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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, December 30, 2012

दामिनी

दामिनी 
हाँ  दामिनी 
देश की बेटी 
 भारत की बेटी 
नहीं रही 
व्यभिचार 
अत्याचार के खिलाफ 
लड़कर 
 जिंदगी से 
हार गयी 
सो गयी  खुद 
हमेशा के लिए 
लेकिन 
 जगा गयी 
देश  को 
देश के जनमानस को 
भारत को 
भारत की  अंतरात्मा को 
झकझोर गयी 
छोड़ गयी  एक सवाल 
क्या बेटी को जीने का हक़ नहीं 
दे गयी एक विचार 
हर बेटी  मेरे देश की अमानत है
छोड़ गयी एक चिंतन 
सबको अपनी जिंदगी जीने का हक़ है 
पैदा कर गयी एक आक्रोश 
अब हम नहीं  सहेंगे 
अब हम नहीं  रुकेंगे 
 ये मशाल जली है 
जलती  रहेगी 
नहीं बुझेगी 
नहीं बुझेगी 
नहीं बुझेगी।

   डॉ नरेन्द्र गौनियाल 

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