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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, May 19, 2013

विज्ञापन धर्मी राजनीति

गढ़वाली हास्य -व्यंग्य 
 सौज सौज मा मजाक मसखरी 
   हौंस,चबोड़,चखन्यौ   
    सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं   

                               विज्ञापन धर्मी राजनीति 
                 
                               चबोड़्या - चखन्यौर्या: भीष्म कुकरेती (s = आधी अ ) 
 इना गाँवों सयाणोन दुसरो मुंडळम   जैक धै लगै बल अंक्वैक भैरों ! अंक्वैक!  सावधान भैरों! आम चुनाव नजीक हि छन।
उना स्वर्गलोकम महर्षि गर्ग अर ऊंको परम शिष्य याग्यवल्क्यम वार्तालाप हूणु थौ।
 याग्यवल्क्य-गुरु जी ! स्यु गांवक सयाणा गांवमा सबसे उच्चो अपण मुंडळ छोड़ि दुसरो मुंडळ बिटेन धै किलै लगाणु च?   
गर्ग -  पुत्र याग्यवल्क्य! वू कळजुगि  सयाणा  चतुर च, चंक च, चलाक च। अपण मुंडळो पठळ नि खपचावन यांक डौरन वु हमेशा दुसरौ मुंडळ मा जैक धै लगांदो       
याग्यवल्क्य- ज्ञानी गर्ग श्री ! आम चुनाव आणौ क्या क्या निसाणी छन?   
गर्ग -  जब जब टीवी चैनलों अर समाचार पत्रों मा सरकार को जन कल्याण सम्बन्धी विज्ञापनों ढांड पोड़ण शुरू ह्वे जावन तो वुद्धिमान लोग समजि लीन्दन बल आम चुनाव नजीक छन।   
याग्यवल्क्य-अच्छा अच्छा ! जन अच्काल मनमोहन सरकारौ जन कल्याण सम्बन्धी विज्ञापनों बबंडर चलणु च।  
गर्ग -तेरो सही आलकन च   
याग्यवल्क्य-प्रभु भूतकाल मा इन विज्ञापनुं भ्युंचळ,  भूचाल पैल  बि त ऐ होला कि ना?
गर्ग -  वत्स ! किलै ना! इन सरकारी विज्ञापन पैल बि आंदा छा अर आंदा राला 
याग्यवल्क्य-जन कि ?
गर्ग - महान राजयोगी नरसिम्हा राव को समौ पर बि चुनाव से पैल सरकारी जन कल्याण कामों का  विज्ञापनु झड़ी  लगी छे। फ़िर महान राजधर्म मर्मज्ञ अटल विहारी वाजपेयी को राज मा चुनाव से कुछ दिन पैल इंडिया शाइनिंग का विज्ञापनों से भारत को असमान  ढकि गे छौ। राज्य स्तर पर बि इन विज्ञापनों भळक,बाढ़  आणा हि रौंदन। जन कि एक दें चुनाव से पैल महान पैतराबाज मुलायम सिंह यादव सरकार का विज्ञापनों तड़क्वणि, ढांड पोड़ी छौ ..      
याग्यवल्क्य-हाँ हाँ महर्षि ! याद आयि वो उत्तर प्रदेश सरकारी विज्ञापन केरल का स्थानीय समाचार पत्रों मा बि खूब छपी छौ अर वै विज्ञापन मा यीं सदी का महान नायक अमिताभ बच्चनन धै लगैक बोलि छौ कि मुलायम की सरकार मा उत्तर प्रदेश बिटेन अपराधूं निरबिजु ह्वे  गे, न्याय व्यवस्था से अपराध्युं  कुज्याण कख  हर्चंत ऐ गे धौं!
गर्ग -  हां वत्स! तू  सही स्मरण करणु छे अर उत्तर प्रदेसौ अरबो रुपया वै विज्ञापन पर खर्च ह्वे छौ। अमिताभ बच्चन की बड़ी भद्द पिटि छे कि इथगा बड़ो  महान नायक इथगा बड़ो झूठ बि बोलि सकुद।
याग्यवल्क्य-पण प्रभु ! क्या यूँ बड़ा बड़ा विज्ञापनों से महान राजयोगी नरसिम्हा  राव , महान राजधर्म मर्मग्य अटल विहारी या महान राजनीति को पैंतराबाज मुलायम सिंह यादव या दलितुं राजरानी मायवती चुनाव जीत छन?   
गर्ग - प्रिय ! नही ! सरकार को अरबों रुपया खर्च होण पर बि यूंकि पार्टी चुनाव हारी गे छे  
याग्यवल्क्य- तो फिर यी राजनैतिक दल विज्ञापनों पर इथगा धन किलै खर्च करदन अर फिर यी विज्ञापन किलै असर नि डाळदन ? 
गर्ग -  पुत्र भारतीय रानीतिज्ञोंन यदि शुक्र नीति पौढ़ी होंदी या महाभारत को भीष्म पर्व पौढ़ी होंद तो यूंक बिंगण /समज मा ऐ जान्दो बल विज्ञापन से उथगा फरक  नि पड़द जथगा यी राजनीतिग्य समजदन      
याग्यवल्क्य-प्रभो विज्ञापन से बड़ो हथियार क्वा च?
गर्ग - वत्स ! विज्ञापन से बडो सदावहार हथियार  च जन सम्पर्क को हथियार जै तैं पब्लिक रिलेसन हथियार  बि बोले जांद। शुक्र नीति को हिसाब से विज्ञापन वास्तव मा जन सम्पर्क तैं आधार दीणो काम करदो। जन कि महान चक्रवर्ती सम्राटन जनसम्पर्क तै आधार दीणो   बान  अभिलेख लिखैन।   
याग्यवल्क्य- हे ज्ञान भंडार ! तो आज का राजनीतिग्य जन कि मंमोहान सिंह जी आदि  अचूक , अमोघ , अतुलनीय, अमूल्य जन सम्पर्क हथियार किलै इस्तेमाल नि करदन?
गर्ग -  हे वत्स ! जब राजनीतिग्य  नेता लोक सभा चुनाव लड़णो जगा राज्यसभा को चुनाव लड़ण लगी जावन, जब एकाधिकार राजनीति पर  हावी ह्वे जावो अर राजनीतिज्ञ जनता से कटि जावन, नेता जनता से  दूर ह्वे जावन तो यि लोग जन सम्पर्क को मर्म नि पछ्याणदन अर  विज्ञापन  तैं ही सब कुछ समजण शुरू करी दीन्दन। 
याग्यवल्क्य-प्रभो ! क्वी उदाहरण 
गर्ग - प्रिय ! याद कर अबि सि हिमाचल प्रदेश का चुनाव ह्वेन अर वीर भद्र सिंह  का नेतृत्व मा कौंग्रेस चुनाव जीती गे।
याग्यवल्क्य-हाँ प्रभु ! जब कि वीर भद्र सिंह पर भ्रष्टाचार का कथगा ही अभियोग छा 
गर्ग -  वत्स ! हिमाचल मा चुनावो से पैलौ माहौल याद कर जब कौंग्रेस की कमान राज्य सभा प्रेमी आनन्द शर्मा मा छे तो कौंग्रेस तैं बि लगि गे कि कौंग्रेस चुनाव नि जीति सकदन अर फिर वीर भद्र सिंह की सेवा लिए गे. वीर भद्र सिंह जन सम्पर्क को मर्मग्य छन। यही कारण च कि वीर भद्र सिंघन धुमाल को चक्रव्यूह को भेदन कार अर इखमा विज्ञापन ना बलकणम वीर भद्र सिंह को  जन सम्पर्क , जनता का साथ हमेशा एक सम्वाद ही काम आयि।
याग्यवल्क्य- नीतिग्य ! नीति शास्त्र मर्मग्य ! फिर यी नेता जनसम्पर्क हथियार से दूर किलै रौंदन 
गर्ग -प्रिय शिष्य ! जब राजनीति जन उन्मुखी नि ह्वावो अर पद उन्मुखी याने जब राजनीति  कुर्सी उन्मुखी ह्वे जावो तो जन सम्पर्क पैथर छूटि जांद अर राजनीतिज्ञों  का केवल विज्ञापनों पर ही  सहारा ह्वे जांद।
याग्यवल्क्य-अर विज्ञापनों से यो जरूरी नी च कि माल बिक जावो 
गर्ग -सत्य वचन वचन ! विज्ञापन सूचना  पौंछे सकद पण माल त जन सम्पर्क से ही बिचे सक्यांद। 



Copyright @ Bhishma Kukreti  16/05/2013            
(लेख सर्वथा काल्पनिक  है )

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