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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, February 4, 2013

लोकमंगलs धड्वै कवि डा. सत्या नन्द बडोनी


  भीष्म कुकरेती
[s =माने आधी अ ]

म्यार हिसाब से अमूनन गढ़वळि कविता द्वी तरां हूंदन -अबोध बंधु बहुगुणावादी अर कन्हयालाल डंडरियालवादी कविता। बहुगुणावादी कविता बुद्धिवादी या पौरुषीय कविता ह्वे अर डंडरियालवादी कविता माने जिकुड़ेळि कविता या अपौरिषीय कविता । सत्या नन्द बडोनीs कविता बहुगुणावादी छन।

अबि तलक सत्या नंद की कविता इनै अखबारोंम छपेणि रैन अर 'ताता दुधै घूँट' ऊंको पैलो कविता-खौळ (संग्रह) च जो गढ़वळि साहित्यौ भंडारों बान एक नायब कविता -गळ (संग्रह ) च.
सरस्वती वन्दना कविता मा जख माँ सरसुती स्तुति च त 'हे माँ शिवा हे' आदि देविक भजन च।
सत्यानन्द पुलिस की नौकरीम रौंदा बि गुनाही कविता नि गंठ्यान्दन बल्कणम बडोनी की कवितौं मा दर्शन अर अड़ेंदरि (शिक्षादायक अर प्रेरणा दायक) कविता जादा छन।

कवि बड़ो संवेदनशील होंद, चितळ रौंद । जब कवि कि नजर आजै बिगड़दि नाजुक स्तिथि पर पड़दि त 'सोने की पोथली' कविता उपजदि।

दर्शन को अर्थ होंद 'द्रिश्यते अनेन इति दर्शनम' याने कि जु दिख्यांद च वो ही दर्शन च। अनुभव से दिख्युं बथ दर्शन होंद। सत्या नंद बडोनीs अनुभव काबिलेतारीफ च। पुलिस की नौकरी ना बाळोपनो संस्कार वजै से बडोनीs कलम से दार्शनिक कवितौं छमछ्याट छुटद अर इनमा 'विधाता की लेख', 'मनखि जीवन', 'तातै दूधै घूँट','अनर्थ', 'बिलमेणै चीज', 'संगत की शोभा', 'मनन करदौं', 'अग्यौ', 'बिराळि','न जाणि किलै', 'बचपन',कुत्तौ पूछ, 'जग्दि लाखड़ि','इंसानी रंग', 'भागै की भताक','बग्वाल',जन दार्शनिक कविता गढ़वाळि साहित्यौ शान बढ़ान्दन। कवि लोकहितैषी होंद अर वो वूं बातों तै बथांदो --दुःख क्या च ? कवि बथांदो क्या ताज्य च? कवि सुणान्दु दुखो असलि वजै क्या च? कवि दिखांदो बल दुखो अभाव क्या च ? अर फिर आखिरैं कवि अपण जुमेवारी बि समजदो कि वो समाज तै बथाओ बल दुःख निवृति का क्या साधन छन? अर खौंऴयाणै बात नी च बल दर्शन को भी यो ही काम हूँद -हेय,हेयहेतु,हान हानोपयाय च दर्शनस्य कर्मा। कवि सत्यानंद अपण लोकहेतु कर्म का मामलाम पूरो खरा उतरद। जादातर दर्शनशास्त्री अर दार्शनिक कवि गूढ़ बथों तै बथांणम जटिल शब्दों इस्तेमाल कौरिक विषयों तै निसमजण लैक बणै दीन्दन पण लोकहितैषी, लोकमंगल को धड्वै कवि सत्यानंद बडोनी की दार्शनिक कविता सरल छन अर जै विषय तै समजाणम संत- महात्मा घंटों लगै दीन्दन वुखि बडोनी द्वी पंक्तिमा अपणि बात बथे दींदो अर वजै च बडोनी को सच्चो अनुभव आधारित कविता सरल शब्दोंम गंठ्याण। हमारा साहित्यौ अंक्याणेर/ सुकट्यों (समालोचकों ) तै त्याग, सच , ग्रहण जन गूढ़ विषयों तै समजाणम ध्वनि(रस), अलंकार , कहावतों सामजस्य वास्ता सत्यानन्द बडोनीक बडै करण इ पोड़ल।

गढ़वाल एक खेती पाती देस च अर फिर गढ़वळि कवितौंम अनाज , प्रकृतिs बात नि ह्वाओ त वो गढ़वळि कविता-खौळ (संग्रह) इनि लगल जन चटपटो साग बणाणम क्वी लूण डळण बिसरि जावु। प्रकृति अर खेती पाती छ्वीं गढ़वळि कविता-खौळ को एक जरूरी उपादान या अंश च। सत्या नंद बडोनीs 'चीणा','धन्य हम तैं','हिमवंत देश' जनि कविता बंचनेरूं मनम गढ़वाळौ भौगौलिक अर मानवीय प्रकृतिs विम्ब बणाणम पूरा सक्य (समर्थ) छन।

जनानी अर ब्वे बगैर जानवर, मनिख इ ना पेड़ पौधा बि नि जनम नि ले सकदन। नौनि छ्वटि बि ह्वावो तबि बि स्या ऊर्जा दिंदेर होंद; जनान्युंम वा सहनसक्यात होंद जो ऊं तै कठण से कठण परेशान्युं से लडनो ताकत दींद अर वो परेशानी पार करि दीन्दन।जनानि इन लडै लड़दन जो मर्दों समजण से भैर होंद। जनानि बेटि,ब्वारि, ब्वैs जिम्मेदारी बगैर सिखायों निभान्दि। स्त्री त्यागै मूर्ती माने जांद अर पिरथवी रूप हूंद। कथगा बि , कनि बि सरैलो या मन को बोझ ह्वावो जनानि वै बोझ अऴगाणम पैथर नि रौन्दि। इनि जनान्युं बनि बनिक रूप सत्यानन्द बडोनीs 'गढ़नारी', 'माँ इन कुछ चितैगी', 'माँ', 'धै','रात खुलगि','स्वीलि पिड़ा', 'तेरा न होण का बाद', कवितौंम मिलदन। जनान्युं संबंधी कवितौं मा सत्यानन्द न गढ़वळि प्रतीकों/चिन्हों/निसाण्यु बड़ो बढ़िया प्रयोग कर्युं च।

'अपणैस' कविता विचारोत्तेजक ढंग से नौनु- अर नौनिम समाजौ दूरंग्या बर्ताव पर दुःख जतांदि।

जख टीरी डाम दिल्ली अर उत्तर प्रदेश वाळु खुण एक बरदान च उखि टिहरीs डुबण टीरीवळु कुणि एक दुःख दिन्देरि घटना च। सत्यानन्द बडोनीs टीरीवळुक टीरी से भावनात्मक लगाव की ब्यथा 'टीरी' कविताम कळकळि भौणम बयान करदि।


जु गढ़वाळम जनम्युं ह्वावो पर्यावरणौ बान स्वत: ही सचेत/चितळ रौंद अर योइ वजै च गढ़वाळि कवितौंम पर्यावरण बचाण एक जरूरी विषय होंद। कवि सत्यानन्द की पर्यावरण संबंधी कविता 'अग्यौ', 'सारु जीवन तुम तैं', 'राजघटौ पाणि', 'डाळि एक लागौऊ' जन कविता बथान्दन बल कनो एक आम गढवाळि पर्यावरण का प्रति चितळ च , सचेत च। उन यि कविता अडंदेरि कविता छन।
पलायन गढ़वाळ की एक भौति बड़ी समस्या च यीं अणसुऴजीं समस्या सूत भेद लॆन्दि कविता छन -जन कि ' टेकण्या बि हर्चेली कविता।

मनिखम देशभक्ति एक आवश्यक भावना च अर बडोनीs 'जन्ननी जन्म भूमि', 'ऊं तै सैल्यूट' कविता ज्वानु तै सेनाम भर्ती हूणों अफिक प्रेरणा दींदन।

कवि समाजौ आइना हूंद अर बडोनीक 'चिट्ठी (उत्ताराखंडै उ . प्र .तै ), उत्तराखंड मिल गैइ कविता बथांदन बल कन हम उत्तराखंड बणनम पुळे छया अर फिर 'गिल्ली हम डंडा क्वी' उत्तराखंड की कुदशा को बिरतांत लगान्द।
जू यखा का छये नी
वीई लोग !

लट्ठा लितैं हम तैं हांकणा
वक्त -बिवक्त हम तै डांट णा
कथगा इ कविता जन कि 'लम्पू', 'गीता', 'कुर्सी' अदि कविता समाज , राजनीति अर प्रशासन पर व्यंग्यौ कुलाड़ी चलाणम सक्षम कविता छन।

'हिमवंत देश', 'गढ़ संस्कृति' गढ़वाल प्रशंसा की कविता छन।
विषयों मामलाम डा सत्यानन्द बडोनीम विषयों भरपूर भंडार च।
'सरस्वती वन्दना' दोहा रूपम च त बकै कविता नया रूप याने स्वछन्द कविता छन। कवितौं मिजाज गढ़वाली साहित्य तै आधुनिक रूप दीणों तरफ च।

कवितौं भाषा अर गंठ्याँणै कौंळ/ब्यूंत सरल होण से बोझिल विषयूं कविता बि बोझिल नि छन।
कथ्या कविता ननि कथा रूपम बि छन जन कि 'बंठा लिजाण या गागर', 'औकात' आदि अर पैथरां इ कविता बंचनेरूं तै खौंऴयांद बि छन।

प्रतीकों मनुष्यकरण 'चिट्ठी' कविता माँ भौत भलो हुयूं च।
हिंदी मुवावरों गढवालीकरण बढिया ढंग से हुंयुं च जन कि बंठा लिजाण या गागर कविता माँ 'पेट में चूहे कूदने ' क जगा बडोनीन प्रयोग करी -
वैका पोटगा म
भूखा का
मूसौं कू मनाण छौ लगायुं
कवितौंम मुहवरा खूब छन जो समुचित चित्र बणाणम सफल छन अर कवितौंम ऊर्जा लांदन।

डा सत्यानन्द बडोनी कवितौं बांचिक अंग्रेज साहित्यौ अंक्यानेर (समालोचक) हैजलिट का यी शब्द बरबस याद आइ गेन," कै मार्मिक वस्तु या घटना कु प्रत्यक्षीकरण से सम्मूर्तन प्रक्रिया अर सान्द्र भावानुभूति तै गति शील बणान वळी सम्वेदना से विशेष प्रकारै स्वर-प्रक्रिया अर ध्वनि प्रवाहक रूपम जन्मण वळि मानसिक प्रक्रिया ही कविता च।"

लोकमंगल तै अहमियत दिन्देर कवि डा सत्यानन्द बडोनीक पैलो कविता-खौळ (संग्रह ) 'ताता दूधै घूंट' पर वधाई अर आशा च कि अग्वाड़ी, डा सत्यानन्द बडोनी बर्सकुल कविता-खौळ छ्पाला।

Regards
B. C. Kukreti

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