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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, March 27, 2013

होटल विपणन से उत्तराखंड पर्यटन विकास


डा . बलबीर सिंह रावत  (देहरादून )                                                    


होटल व्यवसाय और पर्यटन व्यवसाय एक दुसरे के पूरक ही नहीं , अभिन्न अंग भी हैं। हर पर्यटक अपने घर से दूर, किसी उद्दयेश को ले कर जाता है , चाहे वह केवल नईं जगहों की दृश्यावलियों  का आनंद लेने जा रहा हो, या  धार्मिक स्थलोँ की यात्रा  करने, या व्यावसायिक काम से या किन्ही अन्य  कारणों से। उसे वहां ठहरने, खाने पीने , आराम करने , आने जाने  और खाली समय में आमोद प्रमोद की सुविधाएँ चाहिये होती हैं , वह भी अपनी मन पसंद की .
होटल व्यवसाय का यह उद्देश्य रहता है कि वह पर्यटकों को वे सारी सुविधाएं प्रदान करें जो उन्हें इतना प्रसन्न कर दें कि भविष्य में स्वयम तो वहीं आंय , अपने सारे परिचितों को भी वहीं ठहरने की राय, स्वेच्छा से, दें। यानी आपकी सेवावों से इतने प्रभावित हो जांय की वे आपके होटल के स्वेच्छिक प्रचारक बनें।

ऐसी विपणन व्यवस्था के लिए हर होटल व्यवसायी को कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना होता है , प्रमुख बातें इस लेख में नीचे दी गयी हैं .      
१. उत्तराखंड में पर्यटक मुख्यतः धार्मिक कारणों से आते है और उनके आने के रास्ते हृषिकेश, कोटद्वार,रामनगर,और काठगोदाम/हल्द्वानी से हैं। हवाई यात्री  देहरादून , पंतनगर और सेनिखैनी से आगे जाते हैं . यहाँ से ही जाते हैं वे अपने गंतव्यों , चारधाम, हेमकुंड साहेब  और कैलाश के लिए मोटर मार्गों द्वारा  ही जाते हैं . कई नवयुवक अपनी मोटर साइकिलों से, और परिवार वाले गाड़ियों, और बसों से भी आते हैं . 
दुसरे प्रकार के पर्यटक  सैलानी पर्यटक  हैं , इनके गंतव्य स्थान मुख्यत: मसूरी, नैनीताल होते हैं,  फूलों की घाटी के अलावा कुछ अन्य स्थान भी उभर रहे हैं। साहसिक खेलों में से अब तक केवल रिवर राफ्टिंग ही प्रचलित हो पाया है और वह भी कुछेक स्थानों पर हॆ.      

२. आगंतुकों की आर्थिक क्षमता के वर्ग, उनकी उम्र , उद्द्येश्य और  प्रयटन में आने का बजट ही होटल व्यवसाय की आय निर्धारित करता है. यह ऐसा माँना हुआ सत्य है कि जिस भी होटल व्यवसायी ने इस सत्य को पूरी तरह से पहिचान लिया और उसी के अनुसार अपने व्यवसाय की स्थापना करके उसे बढाया,  वह ही अधिक सफल हुआ है। 

३. होटल उद्द्यामियों के अपने उदेश्य , कि पर्यटन सीजन में ही अपने साल भर की अपेक्षित आय का प्रबंध करें , उपरोक्त जानकारियों से ही प्रभावित होते हैं, कि उद्द्यमी किस प्रकार, कैसी सेवाएँ  देकर ,अपना उद्देश्य प्राप्त करने के साथ साथ अपनी साख भी स्थापित कर पाने में सफल हो सकते हैं . कैसे अपनी सेवाओं को इतना उत्कृष्ट बना सकते हैं की हर आगंतुक पाहिले उनके होटल में आने का इच्छुक हो. इसके लिए होटल के सभी सुविधाएं, सेवाएँ , आचरण, वातावरण,  मनोहर हों , यादगार हों और उद्यमियों, कर्मचारियों के लिए उत्साह बर्धक हों।

४. उपरोक्त मूल भूत जानकारियों/आवश्यकताओं  के समुचित निर्णयों के बाद यह  निर्धारित करना आवश्यक है होटल कहाँ स्थापित हो, उसका आकार कितना बड़ा हो, उसमें क्या क्या सुविधाएं हों ,  जैसे यथोचित पार्किंग व्यवस्था , सुरक्षा, स्वास्थ्य (डाक्टर ),साफ़, लुभावने कमरे, बिछौने, सुन्दर बनावट, स्वादिष्ट भोजन, आमोद प्रमोद की ऐसी सुविधाएं, जो हर आगंतुक वर्ग के पर्यटन उद्द्येश्य से मेल खाती हों, बाहर लॉन , फुलवारियां , बैठने की लिए आरामदायक स्थान, और स्थानीय कुटीर और लघु उद्द्योगों में उत्पादित लुभावनी वस्तुओं का विक्रय केन्द्र , साथ में आस पास के दर्शनीय स्थलों के विडियो क्लिपों को दिखाने की ,समुचित यातायात /आवागमन व्यवस्था के लिए अपनी या निर्धारित किराए पर टैक्सिया/मिनी/बड़ी आरामदायक बसें,प्रशिक्षित मार्ग-दर्शक (गाइड ) की , आने पर स्वागत और बिदा होने पर यादगार मेंमेंटो, लुभाने वाला व्यवहार करना ही इस उद्द्योग की स्थायी सफलता की शर्त है. 

५. अब अंत में आता है ओह सबसे महत्व पूर्ण काम जिसके बिना उपरोक्त सारे प्रबंध अधूरे ही रह जाते हैं। यह है होटल उद्द्योग की विपणन  कुशलता। 
विपणन के लिए आजकल नाना प्रकार के साधन उपलब्ध हैं जैसे होटल के अपनी वेब साईट, ऐसे  टी भी  चैनलों तथा अखबारों, पर्यटन संबंधी प्रकाशनों में विज्ञापन  जो लक्ष्यित पर्यटकों को यथोचित समय पर, प्रभावी रूप से , आकर्षित कर सकें .  यह सारे प्रचार साधन , होटल के उद्द्येशों के अनुरूप,  राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय या क्षेत्रीय/स्थानीय  स्तर के हो सकते हैं . एक प्रचलित तरीका यह भी है कि  ऐसी सारी  होटल इकाइयों का संगठन बना कर, स्थल-विशेषों पर  होटल  उप्लाधियों और सुविधाओं का विस्तृत व्योरा दिया हो और सारी इकाइयों के नाम वर्णित हों . ऐसे सम्मिलित विज्ञापनो के खर्चे भी कम होते हैं.  

६. एक और असरदार तरीका भी है कि हर होटल अपनी विशेषताओं का ऐसे सही और लुभावने वर्णन पुस्तिकाये छपायं और उनमे  होटल की सारी खूबियों का वर्णन हो , होटल तक पहुँचने का नक्शा  और यातायात की सुविधा को  (अगर होटल की अपनी गाड़ियाँ हैं तो उनका भी) पहिचानने का जिक्र भी हो। इन पुस्तिकाओं को राज्य के अन्दर आने वाले प्रवेश स्थानों पर, हर बस में, हर टैक्सी या निजी वाहनों सवारियों में वितरित करने की समुचित व्यवस्था होने से  सूचनाये सही रूप में सही लोगों तक पहुंचाई जा सकती है।

७. यह ध्यान रखना भी आवश्यक है कि कहीं अतिशयोक्ति न हो ,स्वस्थ प्रतिस्पर्धा  हो, और जो कुछ भी  विपणन में दर्शाया गया है वोह वास्तविक हो , सरल भाषा में हो, आसानी से पढ़ने-समझने योग्य हो और  हो सके तो जिस क्षेत्र के पर्यटक आ रहे हों , उनकी ही भाषा में हो तो एक लगाव उत्पन्न हो जाता है। लगाव ही होटल व्यवसाय की सफ़लता का मूल मन्त्र है। अगर आगंतुक आपके होटल को "अपने घर से दूर, अपना घर" जैसा पाता है तो आप सफल होटल व्यावसाई बन जाते हैं।
                         
Copyright@ डा . बलबीर सिंह रावत  (देहरादून

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