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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, February 7, 2013

बचपनs सवाद

गढ़वाली हास्य व्यंग्य
हौंसि हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा
                                           बचपनs सवाद
                                       चबोड्या: भीष्म कुकरेती
(s=-माने आधी अ )
बचपनौ कुछ स्वाद इन होंदन जु ज्युन्दिम त नि बिसर्याँदन अर तबि बिसर्यांदन जब मनिख वै जमानो चलि जांदु।
अब सि द्याखो ना सुबेर सुबेर सुबर बिजिक बगैर मुख धुयां अर बगैर दांत मंजायां बासी चुनै या ग्युंs रुटि गरम गरम चा मा खये जान्दि छे त अहा क्या सवाद आंदो छौ। अमृत त मीन नि चाखो पण मै लगद अमृतौ स्वाद चा मा बासि रुटि जन ही होंदु ह्वालु !

इख मुम्बैम पेल त घरवळि बासि रुटि रौण नि दींदि (टुप उथगि पकवांदि जथगा जर्वत च ), फिर माना एकाद रुटि बासि रै बि जावों त वा खाणि नि दॆन्दि बल लोक क्या ब्वालल बल भिषम जन मैनेजर बासि रुटि। अर हाथ पात जोड़ी वा बासि रुटि खाणों इजाजत दे बि द्यावो त चा छ्वटु कप क्या कपि पर नापि तोलि चा देलि अर वां से पैलि चौकसि कौरि लेलि बल मीन साबणन मुख धुयाल कि ना दांत मंजै ऐन कि ना। पण इ राम दां बासि रुटि अर चा वु स्वाद नि आंदु जु सुबेर सुबेर सुबर बिजिक बगैर मुख धुयां अर बगैर दांत मंजायांम आंदु छौ।

फिर एक हैंको स्वाद च जु बिसरण चाण से बि नि बिसर्यांद अर वा च झाड़ा जाणो बाद कल्यो (नक्वळ/नास्ता). कल्योमा मीन बचपनम रोज चूनौ रूटळ इ खै होला अर मेरि घरवळिक हिसाबन चुनौ रुटि माने गरीबुं ब्रेकफास्ट त हमर इख चून आंदो इ नि छौ किलैकि मेरि घरवळिs हिसाबं मि मातबर छौं। अब जब डाइटिष्टोंन अमीरों खुण चूनौ खाणक प्रिस्क्राइब करण शुरु कौरि बि आल त मेरि वाइफ़ चूनो रूटळ ना चूनो फुलका दगड़ करेला रस या गाजरौ रस दींदि। अब तुमि बथावो म्यार बचपनौ सवाद वापस मीलि सकुद क्या? अरे कख बचपनम म्वाटो म्वाटो चूनौ रूटळ अर कख चूनो फुलका! अर फ़िर चूनौ रूटळ घ्यू या सागम खये जांदो छौ। क्या मेरि उमरौ मनिख चूनो फुलका गाजरो रस या करेला रसौ दगड़ खै सकुद?

फिर नक्वळ याने ब्रेकफास्टौ बाद मि द्वी घत पाणि लांदो छौ त इथगामा सौब जो बि खायुं ह्वावो वो पचि जांदो छौ अर तैबर तलक ग्विरमिलाक (गोर चराणों लिजाणौ बगत) बि ह्वै जांदो छौ अर तैबर तलक ब्वै (अब वा मेरि ब्वै नि रै गे माँ ह्वे गे) पऴयो या फाणु-बाड़ी या झन्ग्वर-कपिलु तयार करि दींदि छे। जू बि पक्युं होंद छौ वो सवादि होंद छौ। अब जब मि मुम्बै औं अर ब्वै सौरि मेरि माँ बि मुम्बै आयि त ब्वै अर घरवळिs हिसाब से हम सब अब सभ्य याने सिविलाइज्द ह्वे गेवां त फाणु, बाड़ी,पऴयो, झंग्वर,कपिलु आदि सभ्यता क भेंट चढ़ी गे।
परार मि परिवारौ दगड़ नागराजा पुजैम गौं जायुं छौ अर एक बोडिक इख जनि फाणु-बाडि खाणों बैठि छौ कि ब्वै अर घरवळि द्वी ऐ गेनि अर दुयुंन मि तै असभ्य हूण से बचै दे। अब कुज्याण कबि फाणु, बाड़ी,पऴयो, झंग्वर,कपिलु मिलदो बि च कि ना धौं?

अब जब फाणु, बाड़ी,पऴयो, झंग्वर,कपिलु खाणों नि मिलदो त लिंगड़, खुंतड़, मूळाs थिञ्च्वणि, बसिंगू, कंडाळि की बात इ क्या करण? कुछ सवाद निपांदो ( जो सुलभ ना हो या न मिलने के कारण) भेंट चढ़ अर कुछ सभ्यता भेंट चढ़।
कबि कबि मि गाणा गांदु बल "कोई लौटा दे रे मेरे बचपन के दिन, कोइ वापस ला दे रे मेरा बचपन का स्वाद" त मेरि गढ़वळि घरवळि तून (ताना ) दींदि ," तुम गढ़वाली कभी नही सुधरोगे। मुंबई सरीखी जगह में रहकर भी आदि वासी रहना चाहते हो।"

Copyright@ Bhishma Kukreti 8/02/2013 

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