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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, March 7, 2013

उत्तराखंड में संगीत पर्यटन


डा . बलबीर सिंह रावत


संगीत मानव ह्रदय की भावनाओं की वह अभिव्यक्ति है जो स्वरों की लहरों के साथ मुंह से निर्झरित होती है. संगीत में वे सारे रस होते हैं जो मनुष्य की भावनाओं के अलग अलग रूपों को, यथोचित, अलग अलग ताल, अलाप दे कर गा कर सुनाये जाते हैं ताकि सुनने वाले समझ लें, अनुभव करें और साथ हो लें। अपनी इस कला को, आदमी ने कालान्तर में कई प्रकार से सुधारा, संवारा। प्रवीनो ने साधनाओं, शोधो और अनुभवों से शाश्त्रीय संगीत को जन्म दिया, तो आम जन ने लोक संगीत को। संगीत की यह दोनों धाराएं किसी भी समाज के आचार, व्यवहार और संस्कार का दर्शन कराती हैं। जहां शाश्त्रीय संगीत का पूरा आनंद लेने के लिए उसकी सारी धाराओं का मूल ज्ञान होना सहायक होता है, वहीं लोक संगीत के धुनें इतनी आकर्षक और धरातली होती हैं कि उनका आनंद हर कोई ले सकता है.
संगीत के इसी अद्भुत गुण के कारण संगीत समारोहों का आयोजन अब एक आम चलन हो गया है, और जहां कही भी भीड़ जुटानी हो, या भीड़ को बांधे रखना हो वहाँ संगीत बजाना तो जैसे एक धर्म सा ही हो गया है. पर्यटन उद्द्योग भी संगीत के महत्व को समझ कर पर्यटकों को लुभाने के लिए लोक संगीत को महत्वपूर्ण स्थान देने लगा है. और पर्यटक स्वयम ही जहां भी जाता है वहीं अपनी गायकी से लोगों को आकर्षित करना चाहता है और स्थानीय लोगो के लोक गीत भी सुनना चाहता है. उत्तराखंड के सन्दर्भ में अभी ऐसे प्रयटन स्थल विकसित होने रह गए हैं, जहां रात्रि विश्राम की सुविघाओं में संगीत को मुख्य आकर्षण का दर्जा दिया गया हो. हाँ केवल संगीत सभाओं का आयोजन संगीत प्रेमी करते रहते हैं और ऐसे आयोजनों का पर्यटन से कोइ सम्बन्ध नहीं होता है. चूंकि, पर्यटकों की रात्रि विश्राम व्यवस्था स्थापित है
और सगीत सभाएं भी आयोजित हो रही हैं, तो इनका मिलाप आसान हो सकता है, अगर दोनों के आयोजक साथ मिलकर काम करने का मन बना लें तो। आवश्यकता है संगीत को पर्यटन से जोड़ने की,इसके लिए पहल पर्यटन उद्द्योग को ही करनी होगी क्योंकि, एक तो वह व्यस्थित है, दुसरे जहां भी पर्यटकों के विश्राम की व्यवस्था है, सगीत आयोजन वहीं हो सकते हैं। हर स्थान में लोक संगीत के अच्छे गायक मौकों की प्रतीक्षा में हैं। इनको एक साथ लाना तो सरल है, लेकिन यह तय करना उतना आसान नहीं है की किस प्रकार के पर्यटकों को किस प्रकार का लोक संगीत पसंद आयेगा, और साथ साथ स्थानीय संस्कृति, रिवाजों का सही रूप कौनसा है जो आगुन्तकों को मेजमानों की जीवन शैली का सही परिचय दे पायेगा?

उत्तराखंड में पर्यटकों के तीन प्रमुख समूह आते हैं, एक तो धार्मिक है जिसमें ८० % से अधिक पर्यटक आते हैं, दूसरा घुमंतू है, जो अपनी दैनिक जिन्दगी के उबाऊ, थकाऊ वातावरण से अलग हो कर कुछ दिन आराम से, अपनी आत्मिक तथा शारीरिक शक्तियों को पुनर्रचित करना चाहते हैं, तीसरे प्रकार के पर्यटक हैं जो पर्वतों की विषमताओं से भिड़ कर अपने शारीरिक और आत्मबल से परिचित हो कर उसका विकास करना चाहते हैं। लोक संगीत में इन तीनो तरह के आगंतुकों के लिए, विशिष्ट तरह के गीतों नृत्यों की प्रचुरता है , आवश्यकता है, इसके ऐसे वर्गीकरण की कि तीनो तरह की पसंदों को यथोचित संगीत से परिचित और प्रोत्साहित किया जा सके। कौन करेगा यह वर्गी कर्ण,, कैसे करेगा और किस प्रकार विशेष सगीत दल तैयार होंगे, इसके लिए निम्न सुझाव हैं;-

1. धार्मिक पर्यटकों के लिए ऐसे गीत जो धर्म और आध्यात्म से सम्बंधित हों, साथ में स्थानीय संस्कृति से परिचित कराने वाले गीत ,

2. साहसिक पर्यटकों के लिए, जोश और उत्साह भरने वाले वीर रस के और धनात्मक शब्दों वाले गीत और मनोरंजन कररने वाले सौम्य गीत,

3. आराम और पुनर्रचित होने के लिए आये हुए पर्यटकों के लिए, मनोरंजन, संस्कृति और साहस वाले उत्साहवर्धक गीत ,

4. लोक गीतों-नृत्यों का उपरक्त प्रकार का वर्गीकरण करने और सांस्कृतिक सुचिता को बनाए रखने के लिए संगीतकारों,बौद्धिक समाज सुधारकों, और शाश्त्रीय संगीत तथा नृत्य कोरियोग्रेफ़ी के विशेषज्ञों की समिति का गठन आवश्यक है.समिति उत्तराखंड के पारम्परिक लोक गीतों और नृत्य शैलियों का पिछले कई दशकों के भूले बिसरे तथा आज के प्रचलित गीतों का संकलन करके उन्हें पुनर्जीवित कर सकती है.

5. सुरीले स्वरों वाले स्थानीय गायकों, गायिकाओं का चयन करके उनके स्थाई दल बना कर उन्हें प्रयटन व्यवसाय की आवश्यकताओं, गरिमाओं के लिए प्रशिक्षित कर के उनके स्थाई दल गठित करना ,

6. उत्तराखंड के लोक संगीत और लोकगीतों-नृत्यों पर शोध, और स्थानीय संस्कृति को उजागर कराने वाले नए आयाम जोड़ने के लिए एक लोक संगीत-नृत्य अन्वेषण संस्थान का गठन करने से ही लाभ होगा  

सर्वाधिकार @ डा . बलबीर सिंह रावत

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