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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, February 24, 2013

गढ़वळि साहित्यम साक्षात्कारै (मुखाभेंट) परम्परा


भीष्म कुकरेती
 
(s =अधा अ )
कैं बि भाषा साहित्यम साक्षात्कार एक महत्वपूर्ण अर गुरु गम्भीर विधा च। साक्षात्कारम इंटरव्यू दीण वळो जबाब इ ना साक्षात्कार करण वळो सवाल बि भाषा, समाज अर साहित्यौ बान अति महत्वपूर्ण होंदन। साक्षात्कारों ध्येय बंचनेरूं तै साक्षात्कार दिंदेरौ दगड़ जुड़नो हूंद अर वै नामी गिरामीs बात बंचनेरूं मगज मा बिठाण होंद। इलैइ साहित्यौ साक्षात्कारम इ ख़ास दिखे जांद कि क्वी ख़ास उदेश्य मील च कि ना।

गढ़वळि भाषाम स्द्यनि बिटेन लिखणौ माध्यमै कमि रायि अर योइ वजै छ बल पुराणों गढ़वाली दस्तावेज कम इ मिल्दन। इनि आजौ-जुग (आधुनिक) को बि हाल च। पत्र -पत्रिकौं कमि होण से साक्षात्कार लीण-दीणौ रिवाज राइ नी च। यो हि वजै च बल ' गाडम्यटेकि गंगा'म(सम्पादक अबोध बंधु बहुगुणा, १९७५) गढ़वळि साहित्यम साक्षात्कारै क्वी छ्वीं नि लगिन। डा अनिल डबरालन अपणि खुजनेरी पोथी ''गढवाली गद्य की परम्परा :इतिहास से वर्तमान तक (२००७ )'म सिरफ चार साक्षात्कारों को जिकर करि।
गढ़वळि साक्षात्कार द्वी किस्मौ भौण मिल्दि-

1-क्वी ख़ास बात पर ध्यान केन्द्रित रौंद जन कि भीष्म कुकरेतीs अर्जुन सिंह गुसाईं अर अबोध बंधु बहुगुणाs दगड़ मुखाभेंट या मदन डुकलाणो ललित मोहन थपलियालs दगड़ इंटरव्यू।
2- जनरलाइज किसमौ छवीं-बथ।

स्व' अदित्य्राम नवानी से जगदीश बडोला की बातचीत (चिट्ठी १९८५ ) : डा अनिल हिसाबं यो एक ऐतिहासिक बातचीत च पण सामन्य किस्मु च अर नोटिस मात्र च.

डा अनिलक हिसाबन साहित्यिक दृष्टिन भीष्म कुकरेती गढवाली भाषाम साक्षात्कार को सूत्रधार 
असलियतम गढ़वळि साहित्यम साक्षात्कारै पवाण लोकेश नवानीक कोशिश से हि लग। लोकेश 'धाद' मासिक को असली करता -धरता छौ। सन 1987-88म लोकेश की ए लेखौ लिख्वारो दगड़ छ्वीं लग त बात आइ बल गढ़वळि साहित्यम साक्षात्कारै/भेंटवार्ताs क्वी अंत-पंत नी च। फिर मीन हिलांस सम्पादक अर्जुन सिंह गुसाईं को एक इंटरव्यू ले। चूंकि मेरो चबोड्या या घपरोऴया लेख 'धाद'म भीष्म कुकरेतीs नाम से छपदो इ छौ त म्यरो दगड़ अर्जुन सिंह गुसाईंक इंटरव्यू 'गौंत्या' नाम से धाद (मार्च 1987)छप।
ये मुखाभेंटो जिकर अर विशेलेषण डा अनिल डबरालन अपण किताबम इन कार-

"यह साक्षात्कार गढवाली का मानकीकरण विषय की ओर ढल गया था. अत : इस साक्षात्कार ने गढवाली मानकीकरण बहस को आगे बढाया ". डा अनिल को मत ये साक्षात्कार पर इन च " मानकीकरण के क्रम में यह साक्षात्कार मूल्यवान है. इसलिए कि इसमें मध्यमार्ग अपनाया हुआ है , और विवेचन बहुत नापा तुला है. अर्जुन सिंह गुसाईं का मत है कि मानकीकरण से पहले प्रत्येक क्षेत्र की शब्दावली साहित्य रूप में आ जानी चाहिए. यही बात डा पार्थ सारथी डबराल ने 'अंतर्ज्वाला' में अपने साक्षात्कार में चुटकी लेते कहा "सासू क नौ च रुणक्या , ब्वारी क नौ च बिछना , सरा रात भड्डू बाजे, खाण पीण को कुछ्ना"
डा डबराल अग्वाड़ी लिखद बल " प्रश्न छोटे हैं 'क्या', किलै', जन कि ?. सम्पूर्ण वाक्य ना होने से साक्षात्कार का सौन्दर्य घटा है."
पराशर गौड़ : सन 1987- 1988 का करीब इ पाराशर गौड़s जीत सिंह जीs दगड़ 'जीत सिंह नेगी दगड द्वी छ्वीं ' नाम से इंटरव्यू छ्प. ये साक्षात्कारम जीत सिंह नेगी जी अणसुण्या गुण चरित्र समिण ऐन। वो बिगळि बात च बल डा . अनिल डबरालो हिसाबन सामन्य स्तर को साक्षात्कार छौ। भीष्म कुकरेतीs बुलण च बल गढ़वळि भाषाम यि साक्षात्कार को पवाणी दिन छा त कमि-बेशि हूण लाजमि छौ.

भीष्म कुकरेतीs दुसरो साक्षात्कार - ' गौन्त्या ' को नामs भीष्म कुकरेती कु दुसर साक्षत्कार धाद (१९८८)म छ्प. यु इंटरव्यू मुंबई का उद्योगपति गीता राम भट्टs दगड़ छौ . ये साक्षत्कारम गीता रामौ उद्योगपति बणणौ जात्रा, गढ़वळि भाषा-संस्कृति अर प्रवास्युं अपण आपसम गढ़वळिम बचऴयाण जन विषय उठाये गेन.

अनिल कोठियालs साहित्यकार गुणा नन्द 'पथिक' से बातचीत (चिट्ठी १९८९)- डा अनिलs लिखण च बल वार्ता बड़ी महत्वपूर्ण च अर विश्लेष्णात्मक वार्तालाप च किलैकि ये इंटरव्यूमा गढ़वाली मनिख अर वैको साहत्य मुतालिक कथगा इ नया आयाम समिण ऐन।

भीष्म कुकरेतीs अबोध बंधु बहुगुणा दगड़ 'गढवाळी साहित्य मा हास्य' एक यादगार साक्षात्कार- गढ़ ऐना (१३-१६ फरवरी १९९१ व धाद मई १९९१ )मा भीष्म कुकरेतीs अबोध बंधु बहुगुणा दगड़ 'गढवाली साहित्य मा हास्य' पर वार्तालाप गढ़वळी साहित्यौ बान एक कामयाब अर फैदाकारी छ्वी छ। ए साक्षत्कारम हौंस, हौंसड़्या, चबोड़-चखन्योर्या साहित्य की परिभाषा अर गढवाली लोक गीत, एवम लोक कथाओं में ; गढवाली कविता (१७५०-१९९०, १९०१-१९५०, १९५१-१९८०, १९८०-१९९० तक ) मा युग क्रम से हास्य, हिंदी साहित्य को गढवाली हास्य पर प्रभाव; गढवाली गद्यम हास्य ; गढवाली नाटकोंम हास्य (१९००-१९९०); गढवाली कहानियोंमा हास्य (१९००-१९९०); गढ़वाली में लेखोंम हास्य -व्यंग्य, गढवाली कैस्सेटोंम हास्य; गढवाली फिल्मों मा हास्य जन बथों पर गंभीर छ्वीं लगिन। यांको अलावा गढवाली साहित्य म भविष्य का हास्य जन विषयों पर लम्बी सार्थक, अन्वेषणात्मक बातचीत ह्वे। पूरण पंत को हिसाबन यो एक ऐतिहासिक साक्षात्कार च.

भीष्म कुकरेती व अबोध बंधु बहुगुणाs साथ बातचीत ( २००५म प्रकाशित ): भीष्म कुकरेती द्वारा बहुगुणा दगड़ बहुगुणा को कृत्तव पर आत्मीय बातचीत ह्वे जो 'बहुगुणा अभिनन्दनम' छ्प.

देवेन्द्र जोशी के बुद्धि बल्लभ थपलियाल से वार्ता (चिट्ठी पतरी १९९९) : यीं बचऴयातम देवेन्द्र जोशी इंटरव्यू लीणों कौंळs दर्शन हुँदन। बुद्धि बल्लभs गढ़वाली भाषा से प्यार बि ये साक्षात्कारम साफ़ दिखेंद तबि त बुद्धि बल्लभ थपलियाल बुलद,"गढवाळी कविता , हिंदी कविता से जादा सरस, उक्तिपूर्ण अर आकर्षक लगदन".

डा.नन्द किशोर ढौंडियालs संसार प्रसिद्ध इतिहासकार डा शिव प्रसाद डबराल दगड़ साक्षात्कार (चिट्ठी पतरी, २०००)- यो सही ढंगों साक्षत्कार कम च बल्कणम डा शिव प्रसादs एक दिन बिताणों ब्योरा जादा च.

,वीणा पाणी जोशी को अर्जुन सिंह गुसाईं से साक्षात्कार (चिट्ठी पतरी , २०००); जै बगत भग्यान अर्जुन सिंह गुसाईं कैंसर पीड़ित छया त गढ़वळी लिख्यारण वीणा जोशिन अर्जुन सिंह गुसाईं दगड़ साक्षत्कार करि।यो साक्षत्कार प्रवास्युं सांस्कृतिक अर सामजिक अवस्थाओं मा उदासीनता की कथा बान ऐतिहासिक च। अर्जुन सिंह बुल्दो," ," यख (मुंबई) जो श्री नन्द किशोर नौटियाल, डा शशि शेखर नैथानी, डा राधा बल्लभ डोभाल, श्री भीष्म कुकरेती बगैरह गढवाली सांस्कृतिक गतिविध्युं पर रूचि ल्हेंदा छाया पर अब त सब्बी चुप दिखेणा छन ". साक्षात्कार इंटरव्यू विधाक दगड़ पूरो न्याय करदो कि इंटरव्यूमा साहित्य, समाज, सरकार, प्रशाशन को भितरवांस लोगुं समिण आण चयेंद। यो इंटरव्यू एक दस्तावेज बि च जो चिंता जतान्दो कि कन प्रवास्यूं संवेदना धीरे धीरे साहित्य, समाज, अर साहित्य बराम खतम होणि च.

मदन डुकलाण का जग प्रसिद्ध नाट्यकार ललित मोहन थपलियाल से साक्षात्कार (चिट्ठी-पतरी२००२):ललित मोहन थपलियाल इं सदी १०० महान नाटककारों की श्रेणीम आंदो। मदन डुकलाणो महान नाट्यकर्मी ललित मोहन थपलियालs दगड़ मुखाभेंट गढ़वळि साहित्यौ बान एक ऐतिहासिक साक्षात्कार माने जांद। खाडु लापता , एकीकरण जन स्वांगों से इ लोग थपलियाल तै जाणदा छा। पैलि दै लोखुं तैं गढवाली नाटकों विकास बाराम ललित मोहन को मन्शा पता चौल. थपलियालो बुलण छौ बल गढ़वाली नाटकों प्रचार/जमघट लगाणों वास्ता मानक गढवाली जरूरी च।यांक अलावा नाटक विधा का कथगा इ आयामों पर बि छ्वीं छन ये मुखाभेंटम

समालोचना पर भीष्म कुकरेती व अबोध बंधु बहुगुणाs मध्य 'मुखाभेंट ' एक हौरि ऐतिहासिक साक्षात्कार: सन २००३म भीष्म कुकरेती कु अबोध बहुगुणा से 'गढवाली समालोचना' पर एक साक्षात्कार ह्वे छौ जों 'चिट्ठी पतरी' के अबोध बंधु बहुगुणा स्मृति विशेषांक (२००५)म छ्प्यायि। यो लिखाभेंट एक मीलो पथर च।गढ़वाली आलोचना इतियासो बान या लिखाभेंट भौति कीमती च। येमा भीष्म कुकरेतिन अबोध बन्धु बहुगुणा तै गढ़वाली साहित्यौ राम चन्द्र शुक्ल ब्वाल तो अबोध बंधुन कुछ साहित्यकारों तै इन पदवी दे:

गोविन्द चातक = भूमिका लिखन्देर
भीष्म कुकरेती =घपरोळया अर खरोळया लिख्वार
राजेन्द्र रावत = सक्षम आलोचक
महावीर प्रसाद व्यासुडी =विश्लेषक लिख्वार
डा नन्द किशोर ढौंडियाल = जणगरु अर साहित्य विश्लेषक
वीरेन्द्र पंवार =आलेखकार अर आलोचक
सुदामा प्रसाद प्रेमी =छंट्वा खुजनेर
डा हरि दत्त भट्ट शैलेश= जन साहित्य का हिमैती
सतेश्वर आज़ाद = मंच संचालन मा चकाचुर
उमा शंकर समदर्शी =किताबुं भूमिका लेखक
डा कुसुम नौटियाल = हिंदी मा गढवाली साहित्यौ शोधकर्ता

आशीष सुंदरियाल का स्वतंत्रतासेनानी व गढवाली के मान्य साहित्यकार सत्य प्रसाद रतूड़ी से वार्तालाप(चि.पतरी २००३) : ये वार्तालापम रतूड़ीन णे स्वतंत्रता आन्दोलनs समौ पर साहित्य का प्रति चिंतन व आज को चिंतन , स्थानीय भाषाओंs महत्व जन विषयों पर चर्चा करि अर बोलि बल ' पौराणिक व पारंपरिक रीति रिवाज, तीज, त्यौहार आदि पर लिखे सक्यांद अर लिखे जाण चएंद'.

मदन डुकल़ाण की मैती आन्दोलन प्रेणेता कल्याण सिंह से वार्ता (चिट्ठी पतरी , २००३ ) : या वार्तालाप एक सार्थक वार्तालाप च जैमा पर्यावरण का कथगा इ नै पक्षों पर विचार-विमर्श ह्वे।

मदन डुकल़ाण व गिरीश सुंदरियाल की महाकवि कन्हया लाल डंडरियाल से भेंटवार्ता (चिट्ठी पतरी २००४): चिट्ठी पतरीs डंडरियाल स्मृति विशेषांकम या वार्ता प्रकाशित्यायि। .दिल्लीम गढवाली साहित्यिक जगतs कथगा इ रहस्य बथान्दो यु वार्तालाप एक समळौण्या व साहित्यिक दृष्टिन बडैलैक, जरूरी वार्तालाप च।

आशीष सुंदरियाल का जग प्रसिद्ध गायक जीत सिंह नेगी से साक्षात्कार (चिट्ठी पतरी , २००६) -आशीषन जीत सिंह नेगी को विशिष्ठ गायक कलाकार बणनो कथा की प्रभावकारी ढंग से जाँच पड़ताल कार।

गढवाळी को संवेदनशील वार्ताकार वीरेंद्र पंवार : गढवाली भाषाम भीष्म कुकरेती अर गढवालीs प्रसिद्ध कवि, समालोचक वीरेंद्र पंवार का सबसे जादा साक्षत्कार छपीं छ्न। वीरेंद्र पंवारन सन २००० से तौळौ साहित्यकारों दगड़ साक्षात्कार कार।
जीवा नन्द सुयाल (खबर सार, २०००): ये साक्षात्कारम जीवानंद सुयालन छंद कविता का सिद्धांत, उपयोगिता व पाठकों की छंद कविताम अरुचि की बात समझाई।

महेश तिवाड़ी ((खबर सार) महेश तिवाड़ीs दगड संगीत व कविताओं पर तर्कसंगत वार्ता च।
रघुवीर सिंह 'अयाळ ' : ((खबर सार, २००१) 'अयाळ 'न चबोड़्या- व्यंग्य विधा पर साहित्यम जोर दीणै वकालत करि।
मधु सुदन थपलियाल ((खबर सार, २००२) थपलियालन गढ़वळी भाषा विकासs बान राजनैतिक लड़ाई की हिमायत कै।
कुमाउनी साहित्यकार मथुरा प्रसाद मठपाल ((खबर सार, २००३) मठपालन कुमाउनी साहित्यम कमजोर गद्य को बारेम कारण अर व साधन बतैन।

अबोध बंधु बहुगुणा ((खबर सार, २००४ ); "गढ़वाली आखिरकार क्योकर अभिवक्ति के मामले में हिंदी से बेहतर है" पर एक जोरदार वार्ता च।

लोकेश नवानी ( खबर सार , २००५) भाषा विकासम धाद सरीखा आन्दोलनs महत्ता पर बेबाक बातचीत च।
अमेरिकन लोक साहित्य विशेषग्य स्टीफेनसन सिओल ((खबर सार, २००५ ) गढ़वाली लोक वाद्यों पर विशेष चर्चा ह्वे। वार्ताम में अल्लें विश्व विद्यालय को प्रोफ़ेसरन बोली बल गढवाली लोक साहित्य अधिक भावना प्रधान च।

नरेंद्र सिंग नेगी ( खबर सार २००६) नौछमी नारेण गीतs प्रसिद्ध होण पर अफवाह छे बल नेगी राजनीतीम जाणों च। वै बगत नरेंद्र सिंह नेगीन ये साक्षात्कारम स्पष्ट किक बोलि बल वो राजनीतीम नि जालो अर संगीत संसारम ही रम्युं रालो।
राजेंद्र धष्माना (खबर सार, २०११) वार्तालापम गढवाली को सम्पूर्ण भाषा सिद्ध करदा राजेंद्र धष्मानान विश्वाश दिलाये बल भाषा विकाश या संरक्षण हेतु पाठ्यक्रम, भाषा पर शोध नहीं बल्कणम लोगों की मंशा जुमेवार होंदी।

बी.मोहन नेगी (खबर सार , २०११ ) यीं वार्ताम टेक्नोलोजी, ब्यूंत ,कला व कलाकार का भावों के मध्य संबंधों की जाँच पड़ताल बड़ी बढिया ह्वे।
भीष्म कुकरेती (खबर सार, २०११ ) वार्ताम भीष्म कुकरेती को साहित्य पर बेबाक, बिना हुज्जत की लम्बी बातचीत ह्वे।
कुमाउनी साहित्यकार शेर सिंह बिष्ट ( (खबर सार २०११ ): शेर सिंह बिष्टन कुमाउनी साहित्यs कुछ पक्षों तैं बंचनेरूं समक्ष रखि।
नरेंद्र सिंग नेगी दगड़ सन २०१२म एक हैंकि वार्तालाप हवे जो इन्टरनेट माध्यम मा बि छप अर बड़ी चर्चित वार्तालाप माने जांद।
ललित केशवानs दगड़ वार्तालाप (२०१२) मा साहित्य -समाज जन विषयों पर छ्र्चा हवे।

भीष्म कुकरेती द्वारा दस से अधिक साहित्यकारों दगड़ द्वी दें लिखाभेंटसन २०११- २०१२म भीष्म कुकरेतीन पारेश्वर गौड़, विजय गौड़, वीरेन्द्र पंवार, जगमोहन जयारा, प्रभात सेमवाल, विजय जेठुरी, राजेन्द्र कुंवर फरियादी, ब्रजेन्द्र नेगी, गीतेश नेगी, महेंद्र सिंह राणा, दिनेश ध्यानी, उदय ममगाईं साहित्यकारों दगड़ द्वी दें वार्तालाप ह्वे जो अपणो आपम गढ़वळी साहित्यम महत्वपूर्ण दस्तावेज छ्न। यूं द्वी वार्ताओं तैं मनोवैज्ञानिक वार्ता बुले जान्दि। यूं दुयी भेंट वार्ताओंम भीष्म कुकरेतीन कवि या साहित्यकार को बचपन अर माहौल को साहित्य रचना पर क्या क्या प्रभाव पड़दो, साहित्यकार बणन माँ क्या क्या माध्यम छन जो साहित्यकार तै प्रेरणा दीन्दन जन विषय उठायां छ्न।  यूँ वार्ताओं से साहित्यकार की मानसिकता  पता चलदी।  

ये तरां से हम पौंदवां कि गढ़वळी गद्यम सन 1987 से साक्षात्कार की ज्वा बिज्वाड़ लगि छे वा भलि भांति पौधा बणि गे अर आशा च यो पौधा एक घणों , छायादर, भौं भौं फौंटीदार, बड़ो डाळ बौणल।

Copyright@ Bhishm Kukreti, Mumbai 2011

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