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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Friday, April 12, 2013

पाराशर गौड़ौ सम्मान समारोह मा पाराशरौ बौऴयाण (पागल हूण )

गढ़वाली हास्य -व्यंग्य 
सौज सौज मा मजाक मसखरी 
हौंस,चबोड़,चखन्यौ  
सौज सौज मा गंभीर छ्वीं

                     पाराशर गौड़ौ सम्मान समारोह मा पाराशरौ बौऴयाण   (पागल हूण ) 

                             चबोड़्या - चखन्यौर्याभीष्म कुकरेती
(s = आधी अ )
 अध्यक्ष - आज हम से जादा खुसि पाराशर गौड़ जी तैं  हूणि ह्वेल कि जग्वाळ को रिलीज हूणो  पचास साल बाद बि हम  गढ़वळि गौड़ जी सम्मान करणा छंवां निथर अमूनन हम अपण महान आदम्यु तैं ज्यूंदम पुछद नि छंवां अर मरणोपरांत श्रधांजलि दीणम  हम लोग छौंपा  दौड़ करदां।  पाराशर गौड़ जी पुऴयाणा बि छन कि वूंको सम्मान समारोह मा बड़ा बड़ा साहित्यकार बि निड़े गेन निथर हम गढ़वळि  साहित्यकार एक हैंक तै सम्मान दीण अपण बेज्जती समजदवां। सचि बोलुं त जु मि तैं समारोह मा अध्यक्ष नि बणान्दा त मीन बि ये समारोह मा शामिल नि होण छौ।   

पाराशर (अपण मन मा अफिक)- साला ! ब्याळि राति एन पूरी बोतळ घटकाइ अर आज रातौ बन्दोबस्त को भरवस दिलाइ तबि  तो स्यु समारोह मा आइ।

अध्यक्ष - चूंकि मि अछेकि गढ़वळि छौं जु समारोह मा बगैर तयारी ऐ जांदन तो मि पाराशर जीक  बारा मा जादा क्या एक लबज बि नि बोलि सकुद इलै मि अब माइक पर फिल्म प्रोड्यूसर कैलास द्विवेदी जी तैं बुलांदो जु पाराशर जी को बारा मा  बताला।
कैलास द्विवेदी- जन कि हमारि संस्कृति च कि हम दुसरक बारा मा जाणणै कोशिस नि करदां तो मि अपुण परिचय अफिक द्युंदु। अपन रीति रिवाज अनुसार ही अपण परिचय मा मि  घंटा लगौल अर फिर समय बचि जालो त थ्वड़ा सि जग्वाळ फिल्मो बाराम बि बुलल . . . . .पाराशर जीक जग्वाळ से ही मि प्रेरित हो मि फिल्म निर्माण मा औं। अब मि अपण भाषण खतम करदो।

पाराशर (अपण मन मा अफिक)-  ये जी द्विवेदी जी ! जरा म्यार गढ़वाली नाट्यकर्मी चरित्र  पर प्रकाश डाळदा तो तुमर क्या जांदो। कथगा दां दिल्ली मा हमन दगडि  गढ़वाली थियटर कार पण तुमन अपण फिल्मो अर जग्वाळ से तुम तै क्या प्रेरणा मील पर ही सरा समय  लगाइ पण एक शब्द बि  नि ब्वाल कि मि गढ़वाली थियेटर एक्टिविस्ट बि छौ।

अध्यक्ष - अब श्री दिनेश बिजल्वाण जी आप तैं पाराशर जी का कामुं बारा मा बथाला। चुंकि गढ़वाली संस्कृति अनुसरण का हिसाब से मीन दिनेश जी को बारा मा समारोह मा आण से पैल पता नि लगाइ तो मि दिनेश जी से प्रार्थना करदो कि अपण परिचय अफिक द्यावन।  
दिनेश बिजल्वाण -  धन्यवाद अध्यक्ष जी ! जु तुमन म्यार परिचय नि द्यायि। तुमन तो म्यार परिचय द्वी वाक्यों मा खतम करी दीण छौ अब मि अपुण परिचय सौ वाक्यों मा द्योलु अर समौ बचि गे तो 'जग्वाळ' फिल्म मा मा नाटकीयता पर अपणि राय दलू। मीन कथगा ही गढवाली नाटक लेखिन अर शेक्सपियर नाटक का अनुवाद बि तयार च  ........ अब मि 'जग्वाळ' फिल्म मा मा नाटकीयता पर बुलण शुरू करदो .....
  पाराशर (अपण मन मा अफिक)-  गजब च भै दिनेश बिजल्वाण। त्वै तै पता च मीन कथगा ही गढ़वाली नाटकों मा  पाठ ख्याल। गढवाली थियेटर खड़ा करण, गढ़वाली समाज तै अपण गेड़ीन पैसा खर्च कौरिक गढ़वाली  नाटक दिखणो  वास्ता मीन दिल्ली  मा जमीन तैयार कार।'औंसी कि रात', 'आन्दोलन', 'रिहर्सल' जन नाटक लेखिन अर निर्देशन - मंचन कार।  दिनेश भुला नाटककार हूणो नातो  तेरो उत्तरदाय छौ कि मेरो गढवाली नाटक विकास पर योगदान का बाराम बि लोगुं तैं बथांदो।

अध्यक्ष - अब मीमा पर्ची मा एक नाम आई क्या च धौं !  हां ललित केशवान ..! गढवालम  केशवान जात बि होन्दि मीन पैल बार सूण। खैर होलि  या केशवान जात बि। मै नि पता कि  ललित केशवान क्या करदन?. ललित केशवान जु बि  ह्वावो मंच पर आवो अर जु बि बुलणाइ बोलि जावो।

 ललित केशवान- अध्यक्ष जीन बोलि कि वूं तैं नि पता कि ललित केशवान को च? अध्यक्ष जी ! जब म्यार  द्वी नौनु ब्वार्युं तै इ नी पता कि म्यरो गढ़वाली भाषा सम्वर्धन मा क्या योगदान तो तुम  क्या जाणलि  कि मि कु छौं। जब अपण ही घौर वाळ साहित्यकार तै नि पछ्याणल तो भैर वाळु से क्या उम्मीद करण। हां तो मि द्वीएक कविता सुणैक फिर आप लोगुं तैं बथौल कि पाराशर भुला तैं जग्वाळ  फिल्म प्रदर्शन मा क्या क्या तकलीफ ऐन। ......पाराशर तै सिनेमा हौल मा प्रदर्शन करण मा ब्वै  बुबा  ऐ गेनि, क्या क्या ओसंद  आइ। पाराशर तैं फिल्म बणान मा उथगा परेशानी नि ह्वे जथगा परेशानी फिल्म एक्जिविसन मा होइ .....

पाराशर (अपण मन मा अफिक)- अरे केशवान जी फिल्म  प्रदर्शन की परेशानी पर तुमन इथगा ब्वाल तो एक वाक्य इन बि बोलि दींदा तो तुमर क्या जाणो छौ कि  पाराशर गौड़ को योगदान दिल्ली मा गढवाली काव्य संध्या अर कवि सम्मेलन संस्कृति  उर्याण मा बि च। केशवान जी ! तुम त दगड़ि छया कि हम तै पैल पैल  काव्य संध्या अर कवि सम्मेलन उर्याण मा कथगा औसंद आन्दि छे।
 अध्यक्ष - अब बल  नरेंद्र कठैत  नामको क्वी लेखक 'जग्वाळ' फिल्म मा व्यंग्य पर ब्वालल। अर चूँकि हम गढ़वाली लोग हिंदी का टुच्चा से टुच्चा साहित्यकार की जानकारी लीणम गर्व समजदवां पण गढ़वाली साहित्यकारों जानकारी लीणम हम तै बड़ी शरम लगदी तो नरेंद्र कठैत जू बि च जरा अपण परिचय अफिक दे देन।    
 
  नरेंद्र कठैत - मी गढवाली को सबसे बडो व्यंग्यकार छौं। श्री भगवती नौटियाल जी क अनुसार भविष्य मा बि में से बडो व्यंग्यकार गढवाली मा पैदा  ह्वे ही नि सकुद। याने कि न भूतो न भविष्यति ।  अब जन कि हम गढ़वाली साहित्यकारों सर्वमान्य संस्कृति  च  हम दूसरों साहित्य पढ़न मा बेज्जती समजदवां तो मि बि दूसरों साहित्य नि बांचदु। खैर मीन जग्वाळ फिल्म तो नि द्याख पण श्री भगवती  नौटियाल जी से जु बि सूण वै आधार पर जग्वाळ फिल्म मा व्यंग्य कथगा च पर बोल्लु।  .....सैत च मीन आधा घंटा बोलि आल होलु हैं !  ....तो यां से आप तै पता चल गे होलु कि  जग्वाळ मा कथगा व्यंग्य च।

पाराशर (अपण मन मा अफिक)- हे भगवान! गढवाली का बड़ा व्यंग्यकार !  जरा लोगुं तैं यी बि बतें दींदा कि मीन द्वी सौ से जादा गढवाली गद्यात्मक व्यंग्यों रचना बि कार तो तुमर गेड़िन क्या जांदो? 
 अध्यक्ष - अब डॉ नन्द किशोर ढौंडियाल से प्रार्थना च बल अपण परिचय देक 'जग्वाळ' फिल्म पर कुछ शब्द बोलिन 
डा  नन्द किशोर ढौंडियाल- मि डा नन्द किशोर ढौंडियाल छौं अर गढ़वाली साहित्य मा मि  कविता, समालोचना , भषा विज्ञान , अनुवाद आदि का बान अति प्रसिद्ध छौं।  का हिसाब से मि गढवाली समालोचना को नागेन्द्र छौं जो  हिसाब से समीक्षा करदा छा।  अब मि 'जग्वाळ' फिल्म की समीक्षा संस्कृत शास्त्रीय हिसाब से करलु।......तो या च जग्वाळ  शास्त्रीय समीक्षा ...
पाराशर (अपण मन मा अफिक)- डा ढौंडियाल जी ! जग्वाळ छोड़िक   मेरो साहित्य की बि जानकारी रखदा तो तुम क्या  जाणों कि मेरि जिकुड़ि मा कथगा सेळि पोड़दि? 

अध्यक्ष - अब गढवाली साहित्य का नामवर सिंह उर्फ़ वीरेंद्र  पंवार जग्वाळ फिल्म की साहित्यिक दृष्टि से समालोचना करला। नामवर सिंह जी से पुछण चांदो  कि  नामवर सिंह सरीखा भलो नाम  ह्वेक  बि वीरेंद्र पंवार उपनाम रखणै जरूरत क्या पोड़? 
वीरेंद्र पंवार - अध्यक्ष जी ! मेरो नाम वीरेंद्र पंवार च, मि बि गढ़वाली साहित्य मा आधुनिक ढंग से समीक्षा करदो  अर म्यार दगड्या मेखुण नामवर सिंह बुल्दन। अब मि  'जग्वाळ' की साहित्यिक दृष्टि से समीक्षा बथांदो ....... तो या च  'जग्वाळ' की साहित्यिक दृष्टि से समीक्षा ....

पाराशर गौड़ (जोर से ऐड़ेक, अपण झुला फड़दा फड़दा ) हे साहित्यकारों ! क्या छंवां जग्वाळ जग्वाळ लग्यां। वीरेन्द्र जी आप तै पता च कि मीन गढवाली मा द्वी से बिंडी कविता बि रचिन अर मेरो गढ़वाली कविता संग्रह 'उकाळ -उंदार'  भि प्रकाशित हुयुं च तो हे महाराज कबि तो मेरि कवितों बात बि त कारो  ....मेरो सम्पूर्ण गढ़वाली साहित्य की भी समीक्षा करो .... 
अचला नन्द जखमोला - मि एक  भाषा विद छौं अर गढवाली -हिंदी अंग्रेजी शब्दकोश कु रचयिता बि छौं . तो  मि पाराशर गौड़ तैं समजाण चांदो कि जग्वाळ एक सूर्य च अर तुमारो बकै साहित्य गैणा छन अर सूर्य का समणि दिन मा गैणा नि दिख्यांदन तो पाराशर जी तुम कथगा बि ताकत लगावो, कथगा बि जोर मारो , कथगा बि ताणी मारो , कथगा बि कोशिस कारो बात जग्वाळ की ही होलि अर तुमारो साहित्य तै  जग्वाळ का समणी क्वी नि पूछल।
पाराशर गौड़ (रुंदा रुंदा )- यांकि तो रुण च कि ......            
                               
         
                 
Copyright @ Bhishma Kukreti  12 /4/2013

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