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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, June 16, 2013

क्रिक्यट्याणै पछ्याणक (क्रिकेट माहौल के चिन्ह )

गढ़वाली हास्य -व्यंग्य 
 सौज सौज मा मजाक मसखरी  
  हौंस,चबोड़,चखन्यौ     
  सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं   

                                 क्रिक्यट्याणै पछ्याणक (क्रिकेट माहौल के चिन्ह )   

                   चबोड़्या - चखन्यौर्याभीष्म कुकरेती
 
(s = आधी अ, s= क, का , की,, कु के ,को आदि  )

               हर युग मा समाज मा कुछ ना कुछ की हवा चलदी। जन कि स्वतन्त्रता आन्दोलन की हवा /माहौल; फिर भारत निर्माण को वातावरण; इंदिरा गांधी बगत  अपण निखालिस स्वार्थौ बान बुड्यों तैं लत्याण; जनता पार्टी समौ पर अपण आपस मा कुत्ता-बिरळु तरां हर समय लड़ण; राम रथ यात्रा समय पर पवित्र त्रिशूल से त्राहि त्राहि मचाण या मनमोहन जुग मा देस तै चुसण -लूटणौ वातवरण।
   पर अजकाल एक हैंको बनिक बीमारी या माहौल भारत माँ विद्यमान च अर वा च क्रिक्यट्याण! 
  क्रिक्यट्याणै कुछ चिन्ह छन कुछ खास विशेषता छन।
जब कै गरीब आदिमौ ड्यार क्रिकेट मैच दिखणो बान एक ना द्वी 
टीवी ह्वावन तो समजि ल्यावो कि क्रिकेट मौसम अपण उंचाई पर च।
जब तुमर घौरम सबि कपडौ पर क्रिकेट खिलाड्यूँ फोटो चिपक्याँ ह्वावन तो शर्तिया क्रिकेट्यौ ढांड पड़ण़ा छन।
जब  धर्मेन्द्र जन फ़िल्मी हीरो प्रायोजित शराबौ  ब्रैंड छोड़िs सभ्रांत अर गरीब सबि क्रिकेट खिलाड़ी प्रायोजित शराबो ब्रैंड पर ढब जावन तो समझो कि देस क्रिकेटs नशा मा टुन्न च .  
जब संसद मा पब्लिक डिस्ट्रिबुसन याने सरकारी गल्ला मा सड्याँ ग्यूँ  मिलणा छन की बहसs  जगा क्रिकेट स्टेडियमों मा दर्शकों तैं ठीक से  वाटर नि मिलण पर विरोधी पक्ष संसद की कार्यवाही भंग कारो तो समजी ल्यावो क्रिकेट ही हमारी सांस च।  
जब जु टमाटर दस रुपया कीलो छौ अर आज सौ रुपया कीलो बिकणु ह्वावो अर खासकर टीवी मीडिया क्रिकेट मैचों टिकेट बढण पर हल्ला मचाणु ह्वावो तो अंक्ये  ल्यावो कि क्रिकेट मंहगाई से जादा महत्वपूर्ण ह्वे गे।
जब क्रिकेट स्टेडियमों मा कीड़  मारणों बान कीट नाशक दवाइयुं विरोध मा पर्यावरणवादि अर अहिंसावादी उपवास पर बैठन तो मानण चयेंद कि हरेक भारतीय को  दिमाग मा क्रिकेट का कीड़ा बसि ग्यायी।  
जब रेल टिकटुं  ब्लैक मार्केटिंग अपण चरम पर ह्वावो पण  लोग अर मीडिया आईपीएल मैचो मा ब्लैक मार्केटिंग से  दुखी ह्वावन तो इख मा द्वी राय नि ह्वे सकदन कि क्रिकेट अब हमारो असली धर्म ह्वे गे।
जब राज्य  विधान सभाओं मा आधारिक विद्यालयों मा पढ़ाई स्तर पर सालों मा एक दिन बि बहस  नि ह्वावो पण जब  विधायक  रोज शून्य  काल मा क्रिकेट स्तर नि बढण पर चिंता जतावन अर राज्य माँ क्रिकेट की बदतर स्तिथि प् मुख्यमंत्री से इस्तीफा की मांग कारन तो बिंगण- समजण  चयेंद कि क्रिकेट से ही हमारो जीवन चलणु च।
जब  अखबारों मा आईपीएल मा विदेशी खिलाड्यूँ से भारतीय क्रिकेट को खतरा का समाचार पैलो पन्ना मा ह्वावो अर चीनन अपणि सैनिक शक्ति मा तिगुण इजाफा कार की छुटि सि  खबर दाद -खाज का विज्ञापनों  बीच मा ह्वावो तो या पक्की  बात च बल अब क्रिकेट भारतौ बान मान सम्मान को माध्यम ह्वे ग्यायि। 
जब नेता लोग बयान द्यावन कि ये  चुनाव मा  हम विरोधियों तैं पविलियन भिजला अर राजनीति की  पिच पर हमारो ही राज होलु तो क्वी बि ब्वालल कि भारत मा असली राज तो क्रिकेट को ही च।
जब 'धनवान कैसे बने ' की किताब खुज्याण पर बि कखि नि मीलो पण ''क्रिकेट मे सट्टे से करोडपति बनने के सौ नुक्से' किताब हर  स्टाल पर  ह्वावो तो यांको अर्थ च बल भारत की आर्थिक  नीति क्रिकेट से प्रेरित होंदी।
जब सामजिक कार्यकर्ता अर बुद्धिजीवी सुबेर आन्दोलन कारन कि भारत मा औनलाइन लौटरी बंद हूण चयेंद अर श्याम दै भाषण द्यावन कि क्रिकेट बेटिंग तैं कानूनि जामा पहनाये जाण चयेंद त  यांक मतलब च बल अब हमारा  सामजिक नियम क्रिकेट का अनुसार ही चौलल।     
जब मै  सरीखा लिख्वारम लिखणो कुछ नि ह्वावो  त मि क्रिकेट पर लिखण लगि जावुं त या बात सही च कि हमारी असली संस्कृति क्रिकेट च।
 
   

 
Copyright @ Bhishma Kukreti  16/06/2013      
(यह लेख सर्वथा काल्पनिक है )

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