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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, March 3, 2013

यादु की फंची धरी मुंड मेरा ,


यादु की फंची धरी मुंड मेरा ,

जाणे कख हर्चे तू , हे ल्ठ्याली ,

लगै सबबी सक्की चौ दिशि भ्ट्याण्यो ,

पर त्वे तक बाच पौंछी नि ल्ठ्याली ,

हे ल्ठ्याली, सुन धौं ल्ठ्याली I

खुंटी मई बैठी कबि हेरी बाटो ,

कबि धार माँ गयऊँ दौडीक ल्ठ्याली ,

नि औणु छोऊ त्वैन , जाणदू छो मै खूब,

परेखणु रयों फिर बि अपनों विशवास ल्ठ्याली ,

हे ल्ठ्याली, सुन धौं ल्ठ्याली I

द्यवतौं का थान गयों मै ,

माँगणोऊकु हाति तेरी गुन्द्क्यालि

देखि वुन्की खौलीं सी गिच्ची ,

समजी ग्यों मई, कि मैन क्या मांगी याली

हे ल्ठ्याली, सुन धौं ल्ठ्याली I

रै नि सकदु बिना त्वाई जू द्वी घडी भी ,

बिसमै माँ छो कि कनै उमर काटी याली,

बाडु भरैक ऐगे हे मेरो ,

बगणी चांदी कूल ... हे तोड़ी हर बंद ल्ठ्याली

हे ल्ठ्याली, सुन धौं ल्ठ्याली I

रएँ सदानी तू सैदिस्ट मेरा , बनिक अपछाणकु ल्ठ्याली ,
पर व आज बी खित हैन्सी जान्द ,हे

थर्पिं च मूर्ति तेरी जू मेरा ज्यू की पठाली,
ल्ठ्याली, सुन धौं ल्ठ्याली I

By: Dinesh Bijalwan

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