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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Saturday, March 23, 2013

नाटा की जिन्दगी (बैचलर लाइफ़ )


गढ़वाली हास्य-व्यंग्य 
सौज सौजम मजाक-मसखरी  
हौंस इ हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा
 
                  नाटा की    जिन्दगी  (बैचलर लाइफ़ )
 
                   चबोड़्या - चखन्यौर्याभीष्म कुकरेती
(s = आधी अ )
 
     ब्यौ से पेल बैक की जिन्दगी बिताणै अभिलाषा हॊन्दि अर ब्यौ परांत अभिलाषा रौंदि एक दिनों ले कुण मि नाटा (बैचलर ) की जिन्दगी बितौं।   
आजि घरवळि  मैत ग्यायि ,  जख हिंदी की  हीरोइन जन स्याळि छन क्वी करीना कपूर जन च तो क्वी सोनाक्षी सिन्हा जन . मेरि घरवळि  घरवळि जन इ च पण म्यार सबि सडडू भाई वीं तैं कटरीना कैफ माणदन। क्या कटरीना कैफ गुसा हुन्दि ह्वेलि जो म्यार सडडू भाई मेरि घरवळि तैं  कतरीना कैफ चितांदन?
   खैर मेरि घरवळि मैत ग्याइ  जख हिंदी फ़िल्मी हीरोइन जन मेरि स्याळि  बि रौंदन।
अब भौत दिनों बाद नाटा जिंदगी बिताणों  अभिलाषा पूरी ह्वाइ।
मीन भौत कुछ सोचि याल छौ कि बैचलर जिन्दगी को दुबर लुफ्त उठाये जावो।
                   अब  चूँकि मुंबई मा कुखुड़ त छ नीन  जो बांग देकि लोगुं तैं बिजाळन। सो इ काम सब्युं  घरवळि करदन अर कुखुड़ो बांग ना कुण कुण करिक अपण अपण घरवळु  तैं बिजाळदन। मनोवैज्ञानिकों  कुणि एक बढ़िया विषय च कि बिजणो खुणि कुखड़ो बांग सुविधा जनक होन्दि कि घरवळि क कुणकुणाट! खैर मीन सोचि आल कि मि अब घाम आण का बाद ही बिजलु अर देर तलक लम्पसारिक सियुं रौलु। पण सुबेर सुबेर दूध वाळन घंटी बजाण इ च। अखबार वाळन घंटी बजाण इ च। चौकीदारन घंटी बजाण इ च कि पाणि कम आलो या पाणि ठीक मात्राम  आलो। अर अब जब ब ऑफिस जाण तो घंटी बज या नि बज समौ पर बिजण इ च। याने कि सुबेर सुबेर बिजणो मामला मा नाटों (बैचलर )  जिंदगी अर बैक (नॉन बैचलर ) जिंदगी मा  क्वी फरक नि पोड़दु।
  फिर मीन सोचि बल जनि मि बिजदु छौं  घरवळि पैथर पोड़ी जांदी बल दांत मजा , दांत मजा। मीन सोचि आल कि मि सुबेर उठिक दांत नि  मंजौल! पण फिर स्वाच कि जब ऑफिस जाण तो दांत तो मंजाण इ पोड़ल इना चाय बणाणो पैन गैस माँ धरण अर उना मै तैं दांत मंजाण ही पोड़ल। याने कि दांत मंजाणो हिसाबन बि बैचलर अर नौन बैचलर जिंदगी मा क्वी अंतर नि पोड़ण।
                                  
 फिर मीन स्वाच कि घरवळि ह्वावो या नि ह्वावो झाड़ा तो समौ पर ही जाण पोड़ल। ऑफिसम मीटिंग छोड़ी झाड़ा थुका जाये जांद। याने कि टटी पिसाब को मामला मा बि नाटा जिंदगी अर बैक (नॉन बैचलर) जिन्दगी म क्वी फरक नि पोड़द।
    अब घरवळि ह्वावो या नि ह्वावो दाढ़ी तो बणान इ च,नयाण बि च अर जरा परफ्यूम बि लगाण जरूरी च तो यूं मामलों मा बि द्वी जिन्दग्युंम क्वी फरक नि पड़न।
 जख तलक नास्ता को सवाल च तो कुछ फरक होलु कि म्यार बणायां टोस्ट अर ऑमलेट जऴयां होला अर खाणम अवश्य ही कड़ुवा होला  पण  जऴयां टोस्ट अर जऴयूं ऑमलेट खाण से बेहतर तो घरवळि चकचक ही ठीक च। इना दांतुं बीच टोस्ट अर उना  घरवळि चकचक अर इनमा कैचअप की जरूरत पड़दि नी च।
 
  ऑफिसम मेरि घरवळि म्यार दगड़ च या नी च से क्वी फरक नि पड़न। म्यार बौसन म्यार काम से खुस नि होण अर डांटण छैंइ च अर मीन अपण तौळ वळु काम से खुश नि होण अर मीन कै ना कै तै  बेवजह डांटण ही च। तो ऑफिस को मामला मा बि बैचलर अर नौन बैचलर जिंदगी  से क्वी फरक नि पड़न।
  जख तलक दारु सारु को हिसाब च तो घरवळि होण पर बि जब दगड्या मील जावन तो हम होटलम दारु पार्टी करदा इ छंवां अर  घरवळि नि होण पर बि होटलम दारु पे सकुद।
जु मि ड़्यारम दारु पीण चांदो तो मि अपण स्टडी रूम मा दारु घरवळि हूंद बि पींदु इ छौं अर घरवळि हमेशा सलाद अर नमकीन दींद दै तून दीण नि बिसरदी। जै दिन सलाद अर नमकीन दीन्द दें घरवळि नि डांटदि तो मि समज जांद कि वा में से नराज च। बस बैचलर जिन्दगी अर नौन बैचलर जिंदगी मा यो फरक ही होलु। जख तलक डिन्नर को सवाल च इखमा बि क्वी जादा फरक  नी च। बिल्डिंग मा  दुसर फ़्लैटम म्यार कणसो भाई रौंद तो डिन्नर उखि खाण पोड़ल अर उल्टां में तै जादा अनुशासन मा डिन्नर करण पोड़ल।
                 
 अब मि घंघतोळ मा छौं बल छौंद घरवळि  जिंदगी अर बैचलर जिंदगी मा क्या फरक च? म्यार हिसाब से  तो घरवळि दगडै जिंदगी जादा भलि च। तुमर क्या बुलण च?  
 
 
  Copyright @ Bhishma Kukreti   23 /3/2013  

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