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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, June 4, 2013

क्या तुमन आम सूंघि आल कि ना ?

गढ़वाली हास्य -व्यंग्य 
 सौज सौज मा मजाक मसखरी  
   हौंस,चबोड़,चखन्यौ     
    सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं   


                                   क्या तुमन आम सूंघि आल कि ना ?

                       चबोड़्या - चखन्यौर्याभीष्म कुकरेती (s = आधी  )

               उन म्यार गाँ मा बि द्वी चार डाळ आमु छया अर फिर पितरूं  मेरबानी छे कि हमर रिस्तेदारी वूं गांवुं मा बि छे जख आम खूब हूंदा छा तो जेठ -अषाढ़म  आम खाणो संस्कृति वळ मनिख छौ।
इख मुंबई मा अप्रैल मा आमुं राजा अलफांसो या हापुस को राज रौंद। फिर गुजरात को केसरी बि ब्वाद बल मी ही आम सम्राट छौं मई अंत या बरखा शुरू ह्वाइ ना कि अलफांसो अर केसरी खतम।
फिर आमखव्वा दशहरी , लंगडा या मालदा का आमों तै आम सम्राट की पदवी दे दींद छा।
    जब तलक हमर देस मा रिफौर्म या आर्थिक सुधार की धूम नि मच छे तब तलक आम आदिम बि आम खादों छौ। अपण अपण हिसाब से हापूस या क्वी हौर आम पेट्यूँ या थैलों माँ लैक सिद्ध करदा छा कि आम एक भारतीय आम फल च अर मैंगो शब्द तमिल शब्द च अर आम खाण भारतीय संस्कृति को एक आम अंग च।
 फिर जन जन मनमोहनी इकॉनोमिक रिफौर्म का बारा मा हम भारतीयों ज्ञान जादा होंद गे  आम खाण आम लोगुं बसै बात नि रै गे। पैल आम लोग आम खाणो बान आम लांदा छा। फिर समौ आइ कि आम लोग हौर आम लोगुं तै दिखाणो बान आमुं मौसम मा सिरफ एक दिन आम खरीददा  छा। याने कि जन जन आर्थिक सुधार बुलंदी पर पंहुचद ग्यायि आम आम लोगुं पंहुच से दूर हूंद ग्यायि।
अब त आम लोग अपण बच्चों तैं लोक कथा सुणान्दन कि ऊंका ददा जी साल भर मा दस पेटी आम खरीददा छा अर हमर परिवार फुटकर मा बि तकरीबन रोजाना छै  सात आम खांदा छा। अर इन कथा अब आम कथा ह्वे गेन।
 अब जब अप्रैल मई मा आमु दाम सूणि मि बेदम ह्वे जांदो छौ त ड्यारम हमर  दिवतौंन बि आमै दाणि नि देखि।
अब जब गुजराती अर राजस्थानी लोग बरखा होन्दि इ आम खाण बंद करी दींदन त घरवळिन बोलि बाल बच्चों तैं अब त चखावो एकाद फाड़ी आम की। घरवळिन सावधान कार कि बच्चों तै आम नि दिखौला तो वो अपण बच्चों तैं क्या बथाल कि वन्स अपौन अ टाइम अवर ग्रैंड फादर यूज्ड टु  लाइक मैंगो फ्रूट ऐंड मैंगो फ्रुट वाज इन अवर डाइट।
   पिछ्ला चार सालों से आदत पोड़ी च कि  जून मा एक दिन आम बजार जाण अर चार पांच आम लै आण।पैल हम पूरी दाणी दिबतौ ठौ मा चढाँदा छा अब छुटि सि आमै चिरखि चढाँदा अर दिबतौं से मांग करदा कि हमारि इनकम इथगा ह्वै जावो कि हैंक साल तुम तै पूरी आम की दाणि चढै सकवां।  पण हमर द्यौ दिबता  बि संतोषी ह्वै गेन या सुधारवादी ह्वे गेन अर छ्वटि सि आमै चिरखि मा ही खुश दिखेंदन  दिबतौं तैं छ्वटि सि आमै चिरखि दिखण मंजूर च पण हम आम आदम्युं इनकम बढ़ाण मंजूर नी च। दिबतौं बुलण बि ठीकि च कि आम आदम्युं इनकम बढेक क्या मीलल सिरफ एक दाणी आम। दिबता उथगा मेनत अम्बानी या  जिंदल पर कारल तों दिबतौं तें सोना कु रत्न  जड़ित सिंघासन मीलल। इकॉनोमिक रिफौर्म जुग  मा दिबता बि नफा नुकसान सुचण बिसे गेन।

 खैर ए साल मि पैल दै  आम बजार ग्यों त द्याख कि सबि दुकानदारोंन आम ढक्याँ छया।  कै बि तरां आमु दर्शन दुर्लभ छया। हरेक आम का दुकानदारन आमुं बड़ा बड़ा पोस्टर लगायाँ छया।  
मीन दुकानदार तैं पूछ - आम कु कु छन?
दुकानदार - सब वेराइटी का आम छन। पैल इन बथावो कि क्रेडिट कार्ड लायुं च कि ना?
मि - मि आम खरीदणों आयुं छौं ना कि फ़ाइव स्टार होटलम डिनर लीणों .
दुकानदार -त कैश का दगड़ पैन कार्ड लयुं च कि ना? 
मि - ये भै मि आम मुल्याणो आयुं छौं ना कि फ़्लैट या जमीन खरीदणो  अयूँ छौं।
दुकानदार -आम दिखण कि खालि सुंघण च ? 
मि -देखिक अर सूंघिक ही तो आम खरीदे जाल कि ना?
दुकानदार -जै मा क्रेडिट कार्ड नि ह्वावो अर ना ही पैन कार्ड ह्वावो तो वू क्या आम खरीदल! 
मि -क्या मतबल?
दुकानदार -रेट लिस्ट अफिक पौढ़ील्या या मि सुणो  
मि -आपि रेट लिस्ट बथावो 
 दुकानदार - वेराइटी का हिसाबन आम दिखणो रेट छन -अलफांसो -पांच सौ रुपया प्रति आम, केसरी -चार सौ अस्सी प्रति आम , लंगड़ा -आज चार सौ रुपया प्रति आम। आम दिखण पर दस प्रतिशत सेवा कर बि लगल।
मि -हैं ये साल आम दिखणो बान बि इथगा पैसा ?
दुकानदार -हाँ अर आम सुंघणो रेट च - आम दिखण का  डेढ़ गुणा। दिखाण अर सुंघाण से पैल ऐडवांस जमा कराण जरूरी च। 
मि -अर यु क्या लिख्युं आम की पेटी प्रदर्शनी हेतु  किराए पर मिलती है?
दुकानदार -वु क्या च भौत सा ग्राहक अपण मुहल्ला मा दिखाण चांदन कि वो आम खांदन तो हम किराए पर आम भरीं पेटी ऊंक ड्यार लिजांदा।  हाँ पैल हमर आदिम सब जगा पता पुछणो बान घुमद जै से पता चल जावो कि फलणौ इख आम की पेटी आयीँ च।   
मि -अर फिर ईं स्यूं आमै पेटी तैं वापस कनकै लांदवां  
दुकानदार -आधा रातमा कि  कै तैं पता नि चौल।
मि - आमौ पेटी क किराया  कथगा  च ? 
दुकानदार -दस हजार रुपया प्रति दिन 
मि - ये मेरि ब्वै ! 
दुकानदार - यदि क्वी ग्राहक आम का  दाम , आम दिखणो दाम सूणि बेहोश ह्वे जावो तो ऐम्बुलेंस  का खर्चा पर्चा की जुमेवारी हमारी नी च 
मि -मै लगद मि बेहोश होण वाळ छौं।
दुकानदार -किराए की प्राइवेट ऐम्बुलेंस  मा जाण चैल्या या नगरपालिका की ऐम्बुलेंस से जाण चैल्या?
मि -नगरपालिका की ऐम्बुलेंस से 
दुकानदार -तो इनि बेहोश पड्या रावो भोळ तलक नम्बर ऐ जालो। पैल लोग जादा आम खैक बीमार हूंदा छा अचकाल आमुं दाम सूणिक बेहोश ह्वे जांदन तो  नगरपालिका अस्पतालों मा मरीजों संख्या भौत बढ़ी गे। यदि मेडिकल इन्सुरेंस च त मेरी मानो त प्राइवेट अस्पताल मा ही भर्ती ह्वै जावो। 



Copyright @ Bhishma Kukreti  5/06/2013            
(लेख सर्वथा काल्पनिक  है )

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