु छे काका ? सि  एक हफ्ता पेल देहरादुनौ अखबार मा मीन खबर छपवै बल ' पुष्कर जी के नेतृत्व में बेडू तिमलुओं पर फल आये' 
फगुण्या काका-हाँ उ त ठीक च. मि वै अखबार लेकि सरा गाँ मा घूमु अर  तैं वा खबर सुणै। अर म्यार विरोधी टुखण्या जौळि म्वास बणी ग्याइ।
मि- फिर वै से पैल मीन दिल्ली अखबारम समाचार छपवै छौ बल पुष्कर जी के कुशल और  नेतृत्व के कारण इस  साल पशुओं पर खुर्या नही हुआ I फिर लखनौ को एक अखबारम खबर प्रकाशित कराई कि पुष्कर जी के उर्जावान नेतृत्व में इस साल जंगल में अधिक च्यूं पैदा होगा क्योंकि सभी सुराई (सुल्ल)  काट दिए गयें हैंI
फगुण्या काका- भई मि यूं सब अखबारों तैं लेकि ब्लौक मा बि ग्यों। सबि नेता बुलणा छा कि म्यार जनसम्पर्क अभियान बड़ो बढ़िया च I
मि- अच्छा सूण! वो यूँ अखबारुं कुण विज्ञापन भेजि आलिन कि ना ?
फगुण्या काका-हाँ ! मनरेगा का ठेकेदारन देहरादून, मिड दे मीलक  ठेकेदारन चण्डीगढ़ अर सोलर पावर का ठेकेदारन लखनौ पैसा दगड़ सबि अखबारुं कुण बेस्ट कौम्पलीमेंट्स का विज्ञापन भेजि आलिन I
मि- अर वो कोटद्वारक अखबारुं कुण विज्ञापन भिजण छौ ?
फगुण्या काका- बस ग्रामीण नल योजना अर ग्रामीण भूमि संरक्षण योजना पैसा ठेकेदारुं तैं मिल्दा हि कोटद्वारक अखबारुं कुण पैसा दगड़ विज्ञापन बि पौंछि जाला। वो ठीक च टुखण्या न गाँ मा मि तैं अफखवा नाम से बदनाम कर्युं च पण मि त सौलै बांटी बाँटिक खाणम विश्वास करदो। 
मि- हाँ वो तो ठीक च पण क्या करण ?
फगुण्या काका-करण क्या च ? अरे तू मुंबई मा रौन्दि अर मै पुछणु छे क्या करण ?
मि- ह्याँ कै अखबार मा खबर छपवाण ?
फगुण्या काका-अखबार ना म्यार फेस बुक अर ट्वीटर अकाउंट्स खुलणन I 
मि- क्या ?
फगुण्या काका-कनो क्या ? म्यार फेस बुक अर ट्वीटर अकाउंट्स खुलणन अर क्या
मि- कै हिसाब से ?
फगुण्या काका- देख ! फेस बुक मा एक तो म्यार नामौ सही अकाउंट्स होलु।
मि-ठीक 
फगुण्या काका- फिर एक अकाउंट पुष्कर फ्रेंड्स क्लब नामौ अकाउंट होलु इखमा मेरी प्रशंसा ही होलीI फिर इनि एक अकाउंट हूण चयेंद 'पुष्कर क्यों चाहिए' यु बि म्यार प्रशंसा गीतुं गीत गाल. अर एक अकाउंट हूण चयेंद 'फंडधुऴया नही चाहिए' I. 'फंडधुऴया नही चाहिए' मा रोज टुखण्या काट हूण चयेंद।
मि- यी क्या च काका ?
फगुण्या काका- अर इनि ट्वीटर का बि दस बारा अकाउंट्स खोलि दे. जखमा मेरी प्रशंसा होलि अर 'फंडधुऴया नही चाहिए' मा रोज बुरी तरां अर कबि कबि हंसी मजाक  मा  टुखण्या की आलोचना हूण चयेंद।
मि- काका या बात मेरी समज मा नि आणि च कि जै गां मा एक बि कम्पूटर नी च  उख फेस बुक अर ट्वीटर को जनसम्पर्क समाचारों क्या काम ?
फगुण्या काका- अरे म्यार धुर विरोधी वै टुखण्यान   फेस बुक अर ट्वीटर अकौन्ट्स खोलि आलीन अर हर हफ्ता कोटद्वार जैक फेस बुक अर ट्वीटर का  प्रिंट आउट लांदो अर गाँ वाळु तैं दिखांदो। फेस बुक अर ट्वीटर को कारण मि जनसम्पर्क मा पैथर ह्वे ग्यों।
मि-अच्छा ?
फगुण्या काका- हाँ! अर अब म्यार नाम पुष्कर या फगुण्या नि रै ग्यायि। अब सरा गाँ वाळ क्या क्षेत्र वाळ मेखुण 'अफखव्वा' बुल्दन। 
मि-पण काका यी काम तो क्वी प्राइवेट कम्पनी ही कौर सकदी? मि त बस !
फगुण्या काका- हाँ त आजि क्वी कम्पनी हायर कौर अर म्यार अकाउंट्स फेस बुक अर ट्वीटर पर खोल. पैसा त्वे तैं मि भेजि द्योलु।
मि- काका ! क्या , भाजपा अर कौंग्रेस मा फेस बुक -ट्वीटर - मीडिया को  'फेंकू अर पप्पू'  युद्ध अब वै गाँ मा बि सौरी ग्यायि जै गाँ मा कम्प्यूटर ही नी छन ? 
फगुण्या काका- हाँ ! यथो राजा तथो प्रजा ! 

Copyright @ Bhishma Kukreti  23/7/2013  

[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक की  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...] 

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